वोटर लिस्ट से काटे गए चार बांग्लादेशियों के नाम

उत्तर प्रदेश आगरा में बांग्लादेशियों के शरणदाता और सालों से रुनकता में रह रहा सईदुल गाजी व उसके तीन परिजनों के नाम वोटर लिस्ट से काट दिए गए हैं। चारों ने फर्जी तरीके से पहचान पत्र बनवा लिए थे और वह हर चुनाव में मतदान करते थे। चारों परिजन जेल में हैं।
बांग्लादेश मूल का सईदुल गाजी, पत्नी रतना गाजी, बेटे हसन व शमीम के साथ रुनकता में सालों से झोपड़ी बनाकर रह रहा था। उसने अन्य बांग्लादेशियों को भी यहां बुलाकर उन्हें रहने का ठिकाना उपलब्ध कराया। बीते दिनों खुफिया रिपोर्ट के आधार पर पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया। तब पता चला कि पूरे परिवार के नाम वोटर लिस्ट में दर्ज हैं।
राज्य निर्वाचन अधिकारी वेंकटेश्वर लू ने भी जिलाधिकारी एनजी रवि कुमार को इसकी जांच कराने को कहा। किरावली तहसीलदार ने बताया कि चारों के नाम वोटर लिस्ट से हटा दिए हैं। ज्ञात हो, शातिर गाजी पर पुलिस द्वारा शिकंजा कसने के बाद प्रशासन भी उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई रहा है। काफी मुश्किल से हुई उसकी गिरफ्तारी के बाद अब प्रशासन इस मामले में किसी भी तरह की कोताही नहीं बरतना चाहता। यही वजह है कि मतदाता सूची से उसका व उसके परिवार का नाम हटाया गया है।
बड़ा सवाल-वोट बनाने के लिए कौन जिम्मेदार
गाजी परिवार के चार लोगों के नाम वोटर लिस्ट में दर्ज होने में सबसे बड़ा सवाल यह है कि इनके वोट कैसे बन गए? इसके बारे में अभी किसी अधिकारी के पास जवाब नहीं है। काबिलेगौर है कि वोट बनवाने के लिए जांच की प्रक्रिया से भी आवेदक को गुजरना होता है, इसके बाद भी बांग्लादेशियों के वोट बन गए।
यदि इसी गम्भीरता समस्त अल्पसंख्यक क्षेत्रों की मतदान सूची की जाँच करने पर ना जाने कितने फर्जी नाम निकाले जाएँगे।  कहना कठिन है, क्योकि प्रश्न यही आता है, कि बिल्ली के गले में घण्टी बांधे कौन? तुष्टिकरण के चलते कोई हाथ डालना नहीं चाहता, नौकरी सबको प्यारी है, घर-परिवार सभी के हैं। लेकिन लोगों ने चुनावों में नोट कमाने की खातिर ऐसा काम करते हैं। 
पीछे सम्पन्न हुए दिल्ली नगर निगम चुनावों में एक पोलिंग स्टेशन पर एक बहुत ही रोचक ड्रामा दिखा। भाजपा का पोलिंग एजेंट अपने ही घर और पड़ोसियों के 15 वोटों के 500 रूपए प्रति वोट माँग रहा है। यह ड्रामा उस पोलिंग स्टेशन का है, जहाँ भाजपा उम्मीदवार मतदान से एक दिन पूर्व 450 वोट पक्के करने का दावा कर रही थी। जानते हैं, उस पोलिंग से केवल 15 वोट मिले। जिस अल्पसंख्यक ने भाजपा को 450 वोटों का आश्वासन दिलवाया था, उसके आगे उम्मीदवार ने अपने वरिष्ठ कार्यकर्ता की कोई बात ही नहीं सुनी, बल्कि उसका अपमान करने का कोई अवसर नहीं छोड़ा। आज तक पोलिंग पर किए खर्चे तक का पूरा भुगतान नहीं किया। 
कहने का मतलब केवल इतना ही है कि सौदा करके पड़ने वाले अधिकतर वोट बोगस ही होते हैं। जिसे चुनाव आयोग द्वारा इतनी सख्ती होने के बावजूद रोका नहीं जा सका।  

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