भारत में विपक्ष भारत विरोधी विदेशी ताकतों के दम पर देश को बांग्लादेश बनाने का सपना देख रहे हैं, उन्हें कनाडा से सीखना चाहिए कि बिना किसी सबूत के खालिस्तानियों के दबाव में भारत को धमकी देना बहुत भारी पड़ रहा है। एक तरफ हमारा विपक्ष है जो टूलकिट के हाथ कठपुतली बने हुई है। यहाँ गलती जनता की भी है जो सच्चाई को नज़रअंदाज कर इन उपद्रवियों की चालों में फंस रहे हैं। जनता को आंखे खोलनी होंगी। कांग्रेस द्वारा पंजाब में न बन सकने वाली सरकार बनाने के लिए संत भिंडरावाला से सौदा किया और सरकार बनने पर जब मांगे पूरी करने को बोला तो एक संत को आतंकवादी बना दिया। और आज वही खालिस्तान देश के लिए खतरा बन रहा है।
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। उनकी कुर्सी पर भी अब संकट गहरा गया है। विपक्षियों के हमले के बीच उनकी खुद की ही पार्टी के सांसदों ने उन्हें इस्तीफा देने का अल्टीमेटम थमा दिया है। इस्तीफा ना देने पर उनके खुलाफ विद्रोह की चेतावनी भी दी गई है।
कनाडाई मीडिया के अनुसार, जस्टिन ट्रूडो का विरोध करने वाले लिबरल पार्टी के सांसदों ने उन्हें 28 अक्टूबर, 2024 तक पद छोड़ देने को कहा है। पद ना छोड़ने पर इन सांसदों ने खुली बगावत की चुनौती दी है। ट्रूडो के खिलाफ इस मुहिम में कम से कम 30 सांसद शामिल हैं।
ट्रूडो को हटाने को लेकर एक पत्र भी यह सांसद अपने साथियों को थमा रहे हैं। इस पत्र पर कई सांसदों के हस्ताक्षर भी करवाए गए हैं। बुधवार (23 अक्टूबर, 2024) को कनाडाई संसद के भीतर हुई एक बैठक में विरोध करने वाले सांसदों ने जस्टिन ट्रूडो को इस्तीफा देने को कह दिया। उनके सामने विरोध वाला पत्र भी पढ़ा गया।
लिबरल पार्टी के सांसद सीन केसी ने कहा कि यह कनाडा के हित में होगा कि जस्टिन ट्रूडो अपना इस्तीफा सौंप दें। उन्होंने कहा कि इसी से लिबरल पार्टी की सरकार बच सकती है। उन्होंने कहा कि अगर ऐसा नहीं होता होता तो कंजर्वेटिव पार्टी आसानी से जीत दर्ज कर लेगी।
लिबरल पार्टी के सांसदों ने कहा है कि ट्रूडो के इस्तीफे के बाद नए नेता की तलाश की जाएगी, इससे पार्टी के खिलाफ देश में बने माहौल को ठंडा करने में मदद मिलेगी। एक सांसद केन मैकडोनाल्ड ने कहा है कि ट्रूडो को अब लोगों की बात सुननी ही पड़ेगी।
कनाडा की संसद में लिबरल पार्टी के लगभग 150 सांसद हैं और इनमें से लगभग 30 खुले तौर पर ट्रूडो के विरोध में उतर आए हैं। यदि यह संख्या बढ़ती है तो ट्रूडो को कुर्सी छोड़नी पड़ सकती है। ट्रूडो की सरकार पहले बैसाखियों के सहारे चल रही है।
वहीं दूसरी तरफ ट्रूडो के कई कैबिनेट मंत्रियों ने भी दोबारा चुनाव ना लड़ने का मन बना लिया है। उनके चुनाव ना लड़ने के पीछे ट्रूडो के चलते लिबरल पार्टी की अलोकप्रियता कारण बताई जा रही है। कनाडा के सर्वे भी ट्रूडो और उनकी पार्टी की बुरी हालत बयाँ कर रहे हैं।
कनाडा के सरकारी चैनल CBC के सर्वे में लगातार एक वर्ष से कंजर्वेटिव नेतृत्व, लिबरल पार्टी से 19% आगे चल रहा है। जहाँ 42% लोग कंजर्वेटिव पार्टी और पियरे पोलिवर को पसंद कर रहे हैं तो वहीं मात्र 23% की पसंद लिबरल पार्टी और ट्रूडो हैं। सर्वे से यह भी पता चल रहा है कि आगामी चुनावों में 95% संभावना है कि वह कंजर्वेटिव पार्टी बहुमत हासिल कर लेगी।
इसके उलट इस बात की केवल 1% संभावना है कि लिबरल पार्टी सत्ता में आए। प्रधानमंत्री के तौर पर भी ट्रूडो की अप्रूवल रेटिंग रसातल को जा रही हैं। ट्रूडो को वर्तमान में कनाडा के प्रधानमंत्री के तौर 65% लोग पसंद नहीं करते हैं। इसमें सुधार भी नहीं हो रहा है।
प्रधानमंत्री ट्रूडो की यह मुश्किलें भारत से राजनयिक झगड़ा मोल लेने के बाद और बढ़ गई हैं। उन्होंने हाल ही में अपने पुराने आरोप दोहराए थे कि भारत ने खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या करवाई। इसको लेकर भारत ने अपने राजनयिक भी कनाडा से वापस बुला लिए थे और कनाडाई राजनयिकों को देश से निकलने को कहा था।
प्रधानमंत्री ट्रूडो ने यह आरोप लगाने के बाद संसद की एक कमिटी की सुनवाई में खुद कबूला था कि उनके पास भारत के खिलाफ कोई सबूत मौजूद नहीं हैं। इस बीच कनाडा में इस मामले में सबूत दिखाने की माँग भी उठ चुकी है। ऐसे में ट्रूडो के लिए यह नया राजनीतिक संकट और बड़ी चुनौती है और अगर वह इससे पार नहीं पाते तो उनके राजनीतिक करियर का अंत भी हो सकता है।
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