भारतीय जनता पार्टी के नेता और राज्य सभा के सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने विश्व हिन्दू परिषद के पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष स्वर्गीय अशोक सिंघल को भारत रत्न दिए जाने की माँग की है। साथ ही पूर्व केंद्रीय मंत्री ने इसके लिए तुरंत घोषणा की भी माँग की है। उनकी यह माँग राम जन्मभूमि आंदोलन की दशकों की माँग पर आज सुप्रीम कोर्ट की स्वीकृति की मुहर के आलोक में आई है।
गौरतलब है कि हार्वर्ड से पीएचडी अर्थशास्त्री सुब्रमण्यम स्वामी खुद भी आज अंततः सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुलझाए गए राम जन्मभूमि- बाबरी मस्जिद विवाद के पक्षकारों में से एक हैं। उन्होंने एक याचिका दायर कर अपने आस्था के आधार पर जन्मभूमि स्थल पर बनाने के मूलभूत संवैधानिक अधिकार को हिन्दू-मुस्लिम दोनों पक्षों के सम्पत्ति अधिकार से बड़ा बताया था। हालाँकि उनकी खुद की याचिका तो अदालत ने अंततः एक दूसरी बेंच के पास भेज दी, लेकिन इसके बाद इस मामले की प्रगति में अभूतपूर्व तेज़ी आई थी।
इस बारे में स्वामी हमेशा दावा करते रहे हैं कि उन्हें यह मामला सुलझवाने की ज़िम्मेदारी जन्मभूमि आंदोलन के आर्किटेक्ट माने जाने वाले सिंघल ने ही अपने अंतिम दिनों में सौंपी थी। बकौल स्वामी, सिंघल ने अपनी मृत्यु आसन्न देख उनसे वादा लिया था कि वे इस मामले का हल निकलवा कर राम मंदिर बनवाने का प्रयास करेंगे, जिसके बाद स्वामी ने उक्त याचिका डाली।
सिंघल के योगदान को आज फैसला आने के बाद स्वामी ही नहीं, कई अन्य भाजपा और हिंदूवादी संगठनों के नेताओं ने याद किया। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और गोरक्ष पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ ने सिंघल की रामशिला पूजन की फोटो अपने गुरु के गुरु योगी दिग्विजयनाथ के साथ ट्वीट की। संघ के विचारक केएन गोविंदाचार्य ने भी भाजपा के पितृ-पुरुष लाल कृष्ण आडवाणी के साथ सिंघल के योगदान को इस आंदोलन और इस क्षण के लिए सबसे अधिक श्रेय दिया।
2015 में अपनी मृत्यु को प्राप्त होने वाले सिंघल 1942 में संघ प्रचारक से सार्वजनिक जीवन की शुरुआत करने के बाद विभिन्न संघ परिवार के पदों से होते हुए 1981 में वीएचपी के राष्ट्रीय संयुक्त सचिव बने थे। आडवाणी के साथ उन्होंने जन्मभूमि आंदोलन का नेतृत्व किया था।
इसके अलावा उनके लिए भारत रत्न की माँग करने वाले सुब्रमण्यम स्वामी का भी मामले से पुराना संबंध रहा है ,एक ट्विटर हिअंडल ने आज सुबह स्वामी और तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के बीच 1992 में हुए पत्राचार को ट्विटर पर साझा किया था, जिसका स्वामी अकसर उल्लेख करते हैं। उसे रीट्वीट करते हुए स्वामी ने दस्तावेज़ों की वैधता पर मुहर भी लगा दी।
गौरतलब है कि हार्वर्ड से पीएचडी अर्थशास्त्री सुब्रमण्यम स्वामी खुद भी आज अंततः सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुलझाए गए राम जन्मभूमि- बाबरी मस्जिद विवाद के पक्षकारों में से एक हैं। उन्होंने एक याचिका दायर कर अपने आस्था के आधार पर जन्मभूमि स्थल पर बनाने के मूलभूत संवैधानिक अधिकार को हिन्दू-मुस्लिम दोनों पक्षों के सम्पत्ति अधिकार से बड़ा बताया था। हालाँकि उनकी खुद की याचिका तो अदालत ने अंततः एक दूसरी बेंच के पास भेज दी, लेकिन इसके बाद इस मामले की प्रगति में अभूतपूर्व तेज़ी आई थी।
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तत्कालीन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह की पुलिस ने अशोक सिंघल का बहाया था खून |
सिंघल के योगदान को आज फैसला आने के बाद स्वामी ही नहीं, कई अन्य भाजपा और हिंदूवादी संगठनों के नेताओं ने याद किया। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और गोरक्ष पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ ने सिंघल की रामशिला पूजन की फोटो अपने गुरु के गुरु योगी दिग्विजयनाथ के साथ ट्वीट की। संघ के विचारक केएन गोविंदाचार्य ने भी भाजपा के पितृ-पुरुष लाल कृष्ण आडवाणी के साथ सिंघल के योगदान को इस आंदोलन और इस क्षण के लिए सबसे अधिक श्रेय दिया।
At this hour of victory let us remember Shri Ashok Singhal. Namo Govt must immediately announce Bharat Ratna for him— Subramanian Swamy (@Swamy39) November 9, 2019
In 1992 PM PV Narsimha Rao sought help Dr @Swamy39 to resolve #Ayodhya #RamJanmaBhoomi Babri Masjid dispute between 2Parties— Sanatan Dharma (@HinduDharma1) November 9, 2019
Post whch Letter & Affadavit on behalf of Union of India on #RamMandir submitted before SC on 14.9.94 by PM Rao #JaiShriRam #AyodhyaHearing #ButForDrSwamy pic.twitter.com/jRLsHZxX4A
2015 में अपनी मृत्यु को प्राप्त होने वाले सिंघल 1942 में संघ प्रचारक से सार्वजनिक जीवन की शुरुआत करने के बाद विभिन्न संघ परिवार के पदों से होते हुए 1981 में वीएचपी के राष्ट्रीय संयुक्त सचिव बने थे। आडवाणी के साथ उन्होंने जन्मभूमि आंदोलन का नेतृत्व किया था।
इसके अलावा उनके लिए भारत रत्न की माँग करने वाले सुब्रमण्यम स्वामी का भी मामले से पुराना संबंध रहा है ,एक ट्विटर हिअंडल ने आज सुबह स्वामी और तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के बीच 1992 में हुए पत्राचार को ट्विटर पर साझा किया था, जिसका स्वामी अकसर उल्लेख करते हैं। उसे रीट्वीट करते हुए स्वामी ने दस्तावेज़ों की वैधता पर मुहर भी लगा दी।
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