हिन्दुत्व विरोधी किस तरह सच्चाई को छुपाकर झूठ बोलकर जनता को गुमराह कर रहे हैं। हिन्दुत्व विरोधियों को नहीं मालूम की सच्चाई को अधिक समय तक छुपाकर नहीं रखा जा सकता, और जिस दिन सच्चाई सामने आएगी, कहीं छुपने की जगह नहीं मिलेगी।
राहुल गांधी (डिसक्वॉलिफाइड एमपी) ने एक बयान में कहा कि वो सावरकर नहीं हैं, गांधी हैं। इसलिए माफी नहीं मांगेंगे। राहुल गांधी ने सच ही कहा है, वो सावरकर नहीं हैं। इससे भी अधिक सच्चाई ये है कि राहुल गांधी कभी सावरकर जैसे हो भी नहीं सकते। हर किसी कांग्रेसी के लिए विनायक दामोदर सावरकर जैसा होना संभव भी नहीं है। वीर सावरकर के लिए कितने भी अपमानजन अलंकारों का सहारा लेने से पहले राहुल गांधी को यह भी जानना जरूरी है कि विनायक सावरकर ने तो कई सालों तक काले पानी की सजा काटी थी, लेकिन उनके खुद के ‘परदादा’ जवाहर लाल नेहरू को जब 2 साल की सजा सुनाई गई थी, तब दो सप्ताह में ही उनकी हालत खस्ता हो गई थी। इस पर मोती लाल नेहरू और जवाहर नेहरू ने माफीनामा दिया था। उन्होंने कभी भी नाभा रियासत में प्रवेश न करने का माफीनामा देकर दो हफ्ते में ही जवाहर लाल नेहरू की सजा माफ करवा ली थी।
नेहरू ने 2 साल की सजा को माफी मांगकर दो सप्ताह में बदलवाया
साल 1923 में नाभा रियासत में गैर कानूनी ढंग से प्रवेश करने पर औपनिवेशिक शासन ने जवाहरलाल नेहरू को 2 साल की सजा सुनाई थी। तब नेहरू ने कभी भी नाभा रियासत में प्रवेश न करने का माफीनामा देकर दो हफ्ते में ही अपनी सजा माफ करवा ली और रिहा भी हो गए। नेहरू के साथ नाभा जेल में रहे स्वतंत्रता सेनानी के.सन्तनाम के अनुसार कुछ दिन में ही जेल में नेहरू की हालत पतली हो गई थी। तब कथित रूप से लोकतंत्र के मसीहा बनने वाले नेहरू के लिए उनके पिता मोती लाल ने मर्सी बांड (माफीनामा) ब्रिटिश हुकूमत को दिया था।
1923:: Motilal Nehru wrote a MERCY PETITION to British Govt for his petrified son Jawaharlal to get out of Nabha jail in just two weeks of ‘harsh conditions’, since Nehru Ji got scared because a mouse ran over his hand.
— Rishi Bagree (@rishibagree) March 27, 2023
While Savarkar spent 14 years in cellular jail (1910-1924) pic.twitter.com/Pji3IoK5Qo
नेहरू के लिए पिता मोतालाल ने भी वायसराय से की थी माफी की सिफारिश
इतना ही नहीं जवाहर लाल के पिता मोती लाल नेहरू उन्हें रिहा कराने के लिए तत्कालीन वायसराय के पास सिफारिश लेकर भी पहुंच गए थे। पर नेहरू का ये माफीनामा वामपंथी गैंग की नजर में बॉन्ड था और सावरकर का माफीनामा कायरता थी। हिन्दुस्तान के इतिहास लेखन की ये बहुत बड़ी विंडबना है कि जिन क्रांतिकारियों ने सेल्युलर और मांडला जेल में यातनाएं झेलीं, उनपर गुमनामी की चादर डाल दी गई। अब सवाल ये है कि सावरकर जैसे महान क्रांतिकारी को कायर और अंग्रेजों के आगे घुटने टेकने वाला साबित करने की साजिश क्यों रची गई? दरअसल काले पानी की सजा काट रहे सावरकर को इस बात का अंदाजा हो गया था कि सेल्युलर जेल की चारदीवारी में 50 साल की लंबी जिंदगी काटने से पहले की उनकी मौत हो जाएगी। ऐसे में देश को आजाद कराने का उनका सपना जेल में ही दम तोड़ देगा। लिहाजा एक रणनीति के तहत उन्होंने अंग्रेजों से रिहाई के लिए माफीनामा लिखा।
हिन्दुत्व की विचारधारा वाले वीर सावरकर को अलोकप्रिय बनाने की है साजिश
यही वजह है कि आज ये देखना आवश्यक हो जाता है कि सावरकर के जीवन में ऐसा क्या है जो कॉन्ग्रेस और राहुल गांधी को इतना परेशान कर रहा है। दरअसल, कॉन्ग्रेस को लगता है कि देश को उसने आज़ाद कराया है। इसलिए देश पर राज करने का हक सिर्फ कॉन्ग्रेस का है। इसलिए आजाद भारत के 70 सालों में से करीब 55-60 साल राज करने वाली कॉन्ग्रेस आज जब पहली बार सत्ता से 10 साल के लिए बाहर हुई है, तो वो देख रही है कि चुनौती मिल कहाँ से रही है। और इस चुनौती के मूल में उसे दिखाई देती है हिन्दुत्व की विचारधारा। कॉन्ग्रेस को लगता है कि अगर हिन्दुत्व के इस विचार का सामना करना है तो इसे लिखने वाले सावरकर को ही अलोकप्रिय बना दिया जाए। देश की आजादी की लड़ाई में सभी बड़े नेताओं के आपस में मतभेद थे। गाँधी-अंबेडकर, सुभाष-गांधी, सावरकर-गाँधी, जिन्ना-गाँधी, भगत सिंह-गाँधी, लेकिन आज कॉन्ग्रेस के निशाने पर सावरकर को छोड़कर इनमें से कोई भी महापुरुष निशाने पर नहीं है। क्योंकि सत्ता पर जो चुनौती दे रहे हैं, वो सावरकर के विचार से आने वाले माने जाते हैं। इसलिए मंच से सावरकर को गाली और जेएनयू में उनकी प्रतिमा पर कालिख पोती जाती है।
सावरकर के नाम पर देश के विभाजन का भी झूठ परोसा जाता है
एक और झूठ जो सावरकर के नाम से परोसा जाता है वो ये है कि सब से पहले देश के विभाजन की बात सावरकर ने 1937 में की थी। जबकि, सच ये है कि 1933 के तीसरे गोलमेज़ सम्मेलन में ही चौधरी रहमत अली ‘Pakistan Declaration’ के पर्चे बाँट रहे थे। 1937 से पहले दर्जन बार कई नेता इस तरह की बातें कर चुके थे लेकिन बड़ी होशियारी से देश के विभाजन की त्रासदी के जवाबदेही को कॉन्ग्रेस और मुस्लिम लीग के खाते से निकाल कर सावरकर के हिस्से में डालने की कोशिश की जाती रही हैं। राहुल गांधी और कॉन्ग्रेस अपनी राजनीतिक लड़ाई अपने दम पर लड़े लेकिन अगर उसे लगता इतिहास के किसी महापुरुष का अपमान करके वो अपना कद ऊँचा कर रही है तो ये उसकी भयंकर भूल है।
वीर सावरकर को अपमानित करने से पहले राहुल गांधी को यह भी जानना चाहिए कि उनकी दादी और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आखिर सावरकर के सम्मान में डाक टिकट जारी क्यों किया था? जब सावरकर को उनकी दादी वीर और सम्मानित मानती थीं, तो राहुल अपमानजनक भाषा में ये क्यों कहते हैं कि वो सावरकर नहीं गांधी हैं !! क्या उनको लगता है कि सावरकर को सम्मानित करने के लिए इंदिरा गांधी पर कोई दबाव था? यदि ऐसा है तो राहुल गांधी को ये भी स्वीकार करना चाहिए। राहुल गांधी को ये भी जानना चाहिए कि यदि सावरकर कथित रूप से देशद्रोही थे, तो स्कूली पाठ्यक्रम में यह क्यों पढ़ाया कि वीर सावरकर देश की आजादी के आंदोलन के लिए लड़ रहे थे? वे महान स्वतंत्रता सेनानी थे। और हां, याद दिला दें कि स्कूली पाठ्यक्रम की ये किताबें कांग्रेसी शासन में ही प्रकाशित हुई थीं। तब भाजपा का राज नहीं था।
सावरकर ने ब्रिटिश सरकार की आज्ञा का उल्लंघन कर आजादी की लड़ाई लड़ीयदि राहुल गांधी को यह बात पुरानी लगती है तो अभी चार साल पहले की ही इससे जुड़ी बात याद दिला देते हैं। अक्टूबर 2018 की बात है कि जब पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और भाजपा आईटी सेल के मुखिया अमित मालवीय वीर सावरकर और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से जुड़े एक मसले पर एकराय थी। अमित मालवीय ने एक ट्वीट किया था, जिसमें एक इमेज पोस्ट की गई थी। जिसमें इंदिरा गांधी और वीर सावरकर की तस्वीरें दिखाई दे रही हैं। इस इमेज में इंदिरा गांधी के वीर सावरकर के बारे में दिया गया बयान दिखाई दे रहा है। जिसमें इंदिरा गांधी ने कहा था कि सावरकर द्वारा ब्रिटिश सरकार की आज्ञा का उल्लंघन करने की हिम्मत करना, हमारी आजादी की लड़ाई में अपना अलग ही स्थान रखता है।
इंदिरा ने ‘महान क्रांतिकारी’ सावरकर पर डॉक्यूमेंट्री बनाने को कहा थाइस तस्वीर में एक और बात बताई गई कि इंदिरा गांधी ने महान स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर के योगदान को पहचाना था। उन्होंने साल 1970 में वीर सावरकर के सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया था। इसके साथ पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सावरकर ट्रस्ट में अपने निजी खाते से 11,000 रुपए दान किए थे। इतना ही नहीं इंदिरा गांधी ने साल 1983 में फिल्म डिवीजन को आदेश दिया था कि वह ‘महान क्रांतिकारी’ के जीवन पर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाएं।’ इतना ही नहीं पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने सावरकर को मासिक पेंशन देने का आदेश जारी किया था।
Jawaharlal Nehru can't even handle the Nabha prison and came out in just 12 days by writing multiple mercy petitions through his father.
— Rishi Bagree (@rishibagree) March 27, 2023
The second image show in his own words how weak was he. pic.twitter.com/NtBa0SnccV
लेफ्ट लिबरल गैंग नेहरू के माफीनामे पर चुप्पी साध लेता है
बड़ा सवाल ये भी है कि यदि सावरकर अंग्रेजों के सहयोगी थे तो फिर दस साल से ज्यादा अंडमान की नरक समान जेल में क्यों रहे? ऐसी जेल में कथित क्रांतिकारी दस दिन भी नहीं गुजार पाएंगे। इसी के साथ इस ओर भी ध्यान दिलाना जरूरी है, जो लेफ्ट लिबरल गैंग सावरकर के माफीनामे पर शोर मचाता है वह नेहरू के माफीनामे पर एक दम चुप्पी साध लेता है। वीर सावरकर पर सवाल उठाने से पहले राहुल गांधी को इसका भी जवाब देना चाहिए कि अंग्रेजों ने अंडमान की सेलुलर जेल में जब सावरकर को बंद किया तो महात्मा गांधी, विट्ठलभाई पटेल और बाल गंगाधर तिलक जैसे नेताओं ने रिहाई की मांग क्यों उठाई?
● #Thread | 𝗧𝗵𝗲 𝗠𝗲𝗿𝗰𝗰𝘆 𝗕𝗼𝗻𝗱 𝗼𝗳 𝗟𝗼𝗸𝘁𝗮𝗻𝘁𝗿𝗮 𝗞𝗲 𝗠𝗮𝘀𝗶𝗵𝗮 𝗝𝗮𝘄𝗮𝗵𝗮𝗿𝗹𝗮𝗹 𝗡𝗲𝗵𝗿𝘂 𝗧𝗼 𝗕𝗿𝗶𝘁𝗶𝘀𝗵 !!
— 𝗔𝗵𝗮𝗺 𝗕𝗿𝗮𝗵𝗺𝗮𝘀𝗺𝗶 (@TheRudra1008) March 29, 2023
Do You Know Nehru was Jailed in 1923 & He Couldn't even last for a 15 days, He had Developed Typhoid with high fever 😉
Continued [𝟭/𝗡] pic.twitter.com/7voSFxlJYh
Today Congress People Calls Veer Savarkar as a Traitor and “British stooge” But What Nehru Did ?
— 𝗔𝗵𝗮𝗺 𝗕𝗿𝗮𝗵𝗺𝗮𝘀𝗺𝗶 (@TheRudra1008) March 29, 2023
Infact He was Not able to Sustain 2 Weeks In Nabha Jail & He Developed Typhoid with high fever & Signed Merccy Bond & Used Political Influence to Escape from Jail 😅😅 pic.twitter.com/Ci43c1voCf
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