आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
क्या पुलिसकर्मियों का कोई मानवाधिकार नहीं होता? मीडिया का एक बड़ा वर्ग आजकल पत्थरबाजों, दंगाइयों, उपद्रवियों और प्रदर्शनकारियों को एक श्रेणी में रख कर उन्हें बचाने में लगा हुआ है। जब पुलिस ऐसे उत्पातियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करती है तो उलटा पुलिस को ही दोषी ठहराया जाता है, सरकार को दोष दिया जाता है और दंगाइयों का महिमामंडन किया जाता है।
प्रश्न यह है कि आखिर किस कारण मीडिया दंगाइयों का महिमामंडन करती है? कभी मीडिया ने पुलिस पर हो रहे हमलों पर मानवाधिकार को दोषी नहीं बताया, क्यों? कश्मीर ने जब पुलिस और सुरक्षाकर्मियों पर हमले होते थे, कभी मीडिया ने प्रश्न नहीं किया कि क्यों पुलिस को निशाना बनाया जा रहा है? और जब कश्मीर में आर्मी ने एक पत्थरबाज को पकड़ जीप के आगे बांध पत्थरबाजों पर कार्यवाही करने पर मीडिया और मानवाधिकार ने आर्मी पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया, लेकिन पत्थरबाजों का किसी ने विरोध नहीं किया?
जामिया लाइब्रेरी कांड में भी कुछ ऐसा ही हुआ। कटे-छँटे वीडियो के आधार पर आरोप लगाया गया कि दिल्ली पुलिस पढ़ाई कर रहे छात्रों को पीट रही है। पूरा वीडियो आया तो पता चला कि पुलिस से बचने के लिए दंगाई लाइब्रेरी में घुस गए थे।
आज सुप्रीम कोर्ट ने भी शाहीन बाग़ उपद्रव को लेकर कह दिया कि विरोध प्रदर्शन जायज है, लेकिन इसके लिए सड़क जाम कर के लोगों को परेशानी में नहीं डाला जा सकता। वहीं सुपरस्टार रजनीकांत का भी एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें वो अपने बेबाक अंदाज़ में पुलिसकर्मियों पर हमला करनेवालों को लताड़ते हुए नज़र आ रहे हैं। रजनीकांत का ये वीडियो मई 2018 का है लेकिन सीएए विरोधी हिंसा मामले में ये आज भी उतना ही प्रासंगिक है, इसीलिए इसे आपको देखना चाहिए।
मीडिया से बात करते हुए रजनीकांत ने कहा था कि समस्याएँ तभी शुरू हुईं, जब असामाजिक तत्वों ने वर्दीधारियों पर हमला किया। अर्थात, पुलिसकर्मियों को निशाना बनाने से ही समस्या की शुरुआत हुई। सुपरस्टार ने इस सम्बन्ध में बोलते हुए आगे कहा था:
“पुलिसकर्मियों पर हमले किए जाने को कभी सही नहीं ठहराया जा सकता है। वर्दी में ड्यूटी पर लगे पुलिसवालों पर हमले करने के पक्ष में मैं कोई भी तर्क बर्दाश्त नहीं करूँगा। मैं तो कहता हूँ कि इसके बचाव में कोई तर्क हो ही नहीं सकता।”
उस समय जब मीडियाकर्मियों ने इस मसले पर रजनीकांत को घेरना चाहा तो उन्होंने धूर्त पत्रकारों डपटते हुए स्पष्ट कहा कि अगर उनके पास कोई अन्य सवाल है तो पूछें। रजनीकांत ने तभी कहा था कि अगर हर बार पर हर रोज विरोध प्रदर्शन होने लगे तो पूरा तमिलनाडु ही एक कब्रगाह में तब्दील हो जाएगा।
जामिया हिंसा मामले में उनकी बातें प्रासंगिक हैं लेकिन ये भी जानना ज़रूरी है कि उन्होंने मई 2018 में ये बयान क्यों दिया था। मई 22, 2018 को तनिलनाडु के थोट्टुकुंडी में स्टरलाइट फैक्ट्री के विरोध में 20 हज़ार लोग सड़क पर उतरे थे। इसी बीच असामाजिक तत्वों ने पुलिस पर हमला कर दिया, जिसके बाद पुलिस ने गोली चलाई। हिंसा में 13 लोग मारे गए और 100 से अधिक घायल हुए। रजनीकांत घायलों का हलचल जानने अस्पताल पहुँचे थे, तब उन्होंने ये बयान दिया था।
क्या पुलिसकर्मियों का कोई मानवाधिकार नहीं होता? मीडिया का एक बड़ा वर्ग आजकल पत्थरबाजों, दंगाइयों, उपद्रवियों और प्रदर्शनकारियों को एक श्रेणी में रख कर उन्हें बचाने में लगा हुआ है। जब पुलिस ऐसे उत्पातियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करती है तो उलटा पुलिस को ही दोषी ठहराया जाता है, सरकार को दोष दिया जाता है और दंगाइयों का महिमामंडन किया जाता है।
प्रश्न यह है कि आखिर किस कारण मीडिया दंगाइयों का महिमामंडन करती है? कभी मीडिया ने पुलिस पर हो रहे हमलों पर मानवाधिकार को दोषी नहीं बताया, क्यों? कश्मीर ने जब पुलिस और सुरक्षाकर्मियों पर हमले होते थे, कभी मीडिया ने प्रश्न नहीं किया कि क्यों पुलिस को निशाना बनाया जा रहा है? और जब कश्मीर में आर्मी ने एक पत्थरबाज को पकड़ जीप के आगे बांध पत्थरबाजों पर कार्यवाही करने पर मीडिया और मानवाधिकार ने आर्मी पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया, लेकिन पत्थरबाजों का किसी ने विरोध नहीं किया?
जामिया लाइब्रेरी कांड में भी कुछ ऐसा ही हुआ। कटे-छँटे वीडियो के आधार पर आरोप लगाया गया कि दिल्ली पुलिस पढ़ाई कर रहे छात्रों को पीट रही है। पूरा वीडियो आया तो पता चला कि पुलिस से बचने के लिए दंगाई लाइब्रेरी में घुस गए थे।


“पुलिसकर्मियों पर हमले किए जाने को कभी सही नहीं ठहराया जा सकता है। वर्दी में ड्यूटी पर लगे पुलिसवालों पर हमले करने के पक्ष में मैं कोई भी तर्क बर्दाश्त नहीं करूँगा। मैं तो कहता हूँ कि इसके बचाव में कोई तर्क हो ही नहीं सकता।”

जामिया हिंसा मामले में उनकी बातें प्रासंगिक हैं लेकिन ये भी जानना ज़रूरी है कि उन्होंने मई 2018 में ये बयान क्यों दिया था। मई 22, 2018 को तनिलनाडु के थोट्टुकुंडी में स्टरलाइट फैक्ट्री के विरोध में 20 हज़ार लोग सड़क पर उतरे थे। इसी बीच असामाजिक तत्वों ने पुलिस पर हमला कर दिया, जिसके बाद पुलिस ने गोली चलाई। हिंसा में 13 लोग मारे गए और 100 से अधिक घायल हुए। रजनीकांत घायलों का हलचल जानने अस्पताल पहुँचे थे, तब उन्होंने ये बयान दिया था।
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