सुभाष चन्द्र
अयोध्या में बन रहे भव्य राममंदिर के लिए काशी प्रांत के चार हजार से ज्यादा मुसलमानों ने दान स्वरूप लाखों रुपये की धनराशि प्रदान की है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के काशी प्रांत के 27 जिलों में निधि समर्पण अभियान में मुसलमानों ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया था। यही कारण है कि काशी प्रांत से ही मुस्लिम समाज का सहयोग दो करोड़ रुपये से ज्यादा तक पहुंच गया।
जौनपुर के मोहम्मद हसन पीजी कालेज के प्राचार्य डॉ. अब्दुल कादिर ने राम मंदिर के निर्माण के लिए एक लाख 11 हजार रुपये की धनराशि दी है। डाॅ. कादिर का कहना है कि यह हमारे देश के लिए गौरव की बात है कि अयोध्या में श्रीराम का मंदिर का बन रहा है। मंदिर के निर्माण के लिए सहयोग राशि के जरिये यह संदेश देने की कोशिश है कि इस देश में हमें एक दूसरे की पूजा, परंपरा और तौर तरीकों का सम्मान करना चाहिए। जब हम समाज में एक दूसरे के सुख दुख में साथी हैं तो फिर मंदिर-मस्जिद में भेद नहीं कर सकते।
वाराणसी की इकरा अनवर ने राम मंदिर निर्माण की शुरुआत होने से पहले महामंडलेश्वर जितेंद्रानंद सरस्वती से संपर्क किया और उन्हें मंदिर निर्माण कोष में 11 हजार रुपये की सहयोग राशि समर्पित की। इकरा अनवर ने अपने दाहिने हाथ पर जय श्रीराम भी गुदवाया है। महामंडलेश्वर जितेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि इकरा अनवर ने अपने समाज के कई लोगों को सहयोग के लिए प्रेरित भी किया। इसके पीछे उनकी मंशा सौहार्द की डोर को मजबूत करना ही है।
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एक सर्वेक्षण सामने आया है जिसके अनुसार 74% मुस्लिम श्रीराम मंदिर के बनने से खुश बताये गए हैं लेकिन फिर भी कुछ मुस्लिम नेता और विपक्ष मुस्लिमों को मंदिर पर भड़काने की कोशिश कर रहें हैं। जगह जगह अक्षत निमंत्रण यात्राओं पर पथराव किया जा रहा है । ओवैसी तो खुलकर मुस्लिमों को भड़का रहा है जैसे बाबरी न मिलने से सब कुछ लुट गया हो।
जमात-ए-इस्लामी हिन्द के उपाध्यक्ष सलीम इंजीनियर ने कहा है कि “मंदिर से राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश नहीं होनी चाहिए और इसका राजनीतिकरण नहीं करना चाहिए। मंदिर के उद्घाटन को स्वतंत्रता दिवस जैसा बताना खतरनाक है और इसे “us versus them” नैरेटिव बनाया जा रहा है जिससे देश में धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण किया जा सके। उद्घाटन BJP का election programme और प्रधानमंत्री की political rally बना दिया गया है। सलीम इंजीनियर की नज़र में देश धीरे धीरे Constitutional Democracy ख़त्म करके illiberal and majoritarian democracry की तरफ जा रहा है और इससे हम global leader नहीं बन सकते"।
सलीम इंजीनियर को भी विपक्ष की तरह लग रहा है कि मंदिर से भाजपा फायदा उठाएगी और इसलिए वो मंदिर के राजनीतिकरण न किए जाने की वकालत कर रहे हैं। लेकिन सच्चाई तो यह है कि मंदिर का विरोध पिछले 32 साल में “मुस्लिम राजनीति” को ही दिमाग में रख कर किया गया और आज भी विपक्ष मुस्लिम राजनीति की आड़ में ही इसका विरोध कर रहा है।
आज अनेक इस्लामिक संगठन अड़े हुए हैं कि कांग्रेस और विपक्षी दलों को मंदिर के उद्घाटन में नहीं जाना चाहिए और गए तो वे उन्हें समर्थन नहीं देंगे। सलीम इंजीनियर को याद रखना चाहिए कि “us versus them” कोई नैरेटिव नहीं है क्योंकि इसका दुष्परिणाम पाकिस्तान के निर्माण में हम देख चुके हैं और वह पाकिस्तान की मांग करने वाले आज फिर पैदा हो रहे हैं।
सलीम इंजीनियर, ओवैसी, बदरुद्दीन अजमल और मौलाना तौफीक रजा जैसे मुस्लिम नेताओं की जिम्मेदारी बनती है कि वे अपनी कौम को भारत के प्रति पूर्णरूप से निष्ठावान और समर्पित साबित करने में मदद करें लेकिन दुर्भाग्य से ये लोग अपनी कौम को भड़काने में ज्यादा फायदा देखते हैं।
सर्वेक्षण में 74% मुस्लिमों को मंदिर से खुश होना बताया जाना बड़ी बात है लेकिन सच्चाई तो यह है कि हर देश में Minority की Minority फसाद करती है क्योंकि Minority की Majority खामोश रहती है। इस बात को ठीक समझने की जरूरत है कि अल्पसंख्यक समुदाय के कुछ लोग (minority) ही फसाद करती है क्योंकि समुदाय के Majority लोग उन्हें कुछ कहने की हिम्मत ही नहीं कर पाते।
अल्पसंख्यकों की majority चुप रहती है और फिर अपनी ही minority की आवाज़ में आवाज़ मिला लेती है। ऐसा हर बार हुआ है और हर देश में होता है। कश्मीर के नरसंहार में भी यही देखने को मिला। अल्पसंख्यक कौम के लोग भड़काए में आते है, इसलिए ही तो सरकार से सब कुछ लेने के बाद भी मोदी को गाली देते हैं। जबकि मोदी सरकार की अधिकतर योजनाओं का सर्वाधिक लाभ उठाने वाले यही फिरका है।
जमात-ए-इस्लामी हिन्द हो या कोई भी संगठन हो उसे मंदिर पर राजनीति का आरोप लगाने से पहले यह ख्याल रखना होगा कि मुस्लिम राजनीति ही मंदिर की जड़ में है वरना एक आतताई की मंदिर तोड़ कर बनाई मस्जिद के लिए सैंकड़ों दंगे न हुए होते। अल्पसंख्यकों की minority की ही राजनीति है जो पाकिस्तान में बैठे कुछ सिरफिरे सऊदी अरब को हड़का रहे हैं हिंदुओं और सिखों को मदीना में बुलाने के लिए और आरोप लगा रहे हैं कि सऊदी अरब इस्लाम को भूल रहा है।
वक्त रहते हर व्यक्ति और हर समुदाय को बदलना चाहिए वरना वक्त ही बदल देता है। कांग्रेस अपनी नीतियों के चलते एक क्षेत्रीय दल की भूमिका में आ चुकी है, अभी भी समय रहते कुछ न समझे तो फिर परिणाम “इति” भी हो सकता है।
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