लाल बहादुर शास्त्री की मौत की जांच कराए मोदी सरकार -- अनिल शास्त्री

पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के छोटे पुत्र अनिल शास्त्री ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अनुरोध है कि पिताजी की मौत से जुड़े दस्तावेजों का खुलासा किया जाए। राजनारायण कमेटी की रिपोर्ट भी सार्वजनिक की जाए। हो सकता है उनकी मौत प्राकृतिक हुई हो, लेकिन संदेह से परदा उठना चाहिए।
लाल बहादुर शास्त्री स्मृति भवन संग्रहालय के लोकार्पण समारोह के बाद पत्रकारों से बातचीत में अनिल शास्त्री ने कहा कि दुर्भाग्य की बात है कि मैं कहीं रेलवे स्टेशन या एयरपोर्ट पर जाता हूं तो लोग पूछते हैं, शास्त्री जी की मौत का कारण क्या था?
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उपरोक्त लेख में उठाए गए प्रश्न आज भी अनसुलझे पड़े हैं ! क्यों?
अनिल शास्त्री 1989 में वाराणसी के सांसद रहे हैं। उन्होंने कहा कि सेंट्रल  इंफॉरमेशन कमिश्नर ने पीएमओ को पत्र लिखा है कि शास्त्री जी की मौत से संबंधित दस्तावेज का खुलासा होना चाहिए। सीआईसी ने पीएमओ को यह भी लिखा है कि जनता पार्टी ने 1977 में राजनारायण कमेटी का गठन किया था। उस कमेटी की रिपोर्ट मिल नहीं रही है। इस रिपोर्ट को जनता के बीच सार्वजनिक करना चािहए। रिपोर्ट का न मिलना गंभीर मसला है। 
शास्त्री जी की मौत पर सवाल उठने के कई कारण हैं। जहां उन्हें ठहराया गया था वह जगह ताशकंद शहर से 15 किमी दूर थी। जहां डाक्टरों को पहुंचने में 15 से 20 मिनट लग गये। जहां वह ठहरे थे, वहां चिकित्सकीय व्यवस्था तक नहीं थी। यदि एंबुलेंस होती तो कम से कम अस्पताल तक पहुंचा सकती थी।
सबसे बड़ी बात यह है कि एक प्रधानमंत्री के शयन कक्ष में अपने निजी सचिव को बुलाने के लिए न तो घंटी थी और न ही टेलीफोन। जिस समय उनकी तबियत खराब हुई वे निजी सचिव के पास जाने के लिए कुछ दूर तक चलकर आए। न तो उनकी डायरी वापस आई और न ही थर्मस। 
शास्त्री जी की नवासी मेरी समधन श्रीमति शीला श्रीवास्तव भी अक्सर फुर्सत के क्षणों में अपने नाना को याद करते बताती है कि "अपने नाना को अंतिम बार ताशकंत जाते देखा था, लेकिन वहां से उनका शव आने पर किसी को उनके पास तक नहीं जाने दिया था। नानी (श्रीमती ललिता शास्त्री) और बड़े मामा हरी द्वारा खूब हंगामा करने उपरान्त ही सिर्फ बड़ों को उनके पास जाने दिया था। नाना के शरीर पर जगह-जगह नीले निशान पड़े हुए थे।" अब प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि क्या उस समय हमारी चिकित्सा पद्द्ति इतनी निष्क्रिय थी कि मृतक के शरीर पर पड़े नीले निशानों का आकलन कर सके? यदि नहीं, तो पोस्ट-मॉर्टम क्यों नहीं करवाया गया? किन लोगों ने ऐसा करने से रोका था? जो शायद सिद्ध करता है कि लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु, मृत्यु नहीं बल्कि राजनायिक हत्या थी। 
कहते हैं, 1965 में भारत-पाक युद्ध के दौरान शास्त्रीजी केवल सीमा पर  दुश्मन से नहीं, बल्कि देश में छिपे बैठे पाकिस्तान समर्थकों से भी लड़ाई लड़ रहे थे। देश से गद्दारी कर रहे किसी भी प्रतिभाशाली तक को नहीं बक्शा था। जो छद्दम धर्म-निरपेक्षों को रास नहीं आने के कारण ही शायद उनकी हत्या करवा दी गयी थी। जिसका उल्लेख स्वतन्त्र पत्रकारिता करते अपने सर्वाधिक प्रकाशित लेख "देश की राजनीती में अभिनेताओं का हस्तक्षेप" में किया था, जिसे अपनी पुस्तक में भी सम्मिलित किया था।  उन दिनों गैर-फ़िल्मी "कहनी है एक बात हमें आज, देश के वीर सिपाहियों से, संभल कर रहना, देश में छिपे गद्दारों से..." गीत बहुत चर्चित था। काश ! ताशकंत से जीवित आ गए होते, देश से गद्दारी करने वालों का बहुत ही बुरा हश्र होता, इस काम को "बौना" शास्त्री ही कर सकते थे? शायद यही कारण है 2 अक्टूबर को जिसे देखो गाँधी-गाँधी करता  रहता है, शास्त्रीजी को कितने लोग याद करते हैं? 
शास्त्रीजी की मृत्यु का समाचार सर्वप्रथम अंग्रेजी दैनिक Indian Express में प्रकाशित हुआ था। बाजार में सबसे देरी से आने के बावजूद, सर्वाधिक बिकने वाला भी वही दैनिक था। क्योकि टेलीप्रिंटर पर रात को जिस समय समाचार आया था, उस समय सम्पादकीय विभाग भी काम पूरा कर अपने घर को निकल चुके होते थे। किसी कारणवश एक्सप्रेस सम्पादकीय के कुछ रुके हुए थे, समाचार देखते ही मुख्यसंपादक से सम्पर्क कर, छपाई रुकवाकर, बचे हुए स्टाफ ने प्रथम पृष्ठ तैयार कर ताजे समाचार के साथ शोक समाचार दिया।     

जहां बीता बचपन आज वहां तीन पीढ़ियां एक साथ

मौका था लाल बहादुर शास्त्री स्मृति भवन संग्रहालय के लोकार्पण समारोह का। माहौल था राज्यपाल राम नाईक और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इंतजार का। इन सबके बीच पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की तीन पीढ़ियां लंबे समय बाद एक साथ उस आवास में एकत्र हुई जहां बचपन बीता था। सबके चेहरे पर अपने घर के संग्रहालय बनने की खुशी दिखी।

नई पीढ़ी के लोगों को पुरानी पीढ़ी के लोग बताते दिखे की यहां पर सोते थे, यहां खेलते थे। बचपन में छिपने के स्थान और फूटी खपरैल से बारिश में टपकती बूंदों के उस स्थान को दिखा रहे थे जो आज चमाचम हो गया है। पूर्व प्रधानमंत्री की तीन पीढि़यों में सुनील शास्त्री, मीरा शास्त्री, मंजू शास्त्री, नीरा शास्त्री, सिद्धार्थनाथ सिंह, विनम्र शास्त्री, जया शास्त्री, वैभव शास्त्री, पूजा शास्त्री, जान्या शास्त्री, समीप शास्त्री, सविता सिंह शामिल रहे। 

स्मृति भवन में लाल की स्वाभिमानी ललिता की कहानी  

स्मृति भवन में लाल की स्वाभिमानी ललिता की कहानी दर्शाई गई है। बच्चों के आग्रह पर पूर्व पीएम ने बतौर प्रधानमंत्री एक फिएट बैंक से लोन लेकर खरीदा था। किस्तों की अदायगी के पूर्व वे गोलोकवासी हो गए। बैंक अधिकारियों ने ललिता शास्त्री से किस्त माफ करने का आग्रह किया लेकिन उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया।
भारत के लाल की ललिता ने सच्ची अर्धांगिनी के रूप में न केवल लौकिक जीवन में उनका ख्याल रखा बल्कि पारलौकिक जीवन में शास्त्री जी के स्वाभिमानी आत्मा पर आंच नहीं आने दी। अपने पारिवारिक पेंशन से कार की बची किस्तों का भुगतान किया।

संग्रहालय में आधुनिक तकनीक और पुरातन का संगम

पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री स्मृति भवन संग्रहालय में कुल 14 कमरे हैं। इन कमरों में आधुनिक तकनीक और पुरातन का संगम दिखाया गया है। उनका जीवन परिचय महत्वपूर्ण तिथियों के साथ एक कमरे में लगाया गया है। इसमें दो अक्तूबर 1904 को पूर्व पीएम के जन्म से लेकर 12 जनवरी 1966 को नई दिल्ली में विजय घाट पर अंत्येष्टि तक के बारे में जानकारी दी गई है। पूर्व पीएम की स्मृतियों से जुड़ी 150 से अधिक चित्र लगाए गए हैं।
एक कमरे में उनके पिता शारदा प्रसाद और माता रामदुलारी देवी का ब्लैक एंड व्हाइट फोटो लगाई गई है। इसमें पूर्व पीएम के वंश वृक्ष का जिक्र किया गया है। एक कमरे में खटिया पर सफेद चादर और तकिया, बल्ब, जलता हुआ लालटेन, बेना रखा गया है। जिसमें पूर्व पीएम विश्राम करते थे। इसी कमरे में छत पर जाने के लिए सीढ़ी बनाई गई है।
एक कमरे में उनका बैठका था। जहां बैठकर बातचीत करते थे। उनके भाषण और कहे वाक्य को स्लोगन बनाकर लगाया गया है। ललिता शास्त्री की प्रतिमा के पास जवान और किसान को दिखाया गया है। रसोई घर में सिलबट्टा, ओखली, मूसर, पत्थर की चक्की, चौका, बेलन, मिट्टी का चूल्हा, केतली, मथनी, गिलास, लोटा, थाली, पानी भरने का पीतल का गगरा सहित आदि सामान रखे गए हैं। खटिया मचिया सहित कई जरूरी सामान रखे हैं। दो कमरों के बीच में आंगननुमा जगह पर जय जवान और जय किसान के नारे बंदूक और हल के जरिए दिखाया गया है।
उन्होंने माँ को नहीं बताया था कि वो रेलमंत्री हैं।  कहा था, ''मैं रेलवे में नौकरी करता हूँ।'' 
वो एक बार किसी कार्यक्रम मे आए थे जब उनकी माँ भी वहाँ पूछते पूछते पहुची कि मेरा बेटा भी आया हैं वो भी रेलवे में हैं। 
लोगों ने पूछा क्या नाम है तो उन्होंने जब नाम बताया तो सब चौक गए बोले, ''ये झूठ बोल रही है।''
पर वो बोली, ''नहीं वो आए है।''
लोगो ने उन्हें लाल बहादुर शास्त्री के सामने ले जाकर पूछा, ''क्या वहीं हैं ?''
तो माँ बोली, ''हाँ, वो मेरा बेटा है।'' 
लोग, मंत्री जी से दिखा कर बोले, ''वो आपकी माँ है।'' 
तो उन्होंने अपनी माँ को बुला कर पास बैठाया और कुछ देर बाद घर भेज दिया।
तो पत्रकारों ने पुछा, ''आप ने, उनके सामने भाषण क्यों नहीं दिया।'' 
''मेरी माँ को नहीं पता कि मैं मंत्री हूँ। अगर उन्हें पता चल जाय तो लोगों की सिफारिश करने लगेगी और मैं मना भी नहीं कर पाउंगा।  ...... ...... और उन्हें अहंकार भी हो जाएगा।''
जवाब सुन कर, सब सन्न रह गए। 
"कहाँ गए वो निस्वार्थी सच्चे ईमानदार लोग ...... '' 

हम सदैव स्वर्गीय श्री लाल बहादुर शास्त्री जी को अपना जीवन आदर्श मानकर कार्य करते रहेंगे 

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