उत्तर प्रदेश : जब रूस से लौटे समाजवादी पार्टी यूथ विंग अध्यक्ष इंजीनियर दीपक त्यागी को लव जिहाद की एक घटना ने बना डाला महंत यति नरसिंहानन्द; लेकिन अनवर शेख से लेकर Understanding Muhammad and Muslims पर चुप्पी क्यों?

 
डासना मंदिर के महंत यति नरसिंहानंद के खिलाफ शुक्रवार (4 अक्टूबर 2024) को भारत के कई हिस्सों में मुस्लिम भीड़ ने हिंसक प्रदर्शन किया। मुस्लिम भीड़ यति नरसिंहानंद को गुस्ताख़ बताते हुए अपने पैगंबर के अपमान का आरोप लगा रही थी। यति नरसिंहानंद इससे पहले भी कई बार अपने बयानों को लेकर चर्चा में रहे हैं। मुस्लिम बहुल इलाके में मौजूद पौराणिक डासना मंदिर का महंत बनने से पहले यति नरसिंहानंद की पहचान इंजीनियर दीपक त्यागी के तौर पर हुआ करती थी। आइए जानते हैं कि कैसे एक इंजीनियर रहे दीपक ने भगवा धारण करके अपने जीवन को पूरी तरह से बदला।

सबसे ज्वलंत प्रश्न यह है कि जब कोई गैर-मुस्लिम पैगम्बर या इस्लाम के विरुद्ध जरा-सा भी कुछ बोलता है कट्टरपंथी 'सिर तन से जुदा' गैंग को मैदान में उतार देते हैं, जब वही बात मुस्लिम बोलता है तब क्यों नहीं उनके खिलाफ बोलते? अनवर शेख द्वारा अपने जीवनकाल में कई पुस्तकें लिखने के साथ एक्स मुस्लिम पुस्तकें लिख रहे हैं, सोशल मीडिया लेखक अली सीना द्वारा लिखित पुस्तक Understanding Muhammad and Muslims पर वायरल है। किसी की आवाज़ नहीं निकल रही, सारे कट्टरपंथी अंधे और गूंगे बन गए हैं। जबकि इस किताब में लेखक अली सीना ने साफ लब्जों में थूक से लेकर चॉकलेट पर शौच लगाए जाने तक की घटनाओं का जिक्र किया है, जिस कारण इस्लाम पूरी दुनियां में बदनाम हो रहा है। दूसरे, इस पुस्तक को पढ़ने के बाद मुसलमान इस्लाम छोड़ रहे हैं। नूपुर शर्मा विवाद दिनों में इनके आक्रोश को देख शक हो रहा था कि जिस दिन इन एक्स मुस्लिमों की संख्या 1+ लाख हो गयी हैवानियत करने वाले 'सिर तन से जुदा' गैंग और इनको समर्थन देने वालों का क्या होगा, जब ये जमात सोशल मीडिया से बाहर निकल इन दहशतगर्तों के खिलाफ सडकों पर होंगे? सनातन के विरुद्ध अनर्गल बातें हिन्दू बर्दाश्त कर सकता है, लेकिन ये जमात बर्दाश्त नहीं करेगी।       

दूसरे, इन एक्स मुस्लिमों की निपुणता नूपुर शर्मा तथाकथित विवाद के दिनों में Jaipur Dialogue, Sach और NewsNation पर 'इस्लाम क्या कहता है' पर देखने को मिली। इनके सवालों पर उन मौलानाओं को, जिन्हे हर मुसलमान बड़ी इज्जत बक्शता है, AC में पसीने पोंछते देखा। इन लोगों द्वारा कुरान की आयत ठीक से न पढने इन एक्स मुस्लिमों ने फटकार भी लगाई।         

रूस में पढ़ाई, लंदन में नौकरी

वर्तमान में महामंडलेश्वर की पदवी प्राप्त महंत यति नरसिंहानन्द की उम्र लगभग 55 वर्ष है। उनके पिता रक्षा मंत्रालय में नौकरी करते थे। रिटायरमेन्ट के बाद वो कांग्रेस से जुड़ गए थे। उन्होंने अपने बेटे दीपक की शुरूआती शिक्षा-दीक्षा मेरठ से करवाई। हालाँकि वो मूलतः बुलंदशहर के निवासी थे। बाद में उच्च शिक्षा के लिए दीपक त्यागी रूस गए। यहाँ वो मॉस्को सहित अन्य कई शहरों में रहे। रूस में उन्होंने ‘मॉस्को इंस्टिट्यूट ऑफ केमिकल मशीन बिल्डिंग’ से मास्टर्स की डिग्री ली।
उन्होंने बतौर इंजीनियर लम्बे समय तक कार्य किया। तब दीपक त्यागी को लंदन तक से नौकरी के ऑफर मिले। उन्होंने यहाँ मार्केटिंग टीम का भी नेतृत्व किया। यति नरसिंहानंद का यह भी दावा है कि वो इजरायल की भी यात्रा कर चुके हैं और साथ ही उन्हें 1992 में ‘ऑल यूरोप ओलम्पियाड’ में गणित से विजेता घोषित किया गया था। कई अलग-अलग देशों में रहते हुए लगभग 10 वर्षों के बाद साल 1997 में दीपक त्यागी भारत लौट आए।

राजनीति से रहा जुड़ाव

दीपक त्यागी (वर्तमान में यति नरसिंहानन्द) जब भारत लौटे तो उस समय उत्तर प्रदेश की राजनीति में में समाजवादी पार्टी का बोलबाला हुआ करता था, तब यूपी के सबसे बड़े नेता मुलायम सिंह यादव माने जाते थे। दीपक त्यागी को एक बार समाजवादी पार्टी में यूथ विंग का अध्यक्ष पद ऑफर हुआ तो उन्होंने स्वीकार कर लिया। इस दौरान दीपक त्यागी के बहुत से मुस्लिम दोस्त भी बने। दीपक त्यागी के पूर्वज भी समाजवादी विचारधारा वाले थे।

भाजपा नेता के भाषणों से जगी हिंदुत्व में आस्था

यति नरसिंहानन्द ने कई बार खुले मंचों से भाजपा नेता बी एल शर्मा प्रेम (अब दिवंगत) को अपना गुरु बताया है। वो बताते हैं कि समाजवादी पार्टी का पदाधिकारी रहने के दौरान उनको कई बार बी एल शर्मा ‘प्रेम’ (बैकुंठ लाल शर्मा) के भाषण सुनने को मिला। उनके द्वारा रखे गए तथ्य और दिए जाने वाले सबूतों से दीपक त्यागी का झुकाव धीरे-धीर उनकी तरफ होने लगा। हालाँकि इसके बावजूद वो समाजवादी पार्टी से जुड़े रहे।

लव जिहाद की एक घटना ने बना दिया नरसिंहानंद

दीपक त्यागी के यति नरसिंहानंद बनने के पीछे लव जिहाद की एक घटना ने बहुत अहम रोल अदा किया। वह घटना शम्भू दयाल कॉलेज में पढ़ने वाली त्यागी समाज की एक लड़की से जुड़ी है जिसने तब रो-रो कर उनको (यति नरसिंहानंद) अपनी पीड़ा बताई थी। पीड़िता ने उन्हें बताया था कि एक मुस्लिम सहेली ने उसकी जान-पहचान अपने मजहब के लड़के से करवा दी थी। दोस्ती के ही दौरान मुस्लिम युवक ने पीड़िता के साथ अपने कुछ फोटो और वीडियो बना डाले थे। इसी फोटो व वीडियो को दिखाकर पीड़िता को कई मुस्लिम युवकों से संबंध बनाने के लिए मजबूर किया गया था।
तब पीड़िता ने दीपक त्यागी को यह भी बताया कि उसके मुस्लिम साथी ने उसको न सिर्फ अपने दोस्तों बल्कि कई नेताओं और यहाँ तक कि प्रिंसिपल तक के आगे परोसा था। लड़की ने दीपक त्यागी पर भी आरोप लगाया कि उनको चुप रहने के लिए कुछ न कुछ लालच दिया गया होगा। यहीं से दीपक त्यागी के मन को आघात लगा और वो हिंदुत्व की तरफ झुकते चले गए। उनको बी एल शर्मा प्रेम के दावों का सबूत जैसा मिल गया और वो दीपक त्यागी से यति नरसिंहानंद बन गए।

हिन्दुओं को जोड़ने के लिए चलाया ‘अजगर’ अभियान

जिस समय दीपक त्यागी ने खुद को यति नरसिंहानंद के रूप में ढाला तब उन्होंने हिंदू समाज को तोड़ने के लिए राजनैतिक लोगों द्वारा की जा रही साजिशों को समझना शुरू किया। उन्होंने पाया कि पश्चिम उत्तर प्रदेश में हिंदू धर्म की 4 जातियों के बीच लड़ाने की सबसे अधिक साजिश होती है। ये जातियाँ यादव, जाट, गुर्जर और राजपूत थीं। आरोप है कि तब अलग-अलग जातियों के अपने-अपने नेता थे जो एक दूसरे के खिलाफ वैमन्सयता फैला कर मुस्लिम वोट बैंक को साधते थे।
यति नरसिंहानंद ने इन चारों जातियों को जोड़ने के लिए एक अभियान चलाया था जिसका नाम उन्होंने ‘अजगर’ दिया था। अजगर एक शॉर्ट फॉर्म था जिसका पूरा नाम अहीर, जाट, गुर्जर और राजपूत था। यति नरसिंहानंद ने पश्चिम उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में अजगर सभाएँ करवाईं। इन सभाओं में सभी जातियों को एक दूसरे का पूरक बनने और हिंदुत्व के लिए खड़े होने का संकल्प दिलवाया जाता था। इन्हीं सभाओं में यति नरसिंहानंद मुस्लिमों को देश और हिंदू धर्म के लिए खतरा बताते हुए जनसंख्या नियंत्रण कानून लाने की वकालत करते थे।

डासना मंदिर को चुना स्थाई ठिकाना

अपने एक इंटरव्यू में यति नरसिंहानंद ने ऑपइंडिया को बताया था कि हिन्दुओं को जागृत करने के लिए उनको एक स्थाई ठिकाने की जरूरत थी। आखिरकार उन्होंने मुस्लिम बहुल इलाके डासना में मौजूद शक्तिपीठ देवी मंदिर को चुना। वहाँ जाने से पहले ही उनको पता चला था कि उनसे पहले भी कई संतों और महंतों की मंदिर में हत्या की जा चुकी थी। मंदिर में डकैती डालकर कई बार लूट भी हो चुकी थी।
यति नरसिंहानंद बताते हैं कि दशकों पहले ही उस मंदिर पर मुस्लिम आबादी कब्ज़ा करने की कगार पर थी लेकिन उन्होंने ऐसा न होने देने का संकल्प लिया। इसी संकल्प के साथ वो डासना मंदिर के पुजारी बन गए और बाद में महंत। ताजा घटनाक्रम से पहले भी उन पर मंदिर में कई बार हमले की कोशिश की जा चुकी है। हालाँकि उन्होंने किसी डर या दबाव में मंदिर छोड़ने से साफ इंकार कर दिया।

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