वास्तव में समय बहुत बलवान होता है, एक समय था, जब मीडिया किसी हिन्दू संत अथवा संगठन द्वारा असामाजिक काम के करने पर समस्त हिन्दू समाज को लज्जित करने से पीछे नहीं रहते थे, परन्तु वही दुष्कर्म किसी दूसरे धर्मों में होने पर चुप्पी साधे रहते थे। मीडिया की इस नीति में अब कुछ अंतर दिखने लगा है। जबकि मुख्यधारा का मीडिया अभी भी अपनी TRP के मकड़जाल में फंसा हुआ है।
केरल में ईसाई मिशनरियों द्वारा LGBTQI कन्वर्जन थेरेपी संस्थान (कन्वर्जन सेंटर्स) चलाए जा रहे हैं। इसके तहत एलेक्स (बदला हुआ नाम) नामक एक व्यक्ति को आईना दिया गया और ये कहने को कहा गया, “मैं पापी हूँ। मैं समलैंगिक हूँ। मैं कभी स्वर्ग नहीं जा सकता। जीसस क्राइस्ट मुझसे घृणा करते हैं। मुझे खुद को बदलना होगा।” अदिचिरा स्थित विन्सेंटियन कॉन्ग्रिगेशन द्वारा संचालित परित्राणा रीट्रीट सेंटर में अलेक्स सहित 30 लोग भर्ती थे। ये जगह केरल में कोट्टायम-एट्टुमन्नूर हाइवे पर स्थित है।
इस सेंटर की स्थापना 1990 में हुई थी। ‘द न्यूज़ मिनट’ में प्रकाशित खबर के अनुसार, अलेक्स को जब पता चला कि वो समलैंगिक है तो उसने खुद को ‘ठीक करने के लिए’ इस रिट्रीट सेंटर से संपर्क किया, जहाँ उसे 21 दिन के कोर्स में पंजीकृत किया गया। उसे एक बाइबिल, सफ़ेद कपड़े और एक नोटबुक दिया गया। रिट्रीट सेंटर से काफी दूर एकांत में ‘गे कन्वर्जन सेंटर’ स्थित है। 25000 रुपए जमा कराने और एक कंसेंट फॉर्म भरने के बाद वहाँ भेजा जाता है।
Noting an increase in conversion therapies during the lockdown, @LGBTQueerala has filed a petition to ban the same at the Kerala High Court.https://t.co/reRueCDVwD
— Deena Theresa (@TheresaDeena) October 16, 2020
‘They tied me up, sedated me’: A probe into LGBTQI conversion therapy in Kerala. By @_eajey. This is a must read https://t.co/UuEPHTdWd1
— Dhanya Rajendran (@dhanyarajendran) February 22, 2021
वहाँ 18 से 27 वर्ष की उम्र के कई पुरुष एवं महिलाएँ थीं। उन्हें एक-दूसरे से बातचीत की अनुमति नहीं थी और खाली समय में होली मेरी (Holy Mary) की तस्वीर के सामने प्रार्थना करने को कहा जाता था।
वहाँ सेशन लेने वाले पादरी खुद को साइकेट्रिस्ट और साइकोलॉजिस्ट बताते थे। उन सबका दावा था कि वो पहले ‘Gay’ थे, लेकिन अब जीसस की राह पर चल कर ‘ठीक हो गए’ हैं। सभी को सुबह में ‘मर्दानगी बढ़ाने’ वाला व्यायाम कराया जाता था।
फिर प्राइवेट काउंसलिंग सेशंस होते थे, जहाँ उनसे उनकी यौन इच्छाओं और पसंदीदा सेक्स पॉजिशंस के बारे में सवाल पूछे जाते थे। साथ ही उन्हें लेस्बियन पोर्न देखने को कहा जाता था। जबकि लेस्बियनों को गे पोर्न देखने का निर्देश दिया जाता था। अलेक्स का कहना है कि इन सबके बावजूद वो और उसके साथ भर्ती अन्य लोग ‘ठीक नहीं’ हो पाए और सभी गहरी मानसिक प्रताड़ना और दबाव से गुजरे।
उनमें से कोई अपने माता-पिता की हत्या में जेल चला गया, कुछ घर से भाग निकले, कुछ ने आत्महत्या की तो कुछ ने इसी तरह जीवन बिताने की सोची। इसी तरह एक अन्य ट्रांस ईसाई महिला भी इस ‘थेरेपी’ से गुजरीं। उक्त महिला को तिरुवनंतपुरम के एक ऐसे ही सेंटर में भर्ती कराया गया था। उक्त संस्था की वेबसाइट दावा करती है कि उन्हें केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण मंत्रालय से फंड्स मिलते हैं।
महिला ने बताया कि सेंटर में भर्ती लोगों को प्रताड़ित किया जाता है। उन्हें चारों तरफ से 4 मीटर ऊँची दीवारों के बीच रखा जाता है। 4 पुरुष कर्मचारियों ने उक्त महिला के हाथ-पाँव बाँध कर जबरन बेहोश कर दिया। अर्ध-बेहोशी की अवस्था में उसे कई इंजेक्शंस दिए गए। विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह की ‘कन्वर्जन थेरेपी’ अवैध है। लेकिन, लोगों को इन सेंटरों में अजीबोगरीब पलों से गुजरना पड़ता है।

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