भारत में सेकुलरिज्म और गंगा-जमुना तहजीब का राग-अलापने वालों देख लो, ज़ाकिर नाइक का बेटा क्या बोल रहा है। आंखे खोलो और हिम्मत है तो मुंह में जमे दही को या तो थूक दो या फिर सटक कर इसकी बातों का जवाब दो। और नहीं जनता को जवाब दो कि यदि यही बात किसी हिन्दू साधु अथवा राजनीतिक नेता ने बोली होती, क्या तब भी इसी तरह खामोश रहते? पता नहीं कितने महिला संगठन भी सड़क पर आकर आसमान सिर पर उठा लिया होता। फरीक के बयान देने के इतने दिन बाद लिखने को मजबूर होना पड़ा।
आखिर सेकुलरिज्म और गंगा-जमुनी तहजीब के नाम पर कब तक जनता को छला जाता रहेगा? या फिर आप सबको ये शब्द बोलने तो आते हैं, इनका अर्थ नहीं मालूम? कुछ तो गड़बड़ है। या फिर यही अर्थ निकाला जाए कि कुर्सी और तिजोरी की खातिर तुष्टिकरण ने बत्ती ही गुल कर दी है। और यदि यह सच है तो जनता को भी अपनी बत्ती गुल कर सेकुलरिज्म और गंगा-जमुनी तहजीब की लॉलीपॉप देकर तुम सबको अलग बैठा देना चाहिए। इस लॉलीपॉप को देने का काम हर देशप्रेमी और सामान अधिकार मानने वालों को ही करना पड़ेगा।
किसी छद्दम सेक्युलरिस्ट में इस इस्लामिक उपदेशक से पलटके यह पूछने की हिम्मत नहीं कि "अगर जन्म लेने वाला हर बच्चा मुसलमान होता है, फिर मुसलमानी कर क्यों मुसलमान बनाया जाता है? इस उपदेशक के कथन पर 60 के दशक में निर्माता-निर्देशक बी.आर.चोपड़ा की फिल्म "धूल का फूल" का वह गीत "तू हिन्दू बनेगा या मुसलमान बनेगा, इंसान की औलाद है, इंसान ही बनेगा....." स्मरण होता है। यानि बाप तो बाप, बेटा सुभान अल्लाह, कथन को चरितार्थ कर मुस्लिमों में जहर फैला रहा है कि "बच्चा मुसलमान पैदा होता है, लेकिन बाद में उसका धर्म परिवर्तित कर उसे हिन्दू, सिख या फिर ईसाई बना दिया जाता है। अपने कौम की महिलाओं को क्या करना चाहिए या क्या नहीं पहनना चाहिए, उस बात से कोई मतलब नहीं, लेकिन यह कहना कि "जन्म लेने वाला हर बच्चा मुसलमान" क्या उचित है? इस बात को कहकर क्या सिद्ध करना चाहता है?
मलेशिया में जाकर छिपे इस्लामी उपदेशक जाकिर नाइक के बारे में तो आपको पता है ही और साथ में उसके अजीबोगरीब बयान भी सामने आते रहते हैं, जिन्हें जायज ठहराने के लिए वो इस्लामी किताबों का हवाला देता है। अब हम आपको उसके बेटे फरीक जाकिर नाइक के बारे में बताने जा रहे हैं, जो अपने अब्बा के यूट्यूब पेज पर ही ज्ञान बाँचता है। कट्टरवाद के मामले में वो अपने अब्बा से भी दो कदम आगे है।
फरीक जाकिर नाइक का एक वीडियो है, जिसमें उससे पूछा जाता है कि महिलाओं को घर से बाहर निकल कर जॉब करने का अधिकार है या नहीं, जिसके जवाब में वो कहता है कि इस्लाम में पुरुष को ही घर में रोटी कमाने वाला माना गया है। उसने कहा कि निकाह के पहले पिता व भाई और निकाह के बाद शौहर व बच्चों का काम है कि महिलाओं का ध्यान रखे। उसने यहाँ तक दावा कर दिया कि महिलाओं को काम करने की जरूरत ही नहीं है।
उसने कहा कि महिलाओं को इस्लाम का कोई भी नियम तोड़े बिना ही जॉब करना चाहिए और हिजाब हमेशा पहनना चाहिए। उसने कहा कि महिलाओं की पूरी बॉडी कवर में होनी चाहिए और हाथों व आँखों के अलावा कुछ नहीं दिखना चाहिए, साथ ही टाइट कपड़े नहीं होने चाहिए और ऐसे भी नहीं होने चाहिए जिससे पुरुषों में आकर्षण की फीलिंग आए। साथ ही उसने कहा कि महिलाओं को पुरुषों के साथ काम नहीं करना चाहिए।
यदि इसी तरह की बात किसी हिन्दू साधु/संत ने कह दी होती, नेताओं ने तूफान ला दिया होता, मीडिया भी पीछे नहीं रहता, स्टूडियो में सज जाती चौपालें। लेकिन जब बात इस्लाम की हो, मुंह में दही जमाकर बैठ जाओ।
साथ ही उसने कहा कि महिलाओं को ‘हराम’ जॉब्स नहीं करने चाहिए, जैसे शराब सर्व करना, या फिर डैन्सिंग, सिंगइंग या अभिनय करना, क्योंकि इन जॉब्स में वो हिजाब नहीं पहन पाएँगी। उसने कहा कि महिलाओं के मेन फोकस ये रहना चाहिए कि एक अच्छी पत्नी के रूप में वो क्या कर सकती है, या बच्चों को लेकर। उसने महिलाओं के लिए शिक्षक और काउंसलिंग व इस्लामी शिक्षा देने को महिलाओं के लिए अच्छा जॉब बताया।
एक अन्य वीडियो में वो बताता है कि भाषा के मामले में काफिर का अर्थ होता है छिपने वाला, जबकि इस्लाम में काफिर वो है जो इस्लाम को स्वीकार नहीं करता। उसने कहा कि इस तरह से सारे नॉन-मुस्लिम काफिर हुए। फरीक के मुताबिक, नॉन-मुस्लिमों को काफिर कहने की पूरी अनुमति है क्योंकि काफिर का इस्लाम के हीसब से अँग्रेजी अनुवाद ही होगा नॉन-मुस्लिम। उसने कहा कि अगर किसी काफिर को नॉन-मुस्लिम कहा जाना पसंद नहीं है तो वो इस्लाम स्वीकार कर ले।
वैसे काफिर कोई गाली नहीं है, लेकिन इन जैसों ने काफिर को गाली बना दिया है। हकीकत में, हर उसको काफिर कहते हैं जो दूसरे के धर्म अथवा मजहब को नहीं मानता।
फरीक जाकिर नाइक एक अन्य वीडियो में जकात के बारे में भी समझाता है। एक वीडियो में उसने कहा कि नॉन-मुस्लिमों को जकात नहीं दिया जा सकता, चाहे वो कितना भी जरूरतमंद ही क्यों न हो। उसने इस्लामी किताबों के हवाले से कहा कि जकात (चैरिटी) केवल मुसलमानों को दी जा सकती है या फिर उन्हें, जिनका दिल इस्लाम की तरफ झुका हुआ हो। इसका मतलब समझाते हुए उसने कहा कि जिनसे उम्मीद है कि वो इस्लाम अपना लेंगे, उन्हें जकात दिया जा सकता है।
इसके अलावा एक अन्य वीडियो में फरीक जाकिर नाइक इस सवाल का जवाब देता है कि इस्लाम में ऑनलाइन बिजनेस करने का अधिकार है या नहीं। उसने बताया कि ये किया जा सकता है लेकिन इस्लाम और शरीया के नियमों के अंदर रह कर ही। उसने कहा कि किसी भी हराम प्रोडक्टस को नहीं बेचना चाहिए। साथ ही उसने गैम्ब्लिंग या लक से जुड़े गेम्स को भी हराम बताया। उसने एडवर्टाइजमेंट में बिना हिजाब की महिला को डालना या उसमें म्यूजिक डालना भी हराम बताया।
एक सवाल के जवाब में उसने कहा कि अल्लाह नॉन-मुस्लिमों पर भी दया करते हैं क्योंकि उन्होंने उनलोगों को भोजन और घर दिया है। उसने कहा कि पानी या हवा, ये सब नॉन-मुस्लिमों को भी दिया गया है क्योंकि इसके बिना वो मर जाएँगे – ये दिखाता है कि अल्लाह उस पर भी दया करते हैं। उसने कहा कि अल्लाह लोगों तक खुद ये संदेश पहुँचाते हैं कि हर एक बच्चा मुसलमान ही जन्म लेता है, उसे बाद में हिन्दू या ईसाई बना दिया जाता है।
यह इतना गुमराह करने वाला बयान जिसे सुन सभी को हंसी आती होगी। कोई इन जनाब से पूछे कि "जब हर पैदा होने वाला, मुस्लिम पैदा होता है, फिर उसका खतना क्यों किया जाता है? हिन्दुओं में तो ऐसी कोई रस्म ही नहीं है कि छोटे से बच्चे का मांस काटकर हिन्दू बनाया जाए।
उसने दावा किया कि अगर कोई इस्लाम अपना रहा है तो इसका मतलब ये नहीं कि वो कन्वर्ट हो रहा है बल्कि इसका अर्थ हुआ कि वो अपने मजहब में लौट रहा है क्योंकि वो जन्मा तो मुसलमान ही था। उसने दावा किया कि अल्लाह लोगों को समझाने के लिए किसी न किसी रूप में संदेश भेजते रहते हैं कि वो इस्लाम अपना लें क्योंकि काफिर अगर इस्लाम अपना ले तो उसे अल्लाह क्षमा कर देते हैं।
किसी ने उससे पूछ दिया था कि अल्लाह बार-बार क़ुरान में खुद को ‘We’ कह कर क्यों सम्बोधित करते हैं, जिसके जवाब में उसने कहा कि Plural दो प्रकार के होते हैं। उसने समझाया कि संख्याओं का प्लुरल अलग होता है और अल्लाह वाला जो प्लुरल है, वो ‘रॉयल प्लुरल’ या ‘प्लुरल ऑफ रेस्पेक्ट’ है, जो इंग्लैंड की महारानी भी प्रयोग करती हैं। उसने कहा कि भारत के पीएम भी ‘हम’ कहते हैं, जो प्लुरल है लेकिन रेस्पेक्ट और रॉयल वाला।
इसी तरह फरीक के अब्बा जाकिर नाइक ने कहा था कि रवीश कुमार हों या ‘मुस्लिमों का पक्ष लेने वाले’ अन्य नॉन-मुस्लिम, उन सभी के लिए समान सज़ा की ही व्यवस्था है। ज़ाकिर नाइक ने अपने अनुयायियों को समझाया था कि जन्नाह अलग-अलग तरह के होते हैं, जैसे फिरदौस और फिरदौस आला। ज़ाकिर नाइक ने स्पष्ट कहा कि गैर-मुस्लिमों का नरक में जाना तय है। बकौल नाइक, अगर कोई मरते समय मुसलमान नहीं है तो उसके लिए नरक की ही व्यवस्था है।
आखिर सेकुलरिज्म और गंगा-जमुनी तहजीब के नाम पर कब तक जनता को छला जाता रहेगा? या फिर आप सबको ये शब्द बोलने तो आते हैं, इनका अर्थ नहीं मालूम? कुछ तो गड़बड़ है। या फिर यही अर्थ निकाला जाए कि कुर्सी और तिजोरी की खातिर तुष्टिकरण ने बत्ती ही गुल कर दी है। और यदि यह सच है तो जनता को भी अपनी बत्ती गुल कर सेकुलरिज्म और गंगा-जमुनी तहजीब की लॉलीपॉप देकर तुम सबको अलग बैठा देना चाहिए। इस लॉलीपॉप को देने का काम हर देशप्रेमी और सामान अधिकार मानने वालों को ही करना पड़ेगा।
किसी छद्दम सेक्युलरिस्ट में इस इस्लामिक उपदेशक से पलटके यह पूछने की हिम्मत नहीं कि "अगर जन्म लेने वाला हर बच्चा मुसलमान होता है, फिर मुसलमानी कर क्यों मुसलमान बनाया जाता है? इस उपदेशक के कथन पर 60 के दशक में निर्माता-निर्देशक बी.आर.चोपड़ा की फिल्म "धूल का फूल" का वह गीत "तू हिन्दू बनेगा या मुसलमान बनेगा, इंसान की औलाद है, इंसान ही बनेगा....." स्मरण होता है। यानि बाप तो बाप, बेटा सुभान अल्लाह, कथन को चरितार्थ कर मुस्लिमों में जहर फैला रहा है कि "बच्चा मुसलमान पैदा होता है, लेकिन बाद में उसका धर्म परिवर्तित कर उसे हिन्दू, सिख या फिर ईसाई बना दिया जाता है। अपने कौम की महिलाओं को क्या करना चाहिए या क्या नहीं पहनना चाहिए, उस बात से कोई मतलब नहीं, लेकिन यह कहना कि "जन्म लेने वाला हर बच्चा मुसलमान" क्या उचित है? इस बात को कहकर क्या सिद्ध करना चाहता है?
मलेशिया में जाकर छिपे इस्लामी उपदेशक जाकिर नाइक के बारे में तो आपको पता है ही और साथ में उसके अजीबोगरीब बयान भी सामने आते रहते हैं, जिन्हें जायज ठहराने के लिए वो इस्लामी किताबों का हवाला देता है। अब हम आपको उसके बेटे फरीक जाकिर नाइक के बारे में बताने जा रहे हैं, जो अपने अब्बा के यूट्यूब पेज पर ही ज्ञान बाँचता है। कट्टरवाद के मामले में वो अपने अब्बा से भी दो कदम आगे है।
फरीक जाकिर नाइक का एक वीडियो है, जिसमें उससे पूछा जाता है कि महिलाओं को घर से बाहर निकल कर जॉब करने का अधिकार है या नहीं, जिसके जवाब में वो कहता है कि इस्लाम में पुरुष को ही घर में रोटी कमाने वाला माना गया है। उसने कहा कि निकाह के पहले पिता व भाई और निकाह के बाद शौहर व बच्चों का काम है कि महिलाओं का ध्यान रखे। उसने यहाँ तक दावा कर दिया कि महिलाओं को काम करने की जरूरत ही नहीं है।
उसने कहा कि महिलाओं को इस्लाम का कोई भी नियम तोड़े बिना ही जॉब करना चाहिए और हिजाब हमेशा पहनना चाहिए। उसने कहा कि महिलाओं की पूरी बॉडी कवर में होनी चाहिए और हाथों व आँखों के अलावा कुछ नहीं दिखना चाहिए, साथ ही टाइट कपड़े नहीं होने चाहिए और ऐसे भी नहीं होने चाहिए जिससे पुरुषों में आकर्षण की फीलिंग आए। साथ ही उसने कहा कि महिलाओं को पुरुषों के साथ काम नहीं करना चाहिए।
यदि इसी तरह की बात किसी हिन्दू साधु/संत ने कह दी होती, नेताओं ने तूफान ला दिया होता, मीडिया भी पीछे नहीं रहता, स्टूडियो में सज जाती चौपालें। लेकिन जब बात इस्लाम की हो, मुंह में दही जमाकर बैठ जाओ।
साथ ही उसने कहा कि महिलाओं को ‘हराम’ जॉब्स नहीं करने चाहिए, जैसे शराब सर्व करना, या फिर डैन्सिंग, सिंगइंग या अभिनय करना, क्योंकि इन जॉब्स में वो हिजाब नहीं पहन पाएँगी। उसने कहा कि महिलाओं के मेन फोकस ये रहना चाहिए कि एक अच्छी पत्नी के रूप में वो क्या कर सकती है, या बच्चों को लेकर। उसने महिलाओं के लिए शिक्षक और काउंसलिंग व इस्लामी शिक्षा देने को महिलाओं के लिए अच्छा जॉब बताया।
एक अन्य वीडियो में वो बताता है कि भाषा के मामले में काफिर का अर्थ होता है छिपने वाला, जबकि इस्लाम में काफिर वो है जो इस्लाम को स्वीकार नहीं करता। उसने कहा कि इस तरह से सारे नॉन-मुस्लिम काफिर हुए। फरीक के मुताबिक, नॉन-मुस्लिमों को काफिर कहने की पूरी अनुमति है क्योंकि काफिर का इस्लाम के हीसब से अँग्रेजी अनुवाद ही होगा नॉन-मुस्लिम। उसने कहा कि अगर किसी काफिर को नॉन-मुस्लिम कहा जाना पसंद नहीं है तो वो इस्लाम स्वीकार कर ले।
वैसे काफिर कोई गाली नहीं है, लेकिन इन जैसों ने काफिर को गाली बना दिया है। हकीकत में, हर उसको काफिर कहते हैं जो दूसरे के धर्म अथवा मजहब को नहीं मानता।
फरीक जाकिर नाइक एक अन्य वीडियो में जकात के बारे में भी समझाता है। एक वीडियो में उसने कहा कि नॉन-मुस्लिमों को जकात नहीं दिया जा सकता, चाहे वो कितना भी जरूरतमंद ही क्यों न हो। उसने इस्लामी किताबों के हवाले से कहा कि जकात (चैरिटी) केवल मुसलमानों को दी जा सकती है या फिर उन्हें, जिनका दिल इस्लाम की तरफ झुका हुआ हो। इसका मतलब समझाते हुए उसने कहा कि जिनसे उम्मीद है कि वो इस्लाम अपना लेंगे, उन्हें जकात दिया जा सकता है।
इसके अलावा एक अन्य वीडियो में फरीक जाकिर नाइक इस सवाल का जवाब देता है कि इस्लाम में ऑनलाइन बिजनेस करने का अधिकार है या नहीं। उसने बताया कि ये किया जा सकता है लेकिन इस्लाम और शरीया के नियमों के अंदर रह कर ही। उसने कहा कि किसी भी हराम प्रोडक्टस को नहीं बेचना चाहिए। साथ ही उसने गैम्ब्लिंग या लक से जुड़े गेम्स को भी हराम बताया। उसने एडवर्टाइजमेंट में बिना हिजाब की महिला को डालना या उसमें म्यूजिक डालना भी हराम बताया।
Why is Allah refers himself as 'we', in the Holy Qur'an by Fariq Naik.— Revler (@CrescentDome) July 20, 2020
Very nice, Fariq all grown-up, is carbon prodigy of his father Zakir Naik.
Similar tone & temperament, & the same explanation style of his father. pic.twitter.com/x4GDDf2rD6
एक सवाल के जवाब में उसने कहा कि अल्लाह नॉन-मुस्लिमों पर भी दया करते हैं क्योंकि उन्होंने उनलोगों को भोजन और घर दिया है। उसने कहा कि पानी या हवा, ये सब नॉन-मुस्लिमों को भी दिया गया है क्योंकि इसके बिना वो मर जाएँगे – ये दिखाता है कि अल्लाह उस पर भी दया करते हैं। उसने कहा कि अल्लाह लोगों तक खुद ये संदेश पहुँचाते हैं कि हर एक बच्चा मुसलमान ही जन्म लेता है, उसे बाद में हिन्दू या ईसाई बना दिया जाता है।
यह इतना गुमराह करने वाला बयान जिसे सुन सभी को हंसी आती होगी। कोई इन जनाब से पूछे कि "जब हर पैदा होने वाला, मुस्लिम पैदा होता है, फिर उसका खतना क्यों किया जाता है? हिन्दुओं में तो ऐसी कोई रस्म ही नहीं है कि छोटे से बच्चे का मांस काटकर हिन्दू बनाया जाए।
उसने दावा किया कि अगर कोई इस्लाम अपना रहा है तो इसका मतलब ये नहीं कि वो कन्वर्ट हो रहा है बल्कि इसका अर्थ हुआ कि वो अपने मजहब में लौट रहा है क्योंकि वो जन्मा तो मुसलमान ही था। उसने दावा किया कि अल्लाह लोगों को समझाने के लिए किसी न किसी रूप में संदेश भेजते रहते हैं कि वो इस्लाम अपना लें क्योंकि काफिर अगर इस्लाम अपना ले तो उसे अल्लाह क्षमा कर देते हैं।
किसी ने उससे पूछ दिया था कि अल्लाह बार-बार क़ुरान में खुद को ‘We’ कह कर क्यों सम्बोधित करते हैं, जिसके जवाब में उसने कहा कि Plural दो प्रकार के होते हैं। उसने समझाया कि संख्याओं का प्लुरल अलग होता है और अल्लाह वाला जो प्लुरल है, वो ‘रॉयल प्लुरल’ या ‘प्लुरल ऑफ रेस्पेक्ट’ है, जो इंग्लैंड की महारानी भी प्रयोग करती हैं। उसने कहा कि भारत के पीएम भी ‘हम’ कहते हैं, जो प्लुरल है लेकिन रेस्पेक्ट और रॉयल वाला।
इसी तरह फरीक के अब्बा जाकिर नाइक ने कहा था कि रवीश कुमार हों या ‘मुस्लिमों का पक्ष लेने वाले’ अन्य नॉन-मुस्लिम, उन सभी के लिए समान सज़ा की ही व्यवस्था है। ज़ाकिर नाइक ने अपने अनुयायियों को समझाया था कि जन्नाह अलग-अलग तरह के होते हैं, जैसे फिरदौस और फिरदौस आला। ज़ाकिर नाइक ने स्पष्ट कहा कि गैर-मुस्लिमों का नरक में जाना तय है। बकौल नाइक, अगर कोई मरते समय मुसलमान नहीं है तो उसके लिए नरक की ही व्यवस्था है।
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