योगी आदित्यनाथ को ‘नकली बाबा’ कहने वाले तेजस्वी यादव माँ का दूध पिया है तो किसी मुस्लिम नेता को ‘नकली मौलवी’ कहकर दिखाओ

मुस्लिम वोट की खातिर आखिर विपक्ष कितना नीचे गिरेगा? नीचता की भी एक सीमा होती है। तेजस्वी अपने पिता लालू यादव से पूछो कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी जब 7 नवंबर 1966 को पार्लियामेंट स्ट्रीट पर गोपाष्टमी के दिन गो-हत्या का विरोध कर रहे निहत्ते साधु-संतों के खून की होली खेल रही थी तब श्रद्धेय कृपालु जी महाराज ने हुंकार भरते हुए कहा था "इंदिरा जिस तरह निहत्ते साधु-संतों के खून की होली खेल रही है तेरी भी मौत गोपाष्टमी को होगी और तेरी पार्टी को समाप्त करने हिमालय से आधुनिक ड्रैस में एक तपस्वी आएगा।" 31 अक्टूबर 1984 को गोपाष्टमी ही थी। साधु का श्राप आज सच हो रहा है। दूसरे, जब राहुल गाँधी को पार्टी अध्यक्ष बनाने की चर्चा चल ही रही थी तब योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि "जितनी जल्दी हो राहुल बाबा को अध्यक्ष बनाइए" अंजाम सबके सामने है। जिस कांग्रेस की किसी समय तूती बोलती थी आज वही कांग्रेस अपने अस्तित्व के लिए क्षेत्रीय पार्टियों के आगे झुक रही है। साधु का पद विरासत में नहीं मिलता। साधना करनी पड़ती है, तपस्या करनी पड़ती है। योगी आदित्यनाथ को 'नकली बाबा' तो बक दिया लेकिन क्या किसी मुस्लिम को ‘नकली मौलवी’ कहने की हिम्मत है? चुनाव छोड़ बिल से बाहर नहीं निकल पाओगे।

  

बिहार में विधानसभा चुनाव के लिए सरगर्मी तेज है और नेता अलग-अलग मंचों-टीवी चैनलों पर जाकर अपनी बातें रख रहे हैं। एक इंटरव्यू के दौरान बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और RJD प्रमुख लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव ने ‘रैपिड फायर राउंड’ में योगी आदित्यनाथ को लेकर सवाल पूछे जाने पर उन्हें ‘नकली बाबा' बता दिया।

योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री तो है हीं, साथ ही वो हिंदुओं की पवित्र गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर भी हैं। तेजस्वी यादव को अगर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पर कोई राजनीतिक हमला करना था तो वो उनके काम को लेकर सवाल उठा सकते थे लेकिन उन्होंने योगी आदित्यनाथ पर हमले के लिए उनकी धार्मिक पहचान को चुना।

असल में तेजस्वी यादव ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को ‘नकली बाबा’ कहकर न सिर्फ एक व्यक्ति पर हमला किया है बल्कि पूरे हिंदू समाज की धार्मिक पहचान पर प्रहार करने की कोशिश की है। यह बयान केवल एक राजनीतिक टिप्पणी नहीं है, यह उस मानसिकता की झलक है जो दशकों से हिंदू प्रतीकों, संतों और सनातन परंपराओं का मजाक उड़ाने में आनंद महसूस करती आई है।

योगी आदित्यनाथ एक हजार साल पुरानी नाथ परंपरा के उत्तराधिकारी है। उनकी साधु या बाबा की पहचान कोई राजनीतिक मुखौटा नहीं बल्कि एक आध्यात्मिक जीवन का प्रतीक है। लेकिन तेजस्वी यादव जैसे नेताओं के लिए हिंदू साधु का सम्मान कोई मायने नहीं रखता क्योंकि उनकी राजनीति का ईंधन ही हिंदू विरोध है।

अब सवाल उठता है कि क्या तेजस्वी यादव किसी मुसलमान नेता को ‘नकली मौलाना’ कह सकते हैं? क्या वे किसी मौलवी या इमाम के वस्त्र पर व्यंग्य कर सकते हैं? क्या वे किसी मुस्लिम नेता से कह सकते हैं कि उसकी टोपी, दाढ़ी या नमाज दिखावा है? इसका जवाब आपको, हमें सभी को पता है कि वह ऐसा नहीं करेंगे। अगर उन्होंने ऐसा करने की हिम्मत भी दिखाई तो पूरा सेक्युलर कुनबा और मीडिया की तथाकथित प्रगतिशील जमात उन पर टूट पड़ेगी।

हिंदुओं के मामले में भावनाओं के आहत होने से जुड़ा कोई नियम लागू नहीं होता है। केवल तेजस्वी ही नहीं, उनकी जमात के दूसरे नेता भी हिंदुओं को निशाने पर रखते हैं। तेजस्वी और उन जैसे नेताओं को ये अच्छी तरह से पता है कि हिंदू अपने विवेक में विश्वास रखता और इसलिए बार-बार उसे अपमानित किया जा सकता है। वो जानते हैं कि हिंदू ऐसा कहने पर कभी सड़क पर नहीं उतरेगा, हिंसा नहीं करेगा। हिंदुओं की इसी सहिष्णुता को ये नेता अपनी ढाल बनाते हैं।

योगी आदित्यनाथ की धार्मिक पहचान पर हमला कोई नई बात नहीं है। तेजस्वी और उनकी पूरी कथित सेक्युलर ब्रिगेड के लोग योगी आदित्यनाथ को अजय सिंह बिष्ट कहकर बुलाते रहे हैं। संत बनने के बाद कोई शख्स अपनी पुरानी पहचान, अपना परिवार छोड़ देता है लेकिन राजनीतिक मर्यादा तो छोड़िए ये ब्रिगेड धार्मिक परंपराओं का सम्मान तक नहीं करती है।

इन्हीं तेजस्वी यादव को चुनाव में मुस्लिम वोट बैंक को साधना है तो ये उनके पक्ष में वक्फ बिल तक को कूड़ेदान में फेंकने की बात कर रहे हैं। ये उस वोट बैंक के लिए टोपी भी लगाते हैं लेकिन हिंदुओं का सम्मान उनके लिए कोई मायने नहीं रखता है।

तेजस्वी यादव जैसे नेता शायद भूल जाते हैं कि योगी आदित्यनाथ जैसे संत न केवल राजनीतिक पद पर हैं बल्कि लाखों लोगों के लिए आस्था और प्रेरणा के प्रतीक हैं। योगी आदित्यनाथ ने जिस अनुशासन और तपस्या से खुद को इस परंपरा का उत्तराधिकारी बनाया है क्या वो कोई ‘नकली बाबा’ कर सकता है। मगर तेजस्वी यादव के लिए ये बातें मायने नहीं रखतीं क्योंकि उनके लिए सत्ता और वोट बैंक ही सर्वोपरि हैं। उन्हें इस देश की सनातन आत्मा से कोई लेना-देना नहीं है।

यह भी सच है कि ऐसे बयान हिंदू समाज को भावनात्मक रूप से चोट पहुँचाते हैं। दुर्भाग्य है कि हमारे यहाँ हिंदू अस्मिता की रक्षा को लेकर कोई सामाजिक या राजनीतिक एकजुटता नहीं बन पाती है। अब वक्त आ गया है कि हिंदू समाज इस तरह के दोहरेपन को पहचानें। लोकतंत्र में आलोचना और असहमति रहे, रहती भी है लेकिन हिंदुओं की धार्मिक पहचान पर प्रहार लंबे समय तक एजेंडा नहीं बन सकता है।

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