बंगाल में TMC के लिए मुस्लिमों का जबरदस्त ध्रुवीकरण
सबसे पहले बात पश्चिम बंगाल की। यहाँ अकेले तृणमूल कांग्रेस ने 42 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया था, जिसमें से मात्र एक की ही हार हुई है। साथ ही ISF को भी 1 सीट मिली, जिससे राज्य में मुस्लिम विधायकों की संख्या 42 है। हालाँकि, 2016 और 2011 में क्रमशः 59 और 56 मुस्लिम विधायकों को जीत मिली थी। इस बार ये संख्या कम इसीलिए भी है क्योंकि भाजपा को हराने के लिए हुए ध्रुवीकरण में CPI-कांग्रेस पहली पसंद नहीं बनी।
पहले इन दोनों दलों के भी बड़ी संख्या में मुस्लिम विधायक हुआ करते थे। ममता बनर्जी के पक्ष में मुस्लिमों के बीच ऐसी लहर थी कि 5 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM का खाता तक नहीं खुला और 40 सीटों पर कांग्रेस व CPI के समर्थन से लड़ने वाली सिद्दीकी की ISF को मात्र 1 पर सफलता मिली। नए मुस्लिम विधायकों में चंदननगर के पूर्व कमिश्नर हुमायूँ कबीर भी शामिल हैं।
असम में बीजेपी के आठों मुस्लिम उम्मीदवारों को देखना पड़ा हार का मुँह
असम की बात करें तो यहाँ भी पश्चिम बंगाल की तरह अधिकतर क्षेत्रों में मुस्लिमों और घुसपैठियों का दबदबा रहा है। जहाँ पिछली बार यहाँ 29 मुस्लिम विधायक जीते थे, नव-निर्वाचित विधानसभा में मुस्लिमों की संख्या 31 होगी। 2011 के चुनाव में यहाँ 28 मुस्लिम उम्मीदवारों को जीत मिली थी। नए मुस्लिम विधायकों में से 16 कॉन्ग्रेस के और 15 परफ्यूम कारोबारी मौलाना बदरुद्दीन अजमल की AIUDF के हैं।
असम बीजेपी ने भंग किया अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ
खास बात ये है कि भाजपा ने भी इस बार असम में मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया था। पार्टी ने 8 मुस्लिम उम्मीदवारों पर भरोसा जताया लेकिन उनमें से एक भी जीत कर विधानसभा नहीं पहुँच सका। वहाँ पार्टी को ऐसा झटका लगा है कि प्रदेश अध्यक्ष रंजीत कुमार दास ने अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ की जिला, प्रखंड और राज्य समितियों को ही भंग कर दिया है। यहाँ तक कि भाजपा के सहयोगियों के खाते में भी एक भी मुस्लिम विधायक नहीं आया।
BJP dissolves all committees of its minority cell due to bad performance. pic.twitter.com/WI6A9q1apV
— atanu bhuyan (@atanubhuyan) May 5, 2021
असम भाजपा ने वहां से अल्पसंख्यक प्रकोष्ठों को बंद कर सराहनीय कार्य किया है। अक्सर अपने लेखों में इसी बात का उल्लेख करता भी रहा हूँ। अल्पसंख्यक के नाम पर इन्हे सिर पर बैठाकर महिमामंडन करते रहते हैं, लेकिन चुनाव में वोट नहीं मिलता। अपने निम्न लेख में यह भी लिखा था कि मंडल अध्यक्ष के ही पोलिंग बूथ पर बीजेपी को एक भी वोट न मिलना मतलब मंडल अध्यक्ष तक ने अपनी पार्टी को वोट नहीं दिया। पता नहीं किस कारण बीजेपी मुस्लिम के नाम पर इन्हे सिरमौर बनाए फिरती है। पिछले हुए नगर निगम चुनावों में भाजपा उम्मीदवार सब से जीतता आ रहा है, लेकिन मुस्लिम बहुल क्षेत्र में पहुँच अपनी जमानत भी नहीं बचा पाता।
केरल में कांग्रेस के कट्टरवादी गठबंधन साथी के 15 मुस्लिम MLAs
केरल की बात करें तो यहाँ मुस्लिम और ईसाई समुदाय के बीच संघर्ष चलता रहता है और यहाँ भी कांग्रेस ने एक और इस्लामी पार्टी IUML (मुस्लिम लीग) के साथ गठबंधन किया था। 140 सदस्यीय विधानसभा में यहाँ 32 मुस्लिम उम्मीदवारों को जीत मिली है। इनमें से 15 तो अकेले IUML के ही हैं। बाकी के 3 कांग्रेस और 9 CPI(M) के हैं। दो अन्य दलों के खाते में एक-एक मुस्लिम विधायक आए। निर्दलीय विजेताओं में भी 3 मुस्लिम उम्मीदवार हैं।
तमिलनाडु और पुडुचेरी में मुस्लिम विधायकों की संख्या कम
अंत में दक्षिण के दोनों प्रदेशों की बात करते हैं, जहाँ राष्ट्रवाद की कोई लहर नहीं थी और इससे जुड़े मुद्दे चुनावी फिजाँ में नहीं थे। तमिलनाडु विधानसभा की 234 सीटों में से मात्र 5 ही मुस्लिमों के खाते में गए। इसी तरह पुडुचेरी में मात्र एक मुस्लिम विधायक चुने गए। असदुद्दीन ओवैसी ने कई सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। इस तरह इन 5 राज्यों में 111 नए मुस्लिम विधायक होंगे।
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