काशी-मथुरा पर हिंदुओं की याचिका न करें कबूल : जमीयत-उलेमा-ए-हिंद

काशी-मथुरा
काशी विश्वनाथ मंदिर (बाएँ), मथुरा कृष्ण जन्मभूमि मंदिर (दाएँ)
आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
अयोध्या विवाद के निपटारे के बाद अब सुप्रीम कोर्ट में काशी-मथुरा को लेकर भी याचिकाओं का सिलसिला शुरू हो गया है। हिन्दू पक्ष की याचिका के बाद अब मुस्लिम पक्ष भी सुप्रीम कोर्ट पहुँचा है। जमीयत-उलेमा-ए-हिंद ने वकील एजाज मकबूल के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल करके हिन्दू पुजारियों की याचिका का विरोध किया है।
जमीयत-उलेमा-ए-हिंद की ओर से दाखिल की गई याचिका में कहा गया है कि हिन्दू पुजारियों की याचिका पर नोटिस न जारी किया जाए। उनका कहना है कि मामले में नोटिस जारी करने से मुस्लिम समुदाय के लोगों के मन में अपने इबादत स्थलों के संबंध में भय पैदा होगा।
याचिका में अयोध्या विवाद का संदर्भ देते हुए कहा गया है कि इसके परिणाम के बाद इस तरह की याचिका से मुस्लिमों के मन में भय पैदा होगा, जिससे देश का धर्मनिरपेक्ष ताना-बाना नष्ट होगा। साथ ही जमीयत-उलेमा-ए-हिंद ने कहा है कि उसे संबंधित मामले में पक्षकार बनाया जाए।
हकीकत यह है कि जब अयोध्या में रामजन्म स्थान की पुष्टि के लिए खुदाई हुई तो इनके समर्थक तुष्टिकरण के पुजारी दल केंद्र और राज्य में सत्ता में बैठे थे, खुदाई में मिले सबूतों को कोर्ट से छुपा लिया गया था। परन्तु आज परिस्थितियां एकदम विपरीत होने के कारण इन्हें डर है कि आज खुदाई में सबूत मिलने पर कोई उन्हें कोर्ट से छुपाने का साहस नहीं कर पाएगा और सच्चाई सामने आने पर मुस्लिम समाज में इनके फैलाये झूठ का भांडा फ़ुट जाएगा। अयोध्या के मुद्दे पर इन लोगों ने खूब मूर्ख बनाया, लेकिन अब समय बदल चुका है। 
पाखंडी हिन्दू तक पाखंडी लोगों का साथ देकर अपने ही देवी-देवताओं को अपमानित करने का कोई मौका छोड़ रहे थे, जिस कारण आम जनमानस अपने तीर्थों को मुक्त करवाने को साम्प्रदायिक, फिरकापरस्त और मंदिर के नाम अपनी तिजोरियां भरने वाला बता कर बदनाम किया जा रहा था। वास्तविकता को झूठलाया जा रहा था।   
हिन्दू पुजारियों के संगठन ‘विश्व भद्र पुजारी पुरोहित महासंघ’ ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय में धार्मिक स्थल (विशेष प्रोविजन) एक्ट, 1991 की धारा 4 को चुनौती दी है। इस एक्ट के अनुसार अयोध्या राम जन्मभूमि को छोड़कर अन्य पवित्र स्थलों का धार्मिक चरित्र वैसा ही बनाए रखने का प्रावधान है। इस एक्ट को रद्द कर काशी, मथुरा जैसे हिन्दू स्थल को पुनः प्राप्त करने के लिए हिंदू संगठन कानूनी लड़ाई की तैयारी कर रहे हैं।

अधिनियम की धारा 4 (1) में कहा गया हैं कि, “यह घोषित किया जाता है कि 15 अगस्त, 1947 को जो धार्मिक स्थल जिस संप्रदाय का था वो आज, और भविष्य में, भी उसी का रहेगा।” जैसे किसी भी मस्जिद को मंदिर में नहीं बदला जा सकता है और वहीं मंदिर को भी मस्जिद या किसी और धर्म में नहीं बदला जा सकता है। हालाँकि अयोध्या विवाद को इससे अलग रखा गया था, क्योंकि उस पर कानूनी विवाद पहले से चल रहा था।
विश्व भद्र पुजारी पुरोहित महासंघ की तरफ से दाखिल याचिका में कहा गया है कि यह कानून हिंदुओं के अधिकार का हनन करने वाला है। इसे रद्द कर देना चाहिए। याचिका में कहा गया है कि संविधान का अनुच्छेद 25 लोगों को अपनी धार्मिक आस्था के पालन का अधिकार देता है। संसद इसमें बाधक बनने वाला कोई कानून पास नहीं कर सकती।
महासंघ के अनुसार संसद ने 1991 में एक कानून बनाकर सीधे-सीधे हिंदुओं को उनके अधिकार से वंचित कर दिया। काशी और मथुरा जैसे पवित्र धार्मिक स्थलों पर मस्जिद बनी हुई है। लेकिन संसद ने कानून बनाकर हिंदुओं को विदेशी आक्रमणकारियों की इन निशानियों को चुनौती देने से रोक दिया है। कोर्ट से आग्रह किया गया है कि वह धार्मिक स्थल (विशेष प्रोविजन) एक्ट, 1991 की धारा 4 को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दे।
याचिका में काशी विश्वनाथ एवं मथुरा मंदिर विवाद को लेकर कानूनी प्रक्रिया शुरू करने की माँग की गई है। याचिका में कहा गया है कि इस अधिनियम को कभी चुनौती नहीं दी गई और न ही किसी अदालत ने न्यायिक तरीके से इस पर विचार किया। अयोध्या विवाद में भी उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने इस पर टिप्पणी की थी।

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