बिहार चुनाव : ‘अशांत’ हुआ प्रशांत का दल: गुंडे की तरह पीसकर छोड़ देंगे, धांधली हो रही है…. ‘प्रत्याशी सुझाव पत्र’ में घपले से भड़के टिकट दावेदारों के समर्थक, जन सुराज में अराजकता भारी

                                            जन सुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर (साभार: आज तक)
बिहार में चुनावी बिगुल बज चुका है, दोनों प्रमुख गठबंधन अपनी-अपनी तैयारी में जुटे हैं और पूर्व चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर अपनी नए नवेले दल ‘जन सुराज’ के सहारे तीसरा मोर्चा बनाने की कोशिश कर रहे हैं। इस चुनाव में खुद को दोनों प्रमुख गठबंधनों से अलग दिखाने के नाम पर प्रशांत किशोर ने आक्रामकता का सहारा लिया है।

प्रशांत गुस्से में हर किसी को चुनौती दे रहे हैं। चुनाव लड़ने और चुनावी तैयारियों को लेकर भी आक्रामक हैं। उन्होंने तो यहाँ तक एलान कर दिया था कि वो बिहार में सबसे पहले अपने उम्मीदवारों का एलान कर देंगे। चुनावों की तारीखों का एलान हो गया है लेकिन अब तक प्रशांत के उम्मीदवारों का कहीं अता-पता नहीं है। अलबत्ता उम्मीदवारी को लेकर जन सुराज के नेता-कार्यकर्ता अभी से आपस में भिड़ने लगे हैं।

जन सुराज: लोकतंत्र नहीं भीड़तंत्र

जन सुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर ने जब राजनीतिक दल बनाने का एलान किया था तो उन्होंने दल के भीतर सबसे अधिक लोकतंत्र बनाने जैसे दावे किए थे। इसके अलावा अलग-अलग मंचों पर भी वह ऐसे दावे करते रहे हैं। यहाँ तक कि उम्मीदवारों के चयन में पूरी पारदर्शिता बरतने का भी उन्होंने दावा किया था।

प्रशांत किशोर ने अपने दल को लोकतांत्रिक दिखाने के लिए तय किया कि वह उम्मीदवारों का चयन भी लोगों की मर्जी से ही करेंगे। तय हुआ कि वह इसके लिए लोगों की राय लेंगे। इसके लिए उनके दल द्वारा ‘प्रत्याशी सुझाव प्रपत्र’ छपवाए गए हैं, इन पर उस विधानसभा क्षेत्र के कई संभावित उम्मीदवारों के नाम होते हैं। लोगों को इसमें से अपनी राय रखते हुए अपने द्वारा समर्थित जन सुराज के उम्मीदवार के नाम पर मुहर लगानी होती है।

यूँ तो इन पर्चे से जन सुराज अपनी पार्टी का लोकतंत्र दिखाना चाहती थी लेकिन इन्हीं की वजह से पार्टी के भीतर मौजूद भीड़ तंत्र का चेहरा सामने आ गया। बिहार में कई जगहों पर इन पर्चों को लेकर संभावित प्रत्याशियों के समर्थक ही आपस में भिड़ गए। कहीं, एक ही संभावित प्रत्याशी के समर्थकों को ज्यादा पर्चे दिए जाने की बात पर हंगामा हुआ तो कहीं अपने लोग बंद कमरे में अपने चहेते प्रत्याशी के नाम पर दनादन पर्चे भरते दिखे।

मुजफ्फरपुर के औराई विधानसभा का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ है जिसमें एक कमरे में बैठे 3-4 लोग अपने पसंदीदा प्रत्याशी के नाम के दर्जनों-सैकड़ों फॉर्म भरते नजर आ रहे हैं। इस वीडियो में फॉर्म भर रहे ये लोग खुद इस बात को मान भी रहे हैं कि किसके समर्थन में वो पर्चे भर रहे हैं। यह वीडियो सामने आने के बाद दावा किया जा रहा है कि प्रशांत किशोर की पार्टी के ये प्रपत्र लोगों तक पहुँच ही नहीं रहे हैं। संभावित प्रत्याशी खुद ही अपने नाम पर मुहर लगवा रहे हैं।

इसमें जब वीडियो बना रहे लोगों ने मुहर लगा रहे लोगों से पूछा कि आप खुद ही क्यों छाप रहे हैं तो इस पर उन्होंने कहा कि जनता को पता ही नहीं है इसलिए हम खुद ही यह कर रहे हैं। ये लोग करीब 300 पर्चों पर मुहर लगा रहे थे।

यह कोई अकेली-इकलौती घटना नहीं है, ऐसा कई जगहों पर हुआ है और यह आम होता जा रहा है। दरभंगा में भी ऐसा ही मामला देखने को मिला। वहाँ भी प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया के दौरान जमकर बवाल हुआ है। बैलेट पर हस्ताक्षर को लेकर शुरू हुआ विवाद मारपीट में बदल गया और कार्यकर्ता एक-दूसरे पर कुर्सियाँ फेंकने लगे। इस घटना में कई लोग घायल भी हो गए हैं।

बेनीपुर में हंगामा कर रहे लोगों ने यह दावा किया कि उनको पर्चे नहीं दिए गए हैं। लोगों ने धांधली का आरोप भी लगाया है। एक शख्स ने दावा किया कि एक व्यक्ति के समर्थकों को बंडल के बंडल दिए गए हैं। खूब गाली गलौज तक की गई है। एक अन्य शख्स के दावा कि कुछ-कुछ लोगों को 6-6 पर्चे दिए जा रहे हैं जबकि कुछ लोगों को एक भी नहीं मिल रहा है।

बिस्फी में भी जन सुराज के कार्यकर्ता सम्मेलन में वोटिंग को लेकर जमकर हंगामा हुआ है। बिस्फी में नागेंद्र यादव, मोहम्मद कलीन और वशिष्ठ नारायण को पार्टी की तरफ से संभावित प्रत्याशी बनाया गया है। तीनों के नाम के पर्चे जनता को दिए गए लेकिन वे आपस में ही भिड़ गए। संभावित प्रत्याशियों ने एक-दूसरे पर गुंडे तक बुलाने का आरोप लगा दिया है। दावा किया गया है कि यहाँ वशिष्ठ नारायण को पहले ही इस वोटिंग को लेकर बता दिया गया था लेकिन अन्य संभावित प्रत्याशियों को इसकी जानकारी नहीं दी गई थी।

वशिष्ठ नारायण झा का कहना है कि वो वोटिंग के समर्थन में थे और वो ताल ठोककर तैयार हैं। उन्होंने कहा कि अगर कोई गुंडागर्दी करेगा तो उसे गुंडे की तरह पीसकर छोड़ दिया जाएगा। अन्य संभावित उम्मीदवारों ने नाराजगी जताई है।

अब यह आपसी फूट ही जन सुराज की हकीकत बन गया है। यानी बड़े-बड़े दावे करने वाले प्रशांत किशोर अपनी पार्टी के भीतर ही लोकतंत्र नहीं बना पा रहे हैं।

क्यों टिकट बँटवारे में हुई देरी

प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी ने बिहार में अपनी बड़ी उपस्थिति और ‘नई राजनीति’ का दावा तो बहुत पहले कर दिया था लेकिन जब बात टिकट बाँटने की बारी आई तो पार्टी के अंदर ही कई परतें खुलने लगीं।

हालाँकि, प्रशांत किशोर ने महीनों पहले ऐलान किया था कि जन सुराज अपने दम पर चुनाव लड़ेगी, सबसे पहले टिकटों की घोषणा होगी मगर अब तक टिकटों की घोषणा नहीं हो पाई है। इसके पीछे कई वजहें हैं।

इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि जन सुराज को खुद भी एहसास है कि फिलहाल उसका जनाधार वोट कटवा से ज्यादा नहीं है। पार्टी के भीतर भी कई कार्यकर्ता इस बात को समझते हैं कि अगर टिकट बाँटे गए और चुनाव लड़ा गया, तो अधिकतर सीटों पर मुकाबला तीसरे या चौथे स्थान से आगे नहीं बढ़ पाएगा।

ऐसे में प्रशांत किशोर अन्य दलों के टिकट बाँटे जाने का इंतजार कर रहे हैं। ताकि किसी बड़े दल से असंतुष्ट और जनाधार वाले नेता या गुट उनके साथ जुड़ सके। उनका मत है कि जन सुराज के संगठन को चलाने वाले स्थानीय लोग। जन सुराज का पूरा संगठन उन्हीं लोगों के हाथ में है जो शुरू से इस अभियान से जुड़े रहे हैं। इन कार्यकर्ताओं ने गाँव-गाँव में सर्वे किए, बैठकें कीं और पार्टी की नींव डाली। यही लोग जमीन पर पैसा भी खर्च करते हैं।

अब जब टिकट वितरण की घड़ी आई है, तो वही पुराने कार्यकर्ता खुद दावेदार बन बैठे हैं। ऐसे में अगर किसी को टिकट नहीं मिला या पक्षपात दिखा, तो बगावत तय है। ऐसे में प्रशांत किशोर इस बगावत से अपनी पार्टी को बचाने के लिए सही वक्त का इंतजार कर रहे हैं। खुद को अलग दिखाने का दावा करने वाले प्रशांत के सामने अभी पूरी तैयार भी ना हो सके संगठन को संभालने की जिम्मेदारी है।

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