
कांग्रेस और इसके समर्थक दल एवं पत्रकार अपनी रोटिओं की खातिर मुसलमानों में जहर ही घोलते दिख रहे हैं, लेकिन इस कानून से भविष्य में भारत को कितना बड़ा लाभ होने वाला है, उस सच्चाई को बताने का लेशमात्र भी प्रयास नहीं किया। जिस तरह अयोध्या और अनुच्छेद 370 को लेकर समस्त भारत को मुर्ख बनाये रख, विश्व में भारत को अपमानित करते रहे। मुसलमानों के दिमाग में जहर घोलने वालों को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि जिस दिन इसी मुसलमान को सच्चाई मालूम होगी, कोई इन्हे टके के भाव भी नहीं पूछेगा। दूसरे, विश्व में अब तक भारत ही एक ऐसा देश था, जहाँ नागरिकता कानून नहीं था। इस कानून का विरोध करने वाले क्या अवैध रूप से किसी भी मुस्लिम देश में रह सकते हैं?
टॉक शो में बात करते हुए राणा अयूब ने अयोध्या का मुद्दा भी उठाया और मोदी सरकार पर आरोप लगाया कि राम मंदिर के पक्ष में आए फैसले के पीछे भी मोदी सरकार ही जिम्मेदार है। दिलचस्प बात ये रही कि उन्होंने इस टॉक शो के दौरान बातों ही बातों में स्वीकार लिया कि हाल ही में सड़कों पर उतरी भीड़, सीएए के ख़िलाफ़ होते प्रदर्शन सब स्वाभाविक रूप से मजहबी थे। वे कहती हैं कि मुस्लिम आज सड़कों पर हैं, ताकि मोदी सरकार के फैसले के ख़िलाफ़ खुलकर अपनी मजहबी पहचान बता सकें।
"Mr. Modi has driven Muslims of this country to the wall," @RanaAyyub says of the mass protests in India, where 27 have been killed and more than 1,000 arrested. "I think they have chosen now to break the silence because Mr. Modi is seeking to delegitimize their existence." pic.twitter.com/nBOYoDfvMh— Democracy Now! (@democracynow) January 2, 2020
चूँकि ऐसी स्थिति में जब सीएए के विरोध के नाम पर प्रदर्शनकारियों को देश ने अपनी आँखों के आगे, मीडिया के जरिए, सोशल मीडिया के हवाले से करोड़ों की सार्वजनिक संपत्ति फूँकते देखा है, तब अगर राणा अयूब कह रही हैं कि मुस्लिमों ने प्रदर्शन ‘शांतिपूर्ण’ किया, तो एक बार बीते दिनों राज्य में हुई घटनाओं पर एक नजर दोबारा डालने की जरूरत है। जिससे पता चल सके कि आखिर इस विरोध में उतरे समुदाय विशेष के लोग कितने शांतिपूर्ण थे…
पश्चिम बंगाल
जुमे की नमाज के बाद और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का समर्थन पाकर यहाँ मुस्लिम भीड़ ने अपना उत्पात शुक्रवार के दिन शुरू किया। पूरे राज्य में हिंसा भड़काई गई। रेलवे स्टेशन, बस, टोल प्लॉजा जैसी अनेकों सार्वजिनक संपत्तियों को देखते ही देखते नष्ट कर दिया गया।
राणा अयूब द्वारा उल्लेखित इस शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने वाली मुस्लिम भीड़ ने एंबुलेंस पर पत्थर फेंका और बेलडांगा रेलवे स्टेशन पर भी तोड़फोड़ मचाई। साथ ही कई वीडियो में भी भीड़ रेलवे पटरियों को उखाड़ती दिखी।
इसके बाद भीड़ ने पश्चिम बंगाल में हावड़ा जिले में उत्पात मचाया। रेलवे स्टेशनों के रास्ते ब्लॉक कर दिए गए। यहाँ भी ट्रेन पर पत्थरबाजी हुई। ट्रेन का ड्राइवर घायल हो गया। साथ ही पूर्वी रेलवे के पश्चिमी विभाग को इसके कारण परेशानी झेलनी पड़ी।
फिर, इसी राज्य में मुस्लिमों की भीड़ ने मुर्शिदाबाद में आतंक मचाया। टोल प्लाजा को आग लगाया। सुजनीपारा रेलवे स्टेशन पर हमला किया। संकरेल रेलवे स्टेशन के टिकट काउंटर को निशाना बनाया और फिर उसे भी आग लगा के छोड़ दिया।
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली
बंगाल में हुई हिंसा धीरे-धीरे देश के कई कोनों में भड़क गई। दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों ने प्रदर्शन शुरू किया। यह देखते ही देखते कुछ समय में हिंसक हो गया। उपद्रवियों ने पहले खुद बसें जलाई, फिर बाद में इल्जाम पुलिस पर डाल दिया। हालाँकि, हाल में आई वीडियो से स्पष्ट हो गया कि आगजनी के पीछे कौन था।
इस दौरान विश्वविद्यालय परिसर में सांप्रदायिक नारे लगे। जिससे दिल्ली के अन्य इलाकों में भी मुस्लिमों ने प्रदर्शन के नाम पर हिंसा शुरू कर दी। सीलमपुर में इस बीच राणा अयूब के शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों द्वारा स्कूल बस पर पत्थर फेंके गए और पुलिस पर पत्थरबाजी के साथ बम फेंकने तक का प्रयास हुआ। इसके बाद दरियागंज में भी इस तरह का विरोध देखने को मिला।
उत्तर प्रदेश
प्रदेश में भाजपा सरकार होने के कारण शांतिदूत यहाँ और भी उग्र नजर आए। पुलिस पर पत्थरबाजी हुई। जुमे की नमाज के बाद कई जगह सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुँचाया गया। अमरोहा से लेकर बहराइच और संभल से लेकर अलीगढ़ तक हर जगह इस भीड़ द्वारा तोड़फोड़, आगजनी तो आम रही। मेरठ में तो दो युवकों ने खुलेआम पुलिस पर गोली चलाई। स्थिति इतनी ज्यादा हाथ से निकल गई कि पुलिस को हिंसा रोकने के लिए आँसू गोले का इस्तेमाल करना पड़ा और लाठी चार्ज करके उपद्रवियों को तितर-बितर करना पड़ा।
अवलोकन करें:-
गुजरात
19 दिसंबर को गुजरात के अहमदाबाद में भी प्रदर्शन हुआ। जहाँ इसी मुस्लिम भीड़ ने उत्पात मचाया। पत्थरबाजी की, पुलिस पर हमला किया और कई अधिकारियों को पीटा भी।
कर्नाटक
मंगलुरु से एक वीडियो आई। जिसमें दिखा कि उपद्रवी किस तरह पहले सीसीटीवी को नीचे की ओर अडजस्ट कर रहे हैं, ताकि उनकी करतूत वीडियो में न आ सके और फिर बड़ी तैयारी से इलाकों में हिंसा को अंजाम दे रहे हैं।
इन राज्यों में हुई घटनाओं से और प्रदर्शनकारियों के नाम पर काला पट्टी बाँधकर हिंसा कर रहे दंगाइयों की वीडियो राणा अयूब ने भी देखी होगी। लेकिन, उनका एजेंडा इन वीडियो के ईर्द-गिर्द नहीं है। शायद इसलिए वे इसपर बात नहीं करना चाहतीं। मगर, अगर समुदाय विशेष के लोगों के जुर्मों पर सरेआम बोल नहीं सकतीं, तो कम से कम मोदी सरकार को घेरने के लिए इस उपद्रवियों को शांतिदूत को न ही बताएँ। इस समय सोशल मीडिया पर कई सौ या शायद हजारों की तादाद में ऐसे सबूत वायरल हो रहे हैं जो राणा अयूब की फर्जी दावों को झूठा साबित करते हैं और बताते हैं कि सड़कों पर उतरी मुस्लिमों की भीड़ न शांतिपूर्ण हैं और न ही उनके उद्देश्य।
ये पहला, दूसरा, या तीसरा मामला नहीं है जब मोदी सरकार को घेरने के लिए राणा अयूब और उनके मीडिया कॉमरेडों का पर्दाफाश हुआ। इससे पहले कई ऐसे मौक़े आए हैं जिनके बाद इन लोगों की प्रतिक्रिया देखकर मालूम हुआ है कि ये मोदी सरकार की छवि को जनता के सामने धूमिल करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। चाहे फिर उसके लिए उन्हें खुलेआम झूठ बोलना पड़े। चाहे फिर उसके लिए सोशल मीडिया यूजर उन्हें ट्रोल ही क्यों न कर दें। चाहे फिर उनकी कही बातों पर फैक्ट चेक ही क्यों न हो जाए।
गौरतलब है कि अभी कुछ दिन पहले ही अमेरिका की हिन्दू-विरोधी राजनीतिक विशेषज्ञ क्रिस्टीन फेयर ने ट्विटर पर भारतीय प्रोपेगंडाबज पत्रकार राणा अयूब को जम कर लताड़ा था। लेकिन जैसे ही उन्हें पता चला कि अयूब भी उन्हीं की तरह हिन्दू-विरोधी है, क्रिस्टीन ने अपना ट्वीट डिलीट कर लिया।
उन्होंने लिखा था, “तुम बलूचिस्तान के नागरिकों, पश्तून और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के नागरिकों के लिए ख़ास दुआ क्यों नहीं कर रही हो? पाकिस्तानियों द्वारा इन सब पर अत्याचार किया जा रहा है। तुम्हारी फौज (पाकिस्तानी) और आईएसआई द्वारा तालिबान के आतंकियों का इस्तेमाल कर अफ़ग़ानों का नरसंहार कराया जा रहा है।"
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