लालू के जंगलराज का नारा ‘भूरा बाल साफ करो’
जिस सनातन को कुर्सी के भूखे हिन्दू अपमानित करते है मुस्लिम कट्टरपंथी उसी को अपनी ढाल बनाकर हिन्दुओं पर हमले करते हैं। ये जो हिन्दू त्यौहारों और शोभा यात्राओं पर पत्थरबाज़ी होती ये सब इन्हीं सनातन विरोधी हिन्दुओं के देन है उनको मालूम है हमारे समर्थन में ये ढोंगी कालनेमि हिन्दू सरकार को घेर हमें बचाएंगे। फिर एक बात और, मारिया शकील को देखो, सनातनी वेष धारण किये हुए है और जब हिजाब या बुर्के पर विवाद होगा भांडों की तरह सडकों पर उतर आएगी। अगर इन हिन्दू विरोधियों को अभी भी जनता नहीं पहचानेगी उससे बड़ा महापागल और अँधा कोई नहीं। कहाँ है हिजाब/बुर्का? इसीका नाम है फिरकापरस्ती यानि साम्प्रदायिक लोग।
| मारिया शकील 'भूरा बाल साफ करो' नरसंहार को बता रही जरूरत (साभार : followup & samachar) |
बिहार की राजनीति में एक नया विवाद खड़ा हो गया है। यह विवाद लालू प्रसाद यादव के करीबी रहे पूर्व मंत्री शकील अहमद खान की बेटी मारिया शकील के एक कथित बयान से शुरू हुआ है। आरोप है कि मारिया शकील ने इंडिया टुडे के एक टीवी शो के दौरान, 1990 के दशक के उस कुख्यात नारे ‘भूरा बाल साफ करो’ को उस समय की ‘जरूरत’ (Need of the Hour) या ‘राजनीतिक मजबूरी’ बताया।
मारिया शकील के इस कथित बयान का सीधा मतलब यह है कि 1990 के दशक में लालू यादव की सरकार के दौरान ऊँची जाति के समुदाय (भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण और लाला/कायस्थ) के खिलाफ जो बड़े बदलाव हो रहे थे, उसमें यह नारा एक जरूरी चाल या उपकरण था। इस तरह, मारिया शकील ने अप्रत्यक्ष रूप से लालू यादव के शासनकाल ‘जंगल राज’ में ऊँची जाति के लोगों पर हुए कथित अत्याचारों, हत्याओं (नरसंहार) और उन्हें सत्ता-संपत्ति से दूर कर दिए जाने को सही ठहराने की कोशिश की है। उनके इस बचाव ने सोशल मीडिया पर लोगों को भड़का दिया है, जो पूछ रहे हैं कि ऐसी हिंसा को कोई कैसे ‘जरूरत’ बता सकता है।
नीचे वीडियो इंडिया टुडे की यूट्यूब की है। इस वीडियो में 19:25 पर मारिया शकील ‘भूरा बाल साफ करो’ नारे को 1990 के दशक के लालू यादव के ‘जंगलराज’ की ‘राजनीतिक जरूरत’ बताती है।
मारिया शकील के बयान पर सोशल मीडिया का गुस्सा: ‘जंगल राज’ को बताया ‘जरूरत’
मारिया शकील के कथित बयान ‘भूरा बाल साफ करो’ नारे को ‘राजनीतिक आवश्यकता’ बताया, पर सोशल मीडिया यूजर्स ने कड़ी आपत्ति जताई है। लोगों ने इस बयान को ‘जंगल राज’ और नरसंहार को सही ठहराने जैसा बताया है।
एक यूजर ने सीधे सवाल किया, “वाह! मारिया शकील जी के अनुसार, 90 के दशक में ‘भूरा बाल साफ करो’ जैसा जातिवादी नारा बिहार की ‘जरूरत’ था। सवर्णों के नरसंहार के लिए दिए जाने वाले इस नारे को कोई पत्रकार कैसे सही ठहरा सकती है?”
मर्या शकील ने लालू यादव के “भूरा बाल साफ़ करो” नारे को “need of the hour” बताया है।
— Patna Pulse (@Patna_Pulse) October 31, 2025
सवर्णों के नरसंहार के लिए दिए जाने वाले नारे को कोई पत्रकार कैसे सही ठहरा सकती है?#LaluYadav #Bihar @maryashakil pic.twitter.com/C07Bl4UtlM
एक अन्य यूजर ने गुस्से में कहा, “नेशनल टीवी पर ‘जंगल राज’ के जहर को ‘जरूरत’ बताना… ये बिहार के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है। मतलब, ‘जंगलराज’, ‘अपहरण-उद्योग’, ‘पलायन’… ये सब उस समय की माँग थी? और क्या भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण, लाला की हत्याएँ भी एक ‘आवश्यकता’ थीं?”
वाह!
— Mrityunjay Sharma (@MrityunjayS7) October 31, 2025
मारिया शकील जी के अनुसार, 90s में 'भूरा बाल' का जातिवादी नारा बिहार की 'ज़रूरत' थी।
मतलब, 'जंगलराज', 'अपहरण-उद्योग', 'पलायन'.. ये सब 'समय की माँग' थी?
और क्या भूमिहार-राजपूत-ब्राह्मण-लाला की हत्याएँ भी एक 'आवश्यकता' थी?
National TV पर 'जंगलराज' के 'ज़हर' को 'ज़रूरत'… pic.twitter.com/Oqbab3v7ar
एक यूजर ने मारिया शकील को टैग करते हुए तीखी आलोचना की। यूजर ने लिखा, “अगर आपके लिए ‘भूरा बाल साफ करो’ एक राजनीतिक मजबूरी थी, तो क्या किसी समूह के नरसंहार को सामाजिक न्याय कहा जाएगा? इस तर्क से तो आप कश्मीरी पंडितों के नरसंहार को भी सही ठहरा देंगी। मैं खुद ब्राह्मण नहीं हूँ, फिर भी इस बयान से बहुत आहत हूँ।”
@maryashakil “bhura baal saaf karo” was a political necessity?
— Viktor (@desishitposterr) October 30, 2025
Calling for a genocide of a group of people is social justice?
WOW!
Had so much respect for you till now.
By this logic, you’d justify the pogrom of Kashmiri Pandits too.
I’m not even Brahmin and feel offended. pic.twitter.com/KXllBPrc7u
‘भूरा बाल साफ करो’: बिहार की राजनीति का एक कड़वा नारा
‘भूरा बाल साफ करो’ नारा 1990 के दशक में बिहार की राजनीति में केवल एक नारा नहीं था, बल्कि यह एक सोची-समझी राजनीतिक साजिश का हथियार था, जिसका उद्देश्य समाज को बाँटना था। यह बेहद विवादित और नफरत भरा प्रतीक था, जिसने सीधे-सीधे राज्य की चार सबसे प्रभावशाली ऊँची जातियों को निशाना बनाया। भूरा बाल- ‘भू यानि भूमिहार’, ‘रा यानि राजपूत’, ‘बा यानि ब्राह्मण’, ‘ल यानि लाला (कायस्थ)’।
इन चारों समुदायों ने लंबे समय तक बिहार की राजनीति और समाज पर अपना दबदबा बनाए रखा था। इस नारे का असली मकसद लालू प्रसाद यादव की ‘सामाजिक न्याय’ की आड़ में नफरत की राजनीति करना था। रणनीति साफ थी कि पिछड़ी जातियों, दलितों और मुसलमानों को एक साथ लाकर एक विशाल वोट बैंक तैयार करना और इस विभाजनकारी गठबंधन की मदद से इन ऊँची जातियों के पुराने राजनीतिक प्रभुत्व को पूरी तरह से ‘साफ’ या खत्म कर देना। यह बिहार के सवर्ण समाज को जातियों में तोड़ने और उनके बीच डर पैदा करने की एक गहरी चाल थी।
जंगल राज और अपर कास्ट पर अत्याचार
लालू प्रसाद यादव के 1990 के दशक के शासनकाल को अक्सर ‘जंगल राज’ कहकर पुकारते हैं। इस दौर में बिहार की कानून-व्यवस्था पूरी तरह से टूट चुकी थी। यह समय राज्य में जातीय हिंसा, बड़े पैमाने पर फिरौती के लिए अपहरण और लोगों के बड़े पैमाने पर एक जगह से दूसरी जगह चले जाने (पलायन) के लिए याद किया जाता है।
इस पूरे दौर में जमीन के विवाद और सामाजिक रुतबे की लड़ाई के चलते कई इलाकों में जातीय हिंसा भड़क उठी। गरीब और पिछड़ी जातियों तथा अमीर सवर्ण जमींदारों के बीच हिंसक टकराव हुए। नतीजतन, कई जगहों पर बड़ी संख्या में लोगों की हत्याएँ (नरसंहार) हुईं। इन घटनाओं ने राज्य को हिंसा के गहरे दौर में धकेल दिया।
‘भूरा बाल साफ करो’ जैसे विभाजनकारी नारों के माहौल में, ऊँची जाति के समुदायों (सवर्णों) ने आरोप लगाया कि लालू यादव की सरकार में उन्हें जानबूझकर निशाना बनाया गया। कई सवर्ण परिवारों को इस हिंसा में गंभीर जान-माल का नुकसान उठाना पड़ा।
उनका यह मानना था कि उन्हें केवल राजनीतिक रूप से कमज़ोर नहीं किया गया, बल्कि उनके खिलाफ हुई हिंसा पर भी सरकार ने कोई ख़ास कदम नहीं उठाया। कानून-व्यवस्था इतनी बिगड़ गई थी कि समाज के हर वर्ग में डर का माहौल था, लेकिन ऊँची जातियों के बीच यह डर सबसे ज़्यादा था कि उनकी जान-माल की सुरक्षा खतरे में थी। इसी वजह से राजधानी और राज्य के बाहर पलायन की खबरें आम हो गईं।
मारिया… ‘भूरा बाल साफ करो’ जरूरत नहीं, सिर्फ बिहार के जख्मों पर नमक
मारिया शकील का यह बयान केवल एक राजनीतिक टिप्पणी नहीं, बल्कि बिहार के अतीत के जख्मों को फिर से कुरेदने जैसा है। अगर कोई पत्रकार या सार्वजनिक बुद्धिजीवी इस हिंसक प्रतीक को ‘जरूरत’ कहे तो यह उस संवेदनशीलता की कमी दिखाता है जो लोकतंत्र की आत्मा है। राजनीति का असली मकसद किसी वर्ग को खत्म करना नहीं, बल्कि सबको बराबरी के साथ खड़ा करना है। ‘भूरा बाल साफ करो’ जैसे नारे बिहार को विभाजित कर गए थे और आज अगर कोई उन्हें सही ठहराता है तो यह संकेत है कि बिहार की राजनीति अभी भी उस अंधेरे दौर से पूरी तरह बाहर नहीं निकल पाई है।
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