भारत का सबसे बड़ा घोटाला : SECULARISM का क़त्ल

India में Secular पार्टियों ने Secularism के ...
                                                                साभार : यूट्यूब 
आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
शीर्षक देख आप सोंचगे कि भारत का सबसे बड़ा घोटाला SECULARISM का क़त्ल ये क्या विरोधाभास? SECULARISM में घोटाला कैसे, इसमें लेन-देन का तो कोई मतलब ही नहीं। इसमें वह गुप्त लेन-देन है, जिसे जनता से गुप्त रखा जाता है; और फिर SECULARISM का क़त्ल, इस शीर्षक की गूढ़ता को समझने के हमें कुछ दूर चलना होगा, इस शब्द के नाम पर हमारे छद्दम नेताओं और पार्टियों ने सेक्युलरिम और तुष्टिकरण कर अपनी कुर्सी को बचाते अपनी तिजोरियां भर जनता के मूल अधिकारों का हनन करते रहे, क्या इसे घोटाले का नाम देना गलत है। फिर सेकुलरिज्म के साथ-साथ तुष्टिकरण जनता में मतभेद पैदा करना सेकुलरिज्म का क़त्ल नहीं।  

हम आज जिस भारत में रहते हैं वहां एक विचित्र प्रकार की प्रजाति पायी जाती है, सेक्युलर। 
विचित्र इसलिए कहा कि आज ये मुक़द्दस शब्द एक गाली बन चूका है। आज सेकुलरिज्म का मतलब रह गया है तुष्टिकरण।
इन दोनों वीडियो को गंभीरता से सुनिए और निर्णय करिये कि क्या खुलेआम सेकुलरिज्म का क़त्ल नहीं हो रहा?
आज सब से ज्यादा सेक्युलर वो माना जाता है जो इफ्तार पार्टीज में सब से ज्यादा गोल टोपी पहन कर सब से सही तरीके से दुआ मांग सके भले ही उस के बाद वो अपने वोट बैंक की राजनीती के लिए इन्ही गोल टोपी वालों कि लाशें बिछाने का ही प्रबंध क्यों न करने लग जाये। आज सेक्युलर वो है जो इसराइल के विरोध में छाती कूटे और ISIS पर खामोश रहे। आज सेक्युलर वो है जो धर्म आधारित जनगणना करा के सेना में भी धर्म के नाम पर फुट डाले। आज सेक्युलर वो है जो भारत के प्रधानमंत्री को जितनी गन्दी गालियां दे या जितने गिरे हुए शब्दों से सम्बोधित करे। आज सेक्युलर वो है जो भारत के सनातन धर्म को अपमानित करे और इसे गलत ठहराने का प्रयास करे! आज सेक्युलर वो है जो गोधरा दंगों को कम्युनल बताये और आसाम दंगो एवं अन्य दंगों को बाहरी बनाम स्थानीय लोगों का संघर्ष। आज सेक्युलर वो है जो मुसलमानो के पक्ष में बोल कर, उनकी सहानुभूति बटोर कर सत्ता का सुख भोगे और फिर उन्हें हिन्दुओं से खतरा बता कर बेवकूफ बनाता रहे
देखिए मेरा स्तम्भ, जिसका आज तक
किसी ने खंडन नहीं किया 
ये सब करने से कोई समस्या नहीं है। आप अपना वोट बैंक बढ़ाओ, अपनी राजनीती चमकाओ, अपना फायदा बनाओ। लेकिन उसकी आड़ में समाज में वैमनस्यता मत फैलाओ, किसी समुदाय में दूसरे समुदाय के प्रति डर और विद्वेस कि भावना मत भड़काओ, एक समुदाय से दूसरे समुदाय के लोगो के सर न कटवाओ। आप का बोया हुआ ये विष किस हद तक प्रलयंकारी हो सकता है शायद आपको अंदाजा नहीं या है भी तो आप उसे अनदेखा कर रहे हैं अपने क्षणिक स्वार्थ के लिए। आपने मुसलमानो कि इतनी तरफदारी की कि हिन्दुओं में उनके प्रति ईर्ष्या भड़कने लगी और जिसे कुछ संगठनो ने हवा दे कर द्वेष बना दिया। आपने उस द्वेष को भुनाने के लिए पुनः तरफदारी कि और इस तरह ये बढ़ता गया। और बढ़ते बढ़ते इतना बढ़ गया कि आज छोटी छोटी सी बात पर ये समुदाय एक दूसरे के खून के प्यासे हो उठते हैं। ये इतना बढ़ गया है कि आज किसी मंदिर में गाय का मांस या किसी मस्जिद में सुवर का मांस मिलने पर ये बाद में पता लगाया जाता है कि ये किसकी करतूत है जबकि और दो चार लाशें पहले बिछा दी जाती हैं। मुसलमान की बस्ती से दुर्गा पूजा का जुलुस या हिन्दू कि बस्ती से मुहर्रम का जुलुस निकलने पर आपस में मर पिट और दंगे हो जाते हैं। किसी मौलाना के एक बयां पर कारसेवकों को ट्रेन में जिन्दा जल दिया जाता है और फिर उस का बदला लेने के लिए निर्दोष बच्चों, औरतों और बूढ़ों तक का कत्लेआम कर दिया जाता है।

साभार सोशल मीडिया (बहुत वायरल
हो रहा है )
आप जब तक किसी समुदाय विशेष कि तरफदारी करेंगे, अलग समुदायों के लिए अलग कानून बनाएंगे, समुदाय विशेष को कोई विशेष सुविधा देंगे तब तक ये चलता ही रहेगा। आप अलगाववादियों के नाम पर रोना रोते हैं जबकि आपकी इसी व्यवस्था ने उन अलगाववादियों को उनका बारूद मुहैया कराया है और कराता रहेगा। ये लकीर खींचने का काम आपने किया है। आपने सरकारी प्रतिवेदनों में धर्म के लिए एक कॉलम दिया।क्या भारतीय होना काफी नहीं था? आपने धर्म के आधार पर देश बांटा और दिल भी बांटे। क्या सारे धर्म के लोग एक साथ नहीं रह सकते थे? आपने हिन्दू को हिन्दू और मुसलमान को मुसलमान बताया। क्या वो इंसान नहीं हो सकते थे? आप ने धर्म आधारित राजनीती शुरू की। क्या वो मुद्दे आधारित नहीं हो सकते थे? आपने मुसलमानो को वोट बैंक बनाया। क्या वो मुख्यधारा का हिस्सा नहीं हो सकते थे? और इतना सब कुछ कर के भी आपने मुसलमानो का क्या भला किया? कुछ भी नहीं, बस दो चार मुसलमान नेता पैदा कर दिए जो आपके ही अजेंडे को हवा दे रहे हैं बजाये कि मुसलमानो के लिए कुछ करते। आप सेक्युलर बनते हैं जबकि आप तो आज तक इसका अर्थ ही नहीं समझ पाये
धर्म के मुद्दे बड़े संवेदनशील होते हैं, उनमें तर्क-वितर्क करना (तथाकथित धर्म गुरुओं के अनुसार) अपराध माना जाता है फिर उनमें अपने अनुसार नीतियां बना ली जाती हैं, जिनका पालन उस धर्म के मानने वालों द्वारा किया जाता है मगर सवाल खड़ा तब हो जाता है जब आज के मॉडर्न धार्मिक ठेकेदार अपने हिसाब से मान्यताओं को सेट करने लग जाता है
यहाँ सवाल खड़ा होता है कि हर दूसरे दिन ऐसी स्थितियों को देखकर इस देश में ‘सेकुलरिज्म’ शब्द के लिए जगह कहाँ बचती है? अगर एक दूसरे के धर्म से इतनी नफरत की जा रही है तो आपस में मेल जोल बढ़ाने की गुंजाईश कहाँ बचती है? फिर किसी की व्यक्तिगत आजादी और स्वतंत्रता की जगह कहाँ बचती है? सेकुलरिज्म की आड़ में अपने अजेंडे सेट करने वालों के लिये यही सवाल खड़ा होता है कि क्या अब सभी को एक दूसरे के धार्मिक त्योहारों पर बधाई देना, उनकी ख़ुशी में शामिल होना, उनमे भाग लेना बंद कर देना चाहिए?
Hindu 2.0 - Power hungry Congress never thought about... | Facebookआपके अपने धर्म में अपनी सुविधा के हिसाब से काम न होते ही उसके खिलाफ खड़े हो जाते हैं तो आपको सीधा सिद्धांत बना देना चाहिए कि न हम किसी के घर में जाएंगे और न किसी को आने देंगे हर दूसरे दिन मज़ारों पर जाकर माथा टेकने वालों, चादर चढाने वालों पर बैन लगा देना चाहिए
सोशल मीडिया पर आज सेकुलरिज्म स्कैम वायरल हो रहा है। इसमें उन सेकुलर, लिबरल, वामपंथियों, अवार्ड वापसी और टुकड़े-टुकड़े गैंग के लोगों को फटकार लगाई गई है जो हर मुद्दे पर सेलेक्टिव अप्रोच रखते हैं। हिन्दुओं की आस्था की बात हो, हिन्दुओं के देवी-देवाताओं के अपमान का मामला हो तो सेकुलर-लिबरल गैंग के लोग फ्रीडम ऑफ स्पीच का राग अलापने लगते हैं। हिन्दुओं की भावनाओं से खेलने वाले लेख और फिल्मों का बचाव करने लगते हैं। लेकिन जब मामला मुस्लिम समुदाय से जुड़ा हो तो यही लोग चुप्पी साध लेते हैं। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर जब कोई व्यक्ति बेंगलुरु में पैगंबर पर कोई टिप्पणी करता है तो हजारों की संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग घर से बाहर निकल जमकर आगजनी करते हैं और कथित सेकुलर-लिबरल अवार्ड वापसी गैंग के लोग कुछ नहीं बोलते हैं। 
*अयोध्या मुद्दे को लीजिए: कौन नहीं जानता कि मुगलों ने हिन्दू मंदिरों को मस्जिद और दरगाहों में परिवर्तित नहीं किया? लेकिन चंद चांदी के टुकड़ों के लालच में कांग्रेस और वामपंथियों ने भारतीय इतिहास को ही बदल दिया। मुग़ल आक्रांताओं को महान बता दिया। क्या यह सेकुलरिज्म का क़त्ल नहीं?
*जब कोर्ट के आदेश पर अयोध्या में राममंदिर परिसर में खुदाई कर मंदिर और मस्जिद के सबूत निकालने  पर जब मंदिर के हज़ारों अवशेष मिलने पर उन्हें कोर्ट से छुपाए पर उस समय कितने मीडिया ने अवशेषों को छुपा कर कोर्ट को धोखा देने की बात कही? उस समय हिन्दू संगठनों को सांप्रदायिक करार देने में लगभग सारा मीडिया लामबंद था, क्यों? क्या यह सेकुलरिज्म का क़त्ल नहीं था?
*कहाँ था सेकुलरिज्म जब पुरुषोत्तम श्रीराम को काल्पनिक कहा जा रहा था? क्या यह सेकुलरिज्म का क़त्ल नहीं?
*कहाँ था सेकुलरिज्म जब निहत्ते रामभक्तों से उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह गोलियों से मरवा रहे थे? क्या यह सेकुलरिज्म का क़त्ल नहीं?
*कहाँ था सेकुलरिज्म जब उत्तर प्रदेश के तत्कालीन अखिलेश यादव सरकार ने 84 कोसी यात्रा को प्रतिबंधित करने का दुस्साहस किया था? क्या यह सेकुलरिज्म का क़त्ल नहीं?
*कहाँ था सेकुलरिज्म जब पेंटर एम.एफ.हुसैन हिन्दू देवी-देवताओं के नग्न चित्र बना रहा था, और उसका विरोध करना अभिव्यक्ति आज़ादी कह हिन्दू संगठनों को साम्प्रदायिकता फ़ैलाने का आरोप लगा रहे थे? इतना ही नहीं हिन्दू धर्म को हीनभावना से देखने वाले इस पेंटर को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित करना क्या यह सेकुलरिज्म का क़त्ल नहीं?
----------------------------------------------------
       क्या यह सेकुलरिज्म का क़त्ल नहीं?
Anti Hindu Communal Violence Bill will be challenged by BJP in ...सोनिया गांधी के नेतृत्व में बनाया गया  "Communal violence bill"
कांग्रेस के लिये जान फूंकने वाले हिन्दुओं देखो सोनिया गाँधी की भयानक खतरनाक साजिश। जिसे पढ़कर रोंगटे खड़े हो जायेगा।
अगर लागू हो गया होता तो आज मरना भी दूभर हो जाता। मुग़ल युग से बदतर ज़िन्दगी जी रहे होते। 
तुम्हारे विनाश वाला बिल जिसे काँग्रेस हिंदुओ के खिलाफ ऐसा बिल लेकर आई थी जिसको सुनकर आप कांप उठेंगे । परन्तु भाजपा के जबरदस्त विरोध के कारण वह पास नहीं करवा सकी । मुझे यकीन है कि 90% हिन्दुओ को  तो अपने खिलाफ आये इस बिल के बारे में कुछ पता भी नहीं होगा जिसमें शिक्षित हिंदू भी शामिल है क्योंकि हिंदू सम्पत्ति जुटाने में लगा है उसको इस सब बातों को जानने के लिए समय नहीं है। जबकि मुसलमान के अनपढ़ भी इतने जागरूक है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान में धर्म के आधार पर प्रताड़ित किये गए हिन्दू व अन्य अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को नागरिकता देने वाले CAA क़ानून के खिलाफ मुसलमान का बच्चा बच्चा उठ खड़ा हुआ। 
क्या है "दंगा नियंत्रण कानून"
हिंदू समाज के लिए फांसी का फंदा, कुछ एक लोगों को इस बिल के बारे में पता होगा, 2011 में इस बिल की रुप रेखा को सोनिया गाँधी की विशेष टीम ने बनाया था जिसे NAC भी कहते थे, इस टीम में दर्जन भर से ज्यादा सदस्य थे और सब वही थे जिन्हें आजकल अर्बन नक्सली कहा जाता है.. कांग्रेस का कहना था की इस बिल के जरिये वो देश में होने वाले दंगों को रोकेंगे। अब इस बिल में कई प्रावधानो पर जरा नजर डालिए :--
इस बिल में प्रावधान था कि दंगों के दौरान दर्ज अल्पसंख्यक से सम्बंधित किसी भी मामले में सुनवाई कोई हिंदू जज नहीं कर सकता था ।
अगर कोई अल्पसंख्यक सिर्फ यह आरोप लगा दे कि मुझसे भेदभाव किया गया है तो पुलिस को अधिकार था कि आपके पक्ष को सुने बिना आपको जेल में डालने का हक होगा और इन केसों में जज भी अल्पसंख्यक ही होगा..
इस बिल में ये प्रावधान किया गया था कि कोई भी हिन्दू दंगों के दौरान हिंसा, आगजनी, तोड़फोड़ 
के लिये अल्पसंख्यक समुदाय के विरुद्ध केस दर्ज नहीं करवा सकता ।
इस बिल में प्रावधान किया गया था कि अगर कोई अल्पसंख्यक समुदाय का व्यक्ति हिन्दू पर हिंसा, आगजनी, तोड़फोड़, हत्या का आरोप लगाता है तो कोर्ट में साक्ष्य पेश करने की जिम्मेदारी उसकी नहीं है केवल मुकदमा दर्ज करवा देना ही काफ़ी है । बल्कि कोर्ट में निर्दोष साबित होने की जिम्मेदारी उस व्यक्ति की है जिस पर आरोप लगाया गया है ।
इस बिल में ये प्रावधान किया गया था कि दंगों के दौरान अल्पसंख्यक समुदाय को हुए किसी भी प्रकार के नुकसान के लिए बहुसंख्यक को जिम्मेदार मानते हुए अल्पसंख्यक समुदाय के नुकसान की भरपाई हिंदू से की जाए । जबकि बहुसंख्यक के नुकसान के लिए अल्पसंख्यक को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता था ।
अगर आपके घर में कोई कमरा खाली है और कोई मुस्लिम आपके घर आता है उसे किराए पर मांगने के लिए तो तो आप उसे कमरा देने से इंकार नहीं कर सकते थे क्योंकि उसे बस इतना ही कहना था कि आपने उसे मुसलमान होने की वजह से कमरा देने से मना कर दिया यानि आपकी बहन बेटी को छेड़ने वाले किसी अल्पसंख्यक के खिलाफ भी हम कुछ नहीं कर सकते थे। मतलब कि अगर कोई छेड़े तो छेड़ते रहने दो वर्ना वो आपके खिलाफ कुछ भी आरोप लगा देता….. आपकी सीधी गिरफ़्तारी और ऊपर से जज भी अल्पसंख्यक..
देश के किसी भी हिस्से में दंगा होता, चाहे वो मुस्लिम बहुल इलाका ही क्यों न हो, दंगा चाहे कोई भी शुरू करता पर दंगे के लिए उस इलाके के वयस्क हिन्दू पुरुषों को ही दोषी माना जाता और उनके खिलाफ केस दर्ज कर जांचें शुरू होती। और इस स्थिति में भी जज केवल अल्पसंख्यक ही होता ऐसे किसी भी दंगे में चाहे किसी ने भी शुरू किया हो..
अगर दंगों वाले इलाके में किसी भी हिन्दू बच्ची या हिन्दू महिला का रेप होता तो उसे रेप ही नहीं माना जाता । बहुसंख्यक है हिन्दू इसलिए उसकी महिला का रेप रेप नहीं माना जायेगा और इतना ही नहीं कोई हिन्दू महिला बलात्कार की पीड़ित हो जाती और वो शिकायत करने जाती तो अल्पसंख्यक के खिलाफ नफरत फ़ैलाने का केस उस पर अलग से डाला जाता..
इस एक्ट में एक और प्रस्ताव था जिसके तहत आपको पुलिस पकड़ कर ले जाती अगर आप पूछते की आपने अपराध क्या किया है तो पुलिस कहती की तुमने अल्पसंख्यक के खिलाफ अपराध किया है, तो आप पूछते की उस अल्पसंख्यक का नाम तो बताओ, तो पुलिस कहती – नहीं शिकायतकर्ता का नाम गुप्त रखा जायेगा..
कांग्रेस के दंगा नियंत्रण कानून में ये भी प्रावधान था की कोई भी इलाका हो बहुसंख्यको को अपने किसी भी धार्मिक कार्यक्रम से पहले वहां के अल्पसंख्यकों का NOC लेना जरुरी होता यानि उन्हें कार्यक्रम से कोई समस्या तो नहीं है । ऐसे हालात में अल्पसंख्यक बैठे बैठे जजिया कमाते क्यूंकि आपको कोई भी धार्मिक काम से पहले उनकी NOC लेनी होती, और वो आपसे पैसे की वसूली करते और आप शिकायत करते तो भेदभाव का केस आप पर और ऐसे हालात में जज भी अल्पसंख्यक..और भी अनेको प्रावधान थे कांग्रेस के इस दंगा नियंत्रण कानून में जिसे अंग्रेजी में # Communal Violence Bill भी कहते है..
सुब्रमण्यम स्वामी ने इस बिल का सबसे पहले विरोध शुरू किया था और उन्होंने इस बिल के बारे में लोगों को जब बताया था तो 2012 में हिन्दू काँप उठे थे तभी से कांग्रेस के खिलाफ हिन्दुओं ने एकजुट होना शुरू कर दिया था। सुब्रमण्यम स्वामी का इस "Communal Violence Bill" पर विरोध सुनिए : .

(इस भाषण में सुब्रमण्यम सोनिया गाँधी की जिस समिति का नाम ले रहे हैं, अरविन्द केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, योगेंद्र यादव इसी समिति के देन है, जिसके विषय में विस्तार से आम आदमी पार्टी बनने पर  लिख चूका हूँ। (देखिए ऊपर पृष्ठ) कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दोनों सिक्के के एक ही पहलु हैं।)
अब इस के बाद भी जो हिन्दू कांग्रेस को support करता है वे जाने अनजाने अपने ही लोगो के लिए नरक का द्वार खोल रहे है। 
अवलोकन करें:-



About this website

NIGAMRAJENDRA.BLOGSPOT.COM
वीडियो से लिए गए स्क्रीनशॉट राम मंदिर भूमि पूजन के बाद 5 अगस्त का दिन पूरे देश में दीपावली की तरह मनाया गया। हर हिंद.....
---------------------------------------
  • जब इसी हिंदुस्तान में हिन्दू देवी-देवताओं पर अश्लील फब्तियॉं कसी जाती है। उनके अश्लील चित्र बनाए जाते हैं। क्या यह सेकुलरिज्म का क़त्ल नहीं?
  • कॉमेडी शो में हिन्दू संस्कृति, हिन्दू धर्म का मजाक उड़ाया जाता है। माँ दुर्गा को वेश्या तक कहा गया। क्या यह सेकुलरिज्म का क़त्ल नहीं?
  • सीता माता एवं रावण के सम्बंध बताना एवं जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण के चरित्र पर सवाल उठाना क्या यह सेकुलरिज्म का क़त्ल नहीं?
  • हाल ही में असम में एक प्रोफेसर ने भगवान राम पर अश्लील टिप्पणी की थी। लेकिन देश में कहीं भी न हिन्दू धर्म खतरे में आया, न ही कहीं दंगे हुए। क्या यह सेकुलरिज्म का क़त्ल नहीं?
  • केरल में माँ दुर्गा की नग्न तस्वीर का पोस्टर वामपंथी कई बार लगा चुके हैं। क्या यह सेकुलरिज्म का क़त्ल नहीं?
  • दिल्ली विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर ने माँ दुर्गा को वेश्या तक कह दिया था। अलग-अलग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बकायदा अकाउंट हैं, जिनका काम ही हिन्दू देवी-देवताओं पर आपत्तिजनक पोस्ट करना है।क्या यह सेकुलरिज्म का क़त्ल नहीं? 
  • जब इस्लामिक आतंकवादियों को बचाने "हिन्दू आतंकवाद" और "भगवा आतंकवाद" बेकसूर हिन्दू साधु-संत और अन्य हिन्दुओं(साध्वी प्रज्ञा, स्वामी असीमानंद और कर्नल पुरोहित आदि) को जेलों में डाला जा रहा था, क्या यह सेकुलरिज्म का क़त्ल नहीं?
  • जब पकडे गए आतंकवादियों को कोरमा और बिरयानी खिलाई जा रही थी, तो दूसरी तरफ इन बेकसूर साधु-संतों की सात्विकता का हनन किया जा रहा था, क्या यह सेकुलरिज्म का क़त्ल नहीं?
  • जब नागरिकता संशोधक कानून के विरोध में सरकार के विरुद्ध नारेबाजी करना समझ आता है, लेकिन "fuck Hindutva", "हिन्दुत्व तेरी कब्र खुदेगी" आदि नारे लगाए जाना क्या यह सेकुलरिज्म का क़त्ल नहीं?
  • नागरिकता संशोधक कानून प्रदर्शनों के आड़ में दिल्ली में हिन्दू विरोधी दंगा क्या यह सेकुलरिज्म का क़त्ल नहीं? 
  • अल्पसंख्यक आयोग का गठन करना क्या यह सेकुलरिज्म का क़त्ल नहीं? क्या अल्पसंख्यक भारत के नागरिक नहीं?
  • घुसपैठियों के आधार कार्ड, राशन कार्ड और मतदाता पहचान-पत्र बनवाना क्या यह सेकुलरिज्म का क़त्ल नहीं? 
  • इसी साल फरवरी में भयानक हिंदू विरोधी दंगे हुए थे। दंगों के एक आरोपित ताहिर हुसैन ने  कबूल किया है दंगों की योजना कई महीने पहले ही बना ली गई थी। इन्हें विदेशी ताकतों का समर्थन और पैसा भी हासिल था। विदेशियों के हाथ की कठपुतली बन देश में साम्प्रदायिकता फैलाना क्या सेकुलरिज्म का क़त्ल नहीं?

सेकुलर, लिबरल, वामपंथियों, अवार्ड वापसी और टुकड़े-टुकड़े गैंग के लोगों के इसी दोगलेपन को देखते हुए सोशल मीडिया पर सेकुलरिज्म स्कैम वायरल हो रहा हैं।










Ambedkar on Islamबेंगलुरु में दलित विधायक के घर कट्टरपंथी मुसलमानों के हमले के बीच वायरल हो रहा है जेएनयू के प्रोफेसर का ट्वीट
समस्या क्या है कि सब कुछ आपके हिसाब से सेट होना चाहिए हलाला के नाम पर महिला का रेप सकते हैं मस्जिद में बच्ची का बलात्कार कर सकते हैं आतंकियों का समर्थन कर सकते हैं मस्जिद में हथियार रख सकते हैं टीवी देखने का विरोध कर टीवी पर डिबेट में बैठ सकते हैं आप आजादी का झंडा बुलंद कर तीन तलाक का विरोध कर सकते हैं आप अफजल के लिए शर्मिंदा हो सकते हैं, आप भारत के टुकड़े टुकड़े करने के लिए तैयार हो सकते हैं,आप पत्थरबाजों को मासूम बता सकते है, आर्मी को रेपिस्ट और सड़क का गुंडा बता सकते हैं आप ‘ भगवा आतंकवाद’ जैसे शब्द गढ़ सकते हैं इन सब कर्मों को वालों का जब सजा भुगतने का वक्त आता है तो आप मानवाधिकार और आजादी का रोना रो सकते हैं मगर ऐसा करने वालों के खिलाफ न आप नाराजगी जाहिर कर सकते हैं न फतवा जारी कर सकते हैं
बेंगलुरू में हजारों कट्टरपंथी मुसलमानों की भीड़ एक दलित विधायक श्रीनिवास मूर्ति के घर पर हमला और आगजनी की। इतना ही नहीं इन कट्टरपंथियों ने शहर के कई इलाकों में जमकर हिंसा और आगजनी की। पूरे देश में इस घटना की चर्चा है। इस बीच जेएनयू के प्रोफेसर आनंद रंगनाथन का एक ट्वीट सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है। प्रोफेसर रंगनाथन ने यह ट्वीट अक्टूबर, 2019 में किया था, जिसमें उन्होंने मुसलमानों के बारे में डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर के विचारों को साझा किया था और लिखा था कि यदि उन्होंने आज के वक्त में यह बात कही होती तो कट्टरपंथी मुसलमान उनका भी सिर काट देते।



उन्होंने डॉ. अम्बेडकर के जिस वक्तब्य का जिक्र किया था, उसमें उन्होंने कहा था कि इस्लाम एक करीबी कार्पोरेशन है और मुसलमानों एवं गैर-मुस्लिमों के बीच जो अंतर है, वह एक बहुत ही वास्तविक, बहुत सकारात्मक और बहुत अलग-थलग करने वाला भेद है। इस्लाम का भाईचारा मनुष्य का सार्वभौमिक भाईचारा नहीं है। यह केवल मुसलमानों के लिए मुसलमानों का भाईचारा है। एक बिरादरी है, लेकिन इसका लाभ उसके भीतर तक ही सीमित है। जो लोग उससे बाहर हैं, उनके लिए अवमानना और दुश्मनी के अलावा कुछ नहीं है। उन्होंने यह भी कहा था कि जहां भी इस्लाम का शासन है, वहां उसका अपना देश है। दूसरे शब्दों में, इस्लाम कभी भी एक सच्चे मुसलमान को अपनी मातृभूमि के रूप में भारत को अपनाने और एक हिंदू को अपने परिजनों और रिश्तेदारों के रूप में अपनाने की अनुमति नहीं दे सकता है।

No comments: