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सांकेतिक चित्र |
सिस्टर लूसी की पुस्तक के कुछ अंश एक मलयालम पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित किए गए हैं। इसमें बताया गया है कि साइरो-मालाबार चर्च में उनका कैसा अनुभव रहा? ईसाई संस्थाओं द्वारा संचालित प्राइवेट स्कूलों में पादरियों द्वारा क्या गुल खिलाए जाते हैं, सिस्टर लूसी की पुस्तक में इसके कई उदाहरण मिलेंगे। पादरी और बिशप अपने पदों का दुरूपयोग करते हुए ननों के साथ जबरदस्ती कर यौन सम्बन्ध बनाते हैं। वो इसके लिए कई ननों की जबरन सहमति भी लेते हैं।
Sexual Predators within the walls of the church? Are our nuns and priests silently suffering sexual harassment in the name of religion? Sister Lucy Kalappura spills the beans with her autobiography titled 'Karthavinte Naamathil'.@xpresskerala https://t.co/gPTXdi6Me3— The New Indian Express (@NewIndianXpress) December 1, 2019
सिस्टर लूसी ने एक घटना का जिक्र किया है, जिसे जानना ज़रूरी है। जब वो मालाबार चर्च में थीं, तब वहाँ एक पादरी हुआ करता था। वो कॉलेज में पढ़ाता था और पास ही कॉन्वेंट में रहता था। कॉन्वेंट में उसने अपने लिए एक प्राइवेट कक्ष रखा था। उस पादरी को सुरक्षित सेक्स के लिए काउंसलिंग देने का कार्य सौंपा गया था। वह छात्रों को सेफ सेक्स के बारे में बताता था और सलाह देता था। लेकिन दिक्कत इससे नहीं थी। समस्या तब शुरू हुई, तब उक्त पादरी ने सेफ सेक्स के लिए ‘प्रैक्टिकल क्लास’ आयोजित करना शुरू किया।
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सांकेतिक चित्र |
सिस्टर लूसी ने लिखा कि कॉन्वेंट्स में जवान ननों को पादरियों के पास उनके ‘यौन सुख’ के लिए भेजा जाता था। वहाँ वो सभी ननें घंटों नंगी खड़ी रखी जाती थीं। वो लगातार गिड़गिड़ाती रहती थीं लेकिन उन्हें जाने नहीं दिया जाता था। कई ऐसे भी मामले हैं, जहाँ सीनियर ननों ने जूनियर ननों के साथ समलैंगिक सम्बन्ध बनाए। कई ऐसे मामले हैं, जहाँ नए पादरियों ने काम छोड़ देना ही उचित समझा क्योंकि पुराने पादरी उन्हें समलैंगिक सम्बन्ध बनाने को मज़बूर करते हैं। सिस्टर लूसी की आत्मकथा जल्द ही प्रकाशित होगी।
जब हिन्दू साधुओं के आश्रमों में इस तरह की घटनाएं होती है, खोजी पत्रकारों की भीड़ निकल आती है, लेकिन जब चर्चों में इस तरह की घटनाएं होती हैं, कोई खोजी पत्रकार नहीं बोलता। सबको केवल हिन्दू धर्म के विरुद्ध प्रचार कर अपनी TRP की चिंता होती है, परन्तु चर्चों पर चुप्पी साध लेते हैं, क्यों? नन गर्भ धारण कर लेती है, कारणों पर मीडिया के मुंह में दही जम जाती है, मीडिया भी पता नहीं कौन-सी धर्म-निरपेक्षता निभाती है?
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