मुस्लिम नरसंहार के लिए मोदी सरकार कर रही कोरोना का इस्तेमाल: अरुंधति रॉय

अरुंधति रॉय, कोरोना वायरस
आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
यह बहुत ही दुर्भाग्य की बात है कि कोरोना जिसने विश्व में अपनी चादर फैला रखी है, कहीं हिन्दू-मुस्लिम नहीं हो रहा, लेकिन भारत में हिन्दू-मुसलमान ढूंढा जा रहा है, कोरोना को मोदी सरकार का मुस्लिम संहार के लिए प्रयोग कर रही है, और इस जहर को वामपंथी मीडिया फ़ैलाने के लिए दिन-रात एक किए हुए है। वामपंथी यह घिनौना काम इसलिए कर रहे हैं क्योकि यह वैश्विक बीमारी कहीं और से नहीं बल्कि वामपंथियों की जन्मस्थली चीन से फैली है। 
भारत में वामपंथी हिन्दू-मुसलमान करने का साहस तो कर सकते हैं, लेकिन चीन में मुसलमान नहीं इस्लाम पर हो रहे कुठाराघातों के विरुद्ध किसी वामपंथी में लिखना तो दूर बोलने तक का साहस नहीं। कुछ दिनों बाद रमजान हैं, देखते हैं रोजा न रखने पर कितने वामपंथी चीन सरकार के विरुद्ध लिखते अथवा मुंह खोलते हैं? 
घनघोर वामपंथन अरुंधति रॉय को भारतीय मीडिया में अब कवरेज नहीं मिल रहा है। ऐसे में उन्होंने अपना प्रोपेगेंडा फैलाने के लिए एक जर्मन मीडिया संस्थान का सहारा लिया। ‘डीडब्ल्यू न्यूज़’ को इंटरव्यू देते हुए अरुंधति ने न सिर्फ़ भारत में कोरोना वायरस के प्रसार को लेकर अफवाह फैलाई, बल्कि मोदी सरकार को बदनाम करने के चक्कर में लोगों के बीच डर का माहौल बनाने का भी प्रयास किया। बिना किसी सबूत के उन्होंने भारत में कोरोना के आँकड़ों को ग़लत बताना शुरू कर दिया। उन्होंने कहा कि ये आधिकारिक आँकड़े मोदी सरकार के हैं, वो इस पर जरा भी विश्वास नहीं करतीं।
इसके बाद अरुंधति अपना वही पुराना ‘हिन्दू-मुस्लिम विवाद’ और ‘मुस्लिमों पर अत्याचार’ वाला राग लेकर बैठ गईं और कहा कि कोरोना के कारण भारत की ‘पोल खुल गई’ है। उन्होंने दावा किया कि भारत न सिर्फ़ कोरोना वायरस, बल्कि घृणा और भूख से भी बेहाल है। उन्होंने कहा कि कोरोना के कारण मुस्लिमों के ख़िलाफ़ घृणा में बढ़ोतरी हुई है। उन्होंने दिल्ली में हुए हिन्दू-विरोधी दंगों को भी मुस्लिमों के नरसंहार करार दिया और कहा कि उसके बाद से ही घृणा में बढ़ोतरी हुई है। वो यहाँ तक झूठ बोल बैठीं कि दिल्ली में हुए दंगे सीएए के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे लोगों पर अत्याचार के रूप में हुए थे।
जमातियों को बचाने पगलाई 
अरुंधति रॉय का ये बयान तबलीगी जमात वालों को बचाने की मुहिम सी लगती है, जिन्होंने देश भर में कोरोना फैलाया। दिल्ली के निजामुद्दीन स्थित मरकज़ में हज़ारों मुसलमानों का जुटना और फिर लॉकडाउन तोड़ने वाली हरकत छिपी नहीं है। जगह-जगह मुसलमानों के मोहल्ले में पुलिस और मेडिकल टीम पर हमले हुए। इसलिए, अरुंधति एक ऐसा नैरेटिव बनाना चाह रही हैं, जैसे मुस्लिमों पर ही अत्याचार हुआ हो। ताज़ा हिंसा की घटनाओं को देखें तो स्पष्ट है कि कई मुसलमान इसे ‘काफिरों को दिए सज़ा’ के रूप में देख रहे हैं।
तबलीगी जमात का मुख्यालय भारत में कोरोना का हॉटस्पॉट बन गया। जमातियों ने पुलिस व प्रशासन के साथ सहयोग नहीं किया। जमातियों को खोजने गई पुलिस पर हमले हुए। उनके मोहल्लों में मेडिकल टेस्ट करने गए स्वास्थ्यकर्मियों को खदेड़ दिया गया। इन सबका दोषी कौन है? क्या अरुंधति रॉय इसे ही ‘मुसलमानों के ख़िलाफ़ अत्याचार’ मानती हैं? दिल्ली दंगों को लेकर उनके दावे झूठे हैं, क्योंकि ताहिर हुसैन जैसों की हरकतों पर उन्होंने चुप्पी साध ली। दिल्ली में हुए दंगे शाहीन बाग़ और जाफराबाद में मुस्लिम भीड़ द्वारा सड़कों पर कब्ज़ा किए जाने और स्थानीय लोगों को लगातार परेशान करने के बाद हुआ। पेट्रोल बम भी उन्होंने ही फेंके।
अरुंधति का दावा है कि मोदी सरकार कोरोना की आड़ में मीडिया को दबा रही है। युवा नेताओं को गिरफ़्तार किया जा रहा है और विरोधियों को कुचला जा रहा है। वो राजद छात्र नेता हैदर की ओर इशारा कर रही थीं, जिसे दिल्ली दंगों में उसकी भूमिका के कारण गिरफ्तार किया गया है। अरुंधति दंगा करने वालों पर कार्रवाई का विरोध करती हैं। साथ ही वे जिन पत्रकारों और कथित एक्टिविस्ट्स की बात कर रही हैं, उनमें से कई हिंसा फैलाने के आरोपित हैं। किसे नहीं पता कि भीमा-कोरेगाँव हिंसा मामले में जो आज जेल में हैं, वो भी एक्टिविस्ट्स ही कहे जाते हैं।
अरुंधति इसके बाद आरएसएस को गाली बकने लगीं। उन्होंने कहा कि भाजपा और संघ भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहते हैं। यहाँ तक कि वो हिटलर के नाजी काल से मोदी सरकार की तुलना करने लगीं और कहा कि जैसे जर्मनी में उस दौर में यहूदियों के नरसंहार के लिए तिकड़म आजमाए जाते थे, ठीक उसी तरह आज कोरोना का इस्तेमाल भारत में किया जा रहा। जबकि, मुल्ला-मौलवियों ने ही अधिकतर सरकारी दिशा-निर्देशों को धता बताते हुए मेडिकल सलाहों का मखौल उड़ाया। मोदी सरकार कोरोना से प्रभावी तरीके से निपट रही है, ऐसे में अरुंधति का ‘नाजी कार्ड’ खेलना वामपंथियों का पुराना पेशा है।
ये वामपंथी ‘नरसंहार’ जैसे शब्द का ऐसे प्रयोग करते हैं, जैसे किसी को एक थप्पड़ लगने का मतलब भी यही हुआ। उन्होंने झूठा आरोप लगाया कि मोदी सरकार मुसलमानों के लिए डिटेंशन सेंटर बनवा रही है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे अरुंधति रॉय फिक्शन लिखते-लिखते कथा-कहानियों की दुनिया में ही जीने लगी हैं। अरुंधति रॉय फेक न्यूज़ फैलाने वाले और झूठे फैक्ट चेकिंग करने वाले ‘ऑल्टन्यूज़’ को भी डोनेशन देती रही हैं।
TheTelegraph का झूठ: दलित का खाना मुसलमान ने नहीं खाया
मीडिया का प्रोपेगेंडा कैसे काम करता है, इसको TheTelegraph के झूठ से समझिए। TheTelegraph का झूठ विचार को लेकर नहीं बल्कि पत्रकारिता के साथ है, खबरों के साथ है। भ्रामक हेडलाइन, गुमराह करने वाली तस्वीरें और बेहद अतार्किक आँकड़े, दक्षिणपंथी सत्ता-विरोधी मीडिया गुटों का यह प्रमुख हथियार हमेशा से ही रहा है। लेकिन यह चिंता का विषय तब बन जाता है, जब द टेलीग्राफ़ (The Telegraph) जैसे प्रोपेगेंडा-प्रमुख, कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के बीच भी ऐसे कुत्सित प्रयास करने से बाज नहीं आते।
द टेलीग्राफ़ ने उत्तर प्रदेश की एक घटना में 3 तरह की कलाकारी कर के पेश की हैं –
शीर्षक – खबर का शीर्षक है: “क्वारंटाइन में भी अस्पृश्यता” (Untouchability, even in quarantine)
फीचर फोटो – इस खबर के साथ बेहद अप्रासंगिक तस्वीर लगाई गई है, जिसमें कि आरएसएस की ड्रेस पहने कुछ लोग खाना खिला रहे हैं
आरोपित का नाम – इस घटना में दलित से खाना ना लेने वाले का नाम सिराज अहमद है, जो कि ना ही खाना परोसने वाला आरएसएस कार्यकर्ताओं में से एक है, ना ही पीड़ित दलित! सिराज वह आदमी है, जिसने दलित प्रधान के हाथों से खाना लेने से इनकार कर दिया था।

दलित महिला प्रधान द्वारा भोजन नहीं करने पर सिराज अहमद पर केस 
वास्तव में, यह घटना गत 10 अप्रैल को घटी है। घटना उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले की है, जहाँ ग्राम प्रधान लीलावती देवी ने भुजौली खुर्द गाँव के स्कूल में बने क्वारंटाइन सेंटर में रसोईया ना होने की वजह से खुद ही क्वारंटाइन में रखे गए पाँच लोगों के लिए खाना बनाया था।
द टेलीग्राफ़ ने उत्तर प्रदेश में एक व्यक्ति द्वारा दलित से खाना ना लेने की घटना को बेहद भ्रामक तरह से पेश करने का नया कारनामा किया है। इसमें उसने आरएसएस की छवि खराब करने का एक और असफल प्रयास किया है। लेकिन, अब कम से कम यह तो स्पष्ट है कि दलितों की तुलना कोरोना वायरस से करने वाले द टेलीग्राफ के लिए अस्पृश्यता और छुआ-छूत समाजिक चिंतन से कहीं अधिक उसके अपने निजी प्रोपेगेंडा का हिस्सा है और इससे अधिक कुछ नहीं।
इस घटना के बाद ग्राम प्रधान ने उप जिलाधिकारी देश दीपक सिंह और खंड विकास अधिकारी रमाकांत यादव को इस बारे में सूचना दी और पुलिस से लिखित शिकायत की। उन्होंने बताया कि इस मामले में सिराज अहमद के खिलाफ दलित अत्याचार विरोधी अधिनियम के तहत केस दर्ज किया गया है।
इन पाँच लोगों में से 2 मुस्लिम थे। इनमें से एक सिराज अहमद नाम के व्यक्ति ने दलित के हाथ बना खाना खाने पर बिरादरी से बहिष्कृत हो जाने की बात कहकर भोजन करने से इंकार कर दिया था।
TheTelegraph का झूठ 
बंगाल से छपने वाले इस दैनिक अंग्रेजी ‘द टेलीग्राफ’ ने इस एक खबर के जरिए कई निशाने साधने की कोशिश की है। सबसे पहला मकसद तो यह कि लोगों का ध्यान खींचने में सफलता। क्योंकि भारत में ‘कॉन्ग्रेस काल’ से वैचारिकता दासता का प्रतीक यह तथाकथित समाचार पत्र निरंतर ही ऐसी हरकतें करता आया है, जिस कारण यह चर्चा का विषय बना रहा।
हाल ही में यही वामपंथी अखबार देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद पर अपमानजनक और जातिसूचक व्यंग्य करते हुए उन्हें वायरस तक कह चुका है। अब द टेलीग्राफ़ के दोगले स्तर की पहचान यहीं पर की जा सकती है, कि महज कुछ दिन पहले ही समाज के वंचित समुदाय के किसी व्यक्ति को उसकी निजी गरिमा और पद को नजरअंदाज करते हुए उन्हें ‘वायरस’ तक कह देता है और कुछ ही दिन में अस्पृश्यता जैसे गंभीर विषय पर ज्ञान देते हुए एक हेडलाइन में बेचता नजर आता है।
द टेलीग्राफ के लिए अपनी विषैली मानसिकता के प्रसार के लिए तथ्यों से लेकर नैरेटिव को लेकर झूठ और भ्रम परोसना कोई नई बात नहीं है, वह सावरकर से लेकर देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तक पर अपमानजनक व्यंग्य करता हुआ पाया गया है।
एक सबसे बड़ा ध्येय जो टेलीग्राफ का इस खबर के पीछे रहा, वह ये कि आरएसएस की छवि को धूमिल करने का प्रयास! इस रिपोर्ट में द टेलीग्राफ ने सभी बातों से ऊपर फीचर इमेज के लिए चुनी गई तस्वीर को रखा है, जिसमें आरएसएस के लोगों को खाना परोसते हुए दिखाया गया है, ताकि पहली दृष्टि में भ्रामक शीर्षक के साथ यही सन्देश जाए कि सिराज अहमद ने नहीं बल्कि खाना परोसने में आरएसएस लोगों को साथ जातिगत भेदभाव कर रहा है।
वास्तविकता तो यह है कि आरएसएस के कार्यकर्ता देशभर में क्वारंटाइन में भी वंचित, बेसहारा और भूखे लोगों को राशन उपलब्ध कराने से लेकर लोगों को हर प्रकार की मदद उपलब्ध करवा रहा है। लेकिन द टेलीग्राफ यहाँ पर बस यही साबित करता नजर आता है कि वह एक ‘घृणोपजीवी’ है और वह कभी भी विरोधी विचारधारा के कार्यों से संतुष्ट नहीं रहेगा। क्योंकि यदि वह ऐसा समझौता करता है, तो उसका अस्तित्व ही कुछ शेष नहीं रह जाता।
कश्मीरी पत्थरबाजों के बाद अब डॉक्टरों पर पत्थर फेंकने वालों के समर्थन में
भारत में कोरोना को फैलाने में तबलीगी जमात के लोगों की भूमिका स्पष्ट तौर पर सामने आई है। देश भर में कोरोना मरीजों की कुल संख्या के 30 प्रतिशत का जुड़ाव तबलीगी जमात से है। उत्तर प्रदेश और दिल्ली में तो यह आंकड़ा 60 प्रतिशत तक पहुंच चुका है। लेकिन, संकट के इस दौर में लोगों की मदद करने की बजाय अरुंधति रॉय जैसी कथित बुद्धिजीवी अपने जहरीले बयानों से एक खास वर्ग को उकसाने के काम में जुटी हैं। और भी दुखदायी यह है कि अरुंधती जैसे लोग यह काम अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कर रहे हैं। ये वही लोग हैं जो कोरोना का इलाज कर रहे डॉक्टरों पर होने वाले हमलों पर चुप्पी साधे रखते हैं। जर्मन न्यूज एजेंसी नेटवर्क डॉचे वेले को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा है कि कोरोना संकट से निपटने की सरकार की रणनीति भारत में मुस्लिमों के खिलाफ नरसंहार के हालात पैदा कर रही है। अरुंधती के इस बयान को पाकिस्तान के पीटीवी ने प्रमुखता से दिखाया और इसे भारत के खिलाफ इस्तेमाल करने में जुटा है। यह पहला मौका नहीं है जब अरुंधती ने देश के खिलाफ विषवमन किया हो। कश्मीरी पत्थरबाजों से लेकर अफजल गुरु और एनपीआर तक पर अरुंधती का रुख देश के खिलाफ रहा है।
देश को धता बताते अरुंधती के बोल
  • NPR पर जानकारी मांगी जाए तो अपना नाम रंगा-बिल्ला बताइए
  • कश्मीर समस्या का एकमात्र हल कश्मीर की आजादी है
  • 70 लाख भारतीय सैनिक मिलकर ‘आजादी गैंग’ को हरा नहीं पाते
  • अफजल गुरु के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं थे
  • 1998 में अटल सरकार का परमाणु परीक्षण करना गलत था। (एजेंसीज इनपुट्स सहित)
अवलोकन करें:-
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चीन से निकला कोरोना वायरस विश्व अर्थव्यवस्था को जरूर प्रभावित कर रहा है, वैसे भारत भी इससे अछूता नहीं। लेकिन जिस त.....

2 comments:

Pandey Durgesh said...

Arundhati राय ji apko yha paida nhi hona chahiye tha isme apki koi galti na hai apke maa baap ki glti hai. Apke jaisa ptrakar kewal ek ka name bolunga ravishing Kumar.. Aplogo ke jaise bahut hai jinko aarab desho se paisa khane ko mil rha hai or keval ek ya do jati ko sahi savit karna hai baki gye bhand me.... Are tum log gandgi ho desh ke liye baki kuch na....

Pandey Durgesh said...

जो अपने देश के बारे मे सही नहीं बोल सकते वो गद्दार के alava कुछ भी नहीं.... Ye kaisi patrakarita hai jo armi se proof mange or jaha Har log apne government se se Khush hai kuch % ko chhod kr... Apko fikar keval unhi logo ki hai? Jo Har kaam ko ulta krte है...