अब एनआरआई समर्थकों का भी मोहभंग

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आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
दिल्ली में विधानसभा चुनाव को लेकर चुनावी हलचल तेज है। आम आदमी पार्टी के संयोजक और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल खुद जोर-शोर से चुनाव प्रचार में लगे हैं, लेकिन इस बार हैरानी की बात यह है कि 2013 और 2015 के विधानसभा चुनाव में जी-जान लगा देने वाले एनआरआई कार्यकर्ता पूरी तरह से गायब हैं। सवाल उठता है कि अन्ना आंदोलन से लेकर आम आदमी पार्टी की सरकार बनने तक अपना तन-मन-धन लगा देने वाले एनआरआई कार्यकर्ता आखिर गायब क्यों है?
असल में जनता से झूठे वादे कर सत्ता हथियाने वाले दिल्ली के विवादास्पद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अब पूरी दुनिया में बेनकाब हो चुके हैं। अन्ना आंदोलन का दुरुपयोग कर मुख्यमंत्री बने नौटंकीबाज की पोल-पट्टी अब पूरी तरह खुल चुकी है। व्यवस्था परिवर्तन के नारे के साथ कुर्सी संभालने वाले केजरीवाल ने जिस तरह से रंग बदले हैं उससे लोगों का मोहभंग हुआ है। शिकागो में रहने वाले आम आदमी पार्टी के पूर्व एनआरआई सह-संयोजक डॉ मुनीश रायजादा का कहना है कि विदेशों में रह रहे अप्रवासी भारतीय लोगों ने अपनी अच्छी-खासी नौकरियों को और पेशे को दरकिनार करते हुए अरविंद केजरीवाल की हर तरह से मदद की, लेकिन केजरीवाल ने पार्टी के सारे सिद्धांतों को दरकिनार कर दिया। चुनाव जीतने के बाद उन्होंने एनआरआई विंग को ही भंग कर दिया।
रायजादा का कहना है कि आम आदमी पार्टी का गठन वित्तीय पारदर्शिता, आतंरिक लोकतंत्र और राइट टू रिजेक्ट व राइट टू रिकॉल के सिद्धांतों पर हुआ था। साथ ही आंतरिक जांच सिस्टम भी लागू हुआ था। ये पार्टी के मजबूत स्तम्भ की तरह थे, लेकिन पिछले पांच वर्षों के दौरान अरविंद केजरीवाल ने इन सबको तिलांजलि दे दी है। वह अब ऐसी राजनीति में लिप्त हो गए, जिसे खत्म करने के लिए ही पार्टी का गठन किया गया था। उन्होंने पार्टी को एक तरह से अपनी जागीर समझ लिया है। ऐसा माहौल बना दिया कि उनके बराबर कोई दूसरा खड़ा न हो सके।
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Image may contain: 10 people, textरायजादा ने कहा है कि वह अगले सप्ताह 51 एनआरआई कार्यकर्ताओं के साथ दिल्ली पहुंच रहे हैं। उनके साथ वो लोग शामिल होंगे जो आम आदमी पार्टी के अपने मूल विचारधारा से यू-टर्न लेने से नाराज हैं। पार्टी वेबसाइट से चंदे का विवरण हटा लेने से नाराज एनआरआई कार्यकर्ता दिल्ली में केजरीवाल के खिलाफ कैंपेन में शामिल होकर घर-घर जाकर लोगों से केजरीवाल को चंदा नहीं देने की अपील करेगा।
डॉक्टर रायजादा ने अन्ना आंदोलन और आम आदमी पार्टी पर एक छः एपिसोड की वेब सिरीज़ भी बनाई है- ट्रांसपेरेंसी: पारदर्शिता।
डॉ. रायजादा ने वेब सिरीज़ के ट्रेलर के साथ दो गाने, ‘बोल रे दिल्ली बोल’ और ‘कितना चंदा जेब में आया’ भी रिलीज़ किया।
पारदर्शिता और भ्रष्टाचार मिटाने का दावा करने वाले केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी की वेबसाइट से चंदा देने वाले लोगों की लिस्ट हटा दी। चंदे को लेकर दूसरी पार्टियों पर सवाल उठाने वाली उनकी पार्टी ने वेबसाइट रीलांच के बाद से दानदाताओं की लिस्ट के ऑप्शन को हटा दिया।
केजरीवाल की फितरत में है धोखा देना
दिल्ली के विवादास्पद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपनी सुविधा की राजनीति करने के लिए जाने जाते हैं। केजरीवाल ने समय-समय पर कई संगठनों और व्यक्तियों का सीढ़ियों की तरह इस्तेमाल किया और आगे बढ़ते गए। जिस किसी ने भी उनकी सोच या कार्यशैली का विरोध किया, केजरीवाल ने उनका साथ छोड़ दिया। कई लोग जो केजरीवाल के साथ घुटन महसूस करते थे उन्होंने पार्टी खुद ही छोड़ दी। कई ऐसे भी हैं जिन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया या फिर उन्हें ‘सबक’ सिखाया गया।

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अरुणा रॉय का साथ छोड़ा
अरविंद केजरीवाल का मन आईआरएस की नौकरी से ज्यादा अपनी संस्था ‘परिवर्तन’ में ही लगा रहता था। इसी दौरान उनको मैगसासे अवार्ड मिला और उसके धन से दिसबंर 2006 में एक नई संस्था पब्लिक कॉज रिसर्च फाउंडेशन बनाया। इसके बाद सितंबर 2010 में अरुणा रॉय के नेतृत्व में स्वयंसेवी संस्थाओं के ग्रुप नेशनल कैंपेन फॉर पीपल राइट टू इनफॉरमेशन की लोकपाल ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष बने। यहां से केजरीवाल को एक नये आंदोलन की रुपरेखा समझ में आयी और अरुणा राय को छोड़कर अन्ना हजारे के साथ महाआंदोलन की तैयारी करने लगे।

Image may contain: 2 peopleImage result for anna hazareअन्ना हजारे का साथ लेना और फिर दरकिनार कर देना
अन्ना हजारे के नेतृत्व में जनलोकपाल की ऐतिहासिक लड़ाई हुई, जिनके अनशन के सामने पूरी सरकार ने घुटने टेक दिए। पर, स्वार्थ का राजनीतिक फल खाने के लिए केजरीवाल ने अन्ना को ही ठेंगा दिखला दिया। केजरीवाल ने सारे आंदोलन को अपने हाथ में ले लिया। केजरीवाल ने कहना शुरु कर दिया कि राजनीति का कीचड़ साफ करना है तो कीचड़ में उतरना ही पड़ेगा। अन्ना के विरोध के बाद भी केजरीवाल ने 26 नवंबर 2012 को आम आदमी पार्टी का गठन कर दिया। अब अन्ना और केजरीवाल के सुर नहीं मिलते, अन्ना केजरीवाल पर धोखा देने तक का आरोप लगा चुके है। मार्च 2013 में एक अंग्रेजी न्यूज चैनेल को दिए अपने इंटरव्यू में केजरीवाल ने कहा कि अन्ना और मेरे बीच विश्वास की कमी हो गई थी जिसकी वजह से हम दोनों के रास्ते अलग हो गये।

Image may contain: 7 peopleशांति भूषण को किनारे किया
पार्टी के वयोवृद्ध और संस्थापक नेता शांति भूषण ने केजरीवाल की तानाशाही के खिलाफ अपनी आवाज बुलन्द की और आंतरिक लोकतंत्र का सवाल उठाया। उन्होंने पैसे लेकर टिकट बांटने के आरोप भी लगाए। बदले में केजरीवाल ने उन्हें अपना दुश्मन मान लिया और बुरा-भला कहते हुए पार्टी के दरवाजे शांति भूषण के लिए बंद कर दिए। जबकि पार्टी को खड़ा करने में इन्होंने अपनी गाढ़ी मेहनत की कमाई भी लगाई थी।

Image result for yogendra yadavयोगेन्द्र यादव हुए तानाशाही के शिकार
अन्ना आंदोलन से लेकर आप के गठन तक में थिंक टैंक का हिस्सा रहे योगेन्द्र यादव। आप को शून्य से शिखर तक लाने में इनके राजनीतिक विश्लेषण का भरपूर इस्तेमाल किया गया। लेकिन जैसे ही इन्होंने केजरीवाल की मनमानी का विरोध किया, तो केजरीवाल ने उनके लिए गाली-गलौच करने से भी गुरेज नहीं की। बाद में बे-इज्जत कर पार्टी से भी निकाल दिया।

Image may contain: 1 personकेजरीवाल ने शांति भूषण, प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव तीनों को पार्टी विरोधी गतिविधियों का आरोप लगाकर बाहर का रास्ता दिखाया था। 28 मार्च 2015 को हुई दिल्ली के कापसहेड़ा में नेशनल कांउसिल की मीटिंग में जो हुआ उससे साफ पता चलता है कि केजरीवाल कितने तानाशाही प्रवृति के हैं। मीटिंग में प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव, अजीत झा और प्रोफेसर आनंद कुमार को राष्ट्रीय कार्यकारिणी से बाहर निकाल दिया गया। इन्हें बाउंसर्स की मदद से उन्हें घसीटकर बाहर निकाल दिया गया।
प्रोफेसर आनन्द कुमार भी हुए बाहर
टीम केजरीवाल में थिंकटैंक का हिस्सा रहे प्रोफेसर आनन्द कुमार ने जब पार्टी और सरकार में एक व्यक्ति एक पद की बात उठायी तो अरविन्द केजरीवाल भड़क गये। पार्टी के संयोजक पद से इस्तीफे का दांव खेलकर केजरीवाल ने प्रोफेसर आनन्द कुमार, योगेंद्र यादव और प्रशान्त भूषण को एक झटके में पार्टी से निकाल दिया।

जनरल वीके सिंह की नहीं हुई पूछ
अन्ना आंदोलन में खुलकर अरविन्द केजरीवाल के साथ रहे जनरल वीके सिंह को केजरीवाल ने पार्टी बनाने के बाद नहीं पूछा। अपनी उपेक्षा से नाराज रहे वीके सिंह अन्ना के साथ जुड़े रहे। केजरीवाल की स्वार्थपरक राजनीति देखने के बाद जनरल वीके सिंह ने बीजेपी का साथ देने का फैसला किया।

शाजिया इल्मी भी साइडलाइन
शाजिया इल्मी पत्रकारिता से अन्ना आंदोलन में आईं। आम आदमी पार्टी के चर्चित चेहरों में से एक थीं। जब शाजिया ने महसूस किया कि खुद केजरीवाल ने उन्हें लोकसभा चुनाव में हराने का काम किया ताकि उनका कद ऊंचा ना हो सके, तो उन्होंने केजरीवाल पर महिला विरोधी होने का आरोप लगाते हुए पार्टी छोड़ दी। अब शाजिया बीजेपी में हैं।

मेधा पाटकर का नहीं कोई मान
आम आदमी पार्टी के लिए लोकसभा चुनाव लड़ चुकीं मेधा पाटेकर ने अपनी उपेक्षा से नाराज होकर अरविन्द केजरीवाल का साथ छोड़ दिया। मेधा ने केजरीवाल को मकसद से भटका हुआ बताया। दरअसल आम चुनाव में करारी हार के बाद केजरीवाल की सोच स्वार्थवश दिल्ली की सियासत तक सिमट गयी। फिर मेधा जैसे समाजसेवी उनके लिए यूजलेस और सियासी नजरिए से जूसलेस हो गयीं थीं।

जस्टिस संतोष हेगड़े भी हटे
जनलोकपाल का ड्राफ्ट जिन तीन लोगों ने मिलकर तैयार किया था उनमें से एक हैं जस्टिस संतोष हेगड़े। अन्ना आंदोलन में सक्रिय जुड़े रहे। पर, राजनीतिक महत्वाकांक्षा जगने के बाद केजरीवाल ने हेगड़े को भी किनारा करना शुरू कर दिया। उपेक्षित और अलग-थलग महसूस करने के बाद जस्टिस हेगड़े ने टीम अन्ना से दूरी बना ली। वो इतने खिन्न हो गये कि केजरीवाल के शपथग्रहण समारोह में बुलाए जाने के बाद भी नहीं पहुंचे।

श्री श्री रविशंकर ने कहा जय श्री राम
श्री श्री रवि शंकर ने अन्ना आंदोलन को अपना समर्थन दिया था। अरविन्द केजरीवाल के राजनीतिक दल बनाने को भी उन्होंने गलत नहीं बताया था। पर, केजरीवाल ने अपनी गतिविधियों से उनको नाराज कर दिया। श्री श्री रविशंकर ने कहा कि केजरीवाल ने दिखा दिया कि वो अन्य राजनेताओं से अलग नहीं हैं। सस्ती लोकप्रियता, उनकी अतिमहत्वाकांक्षा और तानाशाही ने लोगों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। केजरीवाल और श्री श्री में ट्विटर पर भी खुली जंग हुई।

एडमिरल रामदास ने भी कहा राम-राम
आम आदमी पार्टी में आंतरिक लोकपाल पूर्व नौसेनाध्यक्ष एडमिरल रामदास तब भौंचक रह गये जब उन्हें उनके पद से हटा दिया गया। एडमिरल रामदास ने कहा कि मैं यह जानकर चकित हूं कि अब पार्टी को मेरी जरूरत नहीं रही। आंदोलन से लेकर राजनीतिक दल बनने तक एडमिरल रामदास ने अरविन्द केजरीवाल का साथ दिया, लेकिन मौका मिलते ही उन्होंने उनसे इसलिए किनारा कर लिया क्योंकि लोकपाल के तौर पर उन्होंने किसी किस्म के समझौते से इनकार कर दिया था।

जेएम लिंग्दोह को दिया त्याग
पूर्व निर्वाचन आयुक्त लिंग्दोह की भूमिका जनलोकपाल बिल को तैयार करने में रही। लिंग्दोह उन चंद लोगों में शामिल रहे जिन्होंने खुलकर जनलोकपाल के लिए समर्थन दिया। राजनीतिक दल बना लेने के बाद केजरीवाल ने उन्हें भी त्याग दिया। दरअसल लिंग्दोह जैसे लोगों के रहते केजरीवाल के लिए पार्टी और सरकार में तानाशाही चलाना मुश्किल होता।

Image result for स्वामी अग्निवेशस्वामी अग्निवेश ने किया किनारा
एक समय अन्ना आंदोलन का चेहरा बन चुके थे अग्निवेश। सरकार और आंदोलनकारियों के बीच बातचीत में उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई। पर, बाद में अरविन्द केजरीवाल ने उनसे किनारा कर लिया। स्वामी अग्निवेश को पार्टी बनाने से पहले ही केजरीवाल ने त्याग दिया था। टीम केजरीवाल ने उन्हें कांग्रेस का दलाल साबित करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी।

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अंजलि दमानिया
महाराष्ट्र से आप की कार्यकर्ता और केजरीवाल की प्रमुख सहयोगी अंजलि दमानिया ने 11 मार्च 2015 को केजरीवाल का साथ छोड़ दिया। जिस तरह से प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव को निकालने के लिए केजरीवाल ने स्टिंग ऑपरेशन और अप्रजातंत्रिक हरकतें की थी उससे सभी दुखी थे, उनमें से एक अंजलि दमानिया भी थी।

मधु भादुड़ी
आप के संस्थापक सदस्यों में से एक मधु भादुड़ी ने 3 फरवरी 2014 को दिल्ली विधान सभा चुनावों के बाद आप छोड़ दिया। वो आप की विदेश नीति बनाने वाली समिति की सदस्य थी। उन्होंने इस्तीफा देते समय कहा कि आप में महिलाओं का सम्मान नहीं होता है। मेरा मात्र एक ही मुद्दा है कि महिलाऐं भी मुनष्य हैं और उनके साथ भी मनुष्य जैसा व्यवहार किया जाना चाहिए। पार्टी की मानसिकता खाप पंचायत जैसी है, इसमें महिलाओं के लिए कोई स्थान नहीं हैं। उनका केजरीवाल पर सीधा आरोप था कि यह पार्टी वोट के लिए बदल चुकी है और केवल चुनाव जीतना चाहती है

विनोद कुमार बिन्नी निकाले गए
दिल्ली में सरकार बनने के बाद सबसे पहले अरविन्द केजरीवाल की तानाशाही का विरोध विनोद कुमार बिन्नी ने ही किया था। बिन्नी ने खुलकर केजरीवाल के खिलाफ आरोप लगाए। इस वजह से उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया। बिन्नी तब से अरविन्द केजरीवाल के साथ थे जब अन्ना आंदोलन शुरू भी नहीं हुआ था।

मुफ्ती शमून कासमी को किया किनारे
अन्ना हजारे को धोखा देने की वजह से अरविन्द केजरीवाल से खफा हो गये मुफ्ती शमून कासमी। उन्होंने केजरीवाल पर अन्ना के कंधे पर रखकर बंदूक चलाने का आरोप लगाया। दिल्ली विधानसभा चुनाव में मौलाना की शरण में जाने के लिए भी कासमी ने केजरीवाल की निन्दा की और तभी कह दिया कि जरूरत पड़ी तो ये आदमी कांग्रेस से भी हाथ मिला सकता है। कासमी का दावा था कि केजरीवाल की सत्ता के लिए भूख सबसे पहले उन्होंने ही पहचानी।

कैप्टन गोपीनाथ ने छोड़ी पार्टी
भारत में कम कीमत के हवाई यातायात में प्रमुख भूमिका निभाने वाले जी आर गोपीनाथ को भी पार्टी छोड़नी पड़ी। पार्टी छोड़ते हुए गोपीनाथ ने अरविन्द केजरीवाल की कार्यप्रणाली की आलोचना की। उन्होंने कहा कि पार्टी केजरीवाल के नेतृत्व में रास्ते से भटक गयी है।

एसपी उदय कुमार नहीं कर सके एडजस्ट
विज्ञान के क्षेत्र में बड़े सम्मान से लिया जाने वाला नाम है एसपी उदयकुमार। उनके आम आदमी पार्टी में जुड़ने को बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखा गया था। लेकिन केजरीवाल के साथ वे भी एडजस्ट नहीं कर सके। उन्होंने दक्षिणी राज्यों की उपेक्षा की वजह से पार्टी छोड़ दी। ये उपेक्षा तो होनी ही थी क्योंकि वहां कोई राजनीतिक लाभ केजरीवाल के लिए नहीं था।

तानाशाही से खिन्न मयंक गांधी ने भी साथ छोड़ा
योगेन्द्र यादव, प्रशांत भूषण और अन्य साथियों को जिस तरह से केजरीवाल ने साजिश के साथ बाहर निकाला था, उसका खुलासा मयंक गांधी अपने ब्लॉग में किया। वह जानते थे कि उनकी पारदर्शिता की मांग से एक न एक दिन उन्हें भी केजरीवाल बाहर का रास्ता दिखा ही देंगे। 11 नवंबर 2015 को मयंक गांधी ने भी केजरीवाल की तानाशाही प्रवृति से तंग आकर इस्तीफा दे दिया.

एमएस धीर- धैर्य ने दिया जवाब
आप सरकार में स्पीकर रहे एमएस धीर का अरविन्द केजरीवाल से ऐसा मोहभंग हुआ कि उन्होंने पार्टी ही छोड़ दी। सिखों के प्रति केजरीवाल की कथनी और करनी में अंतर बताते हुए उन्होंने पार्टी छोड़ी। उन्होंने नेतृत्व पर सिख दंगे में मारे गये लोगों के परिजनों को इंसाफ दिलाने में विफल रहने का आरोप उन्होंने लगाया।

अजित झा हो गए आजिज
प्रोफेसर आनन्द कुमार के साथ अजित झा ने भी पार्टी के भीतर लोकतंत्र की आवाज उठायी। आंदोलन और पार्टी में सक्रिय रहे। केजरीवाल ने चर्चित फोन टेप कांड में अजित झा के लिए भी अपशब्द कहे थे। योगेंद्र यादव, आनन्द कुमार, प्रशांत भूषण के साथ-साथ इन्हें भी पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।

कपिल मिश्रा ने छोड़ा साथ
आम आदमी पार्टी के पूर्व नेता कपिल मिश्रा को अरविंद केजरीवाल पर भ्रष्टाचार करने का आरोप लगाने के कारण पार्टी से निकाल दिया गया। कपिल मिश्रा उन पर सत्येंद्र जैन से दो करोड़ रुपये की घूस लेने का आरोप लगा चुके हैं। कपिल मिश्रा के मुताबिक उन्होंने अपनी आंखों से ये होते देखा। ऐसे संगीन आरोप वाले कपिल मिश्रा का यह भी कहना है कि केजरीवाल ने बीस करोड़ रुपये से अधिक की हेराफेरी की है।

कुमार विश्वास बने शिकार
अरविंद केजरीवाल ने राज्यसभा टिकट बंटवारे के साथ ही कुमार विश्वास को किनारे लगा दिया। आम आदमी पार्टी के संस्थापकों में से एक कुमार विश्वास ने कहा कि उन्हें सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर तमाम मुद्दों पर सच बोलने की सजा दी गई। कुमार विश्वास ने कहा, ‘अरविंद ने मुझसे एक बार कहा था कि सर जी, आपको मारेंगे, पर शहीद नहीं होने देंगे। मैं अपनी शहादत स्वीकार करता हूं।’ केजरीवाल पर हमला बोलते हुए कुमार ने यह भी कहा कि उनसे असहमत होकर पार्टी में जीवित रहना संभव नहीं है।

आशुतोष के अरमानों पर फिरा पानी
पत्रकारिता छोड़कर राजनीति में आने वाले आशुतोष ने भी हाल ही में आम आदमी पार्टी को अलविदा कह दिया। उसके पहले आशुतोष ने ट्वीट कर ये आरोप लगाया कि पिछले लोकसभा चुनावों के दौरान पार्टी नेताओं ने उनसे उनकी जाति का इस्तेमाल करने को कहा था। उन्होंने लिखा, ’23 साल के पत्रकारिता करियर में मुझे कभी अपनी जाति का इस्तेमाल नहीं करना पड़ा, लेकिन जब मैं आम आदमी पार्टी के टिकट से चुनाव लड़ा, तब मुझे जाति का इस्तेमाल करने को कहा गया।’ साफ है आशुतोष को पता चल गया था कि आम आदमी पार्टी जाति आधारित राजनीति को बढ़ावा देती है। फिर भी वो चार साल तक पार्टी के साथ कदम से कदम मिलाकर चलते रहे, लेकिन फैसला तब जाकर किया जब राज्यसभा सांसद बनने के उनके अरमानों पर अरविंद केजरीवाल ने पानी फेर दिया।

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आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार शाहीन बाग़ का आंदोलन शुरू तो हुआ था सीएए विरोध के नाम पर लेकिन जिन भी नेताओं और पार्टिय.....
आशीष खेतान भी हुए परेशान
पार्टी के सीनियर लीडर आशीष खेतान ने भी आम आदमी पार्टी से इस्तीफा दे दिया। केजरीवाल के रवैये से परेशान होकर उन्होंने कहा कि अब वे लीगल प्रैक्टिस करेंगे। पार्टी में साइड लाइन होने के बाद से ही आशीष खेतान नाराज चल रहे थे।

Image result for एच एस फुल्काएच एस फुल्का का भी हुआ मोहभंग
पार्टी के वरिष्ठ नेता हरविंदर सिंह फुल्का ने भी हाल में इस्तीफा दे दिया। पेशे से वकील फुल्का दिल्ली में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच बढ़ती नजदीकी पर कई बार नाराजगी जता चुके हैं। एचएस फुल्का ने कई बार यह जिक्र किया था कि केजरीवाल सरकार ने 1984 के हिंसा पीड़ितों के लिए उम्मीद के मुताबिक काम नहीं किया। ना पीड़ित परिवारों को मुआवजा दिलवाया ना नौकरी दी।

केजरीवाल ने आंदोलन और राजनीति में जिन लोगों का साथ लिया उनको अपनी सोच मनवाने के लिए मजबूर करते रहे, जो मजबूर नहीं हुए उन्होंने साथ छोड़ दिया और जो मजबूर हैं आज उनके साथ हैं।(एजेंसीज इनपुट्स सहित)

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