जिस सुमैया शेख से ‘रिश्ता’ मोहम्मद जुबैर को नहीं कबूल, AltNews से उसके कितने गहरे संबंध: पोल खुलते ही गाली-गलौज पर उतर गया ‘फैक्टचेकर’

                                                        मोहम्मद जुबैर और सुमैया खान
दुनिया भर में ‘फैक्ट चेक’ का ठेका लेकर दूसरों को ज्ञान बाँटने वाला मोहम्मद जुबैर अब खुद अपने ही झूठ के जाल में फँस गया है। जिसने सालों तक हिंदू संगठनों, पत्रकारों और नेताओं को ‘फेक न्यूज फैलाने वाला’ बताया अब वही जुबैर अपनी ही पूर्व कर्मचारी को लेकर झूठ बोलता पकड़ा गया है। सोशल मीडिया पर लोग उसे आईना दिखा रहे हैं। स्क्रीनशॉट, पुराने ट्वीट और सबूतों के साथ उसका फैक्ट चेक कर रहे हैं।

क्या है सुमैया शेख से जुड़ा विवाद?

 इस विवाद की जड़ छिपी है लद्दाख हिंसा में, लद्दाख में 24 सितंबर 2025 को हिंसा हुई। इसका सूत्रधार बताया गया ‘एक्टिविस्ट’ सोनम वांगचुक को। इसके बाद पुलिस ने वांगचुक को गिरफ्तार कर लिया और विदेशी फंडिंग मामले में वांगचुक की NGO का FCRA लाइसेंस रद्द कर दिया गया।

विदेशी फंडिंग को लेकर बहस के बीच 27 सितंबर को जुबैर ने एक ट्वीट किया। इसमें पत्रकार आदित्य राज कौल के एक ट्वीट का स्क्रीनशॉट था जिसमें जुुबैर की विदेशी फंडिंग की जाँच करने की बात कही गई थी। इस स्क्रीनशॉट को शेयर करते हुए जुबैर ने लिखा, “विदेशी फंडिंग से याद आया, उन्हें अभी यह साबित करना है।”

जुबैर के इस ट्वीट पर ‘ऑनली फैक्ट इंडिया’ के फाउंडर और खोजी पत्रकार विजय पटेल ने जवाब दिया। विजय ने लिखा, “कट्टरपंथी जुबैर, मैं तुम्हारी विदेशी फंडिंग साबित कर दूँ। तुम्हारे दो पत्रकारों को अमेरिका स्थित ठाकुर परिवार फाउंडेशन से 50 लाख रुपए मिले थे। अब विक्टिम कार्ड खेलने के लिए तैयार हो जाओ!” इसके साथ विजय ने कुछ स्क्रीनशॉट भी शेयर किए थे जिसमें सुमैया शेख और सरफरोज सतनी (Sharfaroz Satani) का नाम था।

इसके बाद जुबैर ने अपना कुचक्र रचना शुरू किया। पोल खुलने से खफा जुबैर गाली-गलौज पर उतर आया। उसने विजय के पोस्ट पर जवाब देते हुए लिखा, “अबे सस्ते देसी भां**, थोड़ा और रिसर्च कर ले। ये लोग ऑल्ट न्यूज के कर्मचारी नहीं बल्कि कॉन्ट्रीब्यूटर थे।”

                                                                        विजय को जुबैर का जवाब

विजय ने इसके बाद ‘ऑल्ट न्यूज’ की वेबसाइट का स्क्रीनशॉट शेयर करते हुए लिखा, “ये तुम्हारी वेबसाइट का स्क्रीनशॉट है। जिसमें सुमैया को एडिटर के तौर पर दिखाया गया है, कॉन्ट्रीब्यूटर नहीं।” इस पर फिर जुबैर ने फिर लिखा कि वह ‘ऑल्ट न्यूज’ की कर्मचारी नहीं थी बल्कि कॉन्ट्रीब्यूटर थी।

‘ऑल्ट न्यूज’ की वेबसाइट पर सुमैया को लेकर क्या लिखा है?

‘ऑल्ट न्यूज’ की वेबसाइट पर मौजूद सुमैया शेख की वेबसाइट में उसे ‘ऑल्ट न्यूज साइंस’ की संस्थापक संपादक (Founding-Editor) बताया गया है। ‘ऑल्ट न्यूज’ की वेबसाइट पर लिखा है, “डॉ. शेख 2017 से 2021 तक ‘ऑल्ट न्यूज साइंस’ की संस्थापक संपादक रहीं। उनकी मुख्य भूमिका एक न्यूरोसाइंटिस्ट के रूप में हिंसक उग्रवाद और मनोरोग विज्ञान पर शोध करना है।”

                                         ‘ऑल्ट न्यूज’ की वेबसाइट पर मौजूद सुमैया की प्रोफाइल

जुबैर के इस दावे को लोगों ने झूठा बताकर उसका मजाक उड़ाना शुरू कर दिया। विवाद के बाद हमने सुमैया खान की X प्रोफाइल तलाशी तो उसमें कुछ पुराने पोस्ट मिले जिसमें उसने खुद को ‘ऑल्ट न्यूज साइंस’ का संपादक बताया था। यानी लोगों के दावे हवा-हवाई नहीं थे। मार्च 2019 के इस ट्वीट में सुमैया ने लिखा, “मैं भारत स्थित एक फैक्ट चेकिंग साइंस पोर्टल (ऑल्ट न्यूज साइंस) की संपादक हूँ।”

जाहिर है कि किसी संस्थान का ‘फाउंडिग एडिटर’ होना और उस संस्था का कर्मचारी ना होना और भी गंभीर सवाल खड़े करता है। ऐसा अगर था तो यह केवल मुखौटा था, इससे ज्यादा कुछ नहीं। अगर जुबैर का दावा सही भी है तो इसकी गंभीरता से जाँच किए जाने की जरूरत है। अब फिर सुमैया को मिली फंडिंग पर लौटते हैं।

सुमैया को मिली फंडिंग

असल में विवाद सुमैया को मिली फंडिंग को लेकर था। विजय ने जुबैर के एक ट्वीट का जवाब देते हुए लिखा, “तो क्या कॉन्ट्रीब्यूटर (योगदानकर्ताओं) को वेबसाइट पर सिर्फ 10 से 15 प्रोपेगेंडा लेख लिखने के लिए ₹50 लाख का विदेशी चंदा मिला? अगर वे वेबसाइट के लिए लेख लिखने के लिए विदेशी चंदा लेती भी हैं, तो यह भी गैरकानूनी है। यह कोई छोटी रकम नहीं है।”

जुबैर ने इस पर लिखा, “वो भारतीय नागरिक नहीं है। उसने ‘ऑल्ट न्यूज’ के लिए योगदान दिया है, कर्मचारी नहीं। उसे अपने शोध के लिए फाउंडेशन से अनुदान मिला है। ऑल्ट न्यूज़ को लिखने के लिए नहीं।” जुबैर ने खुद को कूल दिखाने के लिए अपने ट्वीट में जोकर की इमोजी भी चिपका दी।

जब ‘ठाकुर फाउंडेशन’ की वेबसाइट की जाँच करने पर सामने आया कि असल में जुबैर का दावा पूरी तरह झूठ था। वेबसाइट के इम्पैक्ट सेक्शन में संस्था द्वारा जनवरी 2020 में दिए गए धन का जिक्र था। ठाकुर फाउंडेशन ने लिखा है, “हमने न्यूरोसाइंटिस्ट और लेखिका डॉ. सुमैया शेख को साक्ष्य-आधारित चिकित्सा से संबंधित उनके तथ्य-जांच दावों का समर्थन करने के लिए पुरस्कार दिया।”

                                                             ठाकुर फाउंडेशन की वेबसाइट का स्क्रीनशॉट

इस वेबसाइट पर जनवरी 2020 के सेक्शन लिंक में सुमैया शेख के कम-से-कम 14 लेखों का जिक्र था और ये सभी ‘ऑल्ट न्यूज’ की वेबसाइट के लिए लिखे गए थे। यानी जो दावा जुबैर ने करने की कोशिश की थी वो धराशायी हो गया।

                         ठाकुर फाउंडेशन की वेबसाइट पर सुमैया के ‘ऑल्ट न्यूज’ के लिए लिखे गए लेख

फाउंडेशन की वेबसाइट पर सरफरोज सतनी को भी मार्च 2020 में फंड दिए जाने का जिक्र है। इसमें लिखा है, “हमने वैज्ञानिक और चिकित्सीय गलत सूचनाओं का मुकाबला करने में डॉ. सुमैया शेख के काम में सहायता के लिए शोधकर्ता डॉ. सरफरोज सतनी को एक अवॉर्ड दिया।” इसमें भी 11 लिंक्स का जिक्र किया गया है जिसमें से 10 लिंक्स ‘ऑल्ट न्यूज’ की वेबसाइट की थीं और एक लिंक गूगल शीट का था जो लॉक थी।

                   ठाकुर फाउंडेशन की वेबसाइट पर सरफरोज के ‘आल्ट न्यूज’ के लिए लिखे गए आर्टिकल

भारत विरोधी कार्यों में संलिप्त ठाकुर फाउंडेशन

जुबैर के लिए लेख लिखने वाले पत्रकारों को जिस ठाकुर फाउंडेशन से पैसा मिला है वो खुद भारत को निशाने बनाने को लेकर सवालों में है। इसका कर्ताधर्ता दिनेश ठाकुर है जो खुद को पब्लिक हेल्थ एक्टिविस्ट बताता है लेकिन उस पर कई गंभीर आरोप लगे हैं। The DisinfoLab ने दिनेश ठाकुर के काले कारनामों को लेकर एक लंबी चौड़ी रिपोर्ट बनाई है।

‘द प्रोपेगेंड पिल’ नाम से 2024 में प्रकाशित इस रिपोर्ट में कहा गया है, “ठाकुर एक ऐसे उद्यम का मुखौटा जो कई स्तरों पर निशाना साध रहा है। पहले स्तर पर, यह रैनबैक्सी जैसी व्यक्तिगत कंपनियों को निशाना बनाता है, जिनका अमेरिकी कंपनियों के साथ विवाद चल रहा है। इसी को आधार बनाकर, अगला स्तर भारतीय जेनेरिक दवाओं को निशाना बनाता है, जो आम तौर पर अमेरिकी बड़ी दवा कंपनियों के लिए एक खतरा हैं।”

इसमें ठाकुर को लेकर लिखा गया, “इस पूरे अभियान का अंतिम लक्ष्य भारत की वैश्विक छवि को नुकसान पहुँचाना है। ठाकुर ने ऐसे लोगों और संगठनों को फंड दिया है जो खुले तौर पर भारत-विरोधी एजेंडे पर काम करते हैं, जैसे सुचित्रा विजयन् जिनके प्रोजेक्ट Polis का सोशल मीडिया एक पाकिस्तानी व्यक्ति चलाता है।”

                                       ठाकुर फैमिली फाउंडेशन की फंडिंग (फोटो -The DisinfoLab)

ऑल्ट-न्यूज और ठाकुर फाउंडेशन का नेक्सस

DisinfoLab की रिपोर्ट में ऑल्ट न्यूज और ठाकुर फाउंडेशन के नेक्सस का भी खुलासा किया गया है। रिपोर्ट में लिखा गया है, “सरफरोज ने 2020 में कोविड-19 की पहली लहर के दौरान करीब 8 लेख लिखे थे। उसके लेखों का विषय मुख्य रूप से कोविड-19 से जुड़े घरेलू नुस्खों और अफवाहों की पड़ताल था। इस काम के लिए सरफरोज को साल 2020-21 के बीच कुल $5907 का भुगतान किया गया।”

रिपोर्ट में आगे कहा गया है, “सुमैया शेख को भी ठाकुर फैमिली फाउंडेशन ने काम पर रखा था। उन्होंने कुल 10 लेख लिखे, जिनमें से कुछ डॉ. सतानी के साथ मिलकर लिखे गए थे। इन लेखों के बदले सुमैया शेख को TFF से 2021 में $23,740 और 2022 में $35,260 का भुगतान किया गया।” रिपोर्ट यह भी दावा करती है कि 2020 के बाद से ठाकुर फैमिली ने व्यक्तियों/पत्रकारों/कार्यकर्ताओं को भारत में धन भेजने के लिए वित्तीय सेवा संस्थानों को काम पर रख लिया था।

                                       ठाकुर फाउंडेशन द्वारा भारतीय पत्रकारों को दिया गया धन

कोविड-19 के दौर में ‘फैक्ट चेक’ की जाँच की माँग

पैसे के बदले आर्टिकल लिखने के आरोपों के बाद अब लोग इसकी जाँच किए जाने की माँग कर रहे हैं। ‘द हॉक आई’ नामक एक यूजर ने लिखा, “क्या यह FCRA का उल्लंघन हो सकता है और हितों का टकराव भी हो सकता है? योगदानकर्ता या कर्मचारी, ऑल्ट न्यूज के दो पूर्व पत्रकारों को कोविड के दौरान कुछ तथ्य-जाँच लेखों के लिए बड़ी दवा कंपनी के पैरवीकार ठाकुर फाउंडेशन से ₹50 लाख का अनुदान मिला। इसकी जाँच होनी चाहिए।”

कथित फैक्ट चेकर जुबैर पर पहले भी फंडिंग को लेकर कई तरह के आरोप लगते रहे हैं। अब इन सवालों के बाद नया विवाद शुरू हो गया है। जुबैर बचने की कितनी भी कोशिश करे लेकिन सत्य कभी तो बाहर आ ही जाता है। अगर विदेशी फंडिंग को लेकर लोगों को संदेह है तो जरूरी है कि इनकी जाँच की जाए और स्थितियाँ स्पष्ट कर दी जाएँ।

No comments: