‘सनातनियों की संगत से बचो’: कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने उगला जहर, बुद्ध-बसावा-अंबेडकर का नाम लेकर हिंदुओं को तोड़ने में जुटी कांग्रेस; खरगे परिवार कर रहा सनातन पर हमलों की अगुवाई

कांग्रेस का हिन्दू चेहरा अब सबके सामने आना शुरू हो चूका है फिर भी अगर हिन्दू कांग्रेस को उनसे बड़ा कोई धूर्त मिलना मुश्किल है। हकीकत यह है कि राहुल गाँधी और प्रियंका वाड्रा अपने दादा फिरोज खान की औलाद हिन्दू हितैषी कैसे हो सकती है। 
गाँधी परिवार की गुलाम कांग्रेस को सनातन का विरोध करना इनकी मजबूरी है। मुस्लिम तुष्टिकरण में लिप्त कांग्रेस के राज में रोज़ों में इफ्तार पार्टियों की बहार होती थी जिसका अब लगभग अकाल पड़ने कांग्रेस को परेशान किये हुए है। हिन्दू धार्मिक स्थलों को विवादित बनाने वाली कांग्रेस ही है। कितने सालों तक अयोध्या में राममन्दिर को लटकाये रखा। दशहरे पर रामलीला मंचन स्थलों पर कांग्रेस को बुलाने वालों का बहिष्कार करना चाहिए। 
कर्नाटक की राजनीति में एक ऐसा तूफान उठा है, जो देखकर लगता है कि पुरानी घावों को फिर से कुरेदा जा रहा है। कल्पना कीजिए, एक मुख्यमंत्री मंच पर खड़े होकर कहता है- “सनातनियों की संगत से बचो, आरएसएस से दूर रहो।” ये बातें सुनकर दिल दहल जाता है न?

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने शनिवार (18 अक्टूबर 2025) को मैसूर यूनिवर्सिटी के एक कार्यक्रम में यही कहा। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि समाज के भले के लिए काम करने वालों के साथ रहो, न कि उन सनातनियों के साथ जो बदलाव का विरोध करते हैं।

ये सुनकर तो लगता है जैसे सनातन धर्म को ही दुश्मन बना दिया गया हो। लेकिन रुकिए, ये कोई अचानक की बात नहीं है। ये कांग्रेस पार्टी की पुरानी रणनीति का हिस्सा है – बसावा, बुद्ध और अंबेडकर जैसे महान व्यक्तियों के नामों की आड़ में सनातन हिंदू को निशाना बनाना।

हिंदू समाज को बाँटने की कोशिश में जुटी कांग्रेस 

हम यहाँ बसावा, बुद्ध या अंबेडकर पर कोई हमला नहीं कर रहे और न ही उन पर उंगली उठा रहे हैं। ये तीनों ही समाज सुधार के बड़े प्रतीक हैं। बसावा ने जातिवाद के खिलाफ आवाज उठाई, बुद्ध ने करुणा और समानता का संदेश दिया और अंबेडकर ने संविधान देकर करोड़ों को अधिकार दिलाए। लेकिन आज की राजनीति में इन नामों का इस्तेमाल कुछ और हो गया है।

ये नाम अब हथियार बन गए हैं, जिनसे सनातन हिंदू को अलग-थलग करने की कोशिश हो रही है। मतलब साफ है – भारत बसावा, बुद्ध और अंबेडकर का देश बने, लेकिन सनातनियों का नहीं। ये स्पष्ट रूप से हिंदू धर्म को बाहर कर रहा है।

खरगे साहब और उनके बेटे प्रियांक खरगे भी यही लाइन ले रहे हैं। वे कहते हैं कि समाज को असमानता से मुक्त करने के लिए बसावा, बुद्ध और अंबेडकर के विचारों को अपनाओ। लेकिन इसमें सनातन का नाम क्यों नहीं? क्यों लगातार सनातन को ‘रूढ़िवादी’ या ‘बदलाव विरोधी’ बताकर बदनाम किया जा रहा है? ये राजनीति का नंगा चेहरा है – इन नामों के पीछे छिपकर हिंदू समाज को बाँटना।

कर्नाटक में कांग्रेस लगातार सनातन हिंदुओं को बना रही निशाना

सिद्धारमैया का ये बयान कोई पहली बार नहीं है। अक्टूबर 2025 में मैसूर में अंबेडकर स्टडी सेंटर के 25 साल पूरे होने पर उन्होंने आरएसएस और संघ परिवार पर जमकर निशाना साधा। कहा कि संघ ने हमेशा अंबेडकर का विरोध किया, संविधान को चुनौती दी। फिर सनातनियों का नाम लेकर चेतावनी दी – “सनातनियों की संगत मत रखो, ये समाज को पीछे खींचते हैं।” उन्होंने हाल ही में चीफ जस्टिस बीआर गवई पर जूता फेंकने वाली घटना का हवाला भी दिया। कहा कि ये सनातनी कट्टरता का नतीजा है और समाज को इससे सावधान रहना चाहिए।

ये तो खुलेआम नफरत फैलाने जैसा है। सनातन को कट्टरता से जोड़ना, जबकि सनातन तो सहिष्णुता और विविधता का धर्म है। गंगा-जमुनी तहजीब यहीं से निकली है। लेकिन कांग्रेस की नजर में सनातन ही समस्या है।

बसावा, बुद्ध और अंबेडकर का नाम लेकर सनातन को बाँटने की कोशिश

अब देखिए, ये सब कैसे बसावा, बुद्ध और अंबेडकर के नामों की छत्रछाया में हो रहा है। सिद्धारमैया ने उसी स्पीच में कहा कि वे बुद्ध, बसावा और अंबेडकर से प्रेरणा लेते हैं। “विज्ञान और तर्क पर चलो, अंधविश्वास मत फैलाओ।” ये सुनने में तो अच्छा लगता है, लेकिन असल में ये सनातन की जड़ों पर प्रहार है। क्योंकि सनातन में भी तर्क और विज्ञान की जगह है – वेदों से लेकर उपनिषदों तक। लेकिन राजनीति में इन नामों का मतलब बदल गया है।

आज ये नाम एंटी-हिंदूइज्म का कोडवर्ड बन चुके हैं। बसावा का नाम लेकर लिंगायत समुदाय को हिंदू से अलग करने की कोशिश हो रही है। कुछ हफ्ते पहले ही अखिल भारतीय वीरशैव-लिंगायत महासभा ने अपील की कि कर्नाटक के जाति सर्वे में खुद को ‘वीरशैव-लिंगायत’ धर्म के तौर पर दर्ज कराओ, न कि हिंदू। ये सर्वे कांग्रेस सरकार ही करवा रही है, राहुल गाँधी के निर्देश पर।

अगर ये हो गया, तो हिंदू आबादी कम दिखेगी, जो बीजेपी का कोर वोट बैंक है। लिंगायत कर्नाटक में 17% तक हैं, लेकिन पिछले सर्वे में 11% दिखे। अब महासभा कह रही है – धर्म कॉलम में वीरशैव-लिंगायत लिखो। ये बसावा की विरासत का सम्मान लगता है, लेकिन असल में हिंदू समाज को तोड़ने का हथकंडा है।

वोटबैंक की राजनीति कर रही समाज को बर्बाद

कांग्रेस ये क्यों कर रही है? सरल जवाब – वोट बैंक। वे जानते हैं कि सनातन हिंदू को एकजुट करके निशाना बनाना मुश्किल है। इसलिए बाँटो और राज करो। बुद्ध और अंबेडकर का नाम तो पहले से ही दलित और पिछड़े वोटों को लुभाने के लिए इस्तेमाल होता रहा है। बुद्ध को विष्णु का अवतार मानने वाले हिंदू समाज को ही ‘रूढ़िवादी’ बता दो, तो बौद्ध विचारों को अलग कर लो। अंबेडकर को संविधान का पिता बताकर आरएसएस को दुश्मन ठहराओ।
और बसावा? ये नया एंगल है कर्नाटक में। लिंगायतों को अलग धर्म मान्यता दिलाकर हिंदू वोट बाँट दो। सिद्धारमैया खुद कहते हैं – “अंबेडकर जैसा दूसरा कभी नहीं होगा, लेकिन सबको उनके रास्ते पर चलना चाहिए।” लेकिन उसी स्पीच में सनातनियों को कोसना? ये दोहरा चरित्र है।

खरगे परिवार कर रहा सनातन पर हमलों की अगुवाई

अब खरगे परिवार की बात। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे भी यही लाइन चलाते हैं। वे कहते हैं – “बुद्ध, बसावा और अंबेडकर समानता के वैश्विक आइकॉन हैं।” मई 2025 में उन्होंने कहा कि अंबेडकर सिर्फ दलितों के नहीं, सबके नेता हैं। लेकिन इसमें सनातन का जिक्र क्यों शून्य? वे देश को इन तीनों का देश बनाना चाहते हैं, लेकिन सनातन को बाहर रखकर।
कर्नाटक के मंत्री और मल्लिकार्जुन के बेटे प्रियांक खरगे ने तो हद पार कर दी। 12 अक्टूबर 2025 को उन्होंने सिद्धारमैया को चिट्ठी लिखी – “सरकारी स्कूलों, कॉलेजों, पार्कों और मंदिरों में आरएसएस की शाखाओं पर बैन लगा दो।” कहा कि आरएसएस नफरत फैलाती है, बच्चों में गलत विचार डालती है। ये चिट्ठी सीएमओ ने ही पब्लिक की।
प्रियांक ने कहा – “संविधान हमें एकता और समानता के लिए विभाजनकारी ताकतों को रोकने का अधिकार देता है।” लेकिन ये कौन-सी एकता? सनातन को ‘विभाजनकारी’ बताकर? कांग्रेस ने पहले भी आरएसएस पर तीन बार बैन लगाया – गाँधी हत्या के बाद, इमरजेंसी में और बाबरी विध्वंस के बाद। लेकिन अब फिर वही पुरानी किताब?
कर्नाटक में ये राजनीति क्यों तेज हो रही है? क्योंकि 2028 के चुनाव नजदीक हैं। कांग्रेस को लगता है कि हिंदू वोट बाँटकर वे सत्ता टिका लेंगे। लिंगायत सर्वे से हिंदू संख्या घटेगी, दलित-मुस्लिम गठजोड़ मजबूत होगा। लेकिन ये समाज को कितना नुकसान पहुँचाएगा? हिंदू समाज सदियों से एकजुट रहा है – रामायण से लेकर महाभारत तक। सनातन ने बुद्ध को अपनाया, अंबेडकर को सम्मान दिया। लेकिन अब इन नामों की राजनीति से समाज टूट रहा है। युवा कन्फ्यूज हो रहे हैं – क्या सनातन बुरा है? क्या आरएसएस दुश्मन है?
देखिए, सिद्धारमैया ने उसी कार्यक्रम में शिक्षा को बराबरी का हथियार बताया। कहा – “शिक्षा किसी का पैतृक संपत्ति नहीं, अवसर दो तो कोई भी विद्वान बन सकता है।” ये सही है। लेकिन फिर सनातन को ‘अंधविश्वास’ क्यों कहें? सनातन में भी ज्ञान की परंपरा है – आर्यभट्ट से लेकर चंद्रगुप्त तक। ये दोहरा मापदंड क्यों?
साफ है कि ये सब कुछ सियासत का काला खेल है। कांग्रेस दिवाली के त्योहार के आसपास बसावा, बुद्ध, अंबेडकर के नाम से सनातन को निशाना बना रही है। लेकिन हिंदू समाज जागेगा। हमें इन नामों का सम्मान करना है, और राजनीति के जाल में नहीं फँसना। सनातन सहिष्णुता सिखाता है – सबको अपनाओ, किसी को न ठुकराओ। कर्नाटक से ये संदेश पूरे देश को जाना चाहिए। वरना ये बँटवारा और गहरा हो जाएगा। ऐसे में जरूरत है कि हम सभी सनातनी एकजुट रहें, इन विभाजनकारी शक्तियों को अपने मकसद में सफल न होने दें

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