कांग्रेस के शहजादे और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस को एक और हार का सामना करना पड़ा है। दरअसल, कांग्रेस INDI गठबंधन के लिए एक पनौती बन चुकी है। INDI गठबंधन में शामिल पार्टियों को जितनी जल्दी हो कांग्रेस को गठबंधन से अलग करना होगा। यही समय की मांग भी है। ताजा उदाहरण बिहार का है। अगर RJD ने अकेले दम पर चुनाव लड़ा होता चुनाव परिणाम कुछ और होते क्योकि वहां स्थानीय मुद्दे हावी थे। लेकिन भाई-बहन राहुल और प्रियंका की जोड़ी ने उन मुद्दों का दरकिनार कर दिया। पूर्वाचलों के पवित्र त्यौहार छठ को ड्रामा बोलकर दूध में नीबू की बून्द का काम कर चुनाव को एकतरफा कर दिया। फिर भी कुछ बेशर्मों ने गठबंधन को इतनी वोटें दे दी। हकीकत में जो पार्टी विदेशी सहायता और चंदे पर चल रही हो उसे अपने त्यौहार की बेइज्जती भी दिखाई नहीं पड़ती। दूसरे, कांग्रेस द्वारा अपने उन नेताओं को प्रचार में बुलाना जिन्होंने बिहारियों के लिए आपत्तिजनक बयानबाज़ी की उसने कंगाली में आटा गीला करने का काम कर दिया। संविधान को झुनझुने की तरह हाथ में लेकर घूमने का नाटक करने वालों की पार्टी जब दूसरे राज्य के अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल करते हों, देश को एकजुट तो क्या संविधान की भी रक्षा करने में नकारा होते हैं।
देश की राजनीति में कांग्रेस पार्टी के लिए चुनावी हार अब शायद एक सुखद ‘पैटर्न’ बन चुकी है। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के निराशाजनक नतीजों ने एक बार फिर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। आखिर कांग्रेस कब तक गाँधी परिवार को ठोती रहेगी? क्या कांग्रेस में किसी भी धुरंधर नेता में इस परिवार की सलाह के बिना काम करने की क़ाबलियत नहीं? क्या सारे कागजी शेर हैं या फिर गुलाम? पार्टी 10 के आंकड़े तक पहुंचने के लिए संघर्ष करती रही। जब से राहुल गांधी ने सक्रिय रूप से पार्टी की कमान संभाली है, तब से कांग्रेस लगातार एक के बाद एक राज्यों में अपनी जमीन खोती जा रही है। वैसे तो कांग्रेस सोनिया गाँधी को अध्यक्ष बनाने के बाद से बराबर निचले स्तर पर जानी शुरू हो गयी थी, और सोनिया के अधूरे काम को पूरा करने भाई-बहन की जोड़ी राहुल-प्रियंका मैदान में कूद पड़ी है। देखना है कि कांग्रेस के ताबूत में आखिरी कील कौन ठोकेगा भाई या बहन?
हर चुनाव में नई रणनीति, नए गठबंधन और नए वादों के बावजूद, पार्टी की ‘हार की राह’ खत्म होती नहीं दिख रही है। बिहार में महागठबंधन की हार ने यह स्थापित कर दिया है कि राहुल गांधी का नेतृत्व न तो मतदाताओं को आकर्षित कर पा रहा है और न ही पार्टी के भीतर कार्यकर्ताओं को एकजुट रख पा रहा है। चुनावों के आंकड़े गवाह हैं कि राहुल गांधी की कांग्रेस पार्टी में जैसे-जैसे जिम्मेदारी ज्यादा हुई। वैसे-वैसे कांग्रेस की दुर्दशा बद से बदतर होती गई। राहुल गांधी ने 2004 में लोकसभा का पहला चुनाव लड़ा था। वे सांसद से लेकर पार्टी महासचिव और अखिल भारतीय कांग्रेस अध्यक्ष पद पर भी रहे। लेकिन हालात ये हैं कि पिछले दो दशक के उनके राजनीतिक जीवन के दौरान कांग्रेस हार की सैंचुरी लगाने के करीब पहुंच चुकी है। कांग्रेस पिछले 21 साल की अवधि में लोकसभा और विधानसभाओं के 96 चुनाव हार चुकी है।
हार नंबर 96.14.11.25
बिहार चुनाव में मिली करारी हार
बिहार विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा है। राहुल गांधी के नेतृत्व वाले महागठबंधन को लोगों ने एक बार फिर नकार दिया है। राहुल गांधी की कांग्रेस का तो सबसे खराब प्रदर्शन रहा। पार्टी दहाई अंक तक पहुंचने के लिए संघर्ष कर रही है। पार्टी को सिर्फ 6 सीटों पर संतोष करना पड़ा है।
हार नंबर 95.09.09.25
उपराष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस गठबंधन को मिली हार
उपराष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस सांसद राहुल गांधी जिस इंडी गठबंधन की जीत के बढ़-चढ़कर दावे कर रहे थे, उसे करारी हार का सामना करना पड़ा। एनडीए उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन उपराष्ट्रपति चुने गए। उन्होंने कांग्रेस और इंडी गठबंधन के उम्मीदवार जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी को 152 वोटों के भारी अंतर से हराया। उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए हुए मतदान में कुल 788 में से 767 सांसदों ने वोट डाला। एनडीए के उम्मीदवार राधाकृष्णन को उम्मीद से कहीं ज्यादा 452 वोट मिले, जबकि रेड्डी को मात्र 300 वोट ही मिले।
हार नंबर 94.
08.02.25दिल्ली में बीजेपी को प्रचंड बहुमत, आप सत्ता से बाहर
दिल्ली विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को प्रचंड बहुमत मिला है। पिछले तीन बार से दिल्ली में चुनाव जीत रही आम आदमी पार्टी की झूठ की राजनीति पर इस बार जनता-जनार्दन ने करारा तमाचा जड़ा है। यहां तक कि पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल और पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया चुनाव हार गए हैं। इस चुनाव में सबसे तगड़ा झटका राहुल गांधी और उनकी पार्टी कांग्रेस को लगा है। कांग्रेस 70 में से एक भी सीट नहीं जीत सकी है, जबकि भाजपा को 48 सीट के साथ प्रचंड जीत मिली। दिल्ली की दो दर्जन से ज्यादा सीटों पर तो कांग्रेस जमानत तक नहीं बचा सकी है। राहुल गांधी के नेतृत्व में दिल्ली में कांग्रेस का यह सबसे शर्मनाक प्रदर्शन है।
23.11.24
महाराष्ट्र में भाजपा की सुनामी, कांग्रेस की स्थिति सबसे दयनीय
08.10.24
हरियाणा में भाजपा की जीत की हैट्रिक, कांग्रेस की 37 सीट पर जमानत जब्त
हरियाणा में भाजपा ने लगातार तीसरी बार प्रचंड जीत हासिल की। 90 सीटों के सदन में भाजपा ने 48 सीटों पर जीत हासिल की। कांग्रेस ना सिर्फ 37 सीटों पर सिमटी, बल्कि अन्य 37 सीटों पर उसके प्रत्याशियों की जमानत तक जब्त हो गई।
05.06.24
लोकसभा में एनडीए गठबंधन की जीत की हैट्रिक, कांग्रेस फिर परास्त
लोकसभा चुनाव में एनडीए गठबंधन ने जीत की हैट्रिक लगाई। साठ साल के बाद ऐसा मौका आया, जबकि दो टर्म को पूरा करने के बाद लगातार तीसरी बार नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने। भाजपा 240 सीटें जीतकर लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी बनी। यूपीए गठबंधन की सहयोगी कांग्रेस नर्वस नाइंटीज का शिकार हुई और उसे 99 सीटें मिलीं।
05.06.24
आंध्रप्रदेश में एनडीए की प्रचंड जीत, टीडीपी बनी हीरो और कांग्रेस जीरो
आंध्र प्रदेश में भाजपा, तेलुगू देशम पार्टी और जनसेना के गठबंधन को विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत मिली। टीडीपी ने 135, जनसेना ने 21 और बीजेपी ने 8 सीटें जीती। सत्तारूढ़ दल वाईएसआर कांग्रेस पार्टी 11 सीट मिली हैं, वहीं कांग्रेस एक भी सीट जीतने में नाकाम रही।
02.06.24
अरुणाचल प्रदेश में भाजपा की सुनामी, कांग्रेस को निर्दलीयों से कम सीट
अरुणाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव भाजपा को प्रचंड बहुमत मिला। राज्य की 60 विधानसभा सीटों में से भाजपा ने 46 पर जीत दर्ज की। कांग्रेस को निर्दलीयों से भी कम सीटें मिलीं। चुनाव में तीन निर्दलीय जीते, लेकिन कांग्रेस बमुश्किल एक ही सीट जीत पाई। इसके अलावा नेशनल पीपुल्स पार्टी 5, नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी 3, पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल 2 सीट जीती।
05.06.24
ओडिशा में खिला कमल, भाजपा सत्ता में, कांग्रेस की हार
ओडिशा विधानसभा की 147 सीटों में से भाजपा ने 78 सीटें हासिल कर स्पष्ट बहुमत का आंकड़ा पार कर लिया। कांग्रेस सिर्फ 14 सीटों पर जीत हासिल कर पाई। वहीं, भाजपा ने लोकसभा की 21 में से 20 सीटें भी जीत लीं। मात्र एक सीट कांग्रेस के खाते में गई।
02.06.24
सिक्किम में कांग्रेस को नोटा से भी कम वोट मिले
सिक्किम की 32 विधानसभा सीटों में से 31 पर सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा ने एकतरफा जीत दर्ज की है। सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट ने एकमात्र श्यारी विधानसभा सीट जीती। एसकेएम को 58.38 और एसडीएफ को 27.37 प्रतिशत वोट मिले। चुनाव की दिलचस्प बात यह रही कि कांग्रेस को नोटा से भी कम 0.32 प्रतिशत मत मिले। नोटा को 0.99 प्रतिशत वोट मिले, जबकि भाजपा को 5.18 प्रतिशत वोट मिले।
02.03.23
त्रिपुरा में लगातार दूसरी बार भाजपा सरकार, कांग्रेस बुरी तरह परास्त
त्रिपुरा विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी ने लगातार दूसरी बार बहुमत हासिल किया। भाजपा ने 60 में से 32 सीटों पर जीत दर्ज की। राज्य में 14 सीटें लेकर दूसरे नंबर पर लेफ्ट और कांग्रेस का गठबंधन रहा। लेकिन इसमें कांग्रेस के हिस्से में केवल 3 सीटें आईं। टिपरा मोथा पार्टी ने 11 सीटों पर जीत हासिल की।
नगालैंड में एनडीपीपी-बीजेपी गठबंधन की वापसी, कांग्रेस जीरो
नगालैंड में सत्तारूढ़ एनडीपीपी-बीजेपी गठबंधन को फिर बहुमत मिला। एनडीपीपी को 25 सीटों पर और बीजेपी को 12 सीटों पर जीत मिली। एनसीपी 7 सीट और एनपीपी 5 सीट पर विजयी रही। यहां तक कि एनपीएफ ने 2 सीट, चिराग पासवान की एलजेपी (राम विलास) ने 2 सीट, रिपब्लिकन पार्टी ने 2 सीट, नीतीश कुमार की जेडीयू को एक सीट पर जीत का परचम फहराया, लेकिन कांग्रेस को यहां पर कोई सीट नहीं मिली।
02.03.23
मेघालय में एनपीपी-बीजेपी गठबंधन की सरकार बनी, कांग्रेस हारी
मेघालय में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। यहां एनपीपी ने 60 में से 26 सीटें जीती और सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। एनपीपी ने मेघालय डेमोक्रेटिक अलायंस-2.0 बनाया, जिसमें भाजपा, यूडीपी और पीडीएफ सहगोयी बनीं। कांग्रेस को चुनाव में केवल 5 सीटें हासिल हुईं।

No comments:
Post a Comment