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महाराष्ट्र : कोपेश्वर मंदिर, जहाँ शांत हुआ था शिव का क्रोध


अपने आपको हिन्दू कहने वाले नेताओं और पार्टियों ने अपनी कुर्सी बचाए रखने के लिए तुष्टिकरण करते भारतीय संस्कृति और इतिहास से खिलवाड़ कर भारतीयों को उनके वास्तविक इतिहास से अज्ञान बना दिया। 2014 चुनावों के बाद से समय ने जो करवट बदली, इन सभी पाखंडियों ने चीखना-चिल्लाना शुरू कर दिया है। वास्तविक इतिहास के पृष्ठ धीरे-धीरे खुलने हो चुके हैं, जिनसे जनता को दूर रखा हुआ था। 
यह किसी 3D फ़िल्म का चित्र नहीं बल्कि हमारे प्राचीन मंदिर परिसर का एक हिस्सा है, प्रत्येक वर्ष में एक या दो बार ऐसा होता है जब चंद्रमा इस मंडप के एकदम बीच में आता है । हैरान करने वाली बात है कि ऐसा केवल कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही होता है।

ऐसे हज़ारों चमत्कारी मंदिर हैं, जिन्हें प्रकाश में लाने का समय आ गया है। 31 दिसम्बर 2023 की सुबह Zee News पर एक महिला ज्योतिष ने अयोध्या में जीणोद्धार हो रहे राम मन्दिर के विषय पर संक्षेप में जो अति महत्वपूर्ण बात कही, देखना है Zee News ही उस बात को कितना प्रसारित करता है या अपनी TRP के मकड़जाल में फंस छद्दम धर्म-निरपेक्ष बन जायेगा। भावार्थ यह है कि अयोध्या में राम मन्दिर नहीं बन रहा है, बल्कि भारत विश्व गुरु बनने तेजी से बढ़ेगा। 
कोपेश्वर मंदिर का इतिहास व वास्तुकला
कहते हैं भारत का प्राचीन नाम अखंड भारत था, ये बिल्कुल सही बात है। इसका प्रमाण आज भी देखा जा सकता है। आज भी प्राचीन समय की कई ऐसी सरंचना देखी जा सकती है, जो इस बात का प्रमाण देती है कि भारत से श्रेष्ठ न कोई था और न कोई रहेगा। इन संरचनाओं को देखकर आज भी शोधकर्ता यही सोचते हैं कि आखिर कैसे इतनी जटिल वास्तुकला से ये संरचना बनाई गई है, जबकि हजारों साल पहले मशीन का तो जमाना ही नहीं था, सिर्फ हाथ से ही कारीगरी की जाती थी।
इसका जीता जागता प्रमाण है- महाराष्ट्र के कोल्हापुर के समीप खिद्रापुर में स्थित कोपेश्वर मंदिर। जी हां, इस मंदिर की वास्तुकला कोई साधारण डिजाइन नहीं है बल्कि इसमें कई रहस्य छिपे हैं, जो आज भी रहस्य ही बने हुए है। इन्हें देखने पर आपको 3D फिल्मों की याद आ जाएगी, जैसे लग रहा हो कोई सीन बस करीब से होकर गुजरा हो। इसकी भव्यता आज भी किसी मामले में कम नहीं हुई है। 
खिद्रापुर का कोपेश्वर मंदिर चालुक्य वंश की उत्कृष्ट वास्तुकला को दर्शाती है। यह मंदिर चालुक्यों द्वारा बनाए बाकी इमारतों की तरह प्रसिद्ध तो नहीं हो पाया लेकिन इसकी वास्तुकला ही इसे देखने पर मजबूर कर देती है। महाराष्ट्र और कर्नाटक के सीमा पर स्थित यह मंदिर 12वीं शाताब्दी (1109-78 ईस्वी के बीच) में शैलाहार वंश के राजा गंधारादित्य द्वारा बनवाया गया था। कृष्णा नदी के तट पर स्थित यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है।
मंदिर परिसर में आपको कई शिलालेख (करीब 12) दिख जाएंगे, जो प्राचीन इतिहास से रूबरू करवाते हैं। हालांकि, अब इसमें से सिर्फ कुछ ही शिलालेख (शायद 2 या 3) बचे हैं, जिनकी स्थिति अभी भी ठीक है। इनमें कुछ राजाओं और उनके अधिकारियों के नाम अंकित है। एक (संस्कृत - देवनागरी) को छोड़ बाकी सभी शिलालेख कन्नड़ भाषा में लिखित हैं। मंदिर में स्थित दो शिवलिंग है, इनमें एक भगवान शिव और दूसरा भगवान विष्णु को समर्पित है। मंदिर का ऊपरी छत खुला है, जिससे सूर्य की किरणें हर रोज महादेव का सूर्याभिषेक करती हैं।
कोपेश्वर मंदिर के निर्माण को लेकर विभिन्न मत 
मंदिर के निर्माण को लेकर कई विभिन्न मत है, जिसमें 7वीं शाताब्दी में बादामी चालुक्य वंश के राजाओं, 9वीं शाताब्दी में कल्याणी चालुक्य वंश के राजाओं, 12वीं शाताब्दी में शैलहार वंश के राजाओं ने करवाया था। मंदिर में स्थित एक शिलालेख के मुताबिक, इस मंदिर का पुनरुद्धार 1204 ईस्वी में देवगिरी के यादव राजाओं ने करवाई थी।
कोपेश्वर मंदिर पर औरंगजेब का आक्रमण 
इतिहास की मानें तो 1702 ईस्वी में मुगल शासक औरंगजेब ने कोपेश्वर मंदिर पर आक्रमण किया था, जिसका प्रमाण मंदिर परिसर के खंडित भागों को देखने से मिलता है। इनमें से अधिकतर प्रतिमाओं से मुख और हाथ खंडित नजर आते हैं।
कोपेश्वर मंदिर को लेकर पौराणिक कथा 
कोपेश्वर मंदिर को लेकर एक पौराणिक किवदंती भी प्रचलित है। किवदंती के अनुसार, जब माता सती ने अग्नि कुंड में कूद कर अपनी देह का त्याग किया था, तब शिव जी अत्यंत क्रोधित हो गए थे और माता सती के जलते हुए शरीर को लेकर नृत्य करने लगे थे। ऐसे में विष्णु जी को उनका क्रोध शांत करने के लिए पृथ्वी पर आना पड़ा था। यह वही जगह है, जहां महादेव का क्रोध शांत हुआ था, ...
महाराष्ट्र का सबसे अमीर मंदिर है कोपेश्वर मंदिर
कहा जाता है कि यह मंदिर महाराष्ट्र का सबसे अमीर मंदिर है। इस मंदिर में उपयोग किया जाने वाला पत्थर कठोर बेसाल्ट चट्टान है, जो सह्याद्री पर्वत श्रृंखला में पाई जाती है। यह चट्टान मंदिर से 100 किमी के अंदर में ही स्थित है, जिससे अनुमान लगाया जा सकता है कि पंच गंगा और कृष्णा नदियों के माध्यम से पत्थर को यहां लाया गया होगा। क्योंकि प्राचीन समय में हमारे अखंड भारत में जलमार्ग का उपयोग किया जाता था। 
कोपेश्वर मंदिर में दर्शन करने का समय - सुबह 05:00 बजे से रात 09:00 तक।