कोरोना वायरस के खिलाफ भारत की लड़ाई को चूना लगाती राजनीति ; जन विरोधी मोदी विरोधियों की एकजुटता

जनता कोरोना जैसी घातक बीमारी से झूझ रही है, विपरीत इसके मोदी विरोधी कोरोना जैसी बीमारी से लड़ने की बजाए मोदी से हिसाब चुकता करने के लिए ओछी राजनीती कर रहे हैं। जिसे देखो अपनी नाकामी को मोदी के सिर मढ़ जनता के जीवन से खिलवाड़ कर रहे हैं। और इस कटु सच्चाई को जानने के लिए जनता को ठंठे दिमाग से सोंचना होगा। 

दिल्ली समेत सब राज्यों को ऑक्सीजन दी जा रही थी, परन्तु  ऑक्सीजन की मांग बढ़ती जा रही थी, हॉस्पिटल भी ऑक्सीजन की कमी का रोना रो रहे थे, मरीज से मनमानी फ़ीस वसूल रहे हैं, लेकिन जैसे ही ऑक्सीजन ऑडिट होने की बात उठी, ऑक्सीजन की कमी पर मच रहा शोर, ठीक उसी तरह शांत हो गया जैसे उबलते दूध पर एक बूंद पानी डाल दिया है। यानि अब कोई मोदी विरोधी तो क्या कोई हॉस्पिटल भी ऑक्सीजन की कमी का रोना नहीं रो रहा। अब मोदी विरोधी गैंग का वैक्सीन पर रोना शुरू हो चूका है, और जिस दिन इसकी भी ऑडिट की बात शुरू होने पर ये दांव भी फ़िस होने पर फिर ये गैंग मोदी विरोध का कोई नया पैंतरा ढूंढेगा। 

अब निम्न वीडियो को ध्यान से सुनकर मोदी विरोधियों से ही इसका जवाब माँगा जाए, कि जनधन खातों में धन कहाँ से जमा हो रहा है? सेना को आधुनिक अस्त्रों से संपन्न के लिए धन कहाँ से आ रहा है? और फ्री में लग रही वैक्सीन के लिए धन कहाँ से आ रहा है? आदि अनेकों ऐसी योजनाएं हैं, जो पिछली सरकारों तक कागजों तक रहती थीं और आज साकार हो रही हैं। इन सबके लिए धन कहाँ से आ रहा है, सोंचा किसी ने। 

अब इस सन्दर्भ में इस वीडियो का भी संज्ञान लें:
दिल्ली में ऑक्सीजन ऑडिट के आदेश ने अफरा-तफरी मचाने के साथ ही केंद्र सरकार और नरेंद्र मोदी के विरुद्ध लड़ाई को नए राजनीतिक पैंतरे प्रदान कर दिए हैं। इसका असर यह हुआ कि वैक्सीन की कमी से लेकर वैक्सीन मैत्री के तहत भारत द्वारा अन्य देशों को दिए गए वैक्सीन को आगे रखकर नई-नई चालें चली जा रही हैं। ऑडिट के आदेश के साथ अचानक केजरीवाल सरकार को पता चला कि दिल्ली में ऑक्सीजन सरप्लस हो गई है। जिस रफ्तार से सरप्लस ऑक्सीजन की घोषणा हुई, उसे सुनकर लगा जैसे अचानक कोई आँधी आई और दिल्ली के टैंकरों में ऑक्सीजन भर गई। लोगों ने जैसे ही बाकी के शहरों में ऑक्सीजन की डिमांड की दिल्ली की डिमांड से तुलना करना शुरू की वैसे ही 976 टन की डिमांड अचानक उतर कर 500 टन पर आ रुकी।

इधर सरकार के मंत्री इस बात में अड़ गए कि देखें जी, आस-पास के राज्यों को आवश्यकता हो या न हो, हम तो उन्हें सरप्लस ऑक्सीजन देकर रहेंगे। आप ये समझ लें कि हम जिम्मेदार सरकार चलाते हैं जो केवल दिल्ली नहीं बल्कि और राज्यों की समस्याएँ समझने और उन्हें हल करने की क्षमता रखती है। हाल ही में हमने पोस्टर लगाकर उत्तर प्रदेश के घर-घर में ऑक्सीजन पहुँचाने का सफल वादा भी किया था। ये कोरोना की दूसरी लहर न आती तो लोग उस वादे पर विश्वास भी कर लेते और हम विज्ञापनों में यूपी के घरों को ऑक्सीजन पहुँचाने का दावा ठोंक चुके होते। दावों को ऑक्सीजन देते रहने का हमारा पुराना रिकॉर्ड खँगाल लें। विश्वास न हो तो किसान आंदोलन को ऑक्सीजन पहुँचाने का हमारा रिकॉर्ड चेक कर लें, हम ऑक्सीजन देने से नहीं हिचकते। हमने विज्ञापन से कोरोना पर विजय प्राप्त करने का मॉडल तैयार किया है और अपने राज्य में उसका सफल परीक्षण भी किया है। 

दो दिनों तक इस ऑफर का प्रचार किया गया पर जैसे ही लगने लगा कि इसे लोग गंभीरता से नहीं ले रहे हैं, वैक्सीन की कमी का रोना शुरू किया गया। यह सरकार विज्ञापन के अलावा जिस एक बात पर सबसे अधिक भरोसा करती है, वह है ‘रोवन’। रोवन इस सरकार का ऐसा कर्म है जिसे एक लम्बे समय तक प्रैक्टिस करके इसने अपना दर्शन बना लिया है। हमें काम नहीं करने दिया जा रहा है से लेकर हमें काम करने से रोका जा रहा है तक, यह सरकार हर बात के सहारे रो सकती है। जैसे ही मीडिया में कोविड की संभावित तीसरी लहर की बातें चलने लगीं और यह चर्चा शुरू हुई कि तीसरी लहर तो बारह से अठारह वर्ष के लोगों को प्रभावित करेगी, तब से केजरीवाल का रोवन शुरू हो गया; हमें तो जी दिल्ली के बच्चों की बड़ी चिंता है। इसी रोवन ने आम आदमी पार्टी के नेताओं और मंत्रियों को एक नया नैरेटिव थमा दिया गया जिसमें उस तीसरी लहर के प्रति चिंता प्रकट की गई जो अभी तक आई नहीं है। 

जो सामने है, उस पर बात करने से सरकार की अव्यवस्था उजागर हो रही है इसलिए ऐसी समस्या खोजो जो अभी तक पैदा नहीं हुई है और लोगों को गिफ्ट कर दो। जो पोस्टर दिल्ली में रातों-रात लॉकडाउन के समय लगाए गए, उन पोस्टरों का क्या औचित्य है जब वैक्सीन मैत्री के तहत दी जाने वाली वैक्सीन को लेकर केंद्र सरकार पहले ही वक्तव्य दे चुकी है? उसे उठाने का क्या औचित्य है जब उस मुद्दे पर पहले ही चर्चा हो चुकी है? प्रधानमंत्री से जवाब माँगने से पहले क्या केजरीवाल ने दिल्ली में ऑक्सीजन की अव्यवस्था पर कोई जवाब दिया? दिल्ली हाई कोर्ट में रोज-रोज इस सरकार की छीछालेदर पूरे देश ने देखा, लेकिन क्या उस,पर केजरीवाल या उनके मंत्रियों ने कुछ कहा? देश में बनी वैक्सीन को लेकर जो बातें कही गईं और देश की जनता के बीच जो भ्रम और गलत जानकारियाँ फैलाई गई, उस पर कोई चर्चा हुई या किसी ने जवाब देने की बात की? 

प्रोपगेंडा के इस महायज्ञ में राहुल गाँधी ने भी अपनी ओर से आहुति दी। उन्होंने भी यह प्रश्न उठाया कि उनके बच्चों की वैक्सीन मोदी जी ने विदेश क्यों भेज दी? साथ ही उन्होंने माँग की कि सरकार उन्हें भी गिरफ्तार कर ले। राज्यों के विधानसभा चुनावों में वे भले ही हार गए हों पर वे कोरोना पर विजय प्राप्त करके अभी हाल ही में लौटे हैं। पता नहीं गिरफ्तार होकर क्यों रिस्क लेना चाहते हैं? वैसे आज तक यह नहीं पता लग सका कि उन्होंने वैक्सीन ली या नहीं पर अपने बच्चों की वैक्सीन को लेकर हल्ला मचा रहे हैं।भारत में बनने वाली वैक्सीन को अपने प्रोपेगेंडा में रद्दी करार देने वाले ये लोग अब कह रहे हैं कि; जिसे हमने रद्दी बताया था वह वैक्सीन हमारे बच्चों की थी। छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री ने भले ही भारतीय वैक्सीन को रद्दी बताया था पर उनकी सरकार ने टीकाकरण अभियान में अनुसूचित जाति, जनजाति और समाज के कमजोर वर्ग को आरक्षण देने की माँग जरा भी देर नहीं की। अभी तक राहुल गाँधी ने नहीं बताया कि उनकी कॉन्ग्रेसी सरकार वही वैक्सीन देकर गरीबों की रक्षा कर रही है या उन्हें खतरे में डाल रही है?

दिल्ली यदि देश की राजधानी न होती तो बार-बार केंद्र सरकार आगे आकर केजरीवाल सरकार द्वारा खड़ी की गई समस्याओं का समाधान न कर पाती। कोरोना की पहली लहर से शुरू हुई केंद्र सरकार की मदद से केजरीवाल सरकार को बार-बार एक तरह का सुरक्षा कवच मिलता रहा है। पिछले वर्ष से ही DRDO या ITBP द्वारा बनाए गए कोविड हॉस्पिटल हों या टेस्टिंग सम्बंधित सुविधाएँ प्रदान करना हो, केंद्र सरकार ने केजरीवाल को बार-बार ऐसी सुविधाएँ दी हैं जो देश की और राज्य सरकारों के लिए उपलब्ध नहीं है। इसके बावजूद केजरीवाल के पहले से ही निम्नस्तरीय राजनीतिक हथकंडे आए दिन गिरकर और नीचे के स्तर पर पहुँच जाते हैं। यह सन्देश देते हुए कि चीनी वायरस के विरुद्ध भारत की लड़ाई को ओछी राजनीति चीनी की तरह ही गला सकती है।

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