इसी मस्जिद से 'सबको मार डालने' के लिए कहा गया था (फोटो साभार: राहुल पाण्डेय)
बहराइच में 13 अक्टूबर 2024 को हुए सांप्रदायिक तनाव ने एक बार फिर जिले में खौफ और आतंक का माहौल बना दिया है। इस हिंसा में 22 वर्षीय रामगोपाल मिश्रा की निर्मम हत्या कर दी गई, जिससे हिंदू समुदाय में गहरा आक्रोश और असुरक्षा की भावना पैदा हो गई है। स्थानीय लोगों का दावा है कि यह हमला पहले से सोची-समझी साजिश के तहत किया गया था, जिसमें स्थानीय मस्जिद से भड़काऊ ऐलान किए गए थे और भीड़ को हिंसा के लिए उकसाया गया था। क्या मस्जिद जेहादियों की पनाहगाह है? कश्मीर में भी मस्जिदों से ऐलान हुआ था। क्या शेष भारत में भी मस्जिदों का कश्मीर की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है? क्या तुष्टिकरण करने वाली पार्टियां, इस्लाम को शांति का मजहब बताने वाले जवाब देंगे? अगर किसी मंदिर से ऐसा ऐलान हुआ होता तो क्या तब भी ये सब खामोश रहते?
मूर्ति पर हमले से झगड़े की शुरुआत, फिर मस्जिद से ‘सभी को’ मारने का ऐलान
कट्टरपंथियों की हिंसा के शिकार हुए विनोद कुमार मिश्रा ने ऑपइंडिया से बातचीत में पूरे घटनाक्रम को याद किया और अपनी आपबीती सुनाई। विनोद मिश्रा ने शुरुआत से लेकर हिंसा तक की घटना को सिलसिलेवार तरीके से बताया कि कैसे एक शांत धार्मिक जुलूस ने अचानक हिंसा का रूप ले लिया। उन्होंने कहा, “जब हमारी मूर्ति मौके पर पहुँची, तो मुस्लिम लोगों ने मूर्ति पर ईंटें फेंकी, जिससे प्रतिमा का हाथ टूट गया और फिर दूसरी मूर्ति भी ईंट-पत्थर मारने की वजह से टूट गई। इसके बाद डीजे वाले को खींचकर मारा गया।”
मिश्रा का आरोप है कि इस विवाद की शुरुआत अब्दुल हमीद के बेटे ने की, जिसने छत से पत्थर फेंककर माहौल बिगाड़ा। इसके बाद हिंदू समुदाय ने धरने पर बैठने का निर्णय लिया और प्रशासन से हस्तक्षेप की माँग की। हालाँकि पुलिस और प्रशासन ने हिंदुओं को आश्वासन दिया कि मामले को संभाला जाएगा, लेकिन हिंसा थमने के बजाय और बढ़ गई। विनोद कुमार मिश्रा ने बताया, “मुस्लिमों ने जो किया, वो अन्याय है। हमने माफी की माँग की थी, लेकिन पुलिस ने हमारी माँगें नहीं मानी।”
हिंसा को रोकने के प्रयास में विनोद कुमार मिश्रा और अन्य हिंदू नेताओं ने अब्दुल हमीद से बातचीत भी की। हालाँकि, हमीद ने अपने बेटे का बचाव करते हुए कहा कि डीजे पर पाकिस्तान का गाना बज रहा था, जिससे मुस्लिमों को आपत्ति थी। विनोद कुमार मिश्रा ने बताया, “अब्दुल हमीद मेरे साथ ही पढ़ता था, इसलिए मैंने उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन उसने कहा कि उसका लड़का अब उसके काबू में नहीं है।”
विनोद ने भावुक होते हुए बताया कि उनके बचपन का दोस्त अब्दुल हमीद भी इस हिंसा में शामिल था। उन्होंने कहा, “बचपन का दोस्त था अब्दुल हमीद। मुझे कभी नहीं लगा था कि वो ऐसा करेगा। ये मेरे लिए बहुत बड़ा धक्का था।”
उन्होंने कहा कि अब्दुल हमीद से बातचीत के बावजूद हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही थी। इसके बाद मस्जिद से ‘अल्लाह-हू-अकबर’ का ऐलान किया गया, और लाउडस्पीकर पर कहा गया कि ‘जो जहाँ मिले, उसे मार डालो, काट दो।’ इसके तुरंत बाद करीब 150-200 लोगों की भीड़ हथियारों के साथ निकली और हमला शुरू कर दिया।
बाइक से भागने की कोशिश की, तो टायर काट डाला
विनोद कुमार मिश्रा ने इस पूरे घटनाक्रम के दौरान अपनी जान पर बनी आपबीती भी साझा की। जब वे अपनी बाइक से भागने की कोशिश कर रहे थे, तो उन पर मुस्लिम भीड़ ने हमला कर दिया। “गाड़ी स्टार्ट ही की थी, कि हमारे ऊपर हमला बोल दिया। 5-7 लोग आए और फरसे से हमला किया। मेरे अंगूठे और सर में गहरा घाव लगा। मैं लहूलुहान हो गया।” इसके बाद उनकी बाइक को आग के हवाले कर दिया गया।
विनोद ने बताया कि पुलिस की निष्क्रियता इस पूरे घटनाक्रम में बहुत ही चौंकाने वाली थी। उन्होंने आरोप लगाया कि जब तक मुस्लिम भीड़ हमला करती रही, तब तक पुलिस मूकदर्शक बनी रही। जब हिंदू लोग एकत्रित होकर जवाब देने की कोशिश करने लगे, तो पुलिस ने उन पर लाठीचार्ज कर दिया। “पुलिस ने हमारी कोई रिपोर्ट तक नहीं लिखी,” उन्होंने कहा। विनोद के अनुसार, इस हिंसा में 7-8 हिंदू घायल हुए, लेकिन प्रशासन की तरफ से कोई सख्त कार्रवाई नहीं की गई।
‘सिर्फ झंडा उतारने पर मार डालोगे?’
ऑपइंडिया से बातचीत में घटना स्थल पर मौजूद रहे चंद्रपाल मिश्रा ने बताया कि कैसे झंडा उतारने पर ओम प्रकाश को मार डाला गया। उन्होंने कहा, “उस लड़के (ओम प्रकाश) की क्या गलती थी? उसने किसी को नहीं मारा, उसने सिर्फ हरा झंडा ही उतारा था, जो पत्थर बरसाने के बाद किया गया था।”
चंद्रपाल ने यह भी बताया कि राम मंदिर बनने के बाद से मुस्लिमों में गुस्सा है, इसके बाद से ऐसी घटनाएँ बढ़ गई हैं। मुस्लिम राम मंदिर बनने का गुस्सा उतार रहे हैं। उन्होंने ताजिया को लेकर भी अपनी बात रखी। चंद्रपाल ने कहा, “हम लोग तो ताजिया में भी शामिल रहते थे लेकिन कोरोना के दौरान ताज़िया नहीं उठने की घटना से मुस्लिम समुदाय नाराज था, और इसी कारण से उन्होंने हिंदू जुलूस को निशाना बनाया।” चंद्रपाल ने कहा, “मुस्लिमों का कहना था कि हमारा ताज़िया नहीं उठा, तो हिंदुओं की मूर्ति भी नहीं उठने देंगे।”
अतीत में भी हो चुकी है इस तरह की घटना
इस हिंसा की घटनाएँ पहली बार नहीं हुई हैं। 1994-95 में भी बहराइच में ऐसी ही सांप्रदायिक घटनाएँ हुई थीं, जब मुस्लिम समुदाय ने मूर्तियों को रोकने का प्रयास किया था। विनोद कुमार मिश्रा ने इस घटना की तुलना करते हुए कहा कि इस बार हिंसा कहीं ज्यादा संगठित और भयावह थी। उन्होंने कहा, “अगर प्रशासन सख्त होता, तो ये घटना नहीं होती।” हालाँकि, उन्होंने यह भी कहा कि हिंदू समुदाय इस घटना से डरने वाला नहीं है। उन्होंने दृढ़ता से कहा, “हम अगले साल भी यात्रा निकालेंगे, चाहे हमें बलिदान क्यों न हो जाएँ।”
बहराइच में हुई इस सांप्रदायिक हिंसा ने पूरे क्षेत्र को झकझोर कर रख दिया है। पुलिस और प्रशासन की भूमिका पर सवाल उठाए जा रहे हैं। इस घटना ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि सांप्रदायिकता की आग कितनी घातक हो सकती है, जब इसे सही समय पर नियंत्रित नहीं किया जाता।
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