90 के दशक में रजनी कांत और हेमा मालिनी अभिनीत फिल्म 'अंधा कानून' आयी थी, फिल्म को बैन होने से बचाने के लिए अमिताभ बच्चन को विशेष कलाकार के रूप में इसलिए लिया था, क्योकि अमिताभ की राजीव गाँधी से दोस्ती ही नहीं बल्कि गाँधी परिवार से पारिवारिक सम्बन्ध थे। इसी कारण इमरजेंसी में मारधाड़ की फिल्मे बैन होने के कारण मारधाड़ वाली 'शोले' फिल्म में लिया गया, इसी कारण फिल्म सफल हुई थी।
खैर, नूपुर शर्मा के विषय में जुलाई 1 को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान नूपुर की तरह मीलॉर्ड फिसल गए, जिससे इस्लामिक कट्टरपंथियों को ऑक्सीजन मिल गयी। ज्ञानवापी मुद्दा दब गया, नूपुर ने किस इस्लामिक किताब के हवाले से बोला, दब गया, क्यों?
ये वही अदालत है जो याकूब मेनन के लिए आधी रात में खुल जाती है। क्या किसी अन्य अपराधी को मिली फांसी के लिए आधी रात नहीं, बल्कि 8 बजे के बजे के बाद खुल सकती है। दिल्ली की जहांगीरपुरी में बुलडोजर एक घंटे में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा रोक दिया जाता है। जब निकिता तोमर पर गोली चली... वीडियो पूरे देश की मीडिया ने दिखाया..लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान नहीं लिया।सीनियर एडवोकेट मंजीत सिंह के माध्यम से नूपुर शर्मा ये अपील करने गई थीं कि पूरे भारत की कई अदालतों में उनके खिलाफ केस दायर किए गए हैं अगर उन केस की प्रकृति एक ही है तो उसे दिल्ली कोर्ट में ही ट्रांसफर कर दिया जाए क्योंकि मेरी जान को खतरा है ।
-सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ ऑर्डर में यही लिखा... प्ली डिस्मिस यानी याचिका खारिज । लेकिन जो ऑब्जरवेशन माननीय सुप्रीम कोर्ट ने दिए हैं वो संविधान में राइट टू इक्वेल प्रोटेक्शन और राइट टू लाइफ के मापदंडों पर सही नहीं ठहरते हैं ।
- नूपुर शर्मा के वकील की तरफ से अदालत को ये कहा गया कि अर्णब गोस्वामी के खिलाफ भी अलग अलग अदालत में मामले थे लेकिन उसको एक जगह किया गया था । इस पर जस्टिस ने जवाब दिया कि वो एक पत्रकार हैं उनकी बात अलग है । हमारा सवाल ये है कि क्या कोई पत्रकार स्पेशल सिटिजन होता है ? क्या किसी पत्रकार को संविधान ने आम इंसान से ज्यादा अधिकार दिए हैं ?
-इसके बाद नूपुर शर्मा के वकील की तरफ से ये तर्क दिया गया कि सत्येंद्र सिंह भसीन एक पत्रकार नहीं बिजनेसमैन थे उनके खिलाफ दर्ज तमाम केसों को भी आपने एक जगह क्लब करवाया था ? इस पर जस्टिस ने कहा कि उनकी अंतरात्मा नूपुर के केस को एक जगह क्लब करने के लिए राजी नहीं हो रही है । हमारा सवाल ये है कि क्या देश जस्टिस साहब की अंतरात्मा से चलेगा ? या फिर संविधान से चलेगा ? क्या माई लॉर्ड जो सोचेंगे वही देश का कानून मान लिया जाएगा ?
- जस्टिस ने एक और बात कही कि उदयपुर में जो हत्या हुई उसके लिए भी नूपुर शर्मा ही जिम्मेदार हैं ! अब तक क्रिमिनल लॉ के मुताबिक किसी भी क्राइम के लिए थर्ड पर्सन जिम्मेदार नहीं होता है । जिसने अपराध किया उसी को सजा मिलती है । जैसे अगर किसी कार से एक्सिडेंट हुआ तो सजा ड्राइवर को मिलेगा साथ में बैठी सवारी को नहीं । इसे प्रिंसिल ऑफ वायकेरियस रिस्पॉन्सिबिलिटी कहा जाता है । लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने क्या अब इस पुराने क्रिमिनल लॉ को खारिज कर दिया है ? ये उनको अब स्पष्ट करना चाहिए ।
-जज साहब ने किसी भी जिहादी पर कोई टिप्पणी नहीं की । रहमानी के भड़काऊ बयानों के खिलाफ उनकी आवाज नहीं निकली । सड़कों पर सिर तन से जुदा के नारे लगाए गए । कलेक्टर के सामने पुलिस के सामने सिर काटने की धमकियां दी गईं । उस पर भी जज साहब कुछ नहीं बोले । बल्कि उन्होंने न्यूज चैनल के एंकर के खिलाफ बातें कहीं ।
-जज साहब ने कहा कि जब काशी का मामला सबज्यूडिश है तो उस पर टीवी पर डिबेट क्यों करवाई जा रही थी? तो अब सुप्रीम कोर्ट को ये भी साफ कर देना चाहिए कि क्या जो मामला सबज्यूडिस होगा उस पर अब देश में किसी भी बहस पर रोक लगा दी जाएगी ?
- ये सब बातें न्यूज चैनलों और अखबारों के माध्यम से जानकारी में आई हैं और इनको सुप्रीम कोर्ट का ऑब्जर्वेशन बताया गया है । और ऊपर वर्णित विचार जयपुर डॉयलॉग्स यूट्यूब चैनल के संचालक संजय दीक्षित जी के हैं।
- स्वयं अलकायदा ने नूपुर शर्मा को धमकियां दी थीं लेकिन उस पर भी सुप्रीम कोर्ट के द्वारा कोई नोटिस नहीं लिया गया और नूपुर शर्मा को जिहादियों की भीड़ के सामने फेंक दिया गया है।
- एक महिला जिसकी हत्या के लिए दुनिया भर से हत्या के फरमान निकाले जा रहे हैं और जिसका समर्थन के आरोप में एक शख्स की बेरहमी से हत्या कर दी गई । क्या उस महिला के प्रति जज साहब के हृदय में कोई भी सहानुभूति नहीं है ?
- ये वही अदालत है जो याकूब मेनन के लिए आधी रात में खुल जाती है। दिल्ली की जहांगीरपुरी में बुलडोजर एक घंटे में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा रोक दिया जाता है। जब निकिता तोमर पर गोली चली... वीडियो पूरे देश की मीडिया ने दिखाया..लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान नहीं लिया ।
-क्या पूरा देश ही कश्मीर बनने की तरफ अग्रसर नहीं हो रहा है ?
सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीशों ने नुपूर शर्मा को निश्चित तौर पर ईशनिंदा करने वाला घोषित कर दिया है। ये वही न्यायालय है जिन्होंने कभी गर्व से कहा था कि असहमति ही लोकतंत्र का सुरक्षा कवच है। आज उसी कोर्ट के जजों ने नुपूर शर्मा और उनके कथन को कन्हैया लाल की हत्या का जिम्मेदार बता दिया। साथ ही कुछ हद तक वैसे इस्लामवादियों की तरह अपनी टिप्पणी दी जो खुद के कृत्यों के लिए महिला को ही जिम्मेदार बताते हैं। कोर्ट के जस्टिस ने भी देश में हो रही हिंसा के लिए नुपूर शर्मा की ‘फिसली जुबान’ को दोषी बताया है।
आदरणीय न्यायधीशों ने सुनवाई में कहा कि नुपूर को राष्ट्र से माफी माँगनी चाहिए। इतना ही नहीं, नुपूर की ओर से जब कोर्ट में कहा गया कि वो अपने ऊपर हुई शिकायत मामले की जाँच में सहयोग कर रही हैं तब सर्वोच्च न्यायलय के न्यायधीशों द्वारा उनके ऊपर ‘रेड कार्पेट’ वाला तंज भी कसा गया।
मीलॉर्ड ने नुपूर को लेकर ये तक कहा, “कई बार सत्ता (ताकत) का सुरूर दिमाग में चढ़ जाता है। लोग सोचते हैं कि उनके पास बैक अप है और वो कुछ भी बोल सकते हैं।” मीलॉर्ड द्वारा लगातार की गई ऐसी हर टिप्पणी ने आज उस मिथ को तोड़ा, जो ये बताता था कि न्यायव्यवस्था ऐसी महिला की मदद के लिए है जिसे मौत की धमकियाँ और रेप की धमकियाँ मिल रही हों, वो भी सिर्फ टेलीविजन डिबेट शो में अपना मत रखने के कारण।
रिपोर्ट बताती हैं कि नुपूर शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा इसलिए खटखटाया ताकि उनके विरुद्ध हुई सारी एफआईआर दिल्ली में ट्रांस्फर हों और यही पर जाँच आगे बढ़े। अपनी याचिका में उन्होंने साफ भी किया कि ये सब इसलिए है क्योंकि उन्हें लगातार मौत की धमकियाँ आ रही हैं। हालाँकि कोर्ट ने इस मुद्दे पर सुनने की बजाय देश में हो रही हिंसा और हत्या की घटनाओं का ठीकरा उन्हीं पर फोड़ दिया और उन कट्टरपंथियों का नाम तक नहीं आया जिन्होंने वाकई नुपूर शर्मा के समर्थन में पोस्ट करने पर कन्हैया लाल का गला रेता। कोर्ट ने नुपूर को आरोपित बताते हुए उनकी याचिका में की गई माँग भी खारिज कर दी।
सुप्रीम कोर्ट निश्चित ही अपनी टिप्पणियों से कह रहा था कि ये नुपूर शर्मा का कसूर है जो इस्लामवादी गुस्से में आ गए, उन्होंने सड़कों पर दंगा कर दिया, हत्या की धमकियाँ दे दीं, बलात्कार करने को कह दिया और एक हिंदू का सिर काट दिया…। शायद न्यायधीशों को कहना था कि ये सब नुपूर की ही गलती थी। उन्हें महिला होने के नाते अपनी जगह का एहसास होना चाहिए था। उन्हें पता होना चाहिए था कि महिला होने के नाते उन्हें अपना मुँह बंद रखना था… पर अब वो जब अपना मत रख चुकी हैं तो जरूरी है कि उन्हें लटका दिया जाए, एक डायन की तरह, जिसके ऊपर भीड़ पत्थर फेंकते हुए तेज-तेज चिल्लाती है।
कमाल की बात है कि इस्लामी कट्टरपंथियों ने भी अपनी हिंसा के लिए यही सब तो कहा। उन्होंने कहा कि गुस्ताख-ए-नबी की एक सजा सिर तन से जुदा। उन्होंने ये भी कहा कि अगर कोर्ट मौत का दंड नहीं दे पाई तो वह देंगे। उन्होंने बताया कि वो शांतिप्रिय समुदाय के लोग हैं। वह आराम से रहना चाहते हैं। बस अगर किसी ने उनकी इच्छा के विरुद्ध काम किया तो वो इस्लाम को बचाने के लिए खून खच्चर पर भी उतर जाएँगे। जैसा कि इस्लामवादियों के लिए ये सब करना आसान है क्योंकि उनके लिए देश के कानून का कोई मतलब नहीं है। वे केवल अपने मजहबी कानून के प्रति सम्मान रखते हैं जो उन्हें इजाजत देता है कि काफिरों का गला काटें।
सुप्रीम कोर्ट का काम है देश के संविधान से चलना जबकि उनकी टिप्पणी इस्लामवादियों को ये हिम्मत देगी कि वो अपनी हिंसा को वाजिब दिखा सकें। उनकी टिप्णपी यही दिखाती है कि अगर कोई इस्लाम के बारे में कुछ भी कहे तो इस तरह कट्टरपंथियों का सड़कों पर आना सही है और भावना आहत के नाम पर किसी का गला काटना भी।
जब से सुप्रीम कोर्ट के जजों ने नुपूर शर्मा की फिसली जुबान को कन्हैया लाल की हत्या का दोषी बताया है, उसके बाद से यही लग रहा है कि इन न्यायधीशों को अपने भीतर झाँककर देखने की जरूरत है। हैरानी होगी अगर ये जज उन इस्लामी हिंसा के लिए न्यायधीशों को जिम्मेदार ठहराएँ जिनके फैसले सुन कट्टरपंथी सड़कों पर आ गए।
मार्च 2022 में कर्नाटक हाईकोर्ट ने हिजाब पर फैसला दिया था। इसके बाद इस्लामी कट्टरपंथियों ने कर्नाटक कोर्ट के जजों को धमकी देने शुरू कर दी। जाँच में जो कट्टरपंथी पकड़े गए। उनमें एक कोवई रहमतुल्ला और दूसरा जमाल मोहम्मद उस्मानी था।
बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट में कहा गया कि कोवई रहमतुल्लाह ने कर्नाटक जजों के विरुद्ध हिंसा को भड़काया था। उसने झारखंड के उस जज की मौत का उदाहरण दिया था जो मॉर्निंग वॉक के दौरान मारे गए। इसके बाद उसने ये भी कहा था कि वो जानता है कि कर्नाटक के चीफ जस्टिस कहाँ सुबह की सैर करने जाते हैं।
बस इसी आधार पर आरोपित गिरफ्तार हुए थे।
अब यही तर्क यदि नुपूर शर्मा मामले में लगाया जाए तो क्या सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीशों को टिप्पणी से पहले खुद से पूछना नहीं चाहिए कि क्या वह अपने हाईकोर्ट के जजों से भी कहेंगे कि उनकी फिसली जुबान के कारण इस्लामी भड़के और जज की हत्या का षड्यंत्र रचा।
नैतिकता के आधार पर लिया गया फैसला जो एक लिए सही है वो सबके लिए सही ही होगा, लेकिन यहाँ पूछना होगा कि क्या एक आम नागरिक के लिए नीति अलग हैं और मीलॉर्ड के लिए अलग?
क्या सुप्रीम कोर्ट कर्नाटक हाईकोर्ट के जज से माफी माँगने को कहेगा क्योंकि उनके फैसले के बाद इस्लामियों ने हत्या को करने मन बनाया। क्या सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट के उन जजों से माफी माँगने को कहेगा जिनके फैसले के बाद इस्लामी सड़कों पर आ गए। अगर इन सबके लिए नुपूर शर्मा के लिए जजों को जिम्मेदार बताया जाना चाहिए तो फिर उन्हें वाई कैटेगरी की सुरक्षा क्यों मिली। और अगर उन्हें सुरक्षा मिल गई तो नुपूर शर्मा को क्यों उनके बयान के बाद ये सब कहा जा रहा है।
क्या अगर इस्लामी कल को भीड़ में जुटकर राम मंदिर पर हमला करें तो क्या सुप्रीम कोर्ट इसके लिए खुद को जिम्मेदार ठहराएगा, क्योंकि आदेश तो उन्हीं का था। फिर भी इस्लामी लगातार धमकाते हैं कि वो अयोध्या मंदिर को गिराकर बाबरी खड़ा करेंगे। क्या अगर कन्हैया लाल की हत्या की जिम्मेदार नुपूर हैं तो फिर सुप्रीम कोर्ट तैयार है क्या ऐसे समय में देश से माफी माँगने के लिए? क्या तब कहा जाएगा कि ताकत का नशा दिमाग में चढ़ता है तो लोगों को लगता है कि उनके पास बैकअप हैं और कुछ भी बोला जा सकता है।
अवलोकन करें:-
न्याय पालिका को अपने प्रचुर ज्ञान में से ये निश्चित करना होगा कि वो इस्लामी मौलवी बनना चाहते हैं या फिर प्राकृतिक रूप से न्याय करना चाहते। आज नुपूर शर्मा की याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट की कही टिप्पणियों से सम्मानपूर्वक यही निष्कर्ष निकलता है कि इस्लामी भेड़ियों के सामने नुपूर शर्मा को कटु बातें बोलना न्यायालय की शोभा के खिलाफ था।
नोट: यह लेख ऑपइंडिया की एडिटर-इन-चीफ नुपूर शर्मा के लेख पर आधारित है।
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