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दिल्ली मेट्रो महिलाओं के लिए मुफ्त : केजरीवाल सरकार को सुप्रीम कोर्ट का झटका

दिल्ली मेट्रो महिलाओं के लिए मुफ्त :  केजरीवाल सरकार के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने उठाए सवाल
आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
महिलाओं की दिल्ली में मेट्रो और बसों में मुफ्त यात्रा के आम आदमी पार्टी की सरकारी के प्लान पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार को इस पर फटकार लगाई है सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार को कहा कि आप अगर महिलाओं को फ्री में मेट्रो में चलने देंगे तो मेट्रो नुकसान में जाएगी। कोर्ट ने कहा कि आप चाहते हैं कि मेट्रो को जो नुकसान हो उसकी भरपाई केंद्र करें? सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को दो टूक कहा कि कोई ऐसा फैसला न ले जिससे मेट्रो नुकसान में जाये 
वहीं जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा यदि आप लोगों को मुफ्त यात्रा करने की अनुमति देते हैं तो यह समस्या होगी जस्टिस मिश्रा ने कहा कि तब हम सभी बंद कर देंगे। आप नुकसान के बारे में बात करते हैं जो आपके पास है वो  जनता का पैसा है दुरुपयोग करेगी को अदालत शक्तिहीन नहीं है खुद की बनाई नीतियों से दिवालियापन नहीं आना चाहिए 
Image result for केजरीवालवहीं सुनवाई के दौरान EPCA ने कहा कि पिछले पांच साल में मेट्रो को ऑपरेशन में कोई घाटा नहीं हुआ है हालांकि दिल्ली सरकार को राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि केंद्र को दिल्ली मेट्रो के चरण IV के लिए भूमि की लागत का 50 प्रतिशत वहन करना होगा दोनों को 2447.19 करोड़ रुपये का भुगतान करना होगा वहीं केंद्र ने इसका विरोध करते हुए कहा कि फिर तो सब राज्य आ जाएंगे इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह सिर्फ दिल्ली के लिए है 
इसके अलावा सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि मेट्रो के चौथे चरण के लैंड कोस्ट (जमीन की कीमत) को दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार आधा आधा वहन करेगी सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि मेट्रो के चौथे चरण के निर्माण में देरी नही होनी चाहिए सुप्रीम कोर्ट ने ऑथोरिटी को चेताया भी है सुप्रीम कोर्ट ने चौथे चरण के निर्माण के लिए तुरंत पैसा रिलीज करने के आदेश दिए और कहा कि ये तीन हफ्ते के भीतर हो जाना चाहिए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चौथा चरण 103.94 किलोमीटर का है जिसे जल्द पूरा करें 
दरअसल मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपने स्वतंत्रता दिवस के संबोधन में घोषणा की थी कि 29 अक्टूबर से महिलाओं के लिए डीटीसी और क्लस्टर बसों की सवारी मुफ्त होगी इसके बाद मनीष सिसोदिया ने कहा कि सार्वजनिक परिवहन की बसों में मुफ्त सवारी योजना जल्द ही लागू की जाएगी, लेकिन मेट्रो ट्रेनों के मामले में कुछ समय लगेगा क्योंकि दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (डीएमआरसी) को इसके लिए तैयारी करनी थी 
दिल्ली सरकार के इसी फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने आपत्ति जताते हुए उन्हें इसके खिलाफ चेतावनी दी हैसुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि सरकार ऐसा कदम ना उठाए क्योंकि इससे जनता का पैसा बर्बाद होगा और डीएमआरसी यानि मेट्रो संचालन विभाग को बड़ा नुकसान झेलना पड़ेगा 
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कई महीनों से जारी कड़वाहट के बाद आखिरकार आम आदमी पार्टी की विधायक अलका लांबा ने पार्टी छोड़ दिया है. उन्होंने ट्वीट ....

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दिल्ली में महिलाओं को डीटीसी और क्लस्टर बसों में मुफ्त यात्रा से संबंधित प्रस्ताव को दिल्ली कैबिनेट ने सैद्धांति...

दिल्ली: DTC और क्लस्टर बसों में महिलाओं को मुफ्त यात्रा की मिली मंजूरी

dtc buses in delhiदिल्ली में महिलाओं को डीटीसी और क्लस्टर बसों में मुफ्त यात्रा से संबंधित प्रस्ताव को दिल्ली कैबिनेट ने सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की अध्यक्षता में 29 अगस्त को दिल्ली सचिवालय में हुई कैबिनेट की बैठक में इस प्रस्ताव को सैद्धांतिक मंजूरी दी गई। इस योजना के तहत दिल्ली में महिलाएं 29 अक्टूबर से सभी डीटीसी और क्लस्टर बसों में मुफ्त यात्रा कर सकेंगी। एक प्रेस कांफ्रेंस में इस बारे में जानकारी देते हुए परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत ने कहा-
29 अक्टूबर से डीटीसी बसों में महिलाएं कर सकेंगी फ्री यात्रा
इस योजना के तहत दिल्ली में महिलाएं 29 अक्टूबर से सभी डीटीसी और क्लस्टर बसों में मुफ्त यात्रा कर सकेंगी। डीटीसी और क्लस्टर बसों में महिला यात्रियों के लिए सिंगल जर्नी पास जारी किये जाएंगे। प्रत्येक सिंगल जर्नी पास के बदले डीटीसी को 10 रुपये रिंबर्समेंट किया जाएगा। क्लस्टर बसों के लिए भी यही नियम लागू होगा। अगर कोई महिला इस सुविधा का लाभ नहीं लेना चाहती है तो वह टिकट खरीद सकती है।


सुविधा का दुरुपयोग ना हो इसके लिए ये है योजना
कैबिनेट ने डीटीसी को डीटीसी (फ्री एंड कन्सेशनल पासेस) रेगुलेशंस, 1985 में संशोधन करने के निर्देश दिये हैं। इस सुविधा का दुरुपयोग ना हो इसके लिए डीटीसी और डीआईएमटीएस को टिकट चेकिंग की व्यवस्था मजबूत करने के निर्देश दिये गये हैं।

डीटीसी और क्लस्टर बसों में मुफ्त यात्रा सुविधा लेने की स्थिति में दिल्ली सरकार, स्थानीय निकायों की अधिकारियों/कर्मचारियों को यात्रा भत्ता की अनुमति नहीं होगी। विभागों, स्थानीय निकायों, स्वायत्त संस्थाओं इत्यादि को अपनी सरकारी महिला कर्मियों से अंडरटेकिंग लेना होगा कि वे मुफ्त यात्रा की सुविधा नहीं ले रही हैं।
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जैसे-जैसे दिल्ली विधानसभा चुनाव निकट आ रहे हैं, दिल्ली के मुख्यमंत्री उतने ही सक्रीय नज़र आ रहे हैं। उनके नितरोज हो.....

एयरपोर्ट जाने वाली बसों में भी ये सुविधा
स्कीम लागू होने के बाद परिवहन विभाग, केंद्रीय वित्त मंत्रालय, भारत सरकार को सूचित करेगा कि वे दिल्ली में भारत सरकार से संबंधित सभी मंत्रालयों, विभागों, स्वायत्त निकायों को इससे संबंधित जरूरत निर्देश जारी करें।

डीटीसी के निर्धारित नियमों के अतिरिक्त महिला यात्रियों के सामान के लिए कोई अलग से टिकट नहीं होगा। एयरपोर्ट और अन्य विशेष सेवाओँ के लिए चलाई जाने वाली बसों में भी महिलाओं के लिए मुफ्त यात्रा स्कीम लागू होगी। एनसीआर में जाने वाली डीटीसी और क्लस्टर बसों में भी महिलाओं के लिए मुफ्त यात्रा स्कीम लागू होगी।

वाह केजरीवालजी, जेब में नहीं दानें, बुढ़िया चली भुनाने

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आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
दिल्ली की अरविन्द केजरीवाल सरकार ने लोकसभा चुनाव में हार के बाद वर्ष 2020 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए दिल्ली में महिलाओं को मेट्रो और डीटीसी बस में मुफ्त यात्रा की जो घोषणा की हैं, उसने अनेक सवाल खड़े कर दिये हैं। राजनीति में इस तरह खैरात बांटने एवं मुक्त की सुविधाओं की घोषणाएं करके मतदाताओं को ठगने एवं लुभाने की कुचेष्टाएं न केवल घातक है बल्कि एक बड़ी विसंगति का द्योेतक हैं। यह विसंगति इसलिये है कि दिल्ली सरकार एक तरफ तो कह रही है कि दिल्ली में विकास के लिए पैसा नहीं लेकिन मुफ्त की यात्रा के लिए 1300 करोड़ की सलाना सब्सिडी देने के लिए तैयार हो गई है।
बालाकोट एयर स्ट्राइक होने से पूर्व, केजरीवाल ने मेट्रो के बढ़े किराए के विरुद्ध धरने देने की घोषणा थी, लेकिन अब लोकसभा चुनाव सम्पन्न होने के बाद भी मेट्रो के बढ़े किराए की चिन्ता नहीं, और बात कर रहे हैं, महिलाओं को मुफ्त यात्रा की, केजरीवाल की यह दुरंगी बात गले से नहीं उतरती। 

कहाँ गए शीला दीक्षित के विरुद्ध 370 आरोप ?
सत्ता में आने से पूर्व तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के विरुद्ध 370 आरोप जनता को दिखाकर उन्हें जेल भेजने का खूब ढोल पिट रहे थे, तेज भागते बिजली के मीटर बदलने की बात किया करते थे, लेकिन सत्ता हाथ में आते ही, सब बातें भूल गए। क्या शीला दीक्षित के विरुद्ध जो भी आरोप जनता को दिखाए जा रहे थे, क्या चुनावी हथकण्डा था? या फिर सत्ता से हटते ही भ्रष्टाचार मुक्त हो गयी हैं? केजरीवाल ने अपने बच्चों की कसम खाकर कहा था कि कांग्रेस का समर्थन नहीं लेंगे, लेकिन लिया। इतना ही नहीं, लोकसभा चुनाव हो या किसी राज्य में, कांग्रेस से गठबन्धन के लिए बिलबिलाते रहते हैं।   
लोकतंत्र में इस तरह की बेतूकी एवं अतिश्योक्तिपूर्ण घोषणाएं एवं आश्वासन राजनीति को दूषित करते हैं। लोकतंत्र में सत्ता की कुर्सी पर कोई राजा बन कर नहीं, सेवक बन कर बैठता हैं। उसे शासन और प्रशासन में अपनी कीमत नहीं, मूल्यों का प्रदर्शन करना होता हैं। यह आदर्श स्थिति जिस दिन हमारे राष्ट्रीय चरित्र में आयेगी, उस दिन महानता हमारे सामने होगी। 
फूलों से इत्र बनाया जा सकता है, पर इत्र से फूल नहीं उगाए जाते। उसके लिए बीज को अपनी हस्ती मिटानी पड़ती है। केजरीवालजी! जनता की मेहनत की कमाई को लुटाने के लिये नहीं, बल्कि उसका जनहित में उपयोग करने के लिये आपको जिम्मेदारी दी गयी है। इस जिम्मेदारी का सम्यक् निर्वहन करके ही आप सत्ता के काबिल बने रह सकते हैं। इस तरह खेरात में रेवड़िया बांटने या जनधन का दुरुपयोग करने से पात्रता हासिल नहीं हो सकती। लगता है कि राजनीतिक दल इस बात से पूरी तरह बेखबर हैं कि लोक लुभावन राजनीति के कैसे दुष्परिणाम हो सकते हैं। वे सत्ता हासिल करने के लिए सामाजिक और आर्थिक हालात को एक ऐसी अंधेरी खाई की तरफ धकेल रहे हैं जहां से निकलना कठिन हो सकता है।
देश की राजनीति एक बड़ी हद तक मूल्यों पर चलती थी। दल और मतदाता दोनों ही कहीं न कहीं नैतिकता और आदर्शों का पालन कर राजनीतिक गरिमा बनाए रखते थे, लेकिन आज स्थिति बदल गई है। अब राजनीतिक दल चुनावों के समय या चुनावों से पूर्व जिस तरह लोक-लुभावन घोषणाएं करते रहते हैं उस पर प्रश्न खड़ा करने का समय आ चुका है। पार्टियां जिस तरह अपनी सीमा से कहीं आगे बढ़कर लोक-लुभावन वादे करने लगी हैं उसे किसी भी तरह से जनहित में नहीं कहा जा सकता। बेहिसाब लोक-लुभावन घोषणाएं और पूरे न हो सकने वाले आश्वासन पार्टियों को तात्कालिक लाभ तो जरूर पहुंचा सकते हैं, पर इससे देश के दीर्घकालिक सामाजिक और आर्थिक हालात पर प्रतिकूल असर पड़ने की भी आशंका है।
प्रश्न है कि क्या सार्वजनिक संसाधन किसी को बिल्कुल मुफ्त में उपलब्ध कराए जाने चाहिए? क्या जनधन को चाहे जैसे खर्च करने का सरकारों को अधिकार है? तब, जब सरकारें आर्थिक रूप से आरामदेह स्थिति में न हों। यह प्रवृत्ति राजनीतिक लाभ से प्रेरित तो है ही, सांस्थानिक विफलता को भी ढकती है, और इसे किसी एक पार्टी या सरकार तक सीमित नहीं रखा जा सकता। अर्थव्यवस्था और राज्य की माली हालत को ताक पर रखकर लगभग सभी पार्टियों व सरकारों ने साड़ियाँ, गहने, लैपटॉप, टीवी, स्मार्टफोन से लेकर चावल, दूध, घी तक बांटा है या बांटने का वादा किया है। 
दिल्ली से पहले यह सब खेल तमिलनाडु की राजनीति से शुरू हुआ था जहां साड़ी, मंगलसूत्र, मिक्सी, टीवी आदि बांटने की संस्कृति ने जन्म लिया। आज देश के ऐसे बहुत से राज्य हैं जहां इसका विस्तार हो गया है। यह संस्कृति थमने का नाम ही नहीं ले रही है। सस्ते दर पर अनाज मुहैया कराने की परंपरा घातक साबित होने वाली है। अगर ऐसा ही रहा तो किसानों को खेती में सिर खपाने की क्या जरूरत है? सीमांत किसान, जिस पर देश के 50 प्रतिशत कृषि उत्पादन का भार है, मनरेगा या अन्य किसी दिहाड़ी कामकाज से जुड़कर 300 रुपये प्रतिदिन कमा ही लेगा। जाहिर है इस पैसे से वह पर्याप्त अनाज प्राप्त कर लेगा। सवाल है कि ऐसे में खेती कौन करेगा?
किसानों की समस्याओं को भी हल करने में ईमानदारी बरतने की बजाय सरकारें इसी तरह के लोक-लुभावन कदमों के जरिए उन्हें बहलाती रही हैं। ऐसी नीतियों पर अब गंभीरता से गौर करने की जरूरत है। 
अपने राज्य की स्त्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करना हरेक सरकार का अहम दायित्व है, लेकिन उनकी मुकम्मल सुरक्षा मेट्रो या बस में मुफ्त यात्रा की सुविधा मेें नहीं, बल्कि अन्य सुरक्षा उपायों के साथ टिकट खरीदकर उसमें सफर करने की आर्थिक हैसियत हासिल कराने में है। दुर्भाग्य से सरकारें इस पर ज्यादा नहीं सोचतीं। वे जनता को बेवकूफ एवं अनपढ़ समझकर ढगने एवं लुभाने में ही इतिश्री समझ लेती है। चूंकि ऐसे लोक-लुभावन वादे आर्थिक नियमों की अनदेखी करके किए जाते हैं, इसलिए उनका असर देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। हकीकत में इन तरीकों से हम एक ऐसे समाज को जन्म देंगे जो उत्पादक नहीं बनकर आश्रित और अकर्मण्य होगा और इसका सीधा असर देश की पारिस्थितिकी और प्रगति, दोनों पर पड़ेगा। सवाल यह खड़ा होता है कि इस अनैतिक राजनीति का हम कब तक साथ देते रहेंगे? इस पर अंकुश लगाने का पहला दायित्व तो हम जनता पर ही है, पर शायद इसमें चुनाव आयोग को भी सख्ती से आगे आना होगा।
अभी-अभी संपन्न लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को भारी शिकस्त झेलनी पड़ी है। राज्य की सात लोकसभा सीटों में से पांच में उसके प्रत्याशी तीसरे नंबर पर रहे। ऐसे में, मुख्यमंत्री केजरीवाल ने अपने पुराने नुस्खे को फिर से आजमाया है। पिछले विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने दिल्ली के हरेक परिवार को प्रतिमाह 20 हजार लीटर पानी मुफ्त में मुहैया कराने और बिजली का बिल आधा करने का यकीन दिलाया था और सत्ता में आने के चंद घंटों के भीतर उन्होंने अपने इन दोनों वादों को पूरा भी किया। लेकिन क्या इस तरह जनजीवन में मुफ्तखोरी की संस्कृति का बीजवपन नहीं किया जा रहा है? 
हाफ रेट में बिजली की घोषणा की थी। आज हाफ रेट छोड़िए 3 गुना ज्यादा रेट पर बिजली मिल रही हैफिक्स चार्ज भी बढ़ाया है। अब चुनाव नजदीक है तो इन्होंने उसको हटाने की प्रक्रिया शुरू की है। अब तो हम यह भी मांग कर रहे हैं कि जितना भी आपने फिक्स रेट बढ़ाकर पैसा लिया वो दिल्ली की जनता को वापस करो। आयुष्मान भारत योजना पर अरविंद केजरीवाल ने डॉक्टर हर्षवर्धन को चिट्ठी लिखकर कहा है कि दिल्ली की योजना आयुष्मान योजना से बेहतर है इसलिए दिल्ली में आयुष्मान भारत योजना लागू नहीं होगी। मैं आज अरविंद केजरीवाल से दो मांगे करता हूं, पहला- आप श्वेत पत्र जारी करके यह बताओ कि आपने दिल्ली में अपनी योजना से कितने लोगों का इलाज करवाया। 
दूसरा- उन्होंने बहुत ही घातक बात लिखी है। लिखा है कि आयुष्मान भारत योजना से केवल बेहद गरीब लोगों को ही फायदा होता है। तो बेहद गरीब के क्यों दुश्मन बन गए अरविंद केजरीवाल आप? आप जो भी योजना दे रहे हो अगर केंद्र भी कोई योजना दे रहा है तो उसको रोकने की क्या जरूरत है दोनों को देने दो अभी तो उनके सवालों के जवाब डॉक्टर हर्षवर्धन जी देंगे लेकिन जो आप कर रहे हो अगर वह कोई और भी कर रहा है तो उसमें आपको परेशानी क्या है
आज हम जीवन नहीं, मजबूरियां जी रहे हैं। जीवन की सार्थकता नहीं रही। अच्छे-बुरे, उपयोगी-अनुपयोगी का फर्क नहीं कर पा रहे हैं। मार्गदर्शक यानि नेता शब्द कितना पवित्र व अर्थपूर्ण था पर नेता अभिनेता बन गया। नेतृत्व व्यवसायी एवं स्वार्थी बन गया। आज नेता शब्द एक गाली है। जबकि तीन दशक पूर्व तक नेता तो पिता का पर्याय था। उसे पिता का किरदार निभाना चाहिए था। पिता केवल वही नहीं होता जो जन्म का हेतु बनता है अपितु वह भी होता है, जो अनुशासन सिखाता है, विकास की राह दिखाता है, आगे बढ़ने का मार्गदर्शक बनता है और सुशासन देता है।
राजनीति में जनता के दिलों को जीतने के लिये सत्ता नहीं सेवा का भाव अपनाना होगा। गांधी जी ने एक मुट्टी नमक उठाया था, तब उसका वजन कुछ तोले ही नहीं था। उसने राष्ट्र के नमक को जगा दिया था। सुभाष ने जब दिल्ली चलो का घोष किया तो लाखों-करोड़ों पांवों में शक्ति का संचालन हो गया। नेहरू ने जब सतलज के किनारे सम्पूर्ण आजादी ही मांग की तो सारी नदियों के किनारों पर इस घोष की प्रतिध्वनि सुनाई दी थी। पटेल ने जब रियासतों के एकीकरण के दृढ़ संकल्प की हुंकार भरी तो राजाओं के वे हाथ जो तलवार पकड़े रहते थे, हस्ताक्षरों के लिए कलम पर आ गये। आज वह तेज व आचरण नेतृत्व में लुप्त  हो गया। आचरणहीनता कांच की तरह टूटती नहीं, उसे लोहे की तरह गलाना पड़ता है। यह बात केजरीवालजी के जिस दिन समझ में आयेगी, वे झूठे आश्वासनों एवं घोषणाओं से ऊपर उठ जायेंगे तो उनकी जन-स्वीकार्यता स्वतः सामने आ जायेगी।  

दिल्ली : क्या महिलाओं के लिए फ्री हो सकती है बस और मेट्रो की सवारी?


For the first time in the country, women will be able to travel freely in metro and buses
आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
विधानसभा चुनाव से पहले दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार महिलाओं के लिए बड़ा ऐलान कर सकती है। दिल्ली सरकार जल्द ही महिला यात्रियों के लिए बस और मेट्रो का किराया माफ कर सकती है, ताकि उनके लिए सार्वजनिक यात्रा को सुविधाजनक बनाया जा सके। 
द टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, दिल्ली सरकार के एक अधिकारी ने कहा, 'सरकार सार्वजनिक परिवहन में महिलाओं के लिए मुफ्त यात्रा की योजना बना रही है। इस निर्णय के कारण दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन, दिल्ली परिवहन निगम और क्लस्टर स्कीम की बसों को राजस्व का नुकसान उठाना पड़ेगा।'
माना जाता है कि दिल्ली के परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत की अध्यक्षता में डीएमआरसी के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक कर संभावित परिदृश्य पर विचार किया जा रहा है, जहां महिला यात्री रियायत या पूर्ण शुल्क माफी का लाभ उठा सकती हैं। गहलोत ने इस संबंध में अधिकारियों से प्रस्ताव तैयार करने को कहा है।
वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि ये कदम उठाने के लिए रास्ता निकाला जा रहा है, क्योंकि तकनीकी चुनौतियों की वजह से इसे लागू करना मुश्किल है। हालांकि, DMRC (दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन) द्वारा अभी तक इस तरह की योजना पर कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई है।
मेट्रो में हर दिन करीब 30 लाख लोग यात्रा करते हैं, जिसमें से 25 प्रतिशत से ज्यादा महिलाएं होती हैं। दिल्ली में मेट्रो की तुलना में लोग बस ज्यादा उपयोग करते हैं, लेकिन बस में महिला यात्रियों की संख्या 20 प्रतिशत से ज्यादा नहीं है। बस में यात्रा करने वाले यात्रियों की संख्या 42 लाख के करीब है।
दिल्ली सरकार के इस फैसले को चुनाव से जोड़कर भी देखा जा सकता है। अगले साल की शुरुआत में दिल्ली में विधानसभा चुनाव होने हैं। लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद आम आदमी पार्टी की नजर अब विधानसभा चुनाव पर है।

प्रति वर्ष 1200 करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा

नई योजना का सीधा फायदा आप सरकार को आने वाले विधानसभा चुनाव में हो सकता है। सूत्रों ने बताया कि हालिया लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद दिल्ली सरकार मास्टर स्ट्रोक योजना की तलाश में है जिससे वह मतदाताओं का भरोसा फिर पा सके।  एक हिंदी अखबार में प्रकाशित खबर के मुताबिक दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन से पूछा है कि वह बताए कि महिलाओं को दी जाने वाली यह सुविधा वो कैसे लागू करेगा? इसके लिए मुफ्त पास की सुविधा दी जाएगी या किसी अन्य विकल्प की तलाश करनी होगी? एक अनुमान के मुताबिक अगर ये योजना लागू की जाती है तो दिल्ली सरकार पर प्रति वर्ष 1200 करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा?
लगता है, अरविन्द केजरीवाल दिल्ली वालों को मुफ्तखोर बनाकर महिला मतदाताओं को लुभाने में प्रयत्नशील है। एक तरफ केजरीवाल कहते हैं कि मोदी सरकार हमें काम करने नहीं देती, फिर किस आधार पर महिलाओं को बसों और मेट्रो में मुफ्त सफर करवाएंगे? क्योंकि केन्द्र में फिर से  आ गयी है। अपनी चुनावी रैलियों में तेज भागते बिजली के मीटर बदलने की बात कही थी, तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित द्वारा किए घोटालों के 370 आरोप दिखाकर में जेल भेजने की बात भी कही थी, दोनों ही बातें पूरी नहीं हुई। केजरीवाल जी आपके कई विधायकों ने अपने क्षेत्रों में कई विकास कार्य किये हैं, उनको आधार बनाकर क्यों नहीं चुनाव की बिसात बिछाते। आखिर कब तक जनता को मुफ्तखोरी के सब्जबाग दिखाकर रिछाते रहोगे?