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कांग्रेस समर्थक ने उठाई नुसरत को मारने की माँग
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कांग्रेसी समर्थक एवं खुद को कांग्रेस के सोशल मीडिया का संयोजक बताने वाले हसन लसकर नाम के शख्स ने तृणमूल सांसद नुसरत जहाँ को जल्द मारने की बात कही है। लसकर का कहना है कि नुसरत जहां को जल्द मारना होगा, वरना पूरा मुस्लिम समुदाय खतरे में आ जाएगा।
नुसरत के लिए सरेआम ये जहर लसकर ने ट्वीट के जरिए उगला है। लसकर ने अपने ट्वीट में नुसरत को मारने की बात ऐसी तस्वीर पर प्रतिक्रिया देते हुए कही है, जिसमें एक ओर वे संसद में माँग में सिंदूर और गले में मंगलसूत्र पहनकर खड़ी हैं और दूसरी ओर बुर्के में एक औरत खड़ी है।



वहीं, लसकर का ट्विटर अकॉउंट देखने पर भी मालूम हुआ कि उसके अधिकतर ट्वीट नफरत से भरे हुए हैं। जिसमें कश्मीर संबधित पोस्ट हैं। जिनमें से एक में लिखा गया है कि कश्मीर कभी हिन्दुओं का नहीं हो सकता, बल्कि कश्मीर में हिन्दुओं का शमशान होगा।

गौरतलब है कि लसकर जैसे नफरत फैलाने वाले लोग नुसरत को पहले भी ट्रोल कर चुके हैं। उन्हें निखिल जैन से शादी करने से लेकर हिन्दू त्यौहारों में शिरकत करने तक में इस्लाम को शर्मसार करने वाला बताया जा चुका है।
इतना ही नहीं, दुर्गा पूजा में उन्हें पूजा करते देखकर मजहबी गुरू ये तक कह चुके हैं कि अगर उन्हें पूजा पाठ करना है तो वो इस्लाम को छोड़कर अपना धर्म परिवर्तन कर लें क्योंकि इस्लाम में ये सब हराम है।
नुसरत पर फतवा जारी किया मौलाना ने लेकिन राजदीप का गुस्सा मीडिया पर!
राजदीप सरदेसाई ने ट्वीट किया है कि एक “unknown Maulana” के “stupid remark” के आधार पर ‘बिग डिबेट’ नहीं चला देना चाहिए। अगर कोई ऐसा करता है तो वह ‘Islamo-phobia’ फैला रहा है। सही बात है- या शायद सही बात लगती, अगर राजदीप सरदेसाई का रवैया सभी मज़हबों/आस्थाओं के खिलाफ हिंसा या द्वेष न भड़काने को लेकर इतना ही संजीदा होता। लेकिन हिन्दुओं को लेकर उनका नज़रिया इसके उलट ही रहा है।
Something seriously wrong with many news channels. An unknown Maulana makes a stupid remark on Trinamool MP #NusratJahan dancing at Pujo, and this becomes the ‘big debate’ of the day! Islamo-phobia is the perpetual agenda: real issues like economy, environment be damned!— Rajdeep Sardesai (@sardesairajdeep) October 7, 2019
Rajdeep shouldn't you also control the content to which you object on your own channel? Shouldn't you Practice before you Preach?— digvijaya singh (@digvijaya_28) October 8, 2019
Rajdeep shouldn't you also control the content to which you object on your own channel? Shouldn't you Practice before you Preach?— digvijaya singh (@digvijaya_28) October 8, 2019
Hinduism is a great religion and those who kill in the name of cow protection do not represent my Hinduism. If that is ‘Hindu baiting’ so be it! Now enjoy Sunday and let’s look for the best in us, not the worst! https://t.co/SNZEjwE0Ms— Rajdeep Sardesai (@sardesairajdeep) July 22, 2018
Nothing troubles me more than a Hindu Muslim ‘mock fight’ on news tv where self styled sadhus and maulanas scream at each other. Economy in slowdown, jobs lost, and we remain tied into identity battles as a distraction! #AyodhyaCase— Rajdeep Sardesai (@sardesairajdeep) September 18, 2019
याद कीजिए पिछले लोक सभा चुनाव को, जिसमें कांग्रेस उम्मीदवार उर्मिला मातोंडकर ने ‘डर का माहौल है’ का हवाला देकर अपने चुनाव लड़ने को तर्कसंगत बताने की कोशिश की थी। उस समय जब यही राजदीप सरदेसाई उनका साक्षात्कार कर रहे थे तो मातोंडकर ने हिन्दू धर्म के बारे में कहा था, “… and the religion that has been known for its tolerance has turned out to be the most violent religion of them all”
नीचे के वीडियो में 5:30 से 5:40 तक आप उर्मिला को सुन सकते हैं, जहाँ सीधा-सीधा हमला धर्म पर ही था- किसी विचारधारा पर नहीं, किसी राजनीतिक दर्शन या व्यक्ति या पर नहीं, सीधे धर्म पर। और राजदीप सरदेसाई को उस पर चाय/कॉफ़ी/पानी का घूँट भरते हुए मौन सहमति देते देखा जा सकता है। न कोई सवाल, न टोकना, न कोई स्पष्टीकरण। उनकी मूक सहमति ऐसे थी जैसे हिन्दुओं को “सबसे हिंसक मज़हब/आस्था वाली कौम” कहा जाना सूरज के पूर्व से निकलने जितनी ‘obvious’ बात है- इस पर बहस क्या करना?
अगर राजदीप मोदी को उनकी चुप्पी से दंगों में सहभागी मानते हैं, तो उर्मिला मातोंडकर के हिन्दुओं को हिंसक बताने में भी उनकी सहभागिता चुप्पी के चलते मानी जाएगी।
यह कोई पहली और आखिरी घटना होती तो एक बार अपवाद माना भी जा सकता था। राजदीप सरदेसाई लगातार हिन्दुओं के बारे में वही चीजें अन्यायपूर्ण तरीके से कहते रहते हैं, जो अगर मुस्लिमों के बारे में न्यायोचित, तथ्यपरक तौर पर भी कही गई हो तो भी उन्हें तकलीफ़ होने लगती है। मसलन कुरआन के आधार पर भी इस्लाम की व्याख्या कर उसकी आलोचना करने वाले हिन्दुओं को राजदीप अक्सर बिन-मांगी सलाह देते फिरते हैं कि वे मुस्लिमों पर कोई ‘लेबल’ लगाने का हक़ नहीं रखते। और यही राजदीप लल्लनटॉप के सम्पादक सौरभ द्विवेदी के साथ लगभग हर सप्ताह हिन्दुओं पर ऐसी ही ‘ठप्पागिरी’ करते, किसका “हिंदूइस्म” सही, किसका गलत, इसकी विवेचना करते देखे जा सकते हैं।
“My Hinduism” के नाम पर हिन्दुओं के खिलाफ़ नफ़रत और भ्रम फ़ैलाने और उनकी धार्मिक भावनाएँ आहत कर उन्हें उकसाने (Hindu baiting) वाले राजदीप एक तरफ़ हिन्दुओं पर ही निशाना साधने के लिए “diversity” का नाटक करते हैं, और दूसरी ओर उसी diversity वाले धर्म के साधुओं पर निशाना इस आधार पर साधते हैं कि उनका साधु होना ‘स्व-घोषित’ है, किसी पवित्र किताब या ‘अथॉरिटी’ से ठप्पा-प्राप्त नहीं।
इस्लामोफोबिया सच में है या नहीं, मैं यह तो नहीं जानता। नहीं जानता, क्योंकि इस शब्द का अर्थ है कि मुसलमानों के व्यवहार और कुरान की आयतों की आलोचना गलत है, जबकि दुनिया भर में हो रहे बम धमाकों से लेकर महज़ ढोल बजा कर नाच लेने, या चूड़ी-बिंदी लगा लेने, पर नुसरत जहाँ के खिलाफ़ मुसलमानों की नाराज़गी से ऐसा लगता तो नहीं है। लेकिन इतना तो पक्का है कि राजदीप जैसे हिन्दूफ़ोबिक इन्सान को तो इस पर बोलने का कोई नैतिक हक़ नहीं है।
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