कांग्रेस को रिमोट से चलने वाले खड़के नहीं, अपनी बुद्धि से चलने वाले शशि थरूर जैसे अध्यक्ष की जरुरत है; राहुल गांधी के चाचा संजय गाँधी पर शशि थरूर का सीधा निशाना, इमरजेंसी के ‘सच का सामना’ कराने पर क्या राहुल एक्शन लेंगे?

काफी समय से कांग्रेस में परिवार से बाहर अध्यक्ष की मांग उठती रही है, गाँधी परिवार के रिमोट से चलने वाले अध्यक्ष की जरुरत नहीं। राजेश पायलट, माधवराव सिंधिया आदि प्रतिभा धनी नेताओं को पार्टी अध्यक्ष बनाने वालों की अगर कमी नहीं तो परिवारभक्तों की भी कमी नहीं। सोनिया गाँधी को अध्यक्ष बनाने के चक्कर तत्कालीन अध्यक्ष सीताराम केसरी को उठाकर बाहर फेंकना जो भारी पड़ा है उस चोट से कांग्रेस आज तक उभर नहीं पायी। 

कांग्रेस की हो रही दुर्गति के लिए परिवारभक्त गुलाम जिम्मेदार हैं। और इसकी सबसे बड़ी मिसाल अभी कुछ दिन पहले कर्नाटक में देखने को मिला। जब वहां चल रहे मुख्यमंत्री पर चल रहे विवाद पर अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़के का यह कहना कि फैसला हाई कमांड करेगा। अब इस गुलाम खड़के से पूछो कि पार्टी अध्यक्ष से बड़ा हाई कमांड कौन होता है? अगर हर फैसला हाई कमांड यानि गाँधी परिवार को ही करना है तो फिर क्यों अध्यक्ष बने घूमकर सबको पागल बना रहे हो। इसे कहते हैं गुलामी मानसिकता।  
तिरुवनंतरपुरम से सांसद और वरिष्ठ कांग्रेस नेता शशि थरूर अब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और पार्टी हाईकमान को खुलकर ‘सच का सामना’ कराने में लगे हैं। थरूर ने पहले पीएम मोदी और उनकी सरकार के कामों की मुक्तकंठ से प्रशंसा की। फिर ऑपरेशन सिंदूर की सफलता का गुणगान वैश्विक स्तर पर किया। और अब थरूर ने इंदिरा गांधी द्वारा लगाए आपातकाल की खुलकर निंदा की है और इसे भारत के इतिहास का सबसे काला अध्याय बताया है। इतना ही नहीं थरूर ने राहुल गांधी के चाचा संजय सिंह पर भी निशाना साधा है। मलयालम भाषा के अखबार ‘दीपिका’ में प्रकाशित अपने एक लेख में शशि थरूर ने कहा कि अनुशासन और व्यवस्था के लिए उठाए गए कदम जब आपातकाल जैसी क्रूरता में बदल जाते हैं, उन्हें किसी भी तरह उचित नहीं ठहराया जा सकता। उन्होंने अपने लेख में इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी द्वारा चलाए गए जबरन नसबंदी अभियान को ‘क्रूरता का सर्वोच्च उदाहरण’ बताया। उन्होंने लिखा, “गरीब ग्रामीण इलाकों में लक्ष्य पूरा करने के लिए हिंसा और दबाव का सहारा लिया गया, जो क्रूरता की पराकाष्ठा थी।

पहले भी द हिंदू के लेख और एक्स पर पोस्ट कर दिखाया आईना
सांसद और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने पिछले दिनों से ‘सत्य का मार्ग’ पकड़ लिया है, जो झूठ के आडंबर पर बैठे कांग्रेस के आला नेताओं को सुहा नहीं रहा है। दरअसल, कांग्रेस में वैसे ही काबिल लोगों की बहुत कमी है। एक-दो बचे हैं, उनकी काबिलियत की कद्र कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी को नहीं है। यही वजह है कि उनकी पटरी खरी-खरी और सही बात कहने वाले अपनी ही पार्टी के सांसद शशि थरूर के नहीं बैठ रही है। कांग्रेस सांसद ने पहले द हिंदू में लेख लिखकर कांग्रेस हाईकमान को आईना दिखाया था, लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की समझ में नहीं आया। खरगे ने तब थरूर पर तंज करते हुए कहा, “मैं अंग्रेजी पढ़ नहीं सकता, लेकिन थरूर की लैंग्वेज बहुत अच्छी है। हमारे लिए देश पहले है, लेकिन कुछ लोगों के लिए मोदी फर्स्ट हैं।” इसके जवाब में शशि थरूर शानदार तरीके से गेंद कांग्रेस के पाले में ही डाल दी है। खरगे के राजनीतिक बयान पर शशि थरूर की साहित्यिक प्रतिक्रिया दी। दार्शनिक भाव के साथ एक्स पर यह टिप्पणी राजनीतिक रूप से भी एकदम दुरुस्त है। इसमें खरगे ही नहीं, बल्कि कांग्रेस पार्टी और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के लिए भी साफ-साफ, मगर सख्त संदेश दे दिया था।

अब राहुल गांधी के साथ उनकी दादी और चाचा संजय को बनाया निशाना
कांग्रेस सांसद ने एक बार फिर मलयालम भाषा के अखबार ‘दीपिका’ में लेख लिखा है। इस बार निशाना मल्लिकार्जुन नहीं, बल्कि राहुल गांधी के साथ उनकी दादी और चाचा बने हैं। उन्होंने साफ-साफ आपातकाल की निंदा करते हुए कहा है कि आज का भारत 1975 का भारत नहीं है। थरूर ने आपातकाल की निंदा की है और इसे भारत के इतिहास का एक काला अध्याय बताया है। शशि थरूर ने कहा कि कैसे आजादी खत्‍म की जाती है, ये 1975 में सभी ने देखा। लेकिन आज का भारत 1975 का भारत नहीं है। कांग्रेस नेता शशि थरूर का यह लेख उनकी पार्टी के नेताओं को फिर असहज कर सकता है। यह पहली बार नहीं है, इससे पहले भी शशि थरूर, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नीतियों की तारीफ कर चुके हैं। ऑपरेशन सिंदूर के बाद अन्‍य देशों में भारत का पक्ष रखने के लिए जो सांसदों की टीम बनाई गई थी, उसमें कांग्रेस सांसद शशि थरूर भी शामिल थे। शशि थरूर ने विदेशी धरती पर मोदी सरकार का जमकर समर्थन किया था।

आपातकाल को भारत के इतिहास का सबसे काला अध्याय बताया
कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा है कि आपातकाल को भारत के इतिहास के एक काले अध्याय के रूप में ही याद नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि इसके सबक को पूरी तरह से समझा जाना चाहिए। मलयालम दैनिक दीपिका में आपातकाल पर प्रकाशित एक लेख में थरूर ने 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 के बीच प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा घोषित आपातकाल के काले दौर को याद किया और कहा कि अनुशासन और व्यवस्था के लिए किए गए प्रयास अक्सर क्रूरता के ऐसे कृत्यों में बदल जाते थे, जिन्हें किसी भी सूरत में उचित नहीं ठहराया जा सकता। उन्होंने चेतावनी दी कि सत्ता को केंद्रित करने, असहमति को दबाने और संविधान को दरकिनार करने का असंतोष आपातकाल के दौरान कई रूपों में फिर सामने आया था।

संजय गांधी का जबरन नसबंदी अभियान क्रूरता की पराकाष्ठा
तिरुवनंतपुरम के सांसद ने राहुल गांधी के चाचा संजय गांधी पर भी सीधा निशाना साधते हुए लिखा, “इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी ने जबरन नसबंदी अभियान चलाया, जो इसका एक कुख्यात उदाहरण बन गया। थरूर के अनुसार, यह अभियान मनमाना और क्रूर फैसला था, जिसने लोगों के जीवन पर गहरा नकारात्मक प्रभाव डाला। गरीब ग्रामीण इलाकों में, मनमाने लक्ष्यों को पूरा करने के लिए हिंसा और ज़बरदस्ती का इस्तेमाल किया गया. नई दिल्ली जैसे शहरों में, झुग्गियों को बेरहमी से ध्वस्त और साफ़ किया गया। हज़ारों लोग बेघर हो गए। उनके कल्याण पर ध्यान नहीं दिया गया।” शशि थरूर ने कहा कि लोकतंत्र को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। यह एक अनमोल विरासत है, जिसे निरंतर पोषित और संरक्षित किया जाना चाहिए। उन्‍होंने कहा, ‘इसे हर जगह के लोगों के लिए एक स्थायी प्रेरणा स्रोत के रूप में काम करने दें।”

आज का भारत आत्मविश्वासी, विकसित और अधिक मज़बूत
उन्‍होंने कहा कि आज का भारत 1975 का भारत नहीं है। आज हम अधिक आत्मविश्वासी, अधिक विकसित और कई मायनों में अधिक मज़बूत लोकतंत्र हैं। फिर भी आपातकाल के सबक चिंताजनक तरीकों से प्रासंगिक बने हुए हैं। थरूर ने चेतावनी दी कि सत्ता को केंद्रीकृत करने असहमति को दबाने और संवैधानिक सुरक्षा उपायों को दरकिनार करने का लालच कई रूपों में सामने आया था। उन्होंने कहा, “अक्सर ऐसी प्रवृत्तियों को राष्ट्रीय हित या स्थिरता के नाम पर उचित ठहराया जाता है। इस लिहाज से आपातकाल एक कड़ी चेतावनी है। लोकतंत्र के रक्षकों को हमेशा सतर्क रहना चाहिए।” थरूर ने कहा कि अक्सर ऐसे कार्यों को देशहित या स्थिरता के नाम पर उचित ठहराया जाता है। इस अर्थ में, इमरजेंसी एक चेतावनी के रूप में खड़ी है। उन्होंने निष्कर्ष में कहा कि लोकतंत्र के संरक्षकों को हमेशा सतर्क रहना होगा।

जिसको जो लिखना है लिखे, हम उसमें दिमाग नहीं लगाना चाहते-खरगे
अब कांग्रेस सासद शशि थरूर का क्या होगा? यह सवाल कांग्रेस में कई लोग पूछ रहे हैं। अभी तक कांग्रेस के कुछ प्रवक्ता थरूर पर सवाल उठा रहे थे। कोई उन्हें बीजेपी का प्रवक्ता तो कोई विदेश मंत्री बनाने की बात कह रहा था। तो कोई उन्हें अपने तथ्य ठीक करने की सलाह दे रहा था। मगर, बात अब कांग्रेस अध्यक्ष तक आ चुकी है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे से जब थरूर के बारे में बार-बार सवाल पूछा गया तो उन्हें थरूर पर अपनी चुप्पी तोड़नी पड़ी। जब खरगे से पूछा गया कि थरूर सरकार की तारीफ कर रहे हैं तो कांग्रेस अध्यक्ष का जवाब था, “हमने तो पहले ही कहा कि देश का मामला है, हम सेना और सरकार के साथ हैं।” जब खरगे से पूछा गया कि थरूर सरकार की तारीफ में लिख रहे हैं तो जबाब मिला कि जिसको जो लिखना आता है, वो लिखेगा। हम उसमें अपना दिमाग नहीं लगाना चाहते… हम क्यों डरेंगे, वो क्या कह रहे हैं..वो अपनी इच्छा के अनुसार बोल रहे हैं। मेरे लिए देश का हित सबसे ऊपर है और हम उसी के अनुसार काम कर रहे हैं।

पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और थरूर के तनावपूर्ण रिश्ते 
कांग्रेस के साथ मल्लिकार्जुन खरगे तनावपूर्ण रिश्ता वैसे ही बना हुआ है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के साथ ताजा तकरार भी वैसा ही नमूना है। नीलांबुर उपचुनाव को लेकर शशि थरूर और कांग्रेस की नोक-झोंक देखी जा चुकी है, केरल विधानसभा चुनाव तक तस्वीर और भी साफ हो जाएगी। मल्लिकार्जुन ने एक सवाल के जवाब में बोल दिया कि कुछ लोगों के लिए प्रधानमंत्री मोदी पहले हैं, और देश बाद में आता है। जैसे मल्लिकार्जुन ने अपनी टिप्पणी में थरूर का नाम नहीं लिया। वैसे ही शशि थरूर ने भी एक्स पर की अपनी प्रतिक्रिया में किसी का नाम नहीं लिया। लेकिन खरगे, कांग्रेस और राहुल गांधी को तगड़ा जवाब जरूर दे दिया।

An excellent and remarkably candid discussion with Konstantin Iosifovich Kosachev, Deputy Chairman of the Federation Council (the Upper House). Ranged from #OperationSindoor to regional geopolitics and relations between our Parliaments. A first-rate exchange of views pic.twitter.com/MVESSWERPB

ऑपरेशन सिंदूर पर थरूर की नाराजगी के बाद कोलंबिया ने बदले सुर
ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान के आतंक के चेहरे को बेनकाब करने के लिए शशि थरूर के नेतृत्व में जो डेलिगेशन कोलंबिया सहित की देशों में गया था। उसके काफी सकारात्मक परिणाम देखने को मिले। भारत की ओर से पाकिस्तान पर ऑपरेशन सिंदूर के जरिए किए गए हमलों के बाद से कोलंबिया ने पाकिस्तान के प्रति संवेदना जताई थी, लेकिन जब शशि थरूर डेलिगेशन ने इस मुद्दे पर अपनी नाराजगी जताई तो कोलंबिया को सुर बदलने पड़े। कोलंबिया की ओर से आधिकारिक तौर पर अपना बयान वापस ले लिया है। पहले इस मामले पर बात करते हुए कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा था कि हम कोलंबिया सरकार की प्रतिक्रिया से निराश हैं। वहीं, डेलीगेशन से मुलाकात के बाद कोलंबिया की उप विदेश मंत्री योलांडा विलाविसेनियो ने कहा कि हमें सही स्पष्टीकरण मिला है। कश्मीर में जो कुछ हुआ उसके बारे में अब हमारे पास जो जानकारी है, उसके बेस पर हम बातचीत जारी रखेंगे। साथ ही हम अपना पिछला बयान वापस लेते हैं। इस दौरान शशि थरूर ने आगे कहा कि हमें अभी भी महात्मा गांधी की जमीन पर गर्व है। कोलंबिया के बयान वापस लेने के बाद ये संदेश गया है कि ये भारत की यह बड़ी कूटनीतिक जीत है। विदेशी दोरों से वापस आए डेलीगेशन्स ने पीएम मोदी से भी मुलाकात की थी।

आतंकवाद पर रूसी सम्मेलन में पाकिस्तान को बुलाने पर कड़ी आपत्ति
कांग्रेस सांसद थरुरू विदेश दौरे के लिए बने सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल वाली मुहिम को अब भी रशिया में भी जारी रखे हुए हैं। मास्को में शशि थरूर की रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव से मुलाकात हुई है। विदेश मामलों पर संसद की स्थायी समिति के प्रमुख शशि थरूर ने रूसी संघ परिषद की अंतरराष्ट्रीय मामलों की समिति के फर्स्ट चेयर आंद्रेई डेनिसोव से भी मुलाकात की है, जो संयुक्त राष्ट्र में रूस के राजदूत रह चुके हैं। बताने वाली बात ये है कि थरूर वहां पाकिस्तान का ही पर्दाफाश कर रहे हैं। लेकिन, हिंदी या अंग्रेजी में नहीं बल्कि फ्रेंच भाषा में। थरूर ने रूसी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के अध्यक्ष लियोनिद स्लटस्की के साथ मॉस्को में हुई एक मीटिंग में पाकिस्तान को लेकर कही। रूस में अगले साल आतंकवाद पर एक सम्मेलन करने वाला है। जिसमें भारत और पाकिस्तान सहित कई देशों को बुलाया गया है। शशि थरूर ने ऐसे सम्मेलन में पाकिस्तान को शामिल किये जाने पर कड़ी आपत्ति जताई है। दरअसल, थरूर भले ही निजी दौरे पर रूस गये हैं, लेकिन विदेश दौरे के लिए बने सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल वाली मुहिम वो अब भी जारी रखे हैं। पाकिस्तान को आतंकवाद पर सम्मेलन में शामिल किये जाने पर उनकी आपत्ति तो यही बताती है।

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