पूर्वांचल के कई जिलों में धर्मांतरण का एक नया ट्रेंड सामने आया है। अब ईसाई मिशनरियाँ धर्म परिवर्तन कराने वालों से नाम या सरनेम बदलने को नहीं कह रही हैं। लोग अपनी पहचान, जाति और सरकारी दस्तावेज वही रखते हैं लेकिन धर्म बदल चुके होते हैं। ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि सरकारी योजनाओं, आरक्षण और अन्य सुविधाओं का लाभ पहले की तरह मिलता रहे और किसी को शक भी न हो।
इसमें कोई हैरानी की बात नहीं, इसका प्रयोग पहले दिल्ली में हो चुका है, लेकिन दुर्भाग्य से 2014 में सत्ता परिवर्तन होते ही सबके सब अपने आप हिन्दू धर्म में उसी तरह वापस आ गए जिस तरह चुपचाप ईसाई बने थे। इतना ही नहीं हर रविवार रोहिणी के एक होटल में इस तरह का काम होता था, जब वहां के हिन्दू नेताओं ने पुलिस में इसकी शिकायत की, उल्टे उन्हीं नेताओं पर पुलिस ने केस बनाने शुरू कर दिए। लेकिन नेता होने के कारण पुलिस को केस वापस लेने पड़े। यहाँ भी 2014 में सत्ता परिवर्तन होते ही ईसाई धर्मांतरण का खेल बंद हो गया।
जिस तरह देशव्यापी ईसाई मिशनरीज सक्रीय है तो हमारा गुप्तचर विभाग और हिन्दू स्वयंसेवी संस्थाएं क्यों खामोश है? मदर टेरेसा के रहते जो धर्मांतरण का खेल शुरू हुआ आज तक चल रहा है। दूसरे, जब मोदी सरकार गरीबों को मुफ्त राशन और मकान बनाकर दे रही है फिर क्यों ये लोग लालच में आकर धर्मांतरण कर रहे हैं। सरकार को ऐसे लोगों को चिन्हित कर ब्लैकलिस्टेड करना चाहिए, ताकि धन के लालच में दूसरे मजहब में जाने की सजा का अहसास हो। सरकार को इनके समर्थन में खड़े होने वाले नेता, पार्टियों, अदालतों और मानवाधिकारियों आदि के साथ भी सख्ती से पेश आना होगा। यही समय की मांग भी है। जातियों के नाम पर बनने वाली पार्टियां किसी पनवाडी की दुकान से कम नहीं।
धर्मांतरण का नया तरीका
जाँच में खुलासा हुआ है कि मिशनरियाँ अब सीधे तौर पर प्रचार नहीं कर रहीं, बल्कि स्थानीय लोगों के बीच रहकर गुप्त तरीके से धर्मांतरण करवा रही हैं। इसके लिए उन्होंने आशा कार्यकर्ताओं, स्थानीय महिलाओं और कुछ बिचौलियों को जोड़ रखा है।
अमर उजाला की रिपोर्ट के अनुसार, जौनपुर की एक आशा कार्यकर्ता ने खुद मजहब बदला है और अब दूसरों को भी जोड़ने का काम कर रही है। वह कहती है, “पहचान वही है, बस एक लॉकेट पहन लिया है जो कपड़ों के अंदर रहता है। नाम बदलने की कोई जरूरत नहीं, बस प्रभु का नाम दिल में रखो।”
आशा कार्यकर्ता ने कहा कि जौनपुर में सख्ती के कारण सब लोग वाराणसी जाते हैं। पिछली बार 10-11 लोग टेंपो से बनारस के भुल्लनपुर क्षेत्र में गए थे। वहाँ 250 से 300 लोग जुटे थे। इस रविवार को फिर जाना है।
इतना ही नहीं अब ‘चंगाई सभा’ (प्रार्थना सभा) का तरीका भी बदल गया है। पुलिस की सख्ती के बाद अब ये सभाएँ ऑनलाइन या मोबाइल के जरिए होती हैं। हर रविवार और शुक्रवार को मुंबई से वीडियो के माध्यम से नए-नए लोगों को जोड़ा जाता है।
पैसे और सहानुभूति से धर्मांतरण
जाँच में पता चला है कि गरीब, दलित और पिछड़े वर्गों को निशाना बनाया जा रहा है। मिशनरियाँ सीधे परिवारों को नहीं, बल्कि उनके बच्चों के जरिए प्रवेश करती हैं। शिक्षा, शादी या इलाज के नाम पर आर्थिक मदद देकर सहानुभूति हासिल की जाती है।
एक व्यक्ति का धर्म परिवर्तन करवाने पर 25 से 50 हजार रुपए तक का कमीशन तय होता है। धीरे-धीरे परिवार चर्च की सभाओं में शामिल होने लगता है और अंततः धर्मांतरण कर लेता है।
जौनपुर के वीरेंद्र विश्वकर्मा ने बताया कि उनसे इलाज और शादी के बहाने धर्म परिवर्तन करवाया गया था। वह अब अपने मूल धर्म में लौट चुके हैं। उनका कहना है कि हर गुरुवार को सुबह और शाम सभाएँ होती हैं, जहाँ लोगों को ‘यीशु के नाम का पानी’ पिलाया जाता है और नाम रजिस्टर में दर्ज किए जाते हैं।
पुलिस की सख्ती और मिशनरियों की नई रणनीति
जौनपुर पुलिस ने इस साल धर्मांतरण के चार केस दर्ज किए और कई लोगों को गिरफ्तार किया। एसपी डॉ कौस्तुभ का कहना है, “जहाँ भी लोभ-लालच देकर धर्मांतरण के मामले सामने आते हैं, वहाँ छापेमारी कर सख्त कार्रवाई की जाती है।”
हालाँकि पुलिस की सख्ती के बावजूद मिशनरियों ने अब और चालाकी अपनाई है। अब वे सरनेम नहीं बदलवातीं, ताकि सरकारी रिकॉर्ड में व्यक्ति हिंदू ही दिखाई दे और आरक्षण व सरकारी लाभ जारी रहे।
छत्तीसगढ़ में भी खुलासा
ऐसा ही पैटर्न छत्तीसगढ़ के कोरबा और जांजगीर जिलों में भी सामने आया था। वहाँ महिला प्रचारक (लेडी मिशनरी) अपनी असली पहचान छिपाकर चंगाई सभा के नाम पर महिलाओं और बच्चियों को धर्म परिवर्तन के लिए प्रेरित कर रही थीं।
वो पहले दोस्ती करतीं, फिर बीमारियों और परेशानियों से जूझ रही महिलाओं को प्रार्थना के जरिए मुक्ति का रास्ता बतातीं। जब महिलाएँ चर्च जाने लगतीं, तो वहाँ आवेदन भरवाकर हर रविवार ‘प्रभु की प्रार्थना’ का वादा लिया जाता। 90% महिलाएँ धीरे-धीरे ईसाई महजब अपनातीं, जबकि 10% तब लौट आतीं जब कोई लाभ नहीं दिखता।
पूर्वांचल से लेकर छत्तीसगढ़ तक, धर्मांतरण का तरीका अब बदल चुका है। अब न नाम बदले जा रहे हैं, न कपड़े या रूप-रंग बस आस्था बदली जा रही है। सरकारी दस्तावेजों में लोग हिंदू दिखते हैं, मगर दिल से किसी और मजहब के अनुयाई बन चुके होते हैं
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