लाल बहादुर शास्त्री स्मृति भवन संग्रहालय के लोकार्पण समारोह के बाद पत्रकारों से बातचीत में अनिल शास्त्री ने कहा कि दुर्भाग्य की बात है कि मैं कहीं रेलवे स्टेशन या एयरपोर्ट पर जाता हूं तो लोग पूछते हैं, शास्त्री जी की मौत का कारण क्या था?
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उपरोक्त लेख में उठाए गए प्रश्न आज भी अनसुलझे पड़े हैं ! क्यों? |
शास्त्री जी की मौत पर सवाल उठने के कई कारण हैं। जहां उन्हें ठहराया गया था वह जगह ताशकंद शहर से 15 किमी दूर थी। जहां डाक्टरों को पहुंचने में 15 से 20 मिनट लग गये। जहां वह ठहरे थे, वहां चिकित्सकीय व्यवस्था तक नहीं थी। यदि एंबुलेंस होती तो कम से कम अस्पताल तक पहुंचा सकती थी।
सबसे बड़ी बात यह है कि एक प्रधानमंत्री के शयन कक्ष में अपने निजी सचिव को बुलाने के लिए न तो घंटी थी और न ही टेलीफोन। जिस समय उनकी तबियत खराब हुई वे निजी सचिव के पास जाने के लिए कुछ दूर तक चलकर आए। न तो उनकी डायरी वापस आई और न ही थर्मस।
शास्त्री जी की नवासी मेरी समधन श्रीमति शीला श्रीवास्तव भी अक्सर फुर्सत के क्षणों में अपने नाना को याद करते बताती है कि "अपने नाना को अंतिम बार ताशकंत जाते देखा था, लेकिन वहां से उनका शव आने पर किसी को उनके पास तक नहीं जाने दिया था। नानी (श्रीमती ललिता शास्त्री) और बड़े मामा हरी द्वारा खूब हंगामा करने उपरान्त ही सिर्फ बड़ों को उनके पास जाने दिया था। नाना के शरीर पर जगह-जगह नीले निशान पड़े हुए थे।" अब प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि क्या उस समय हमारी चिकित्सा पद्द्ति इतनी निष्क्रिय थी कि मृतक के शरीर पर पड़े नीले निशानों का आकलन कर सके? यदि नहीं, तो पोस्ट-मॉर्टम क्यों नहीं करवाया गया? किन लोगों ने ऐसा करने से रोका था? जो शायद सिद्ध करता है कि लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु, मृत्यु नहीं बल्कि राजनायिक हत्या थी।



शास्त्रीजी की मृत्यु का समाचार सर्वप्रथम अंग्रेजी दैनिक Indian Express में प्रकाशित हुआ था। बाजार में सबसे देरी से आने के बावजूद, सर्वाधिक बिकने वाला भी वही दैनिक था। क्योकि टेलीप्रिंटर पर रात को जिस समय समाचार आया था, उस समय सम्पादकीय विभाग भी काम पूरा कर अपने घर को निकल चुके होते थे। किसी कारणवश एक्सप्रेस सम्पादकीय के कुछ रुके हुए थे, समाचार देखते ही मुख्यसंपादक से सम्पर्क कर, छपाई रुकवाकर, बचे हुए स्टाफ ने प्रथम पृष्ठ तैयार कर ताजे समाचार के साथ शोक समाचार दिया।
जहां बीता बचपन आज वहां तीन पीढ़ियां एक साथ
मौका था लाल बहादुर शास्त्री स्मृति भवन संग्रहालय के लोकार्पण समारोह का। माहौल था राज्यपाल राम नाईक और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इंतजार का। इन सबके बीच पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की तीन पीढ़ियां लंबे समय बाद एक साथ उस आवास में एकत्र हुई जहां बचपन बीता था। सबके चेहरे पर अपने घर के संग्रहालय बनने की खुशी दिखी।
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