सुभाष चन्द्र
अपने 15 अप्रैल के लेख में मैंने लिखा था कि EVM और VVPAT के उपयोग को चुनौती देने वाली प्रशांत भूषण की याचिका दायर करने के लिए उस पर एक करोड़ जुर्माना लगाना चाहिए क्योंकि सुप्रीम कोर्ट यह मामला सितंबर, 2023 में खारिज कर चुका है और 10 साल में EVM के खिलाफ 40 याचिकाएं खारिज हो चुकी हैं। फिर किस कारण या दबाव में सुप्रीम कोर्ट इस याचिका पर सुनवाई कर रही है?
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-बैलेट से चुनाव हो;
-vvpat पर्ची मतदाता को मिले और फिर वह उसे मशीन में डाले; और
-VVPAT मशीन में पारदर्शी शीशा लगाया जाए जो 2017 में मशीन के Design को बदल कर हटा दिया गया था।
अगर बैलेट से चुनाव के लिए कोर्ट मान जाता है तो बाकि दो मांगे स्वतः ही ख़त्म हो जाएंगी। बैलट से चुनाव कराने के लिए उसने जर्मनी का उदहारण दिया जिस पर जस्टिस दीपांकर दत्ता ने उसे लताड़ा कि वहां की आबादी 6-7 करोड़ है, हमारे यहां फिर पुरानी व्यवस्था में लौटना संभव नहीं लगता। उस चुनाव में क्या होता था, आप भूल गए लेकिन हमें याद है।
प्रशांत भूषण ने EVM और VVPAT में हेरफेर की आशंका जताई। उसने कहा कि वो यह नहीं कह रहे कि हेर फेर किया गया है, हम कह रहे हैं हेरफेर किया जा सकता है। EVM और VVPAT प्रोग्राम पर based चिप होते हैं और इनमे दुर्भावनापूर्ण चिप डाले जा सकते हैं।
इस पर जस्टिस खन्ना ने कहा “मानवीय दखल से समस्या हो सकती है, वरना मशीन गलत result नहीं देगी। मानवीय कमजोरियां हो सकती हैं और पूर्वाग्रह हो सकता है।
मतलब साफ़ है कि खुद प्रशांत भूषण मान रहा है कि अभी तक EVM और VVPAT के उपयोग में कोई हेरफेर नहीं हुई है। अगर ऐसा है तो फिर क्या फितूर है दिमाग में।
भूषण ने दलील दी ज्यादातर लोग EVM पर भरोसा नहीं करते जो एक प्राइवेट poll में बताया गया है। दत्ता ने पूछा आप कैसे उस पर भरोसा कर सकते हैं। ये ऐसे हो गया कि “आप” पार्टी ने सर्वे करा लिया और पाया कि 90% दिल्ली वाले केजरीवाल की गिरफ़्तारी को गलत मानते हैं, तो क्या इस सर्वे को सही मान कर केजरीवाल को छोड़ दिया जाए। प्रशांत भूषण भी तो वामपंथी होने के साथ पुराना “आपिया” ही है और ऐसी ही उलजुलूल बातें करेगा।
प्रशांत भूषण की याचिका पर अदालत ने चुनाव आयोग को मतदान से लेकर मतगणना तक follow की जाने वाली प्रक्रिया, आंकड़े, EVM मशीन VVPAT आदि की सुरक्षा की व्यवस्था के details देने को कहा।
40 याचिकाएं जो रद्द कर चुका है कोर्ट, उनमे यह सब नहीं बताया गया होगा। अभी एक और याचिका VVPAT के खिलाफ चल रही है। उसके लिए आयोग ने 458 पेज का हलफनामा दाखिल किया है। ऐसे तो चुनाव के समय में आयोग का काम बढ़ता ही जायेगा ।
प्रशांत भूषण की और जस्टिस खन्ना की बात को ध्यान में रख यह देखना चाहिए कि यहां तो बात हेरफेर की तब हो रही है जब मानव और मशीन शामिल है लेकिन जब दोनों तरफ मानव हो तो फिर तो कुछ भी धांधला हो सकता है। मशीन को बिना किसी मानवीय दखल के perfect बताया है खन्ना जी ने।
प्रशांत भूषण को यह बताना चाहिए कि यदि उसकी दलील पर चला जाए कि हेरफेर हो सकता है तो यह भी हो सकता है।
-पैसे के दम पर प्रशांत भूषण और सुप्रीम कोर्ट के कई चर्चित दलाल वकील जजों को पैसा खिला कर अपने हक़ में फैसले कराते हैं क्योंकि दोनों तरफ मानव है।
-पैसे के दम पर तीस्ता के लिए 3 घंटे में 2 बेंच बन गई और उसे जमानत दे दी गई।
-ऐसा भी तो हो सकता है IMA और विदेशी संस्थांए रामदेव को फ़साने के लिए जजों को पैसा देकर रामदेव को बदनाम कर रहे हैं।
कौन PIL दायर कर सकता है और किस विषय पर हो, इस पर पुनर्विचार होना चाहिए क्योंकि PIL एक उद्योग बन चुका है।
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