खाने पीने के उत्पाद बनाने वाली कम्पनी नेस्ले के भारतीय समेत तमाम विकाशील या गरीब देशों के बच्चों पर दोहरे मानक सामने आ गए हैं। एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि नेस्ले भारतीय बच्चों के लिए बेचे जाने फूड सेरेलेक में मिठास के लिए चीनी जैसे उत्पाद मिलाती है जबकि यही काम यूरोप के बच्चों के लिए नहीं किया जाता। भारतीय बच्चों और यूरोपियन बच्चों के लिए बेंचे जाने एक ही उत्पाद में इतना अंतर कैसे है,नेस्ले से इस बात का जवाब देते नहीं बन रहा है। अब भारत सरकार भी इस मामले का संज्ञान ले रही है।
आखिर बच्चों से लेकर बड़ों तक के स्वास्थ्य के साथ कब से खिलवाड़ किया जाता है? इसका मतलब है कि भारत में FSSAI का कोई डर नहीं? क्यों बनाया गया यह विभाग? क्या इसके अधिकारियों पर कोई कार्यवाही नहीं होनी चाहिए? ऐसे अनेकों खाद्य पदार्थ हैं, जिनकी जाँच की जानी चाहिए। अक्सर देखा गया है कि जब जाँच टीम बाजार में आती है दुकाने बंद कर दी जाती हैं, ऐसे हालत में उस जाँच टीम को अधिकार होना चाहिए कि दुकान बंद मिलने पर टीम दुकान सील कर दे। जब दुकानदार सैंपल देने को तैयार हो तभी सील तोड़ी जाये। जब ग्राहक बड़ी हुई कीमत दे रहा है फिर मिलावटी खाद्य पदार्थ क्यों? मोदी सरकार को वापस आने पर जनता की सेहत को देखते इस ओर कढोर कदम उठाने होंगे।
स्विटज़रलैंड के पब्लिक आई और इंटरनेशनल बेबीफूड एक्शन नेटवर्क (IBFAN) ने पूरे विश्व से नेस्ले के बच्चों के लिए बेंचें जाने वाले उत्पादों के सैंपल की जाँच की है। भारत समेत कई देशों में यह उत्पाद सेरेलेक के नाम से बेचा जाता है। यह उत्पाद छोटे बच्चों को खाने के रूप में दिया जाता है। फिलिपीन्स में बेचे जाने वाले इसी उत्पाद में प्रति खुराक में 7.3 ग्राम चीनी पाई गई। स्विटज़रलैंड समेत अन्य यूरोपियन देशों में बेंचे जाने वाले इन्हीं उत्पादों में बिलकुल भी चीनी नहीं थी।
इस रिपोर्ट में बताया गया कि नेस्ले सेरेलेक के सभी उत्पादों में चीनी डाली जाती है। औसतन यह 4 ग्राम होती है। सबसे ज्यादा फ़िलीपीन्स के सैंपल में चीनी पाई गई। यूरोपियन बाजारों के सैंपल में चीनी नहीं मिली। भारत से लिए गए सैंपल की जाँच में भी बड़े खुलासे हुए। भारत में बिकने वाले सेरेलेक में औसतन हर खुराक में 3 ग्राम चीनी पाई गई है। यह भी बताया गया है कि चीनी इस उत्पाद में डाली गई लेकिन उसके विषय में डिब्बों पर स्पष्ट रूप से नहीं बताया गया।
रिपोर्ट में बताया गया है, “भारत में, जहाँ इस उत्पाद की बिक्री 2022 $250 मिलियन (लगभग ₹2000 करोड़) के पार थी, सभी सेरेलैक बेबीफूड में प्रति खुराक लगभग 3 ग्राम अतिरिक्त चीनी होती है। यही स्थिति अफ्रिका के मुख्य बाज़ार दक्षिण अफ़्रीका में भी है, जहाँ सभी सेरेलैक प्रति खुराक में 4 ग्राम या अधिक चीनी होती है।”
सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दक्षिण अफ्रीका, बांग्लादेश और पाकिस्तान समेत तमाम देशों में भी नेस्ले ने यही किया। यह भी बताया गया कि इनमें से कुछ पैकेज पर इनमें चीनी होने की बात लिखी तक नहीं थी। इन उत्पादों में शहद के रूप में चीनी थी जिसको लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) मना करता है।
नेस्ले का यह कदम बच्चों के लिए खतरनाक क्यों?
औपनिवेशिक सोच का नतीजा
नेस्ले ने क्या कहा?
We would like to assure you that our Infant Cereal products, are manufactured to ensure the appropriate delivery of nutritional requirements such as Protein, Carbohydrates, Vitamins, Minerals, Iron etc. for early childhood. We never compromise and will never compromise on the… pic.twitter.com/ue5WAma7Hf
— ANI (@ANI) April 18, 2024
Such long paragraphs wasn’t required. Just tell us in short, Why different quality standards for Europe, Asia and Africa ? pic.twitter.com/NuKyx95YO5
— Amit Singh Rajawat (@satya_AmitSingh) April 18, 2024
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