जम्मू-कश्मीर में बाहरी लोगों को दिए गए हथियारों के लाइसेंस, राजस्थान में खुला J&K का 100 करोड़ रूपए का ‘गन लाइसेंस घोटाला’: निशाने पर 8 IAS अधिकारी


जम्मू कश्मीर में करीब 100 करोड़ रूपए के गन लाइसेंस घोटाले में एमएचए ने अहम कदम उठाया है। केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन से तीन अधिकारियों, यशा मुद्गल, शाहिद इकबाल चौधरी और नीरज कुमार को लेकर जानकारी माँगी है। ये कार्रवाई राजस्व सचिव कुमार राजीव रंजन पर राज्य में हथियार लाइसेंस में कथित अनियमितताओं के लिए मुकदमा चलाने की अनुमति देने के दो महीने बाद माँगी गई है।

गन लाइसेंस स्कैम में 8 वरिष्ठ आईएएस अधिकारी संदेह के घेरे में हैं। अब गृह मंत्रालय ने सीबीआई से पूछा है कि यशा मुर्दल, शाहिद इकबाल और नीरज कुमार समेत तमाम अधिकारियों के खिलाफ हथियार डीलरों से जुड़ने के पर्याप्त सबूत मौजूद हैं या नहीं। ये घोटाला 2012 से 2016 के बीच 2.74 लाख हथियारों के लाइसेंस को अवैध तरीके से जारी किए जाने को लेकर है।

जम्मू कश्मीर के मुख्य सचिव से पूछा गृह मंत्रालय ने

गृह मंत्रालय में अवर सचिव सीपी विनोद कुमार ने 21 फरवरी 2025 को एक खत जम्मू-कश्मीर के मुख्य सचिव को लिखा है। इसमें बताया गया है कि तीन वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति देने की सिफारिश करने वाले पत्रों के साथ न तो केंद्रीय जाँच ब्यूरो के पत्र/प्रस्ताव और डीवीडी थे और न ही जम्मू-कश्मीर के कानून विभाग की कोई कानूनी राय।

इस घोटाले में 16 पूर्व जिलाधिकारी (13 आईएएस अधिकारी और तीन केएएस अधिकारी) शामिल हैं। इनमें ये तीनों अधिकारी भी शामिल हैं, जिनको लेकर सवाल पूछे गए हैं। सभी पूर्व जिलाधिकारियों पर तत्कालीन जम्मू-कश्मीर राज्य के अलग-अलग जिलों में तैनाती के दौरान लाखों अवैध हथियारों के लाइसेंस जारी करने के आरोप हैं।

गृह मंत्रालय ने सीबीआई से क्या पूछा

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, सीबीआई को गृहमंत्रालय ने 1 सिंतबर 2025 को पत्र लिखा है।

पत्र में ये साफ करने को कहा है कि क्या इन अधिकारियों को अवैध हथियार लाइसेंस जारी करने के बदले आर्थिक फायदा हुआ था। क्या जाँच में किसी आईएएस अधिकारी के आर्म्स डीलरों के साथ साँठ-गाँठ के सबूत मिले हैं। क्या संपत्ति के सौदे या पैसों के लेन-देन के सबूत मिले हैं।

सीबीआई की जाँच में क्या सामने आया

सीबीआई ने अपनी जाँच कर आरोप लगाया कि फर्जी दस्तावेजों के आधार पर ज्यादातर हथियारों के लाइसेंस जारी किए गए। लाइसेंस जारी करने में कई डीलर, बिचौलिए और प्रशासनिक अधिकारियों की संलिप्तता थी।
जम्मू कश्मीर प्रशासन ने 2021 में KAS अधिकारियों और क्लर्कों के खिलाफ अभियोजन की अनुमति दे दी थी। इसके बाद सीबीआई ने चार्जशीट दायर की थी। लेकिन आईएएस अधिकारियों का मामला अब तक लंबित है, क्योंकि इसके लिए गृहमंत्रालय से अनुमति की जरूरत है। गृहमंत्रालय इस मामले में काफी फूँक-फूँक कर कदम रख रहा है। कोर्ट के आदेश के बाद गृहमंत्रालय पर फैसला लेने का दबाव भी आ गया है।

जम्मू-कश्मीर गन घोटाला क्या है

2017 में राजस्थान की एंटी टेररिज्म स्क्वाड की एक जाँच में जम्मू कश्मीर में बड़ी संख्या में फर्जी दस्तावेज के आधार पर लाइसेंस जारी करने का पता चला था। इस मामले को सीबीआई को जाँच के लिए सौंपा गया। सीबीआई को पता चला कि 2012 से 2016 तक के बीच 2.74 लाख हथियारों के लाइसेंस जारी किए गए थे। इनमें से 95 फीसदी वे लोग थे, जो जम्मू-कश्मीर के निवासी नहीं थे। यहाँ तक कि उनका राज्य से कोई लेना-देना नहीं था।

सीबीआई के मुताबिक, ये लाइसेंस सेना, अर्धसैनिक बलों और दूसरे बाहरी लोगों को पैसों की लेन-देन के बाद जारी किए गए।

इस मामले में 9 आईएएस अधिकारियों के खिलाफ जाँच की गई। इनमें से 8 वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों पर अभियोजन की अनुमति गृहमंत्रालय ने दी। ये सभी अधिकारी 2012 से 2016 के बीच जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में पद स्थापित थे।

जम्मू कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस अरुण पाली और जस्टिस राजनेश ओसवाल की खंडपीठ ने इस मामले में गृहमंत्रालय से 6 हफ्तों में फैसला लेने को कहा था कि इन आईएएस अधिकारियों के खिलाफ अभियोजन की अनुमति दी जाएगी या नहीं। इसको देखते हुए गृहमंत्रालय ने जम्मू कश्मीर के उच्चाधिकारी को पत्र लिखा है।

हाईकोर्ट में इससे संबंधित एक जनहित याचिका शेख मोहम्मद शफी और अन्य ने दायर की थी। याचिका में कहा गया है कि आरोपित अधिकारी अभी भी राज्य के उच्च पदों पर पदस्थापित हैं और अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर रहे हैं। इसलिए कोर्ट उन पर निगरानी रखे।

राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर ये मामला काफी अहम है। ये कोई प्रशासनिक गलती भी नहीं है, बल्कि जम्मू कश्मीर प्रशासन की छवि से जुड़ा मामला है। गृहमंत्रालय अब इस पर जल्दी निर्णय लेने के मोड में आ गई है।

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