हॉन्गकॉन्ग-सिंगापुर में Everest और MDH के मसालों पर बैन ; सरकार क्या मिलावटखोरों और लापरवाह अधिकारीयों के विरुद्ध कानून बनाएगी?

भारत आज़ाद होने के बाद से कितनी सरकारें आयीं और गयी, लेकिन मसालों एवं अन्य खाद्य पदार्थों में हो रही मिलावट पर कभी कोई गंभीर नहीं रही। जनता मरती है मरने दो, लेकिन मिलावटखोरों को अपना काम करने दो। 70 के दशक में मनोज कुमार, वहीदा रहमान और महमूद अभिनीत बहुचर्चित फिल्म 'नीलकमल' का महमूद पर फिल्माया बहुचर्चित गीत 'खाली डिब्बा खाली बोतल...", जिसमे दूध से लेकर मसालों तक में हो रही मिलावट को उजागर किया था, क्या किया सरकारों ने? इतने वर्षों में कितनी ही सरकारें आयीं और गयीं, लेकिन मिलावट का धंधा बदस्तूर जारी है और शायद रहेगा भी। दरअसल, भारत में माफिया राज है, यह माफिया जो चाहता है, सरकारें और अदालतों में वही चलता है। 
रेत कांड 
देश में आपातकाल के दिनों में वनस्पति घी की किल्लत थी। हौज़ काज़ी चौक(पुरानी दिल्ली) पर 4 बड़े ट्रक 4 किलो घी के डिब्बों में रेत लेकर आते हैं, पुलिस वालों भी दो-दो, तीन-तीन डिब्बे खरीद लेते हैं, यानि लगभग आधा घंटे में चारों ट्रक माल बेच चले जाते हैं, घंटा भर के बाद रेत भरे डिब्बे लेकर रोती-चिल्लाती औरतें-मर्द जब चौक पर पहुँचते हैं ट्रकों का नामोनिशान नहीं, बगल में हौज़ काज़ी पुलिस थाने तक हुजूम पहुंचा तो पुलिस वालों ने अपने डिब्बे की सील खोलकर देखा तो रेत मिलने पर पुलिस भी हैरान हो गयी, लेकिन वह पकडे नहीं गए, उस दिन अनेक स्थानों पर यह कांड हुआ।  
कीमतें बढ़ रही हैं, शुद्धता भी ख़त्म हो रही है। पहले दाल में जब देसी घी का छौंका लगने पर 10 घर घी की महक फैलती थी आज घर में ही पता नहीं लगता। मिठाई तो बहुत दूर की बात है। जो मिठाई वाला शुद्ध घी की बर्फी बता रहा है, बता रहा है कि खोया मिलावटी है, क्योकि खोये में ही इतना घी होता है मिलाने की जरुरत नहीं।     

कुछ साल पहले तेल, घी और अन्य खाद्य पदार्थों की खुली बिक्री पर रोक लगी, प्लास्टिक माफिया के इशारे पर। सील्ड बोतलों की भी जाँच शुरू हुई, लेकिन खाद्य निरीक्षक टकरा गए एक नामी तेल कंपनी से। उस कंपनी के अधिकारी ने कोर्ट को बताया 'अगर इन्हे मुंह माँगा पैसा इनको दे दिया जाए, यही बोतल अभी पास हो जाएगी', कोर्ट में उपस्थित सभी लोग दंग रह गए। क्या कार्यवाही की कोर्ट ने। कुछ नहीं, केस ही ख़त्म।   

भारतीय कम्पनियों MDH और एवरेस्ट के मसालों पर सिंगापुर और हॉन्गकॉन्ग में प्रतिबंध के मामले में केंद्र सरकार एक्शन में आ गई है। इससे पहले बांग्लादेश ने रूहअफजा पर अपने देश में बैन लगा चुका है। गर्मी का मौसम है लगभग हर घर में रूहअफजा इस्तेमाल होता है। जबकि बांग्लादेश रूहअफजा को सेहत के लिए नुकसान बता चुका है। लेकिन भारत सरकार सोई हुई है। मसाला प्रतिबन्ध मामले में भारत सरकार ने इन दोनों देशों की एजेंसियों से रिपोर्ट माँगी है। सरकार ने अपने दूतावासों से भी इस विषय में रिपोर्ट तलब की है। उधर एक कम्पनी ने दावा किया है कि उसके उत्पादों पर कोई प्रतिबंध नहीं लगा।

जानकारी के अनुसार, भारतीय कम्पनियों के कुछ मसालों में केमिकल पाए जाने की रिपोर्ट के बाद वाणिज्य मंत्रालय ने एक्शन लिया है। उसने इन मसाला कम्पनियों समेत दोनों देशों में स्थित भारतीय दूतावासों से मसालों की जाँच रिपोर्ट भेजने को कहा है।

मंत्रालय ने सिंगापुर और हॉन्गकॉन्ग की खाद्य मानक एजेंसियों से भी इस विषय में सूचना माँगी है। देश में मसालों के विषय में निर्णय लेने वाले स्पाइस बोर्ड ने भी इस मामले में एक्शन लिया है, उसने कम्पनियों से इस मामले में स्पष्टीकरण माँगा है। बोर्ड ने कम्पनियों से पूछा है कि क्या मानक पूरे किए गए थे।

हाल ही में यह खबर आई थी कि भारतीय मसाला कंपनी MDH और एवेरेस्ट के मसालों को हांगकांग और सिंगापुर में प्रतिबन्धित किया गया है। इनके ऊपर प्रतिबंध की वजह इनमें एक केमिकल का पाया जाना थी। यह केमिकल एथिलीन ऑक्साइड था। इससे कैंसर का खतरा बढ़ता है।

एवेरेस्ट कम्पनी ने अपने उत्पादों पर प्रतिबन्ध की बात को झूठ कहा है। एवेरेस्ट ने कहा है कि उसके उत्पादों पर केवल तात्कालिक रोक लगाई गई है। यह रोक जाँच के लिए लगाई गई है। बताया जा रहा है कि अब भारत में भी FSSAI इन मसालों की जाँच करने जा रही है।

भारत विश्व में मसालों का सबसे बड़ा उत्पादक, उपभोक्ता और निर्यातक है। भारत में मसालों के बाजार का आकार लगभग ₹90,000 करोड़ है। भारत ने 2022-23 में ₹30,000 करोड़ से अधिक के मसालों का निर्यात विश्व भर में किया था। भारत के मसालों की माँग प्राचीन समय से रही है।

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