
सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ PM मोदी की आज मीटिंग हुई। इस मीटिंग में प्रधानमंत्री मोदी ने कोरोना से संबंधित आँकड़ों को लेकर क्या कहा, यह आप नीचे के आधिकारिक ट्वीट में देख सकते हैं।
Active cases— PMO India (@PMOIndia) August 11, 2020
का प्रतिशत कम हुआ है,
recovery rate बढ़ा है,
तो इसका अर्थ है कि हमारे प्रयास कारगर सिद्ध हो रहे हैं!
सबसे अहम बात है,
कि इससे लोगों के बीच भी एक भरोसा बढ़ा है,
आत्मविश्वास बढ़ा है,
और डर भी कुछ कम हुआ है: PM @narendramodi
प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि कोरोना से संबंधित एक्टिव केस का प्रतिशत कम हो रहा है। ऐसा कहीं नहीं कहा गया है कि एक्टिव केस कम हो रहा है। एक्टिव केस का प्रतिशत कम होना और एक्टिव केस का कम होना – दो अलग-अलग बातें हैं। लेकिन शायद PTI को यह गणित नहीं मालूम।
PTI को यह गणित नहीं मालूम, यह आप उसके ट्वीट से समझ सकते हैं। PTI जैसी संस्था सोशल मीडिया पर पड़ती गाली को देख कर अपने ट्वीट डिलीट भी कर सकती है। इसलिए उसका ट्वीट नहीं बल्कि स्क्रीनशॉट ऊपर देखिए।
अब बात करते हैं आँकड़ों की। इसके लिए थोड़ा ग्राफ देखा जाए। समझा जाए कि एक्टिव केस बढ़ रहा है या घट रहा है? या फिर एक्टिव केस का प्रतिशत बढ़ रहा है या घट रहा है?
#CoronaWatch— PIB India (@PIB_India) August 11, 2020
◾ 22,68,675 total confirmed cases
◾ 15,83,489 cases cured/recovered
◾ 2,52,81,848 samples tested
Here's the State-wise distribution of #COVID19 cases in the country (as on 11th August 2020)#IndiaFightsCorona pic.twitter.com/VV8VTe5xPL
With over 15 lakh total recoveries, India's recovery rate nears 70%; case fatality rate drops to 1.9%— PIB India (@PIB_India) August 11, 2020
TEST, TRACK, TREAT strategy showing the desired result- the gap between percentage Recoveries and percentage Active Cases is growing every day.
Read: https://t.co/5uj5Pb8hxd pic.twitter.com/50CLo7x9pD
गणित अच्छा हो तो ऊपर का ग्राफ देख कर समझ सकते हैं कि एक्टिव केस का प्रतिशत हर दिन घट रहा रहा है। लेकिन PTI को इससे क्या मतलब! उसे फेक न्यूज फैलाने से मतलब था, और वो काम उसने बखूबी कर दिया।
देश के सबसे बड़े पत्रकारों के संगठन आईएफडब्लूजे (इण्डियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स) ने पीटीआई में होने वाले भाई-भतीजावाद, गलत वित्तीय प्रबंधन और निहित स्वार्थों का खुलासा करते हुए बताया है कि किस प्रकार पीटीआई हमेशा सत्ताधारी पार्टी, मुख्यतः कॉन्ग्रेस के मुखपत्र के रूप में काम करता आया है।
कुछ दिनों पहले PTI ने नई दिल्ली में चीन के राजदूत सुन वेडोंग का एक इंटरव्यू लिया था, जिसमें उन्होंने भारत के विरोध में बातें कर के चीन के प्रोपेगेंडा को आगे बढ़ाया था। लेकिन PTI ने इस दौरान भारत का पक्ष रखते हुए सवाल तक नहीं किए थे। और तो और, उसने चीन के राजदूत द्वारा किए गए झूठे दावों पर पलट कर कोई सवाल भी नहीं पूछा था। PTI के इस रुख को लेकर सोशल मीडिया में लोगों ने विरोध जताया था।
ऐसा नहीं है कि यह पहली बार है। पीटीआई पहले भी कई बार खबरों को गलत तरीके से रिलीज कर सरकार को बदनाम करती रही है। ये हैं पीटीआई की कुछ करतूतें।
सीबीएसई बोर्ड परीक्षा फीस को लेकर फैलाई भ्रामक खबरें
पिछले साल पीटीई ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के छात्र-छात्राओं के लिए सीबीएसई परीक्षा फीस बढ़ाए जाने की खबर खबर रिलीज की थी, जिसके बाद पूरे देश में भ्रम फैल गया है। न्यूज एजेंसी पीटीआई भाषा की ओर से जारी इस खबर में कहा गया है कि केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) ने अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) छात्रों के लिए 10वीं और 12वीं कक्षा के बोर्ड परीक्षा शुल्क में 24 गुना वृद्धि की है। अब इस वर्ग के छात्रों को 50 रुपये के बजाय 1200 रुपये का शुल्क देना होगा। सामान्य वर्ग के छात्रों के शुल्क में भी दो गुनी वृद्धि की गई है और अब उन्हें 750 रुपये के स्थान पर 1500 रुपये देने होंगे। यदि कोई छात्र अतिरिक्त विषय लेता है तो उसे 300 रुपये और चुकाने होंगे।
पीटीआई की खबर से उलट सच्चाई यह थी कि दिल्ली को छोड़कर देशभर को एससी-एसटी छात्रों को पहले 750 रूपये परीक्षा फीस देने होते थे। पांच साल से फीस में कोई वृद्धि नहीं होने के कारण सीबीएसई ने सामान्य वर्ग के छात्रों के लिए फीस 750 रुपये से बढ़ा कर 1500 रुपये कर दिए, जबकि एससी/एसटी छात्रों के लिए फीस 750 रुपये से बढ़ाकर सिर्फ 1200 रुपये किए हैं।

न्यूज एजेंसी PTI ने इसके पहले वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के राज्यसभा के प्रश्नकाल में दिए गये बयान पर फेक खबर चलाई थी। 2 जुलाई, 2019 को राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान पूरक प्रश्नों के जवाब में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने देश की आर्थिक स्थिति के बारे जानकारी देते हुए देश के अच्छे आर्थिक संकेतों का उल्लेख किया। वित्त मंत्री के बयान से जब PTI को कोई चासनी वाली खबर नहीं मिली तो उसने अपनी खबर की टीआरपी बढ़ाने के लिए हेडलाइन में ही चासनी डाल दी। हेडलाइन पर चासनी पड़ते ही, सभी समाचार पत्र और चैनल इस खबर पर चीटियों की तरह चिपक गये। सबसे पहले NDTV ने वित्त मंत्री के बयान की खबर को अपने वेबसाइट पर डाला-
वित्तमंत्री ने खबर को Fake बताया
इस खबर की वही हेडलाइन थी, जो PTI ने दी थी। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने राज्यसभा में अपने पूरे बयान के दौरान नोटबंदी पर कोई बात नहीं कही थी, लेकिन फिर भी PTI और NDTV ने खबर से हटकर, खबरों में टीआरपी लाने के लिए नोटबंदी की हेडलाइन दी और लिखा-Demonetization has no effect on Indian Economy-Nirmala Sitharaman, इस खबर के प्रकाशित होने और सोशल मीडिया पर आते ही, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सवाल खड़ कर दिए-

NDTV और PTI की खबरों को आधार बनाकर कांग्रेसी समाचार पत्र ‘नवजीवन’ ने हेडलाइन ही नहीं पूरी खबर नोटबंदी पर बना दिया –
नवजीवन ने पीटीआई की केवल हेडलाइन पढ़कर ही पूरी खबर को अपने मन मुताबिक गढ़ दिया। यह ऐसी खबर थी, जिसका कोई आधार नहीं था, जिसके कोई सबूत नहीं थे, फिर भी सरकार के खिलाफ एजेंडा खड़ा करने के लिए हेडलाइन खड़ी कर दी गई।
‘फेक न्यूज’ एजेंसी पीटीआई
उत्तर प्रदेश में भाजपा की योगी सरकार ने 11 जुलाई 2017 को विधानसभा में 2017-18 का बजट पेश किया। इस बजट पर रिपोर्टिंग करते हुए पीटीआई ने समाचार दिया कि “उत्तर प्रदेश की सरकार ने सेकेंडरी और उच्च शिक्षा के लिए पूर्व सरकार की तुलना में बजट में कटौती कर दी है। पूर्व की अखिलेश यादव की सरकार ने 2016-17 में सेकेंडरी शिक्षा के लिए 9,990 करोड़ रुपये दिये थे, जबकि योगी आदित्यनाथ की सरकार ने 9,414 करोड़ रुपये की कटौती करके मात्र 576 करोड़ रुपये दिये हैं। इसी तरह से उच्च शिक्षा के बजट में भी कटौती की गई है। पिछले बजट में उच्च शिक्षा को 2,742 करोड़ रुपये दिये गये थे, जबकि इस साल के बजट में 2469.73 करोड़ रुपये की कटौती करते हुए, मात्र 272.77 करोड़ रुपये ही दिए गये हैं।”
योगी सरकार की ओर से शिक्षा बजट में इतनी भारी कटौती सचमुच एक बड़ी खबर थी। यह सभी समाचार पत्रों और टेलीविजन न्यूज चैनलों के लिए टीआरपी वाली स्टोरी भी थी। पीटीआई की इस खबर को आंख मूंद कर सभी ने अपने-अपने समाचार पत्र और चैनलों में बड़ी खबर बनाया।
इसी फेक न्यूज को आधार बनाकर, कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट किया-

इसी तरह से पीटीआई की एक फेक न्यूज को सोशल मीडिया पर सही मानकर प्रतिक्रिया दी जाने लगी।


अफसोस की बात यह है कि पीटीआई की खबर होने के कारण किसी भी अखबार या न्यूज चैनेल ने इसकी सत्यता परखने की कोशिश नहीं की। जब इसकी सत्यता की परख की गई तो पता चला कि यह एक फेक न्यूज थी। वास्तव में, पीटीआई ने उत्तरप्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा पेश बजट के कुछ अंशों के आधार पर ही यह रिपोर्ट की थी। अगर यह रिपोर्ट बजट अनुमान के कागजों को ठीक ढंग से पढ़कर बनाई गयी होती तो पता चलता कि योगी सरकार ने शिक्षा के लिए बजट में कमी नहीं बल्कि 34 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी की है। अखिलेश यादव की सरकार ने 2016-17 में जहां 46,442 करोड़ रुपये शिक्षा के लिए दिये थे वही 2017-18 में योगी आदित्यनाथकी सरकार ने 62, 351 करोड़ रुपये दिए हैं।
जब इस फेक न्यूज पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आधिकारिक बयान दिया और सोशल मीडिया पर इसकी जानकारी दी, तो पता चला कि यह फेक खबर पीटीआई ने दी है। इसके बाद सरकार की खिंचाई करने वालों ने पीटीआई के इस फेक न्यूज पर प्रतिक्रिया ना देकर चुप्पी साध ली।
जनता के सामने सच लाने वाले पत्रकार और मीडिया संस्थान जब खबरों को जान- बूझकर तोड़ते मरोड़ते हैं तो Fake Journalism की जड़ें ही मजबूत होती हैं। ये पत्रकार और मीडिया संस्थान, देश और देश की प्रजातंत्रिक व्यवस्थाओं के साथ विश्वासघात करते हैं, जिसकी कीमत देश की जनता और प्रधानमंत्री मोदी की सरकार को चुकानी पड़ती है।
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