हिन्दू -मुस्लिम एकता पर बने ‘5 Best विज्ञापनों में सिर्फ हिन्दू ही नेगेटिव और कट्टर क्यों?

आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
अपने विज्ञापन में लव जिहाद को प्रमोट करने के कारण तनिष्क को सोशल मीडिया पर काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। हालाँकि, तनिष्क ने भले ही व्यापक स्तर पर लोगों का विरोध देखने के बाद हिन्दू समुदाय से माफी माँग ली हो मगर यह पहली बार नहीं है जब किसी एड एजेंसी ने हकीकत से अलग चीजों को दिखाने का प्रयास किया है।

तनिष्क से पहले भी कई उत्पादों पर हिन्दू समुदाय की भावनाओं को आहत करने का इल्जाम लगा है। ऐसे उत्पादों के विज्ञापनों में न केवल हिन्दुओं को कट्टरपंथी दिखाया गया बल्कि उन्हें असहिष्णु भी दर्शाया गया। वहीं दूसरे समुदाय को बेहद सौम्य व्यवहार वाला दिखाया गया।

इस तरह के विज्ञापन बनाने वालों को शायद यह नहीं मालूम कि देश में हिन्दू-मुसलमान के बीच नफरत फ़ैलाने वाले केवल दो वर्ग हैं: पहला छद्दम धर्म-निरपेक्ष नेता और दूसरा मुस्लिम कट्टरपंथी। और ये छद्दम धर्म-निरपेक्ष/सेक्युलरिस्ट अपनी कुर्सी की खातिर कट्टरपंथियों के इशारे पर नाचते रहते हैं। इन छद्दमों ने हिन्दुओं को जाति और पंथों में बाँट दिया, जबकि मुसलमानों में हिन्दुओं से अधिक पंथ हैं, कोई एक दूसरे की मस्जिद में नमाज नहीं पढ़ सकता, एक दूसरे के कब्रिस्तान में मुर्दा दफ़न नहीं कर सकते, परन्तु इस्लाम के नाम पर एक हैं। किसी आम हिन्दू अथवा मुसलमान को अपनी रोजी-रोटी से फुर्सत नहीं, इन दंगों में नहीं फंसता। मेरे ही कई मुस्लिम परिवारों से पारिवारिक सम्बंध हैं, एक-दूसरे के त्यौहारों में भागीदार बनते हैं, क्षेत्र ने अनगिनत दंगे देखे, लेकिन संबंधों पर लेशमात्र भी प्रभाव नहीं पड़ा।

आपके सामने ऐसे ही विज्ञापनों के 5 उदाहरण पेश करने जा रहे हैं, जिसमें सेकुलरिज्म दिखाने की कोशिश में हिन्दुओं का अपमान हुआ।

यू्ट्यूब पर हिन्दू -मुस्लिम पर 5 सबसे बेहतरीन एड के संकलन (5 Best Creative Indian Ads About Hindu Muslim) में कम से कम दो हिन्दू विरोधी विज्ञापन हैं और तीसरे में गंगा जमुनी तहजीब को दर्शाने के लिए हिन्दू लड़की का इस्तेमाल हुआ है।

इसी तरह एक विज्ञापन में हिन्दू व्यक्ति को ऐसे दर्शाया गया है, जैसे उनके परिवार में ही दूसरे समुदाय के घर खाना पीने से मना किया जाता हो।

पहले प्रचार में हम देख सकते हैं कि एक हिन्दू व्यक्ति गणपति बप्पा की मूर्ति खरीदने आता है और जब उसे पता चलता है कि उसे बनाने वाला विशेष समुदाय का है तो वह असहज दिखने लगता है। आगे विज्ञापन में दिखाया जाता है कि इसके बाद मुस्लिम व्यक्ति सब समझ जाता है और अपनी बातों से उसका दिल जीत लेता है। फिर, हिन्दू युवक को गलती का एहसास होता है और वह मूर्ति खरीदने का फैसला करता है।

दूसरे विज्ञापन में हिन्दू दंपत्ति को पहले मुस्लिम महिला के घर जाने से मना करते हुए दिखाया जाता है, लेकिन जैसे ही उसके घर से चाय की खुशबू आती है, वह दोनों किसी बहाने वहाँ चले जाते हैं और रेड लेबल चाय के स्वाद में डूब कर एक और कप चाय माँग लेते हैं।

तीसरा एड सर्फ एक्सेल का है। एक बच्ची इसमें सभी हिन्दू बच्चों से अपने ऊपर रंग फेंकने को कहती है फिर जब सबके पास रंग खत्म हो जाते हैं तो वह एक मुस्लिम लड़के को अपने साइकल के पीछे बिठाती है और मस्जिद तक छोड़कर आती है और बाकी बच्चे भी यह देखने के बाद रंग फेंकने से गुरेज करने लगते हैं।

फिर एक और वीडियो! राहुल नाम के एक बच्चे को इसमें उसकी माँ पंडित को खाना खिलाने भेजती है, लेकिन वह पहुँच मस्जिद जाता है और फिर मौलवी को खाना खिलाकर जब घर लौटता है तो माँ पूछती है कि पंडितजी ने क्या कहा। जिस पर बच्चा जवाब देता है- बिस्मिल्लाह रहमान ए रहीम। इसे सुन माँ हैरानी से पूछती है कि राहुल, तुम कहाँ गए थे। पूरा वीडियो देखकर बस यही लगता है कि जैसे सेकुलरिज्म का दारोमदार हिन्दुओं के कंधे पर ही है।

इसी प्रकार एक शॉर्ट फिल्म में बाइक चोरी होती है। हिन्दू युवक एक मुस्लिम व्यक्ति को उसकी बाइक पर गणपति बप्पा की फोटो देखकर पकड़ लेते है। वीडियो के शुरू से ही इस्लामी टोपी पहने लड़के को सिर्फ़ डरा हुआ दर्शाया जाता है। हालाँकि, बाद में वो बताता है कि उसने अपनी बाइक पर गणेश जी की फोटो इसलिए लगाई है क्योंकि उसे एक हिन्दू आदमी ने दिल दिया था और वह गणेश जी का भक्त था। इसलिए उसने अपनी गाड़ी पर इसे लगाया।

कुल 5 विज्ञापनों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि हिंदुओं को लेकर एड एजेंसी किस तरह की तस्वीर समाज में परोस रही है। गंगा जमुनी तहजीब दिखाने के लिए हिंदुओं को नकारात्मक दर्शाया जाता है और दूसरा समुदाय अचानक से बहुत शांत, सरल, सहिष्णु हो जाता है जबकि हकीकत इससे कोसों दूर है। अजेंडा चलाने के लिए न केवल तनिष्क बल्कि तमाम कंपनियाँ सेकुलरिज्म का सारा भार सिर्फ़ हिंदुओं के ऊपर मढ़ रही हैं।

छद्दम सेकुलरिज्म बेनकाब 

हिन्दू-मुस्लिम एकता पर विज्ञापन बनाने वालों को वास्तविकता से भी रूबरू होना चाहिए था। उन्हें नागरिकता संशोधक कानून के विरोध में हुए धरने एवं प्रदर्शनों में लगे हिन्दुत्व विरोधी नारों को नज़रअंदाज़ करना, इतना ही नहीं, हिन्दुओं की गैर-मौजूदगी में भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने की योजना की रुपरेखा तैयार की जा रही थी कि हिन्दुओं को गुमराह करने के लिए तिरंगा हाथ में लो, भारत माता की जय बोलो आदि आदि, फिर पूर्वी दिल्ली में हुए हिन्दू विरोधी दंगों पर, जगह-जगह हो रहे हिन्दू मन्दिरों पर हमलों को नज़रअंदाज़ करना प्रमाणित करता है कि कट्टरपंथियों के साथ-साथ विज्ञापन बनाने वाले हिन्दुओं को ही कलंकित कर रहे हैं। लगता है यह विज्ञापन बनाने वाले भी कट्टरपंथियों के इशारे पर नाच हिन्दुओं को ही अपमानित करने में लगे हैं।  सच्चाई जानने के लिए नीचे दिए लिंक का अवलोकन करें। 

क्या इस तरह के भ्रमित विज्ञापन बनाने वालों ने निम्न समाचार को नहीं पढ़ा। ये स्वार्थी एवं कपटी भूल रहे हैं कि जब तक देश में हिन्दू बहुसंख्यक है, सेकुलरिज्म जीवित है और जिस दिन हिन्दू अल्पसंख्यक हो गया, सेकुलरिज्म का अपने आप जनाजा निकल जाएगा। गंगा-जमुनी तहजीब का नारा भी दफ़न हो जाएगा। जिसकी जिन्दा मिसाल पाकिस्तान है। ऐसे भ्रमित विज्ञापन बनाने वालों सच्चाई को पहचानो, उस पर पर्दा डाल जनता को गुमराह मत करो। 

हिन्दू समुदाय के लोगों द्वारा पूर्व मंत्री रसीद मसूद के रस्म तेरहवीं कार्यक्रम पर भड़के देवबंद उलेमा, कहा- यह ‘हराम’ है

हिंदू समाज द्वारा मनाई गई पूर्व केंद्रीय मंत्री काजी रशीद मसूद की रस्म तेरहवीं में पूर्व विधायक इमरान मसूद व शाजाद मसूद सहित परिवार के अन्य सदस्यों के शामिल होने पर उलमा ने कड़ा एतराज जताया है। उलमा का कहना है कि ऐसी रस्में मुस्लिमों के लिए ‘हराम’ है। 

बता दें कि इस समारोह का आयोजन बिलासपुर में मास्टर रतन लाल द्वारा किया गया था। रतन लाल, रशीद मसूद को अपना भाई मानते थे और उनका मसूद परिवार से अच्छे संबंध थे। नौ बार सांसद रहे काजी रशीद मसूद का हाल ही में कोरोना से निधन हो गया था। 

बिलासपुर गाँव में हिदू समाज ने उनकी रस्म पगड़ी का आयोजन किया। हिंदू रीति रिवाज के अनुसार मंत्रोच्चार के बीच उनके पुत्र शाजान मसूद को पगड़ी पहनाई गई। इस दौरान काजी रशीद मसूद के भतीजे और पूर्व विधायक इमरान मसूद व कई कॉन्ग्रेस नेता भी मौजूद रहे। इस कार्यक्रम का वीडियो सोशल मीडिया पर भी वायरल हो रहा है।

मदरसा जामिया शेख-उल-हिंद के मौलाना मुफ्ती असद कासमी ने कहा कि इस्लाम में किसी दूसरे धर्म की परंपराओं को अपनाए जाने की सख्त मनाही है। असद कासमी ने कहा कि किसी दूसरे मजहब की रस्म तेरहवीं में मंत्रोच्चारण के बीच पगड़ी पहनाए जाना इस्लाम मजहब के खिलाफ है। इसके साथ ही उन्होंने मसूद के बेटे को हिंदू समारोह में भाग लेने के लिए अल्लाह से तौबा करने के लिए कहा। 

उन्होंने कहा कि हिंदू समाज के रस्म तेरहवीं के कार्यक्रम में मंत्रोच्चारण के बीच काजी रशीद मसूद के बेटे को पगड़ी पहनाया जाना इस्लाम के खिलाफ है। इसके लिए उन्हें अल्लाह से तौबा कर सच्चे दिल से माफी माँगनी चाहिए। मुफ्ती असद कासमी का कहना है कि घर के किसी बड़े को चुनना या पगड़ी बाँधना बुरी बात नहीं है, लेकिन यह इस्लामिक रीति-रिवाजों से होना चाहिए।

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उलेमा की टिप्पणी पर पूर्व केंद्रीय मंत्री काजी रशीद के भतीजे इमरान मसूद ने कहा कि हम कलमे के मानने वाले हैं। उन्हें किसी के सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है। क्योंकि वो और हमारा अल्लाह ही बेहतर जानने वाले हैं। समारोह का हिस्सा रहे शाज़ान मसूद ने कहा कि ‘पगड़ी’ की रस्म पीढ़ियों से उनके परिवार का हिस्सा रही है।

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