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रामभक्त "वर्तमान की सबरी" उर्मिला चतुर्वेदी ने की थी भीष्म प्रतिज्ञा (फोटो साभार: रिपब्लिक वर्ल्ड) |
उर्मिला चतुर्वेदी का कहना है कि उनका शरीर भले ही कमजोर हो गया हो लेकिन उनका संकल्प अभी भी चट्टान की तरह मजबूत है। शायद तभी उम्र के इस पड़ाव तक वो अपने राम को छत मिलने का इन्तजार करती रहीं। जब 1992 में बाबरी ढाँचे को कारसेवकों द्वारा ध्वस्त किया गया था, तभी उन्होंने भीष्म प्रतिज्ञा कर ली थी कि जब तक वहाँ भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर के निर्माण की शुरुआत नहीं हो जाती, वो अन्न नहीं खाएँगी।
#MadhyaPradesh | जबलपुर निवासी 81 साल की उर्मिला चतुर्वेदी ने 28 साल पहले विवादित ढांचा गिरने पर संकल्प लिया था कि जब तक राम मंदिर का निर्माण शुरू नहीं होगा वो अन्न ग्रहण नहीं करेंगी— AajTak (@aajtak) August 1, 2020
(@reporterravish)#UttarPradesh #Ayodhya #RamTemple https://t.co/vU38KJOWt3
Jai Sri Ram!Jai Sia Ram!Jai Sri Hanuman!Jai Sri Ram Lakhan!🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏— Shashi anand gautam (@Shashianandgau2) August 1, 2020
Maa tere charano mein mera sadar Pranam Hai,Maa!it is a result of your sacrifice n devotion we'll see with you Lord Rama's Temple in the Holy city Ayodhya.🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
मान्यवर, 🇮🇳🌷— Rajesh Pal (@RajeshP63726877) August 1, 2020
माता जी को कोटि-कोटि नमन, आप की श्रद्धा,कर्तव्यनिष्ठा,संकल्पित विश्वास को
भारतवर्ष नतमस्तक और गौरवान्वित हो रहा है।
ऐसे ही जोशीले विश्वास के साथ हम
5 अगस्त को प्रभुश्रीराम भूमिपूजन सफल है।
जय श्रीराम
हर-हर महादेव
भारतमाताकीजय
वन्देमातरम pic.twitter.com/HjuUP3qaSJ
तो अंततः "सेबरी" का इंतजार ख़त्म हो ही गया और प्रभु श्रीराम अपने घर में विराजमान होने को है ?— कृष्ण कुमार अग्रवाल (@Krishna18784427) August 1, 2020
उर्मिला चतुर्वेदी इतनी उत्साहित हैं कि वो अपने परिजनों को अयोध्या चल कर इस ऐतिहासिक पल का भागी बनने के लिए राजी करने पर तुली हैं। लेकिन कोरोना संक्रमण आपदा और लॉकडाउन का हवाला देकर परिजन किसी तरह उन्हें मना रहे हैं और बाद में अयोध्या ले जा कर रामलला के दर्शन कराने का आश्वासन दे रहे हैं। दरअसल, राम मंदिर को लेकर हुए हिन्दू-मुस्लिम संघर्ष से उर्मिला चतुर्वेदी काफी दुःखी रहती थीं।
उर्मिला चतुर्वेदी का कहना है कि भले ही वो शारीरिक रूप भूमिपूजन में नहीं जा पा रही हैं लेकिन मन से तो वो वहाँ पर मौजद रहेंगी ही। वो चाहती हैं कि अयोध्या में उन्हें भी कोई जगह मिल जाए, जहाँ रह कर वो अपने राम की शरण में जाकर उनकी आराधना करती रहें। वो अपना बाकी जीवन राम की शरण में बिताना चाहती हैं और अयोध्या मंदिर से अच्छी जगह उनके लिए दुनिया में कहीं भी नहीं है।
उर्मिला चतुर्वेदी की इस तपस्या में उनके परिजन भी उनके साथ थे, जिन्होंने उनका पूरा सहयोग किया। उनके परिजन भी चाहते हैं कि अब जब राम जन्मभूमि में मंदिर का स्वप्न साकार हो रहा है तो वो जल्दी ही अन्न ग्रहण करना शुरू कर दें। उर्मिला कहती हैं कि इन 27 सालों में वो समाज और लोगों से भी दूर चली गई थीं, कई लोग उन पर दबाव बना रहे थे कि वो अपना उपवास ख़त्म कर दें लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
कई बार मंचों पर भी सम्मानित किया जा चुका है उर्मिला चतुर्वेदी को। हालाँकि, उनके रिश्तेदारों और समाज के लोगों में कई लोग ऐसे भी थे, जिन्होंने उनकी रामभक्ति को देख कर उनके उपवास का समर्थन किया। आजकल वो पूरा दिन राम मंदिर से जुडी ख़बरें ही देखती रहती हैं। वो दिन भर पूजा-पाठ में व्यस्त रहती हैं और टीवी पर राम मंदिर से जुड़ी ख़बरें देखती हैं। उनके परिजनों की योजना है कि उन्हें अयोध्या ले जाकर सरयू किनारे संकल्प तुड़वाया जाए।
इसी तरह बिहार के किशनगंज में ऐसे ही एक राम भक्त हैं, जिन्होंने 18 साल पहले यह प्रण लिया था कि जब तक अयोध्या में राम मंदिर नहीं बन जाता तब तक वो नंगे पाँव रहेंगे। दास किशनगंज में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के ज़िला कार्यकारी होने के साथ ही एक किराने की दुकान भी चलाते हैं। देव दास अब तक 1800 से अधिक लोगों के दाह-संस्कार में शामिल हो कर ख़ुद काम करते हैं।
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