कांग्रेस का हिन्दू चेहरा अब सबके सामने आना शुरू हो चूका है फिर भी अगर हिन्दू कांग्रेस को उनसे बड़ा कोई धूर्त मिलना मुश्किल है। हकीकत यह है कि राहुल गाँधी और प्रियंका वाड्रा अपने दादा फिरोज खान की औलाद हिन्दू हितैषी कैसे हो सकती है।
गाँधी परिवार की गुलाम कांग्रेस को सनातन का विरोध करना इनकी मजबूरी है। मुस्लिम तुष्टिकरण में लिप्त कांग्रेस के राज में रोज़ों में इफ्तार पार्टियों की बहार होती थी जिसका अब लगभग अकाल पड़ने कांग्रेस को परेशान किये हुए है। हिन्दू धार्मिक स्थलों को विवादित बनाने वाली कांग्रेस ही है। कितने सालों तक अयोध्या में राममन्दिर को लटकाये रखा। दशहरे पर रामलीला मंचन स्थलों पर कांग्रेस को बुलाने वालों का बहिष्कार करना चाहिए।
कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने शनिवार (18 अक्टूबर 2025) को मैसूर यूनिवर्सिटी के एक कार्यक्रम में यही कहा। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि समाज के भले के लिए काम करने वालों के साथ रहो, न कि उन सनातनियों के साथ जो बदलाव का विरोध करते हैं।
ये सुनकर तो लगता है जैसे सनातन धर्म को ही दुश्मन बना दिया गया हो। लेकिन रुकिए, ये कोई अचानक की बात नहीं है। ये कांग्रेस पार्टी की पुरानी रणनीति का हिस्सा है – बसावा, बुद्ध और अंबेडकर जैसे महान व्यक्तियों के नामों की आड़ में सनातन हिंदू को निशाना बनाना।
हिंदू समाज को बाँटने की कोशिश में जुटी कांग्रेस
हम यहाँ बसावा, बुद्ध या अंबेडकर पर कोई हमला नहीं कर रहे और न ही उन पर उंगली उठा रहे हैं। ये तीनों ही समाज सुधार के बड़े प्रतीक हैं। बसावा ने जातिवाद के खिलाफ आवाज उठाई, बुद्ध ने करुणा और समानता का संदेश दिया और अंबेडकर ने संविधान देकर करोड़ों को अधिकार दिलाए। लेकिन आज की राजनीति में इन नामों का इस्तेमाल कुछ और हो गया है।
ये नाम अब हथियार बन गए हैं, जिनसे सनातन हिंदू को अलग-थलग करने की कोशिश हो रही है। मतलब साफ है – भारत बसावा, बुद्ध और अंबेडकर का देश बने, लेकिन सनातनियों का नहीं। ये स्पष्ट रूप से हिंदू धर्म को बाहर कर रहा है।
खरगे साहब और उनके बेटे प्रियांक खरगे भी यही लाइन ले रहे हैं। वे कहते हैं कि समाज को असमानता से मुक्त करने के लिए बसावा, बुद्ध और अंबेडकर के विचारों को अपनाओ। लेकिन इसमें सनातन का नाम क्यों नहीं? क्यों लगातार सनातन को ‘रूढ़िवादी’ या ‘बदलाव विरोधी’ बताकर बदनाम किया जा रहा है? ये राजनीति का नंगा चेहरा है – इन नामों के पीछे छिपकर हिंदू समाज को बाँटना।
कर्नाटक में कांग्रेस लगातार सनातन हिंदुओं को बना रही निशाना
सिद्धारमैया का ये बयान कोई पहली बार नहीं है। अक्टूबर 2025 में मैसूर में अंबेडकर स्टडी सेंटर के 25 साल पूरे होने पर उन्होंने आरएसएस और संघ परिवार पर जमकर निशाना साधा। कहा कि संघ ने हमेशा अंबेडकर का विरोध किया, संविधान को चुनौती दी। फिर सनातनियों का नाम लेकर चेतावनी दी – “सनातनियों की संगत मत रखो, ये समाज को पीछे खींचते हैं।” उन्होंने हाल ही में चीफ जस्टिस बीआर गवई पर जूता फेंकने वाली घटना का हवाला भी दिया। कहा कि ये सनातनी कट्टरता का नतीजा है और समाज को इससे सावधान रहना चाहिए।
ये तो खुलेआम नफरत फैलाने जैसा है। सनातन को कट्टरता से जोड़ना, जबकि सनातन तो सहिष्णुता और विविधता का धर्म है। गंगा-जमुनी तहजीब यहीं से निकली है। लेकिन कांग्रेस की नजर में सनातन ही समस्या है।
बसावा, बुद्ध और अंबेडकर का नाम लेकर सनातन को बाँटने की कोशिश
अब देखिए, ये सब कैसे बसावा, बुद्ध और अंबेडकर के नामों की छत्रछाया में हो रहा है। सिद्धारमैया ने उसी स्पीच में कहा कि वे बुद्ध, बसावा और अंबेडकर से प्रेरणा लेते हैं। “विज्ञान और तर्क पर चलो, अंधविश्वास मत फैलाओ।” ये सुनने में तो अच्छा लगता है, लेकिन असल में ये सनातन की जड़ों पर प्रहार है। क्योंकि सनातन में भी तर्क और विज्ञान की जगह है – वेदों से लेकर उपनिषदों तक। लेकिन राजनीति में इन नामों का मतलब बदल गया है।
आज ये नाम एंटी-हिंदूइज्म का कोडवर्ड बन चुके हैं। बसावा का नाम लेकर लिंगायत समुदाय को हिंदू से अलग करने की कोशिश हो रही है। कुछ हफ्ते पहले ही अखिल भारतीय वीरशैव-लिंगायत महासभा ने अपील की कि कर्नाटक के जाति सर्वे में खुद को ‘वीरशैव-लिंगायत’ धर्म के तौर पर दर्ज कराओ, न कि हिंदू। ये सर्वे कांग्रेस सरकार ही करवा रही है, राहुल गाँधी के निर्देश पर।
अगर ये हो गया, तो हिंदू आबादी कम दिखेगी, जो बीजेपी का कोर वोट बैंक है। लिंगायत कर्नाटक में 17% तक हैं, लेकिन पिछले सर्वे में 11% दिखे। अब महासभा कह रही है – धर्म कॉलम में वीरशैव-लिंगायत लिखो। ये बसावा की विरासत का सम्मान लगता है, लेकिन असल में हिंदू समाज को तोड़ने का हथकंडा है।
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