पश्चिम मीडिया के नए ‘दुलरुआ’ बने सोनम वांगचुक, The Guardian ने हिंसा के जिम्मेदारों की जगह मोदी सरकार पर उठाए सवाल

                                                                                                                                      साभार 
विदेशी मीडिया गिद्धों की तरह इस ताक में रहती है कि कहीं भारत में कुछ हो और वो अपना प्रोपेगेंडा फैला सकें। लद्दाख में बीते 24 सितंबर को हिंसा हुई, इस हिंसा को भड़काने के आरोप में केंद्र सरकार ने ‘एक्टिविस्ट’ सोनम वांगचुक को गिरफ्तार कर लिया है। इसके बाद ‘द गार्जियन’ ने अपनी एक रिपोर्ट में लद्दाख हिंसा पर आँख मूंदकर इस गिरफ्तारी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार की ‘असहमति’ के खिलाफ कार्रवाई का हिस्सा बताया है।
                                                          द गार्जियन की रिपोर्ट का अंश

द गार्जियन की रिपोर्ट के शुरुआती हिस्से पढ़ने पर ही समझ आ जाता है कि असल में यह कोई रिपोर्ट ना होकर भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरोध में प्रोपेगेंडा है। रिपोर्ट के शुरुआती हिस्से में यह दिखाने की कोशिश की गई है कि मोदी सरकार ‘असहमति’ की आवाज, साधारण शब्दों में समझें तो अपना विरोध, नहीं सुन सकती है इसलिए वांगचुक की गिरफ्तारी हुई है।

अब इस दावे के बाद ठीक आगे की ही लाइन में गार्जियन ने वांगचुक का परिचय देते हुए लिखा कि वह मोदी सरकार के खिलाफ ‘लंबे आंदोलन‘ का नेतृत्व कर रहे हैं। बात सही है, वह लंबे आंदोलन का नेतृत्व नहीं कर रहे हैं, और इस नेतृत्व में माँगे भी मोदी सरकार से ही कर रहे थे। तो क्या मोदी सरकार ने वांगचुक को जेल में डाल दिया था नहीं, बल्कि उनसे बातचीत करने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया था।

भारत सरकार की कोशिश यह नहीं थी कि ‘असहमति’ की आवाज दबा दी जाए बल्कि यह थी कि उनकी आवाज को सुना जाए, कार्रवाई की जाए। उन्हें लद्दाख में हुई हिंसा के बाद गिरफ्तार किया गया है जिसमें 4 लोगों की मौत हुई है। यह बात गार्जियन ने जानबूझकर अपने खबर की शुरुआत जानकारी में छिपा ली है।

और यह केवल इकलौता प्रोपेगेंडा नहीं है। इसके आगे भी मनगढ़ंत कहानी लिखने की कोशिश की गई है।

                                                           द गार्जियन की रिपोर्ट का अंश

इस रिपोर्ट में हिंसा तक को सही ठहराने के भी तर्क दिए गए हैं। गार्जियन ने लिखा, “यह क्षेत्र (लद्दाख) पहले जम्मू-कश्मीर का हिस्सा था लेकिन इसे मोदी सरकार ने एकतरफा तरीके से भंग कर दिया जिससे स्थानीय लोगों में गुस्सा और निराशा फैल गई।”

गार्जियन को लोगों का गुस्सा और निराशा तो दिखी लेकिन वह यह बताना भूल गया कि इसी लद्दाख में दशकों तक केंद्र शासित प्रदेश बनने के लिए प्रदर्शन हुए थे। जिस दिन इसे UT बनाया गया, उस दिन लद्दाख में लोग ढोल-नगाड़े बजाकर नाच रहे थे। आज पूर्ण राज्य की माँग को लेकर प्रदर्शन कर रहे सोनम वांगचुक खुद मोदी सरकार का धन्यवाद करते नहीं थक रहे थे।

साफ है कि गार्जियन का मकसद सच बताना नहीं बल्कि मोदी सरकार के खिलाफ प्रोपेगेंडा सैट करना है। एक नैरेटिव बनना है कि 2019 के बाद से जब से लद्दाख UT बना है, लोग परेशान हैं। इसका मतलब होता है कि यही परेशानी लोगों की हिंसा की वजह बनी है।

                                                     द गार्जियन की रिपोर्ट का अंश

गार्जियन ने अपनी रिपोर्ट में आगे भारत के लद्दाख में सैन्य निर्माण और बुनियादी ढांचे के निर्माण पर भी अपना दुखड़ा रोया है। गार्जियन को चिंता है कि भारत के सैन्य निर्माण से पर्यावरण पर प्रभाव पड़ रहा है। चीन की आक्रामकता की गार्जियन को सोनम वांगचुक की तरह ही कोई चिंता नहीं है।

गार्जियन जैसे विदेशी मीडिया संस्थान बार-बार भारत के सैन्य निर्माण और इन्फ्रास्ट्रक्चर को पर्यावरणीय संकट बताकर निशाना बनाते हैं। लेकिन यही मीडिया अन्य देशों के विशाल सैन्य अड्डों, सड़कों, सुरंगों और एयरबेस निर्माण को लेकर शायद ही कभी सवाल उठाता है।

भारत का सैन्य और इन्फ्रास्ट्रक्चर कोई अपनी छाती ठोकने के लिए नहीं किया जा रहा है बल्कि सैन्य जरूरतों और चीन की आक्रामकता को देखते हुए किया जा रहा है। इस पर रोने के बजाय इसकी जरूरत को समझना चाहिए।

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