बुर्के पर जारी विवाद के बीच सांसद सुब्रमण्यम स्वामी और बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन ने बड़ी बात कही है। स्वामी ने पूछा है कि जो लोग पढ़ाई से पहले हिजाब की बात कर रहे हैं, उनके पुरखे पाकिस्तान क्यों नहीं गए। वहीं नसरीन ने समान नागरिक संहिता की वकालत करते हुए कहा है कि हिजाब, नकाब और बुर्का का एक ही मकसद है, औरतों को सेक्स के सामान के तौर पर बदलना। उन्होंने अपमानजनक बताते हुए इस चलन को बंद करने वकालत की।
सुब्रमण्यम स्वामी ने एक ट्वीट में कहा है, “हिजाब विवाद देखने के बाद, जो मुस्लिम छात्र कक्षाओं का बहिष्कार कर रहे हैं और कह रहे हैं, पहले हिजाब फिर पढ़ाई। मैं ये सोच रहा हूँ कि उनके दादाओं ने पाकिस्तान जाने की बजाए भारत में रहना क्यों चुना। वहाँ उन्हें बिना किसी दिक्कत के ‘हिजाब पहले’ मिल जाता।”
After seeing the Hijab controversy which is making Muslims boycott classes saying "First hijab and then studies", I am wondering why their grandfathers chose to stay in India rather than go to Pakistan, where they could get effortlessly "hijab first".
— Subramanian Swamy (@Swamy39) February 16, 2022
Yes, the slogan I heard as 7 year old boy was: "Hass hass ke mila Pakistan. Abb lad lad ke lenge Hindustan". I was enraged.
— Subramanian Swamy (@Swamy39) February 16, 2022
वहीं वेबसाइट फर्स्टपोस्ट.कॉम को दिए इंटरव्यू में तस्लीमा नसरीन ने भी इस विवाद से जुड़े हर पहलुओं पर खुलकर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि एक सेकुलर देश को शिक्षण संस्थानों में ड्रेस कोड को अनिवार्य करने का अधिकार हैं। छात्रों से अपनी मजहबी पहचान घर पर रखने के लिए कहना गलत नहीं है। स्कूलों में मजहबी कट्टरता के लिए जगह नहीं हो सकती। वहाँ व्यक्तिगत स्वतंत्रता, लैंगिक समानता, वैज्ञानिक सिद्धांतों के बारे में पढ़ाया जाना चाहिए।
तस्लीमा नसरीन ने इस पूरे विवाद को इस्लाम का मसला मानने से भी इनकार किया। उन्होंने कहा कि 21वीं सदी में सातवीं सदी के लागू नहीं हो सकते हैं और होने भी नहीं चाहिए। साथ ही यह भी समझना होगा कि बुर्का और हिजाब कभी भी एक महिला की पसंद नहीं हो सकते। उन्हें इसके लिए मजबूर किया जाता है।
इस विवाद पर कर्नाटक हाई कोर्ट की फुल बेंच सुनवाई कर रही है। अंतरिम आदेश आने तक उसने शिक्षण संस्थानों में मजहबी पोशाक के इस्तेमाल पर रोक लगा रखी है। इसके खिलाफ 765 वकीलों, कानून के छात्रों, शिक्षाविदों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने एक खुला पत्र लिखा है। इसमें हिजाब पहनने से रोके जाने को मुस्लिमों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन बताया है।
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