RSS विजयादशमी उत्सव : अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण से देश में बढ़ेगा सद्भाव -- मोहन भागवत

Mohan Bhagwatराष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने विजयदशमी समारोह में कहा कि हमारा समाज भारत की अवधारणा से सहज भाव से उपजे जब स्‍व की भावना के सत्‍य को भूल गया और स्‍वार्थ प्रबल हो गए तो हम अत्‍याचार के शिकार हो गए. समाज में अपनी कमियां थी. शासकों ने तो किसी को भी नहीं छोड़ा. बाबर ने ना हिंदू को बख्शा, ना मुस्लिम को बख्‍शा. भारत को इतना शक्तिशाली बनने की जरूरत है कि कोई भी देश हमसे लड़ने की हिम्मत न करे। हालांकि, उन्होंने कहा कि युद्ध की स्थिति में दोनों पक्षों को नुक्सान उठाना पड़ता है। अपने वार्षिक विजयादशमी भाषण में संघ प्रमुख ने राम मन्दिर, राफेल मुद्दा और सबरीमाला मंदिर विवाद पर अपनी राय रखी।
देश में हालिया दौर में हुए आंदोलनों का जिक्र करते हुए ने कहा कि 'भारत तेरे टुकड़े होंगे' कहने वालों का संविधान में यकीन नहीं है. देश में छोटी-छोटी बातों पर आंदोलन होने लगे हैं. बंदूक की नली के आधार पर सत्ता प्राप्त करेंगे, भारत तेरे टुकड़े होंगे जो नारे लगाते हैं, ऐसे भी चेहरे आंदोलन में रहते हैं. हमारे देश में जो हो रहा है, असंतोष का राजनीतिक लाभ लिया जा रहा है. गलत बातों का सोशल मीडिया पर प्रचार हो रहा है.
राफेल सौदे पर जारी विवाद का हवाला देते हुए भागवत ने कहा कि विदेशी देशों के साथ इस तरह के करार होते रहने चाहिए लेकिन रक्षा के क्षेत्र में भारत को आत्म-निर्भर बनने के बारे में सोचना चाहिए। उन्होंने कहा, 'हमें अपनी सुरक्षा के लिए जिन चीजों की जरूरत है, हमें उनका उत्पादन करना चाहिए।'
संघ प्रमुख ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार एससी और एसटी सब प्लान के लिए आवंटित धन खर्च नहीं कर रही है। उन्होंने कहा, 'यदि मदद समय पर नहीं पहुंचती तो इसे मदद के रूप में नहीं देखा जा सकता। अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति की योजनाओं को लागू नहीं किया गया। इन योजनाओं के लिए धन क्यों नहीं खर्च हुआ?'
सबरीमाला मंदिर विवाद पर संघ प्रमुख ने कहा कि महिला और पुरुष समान माने गए हैं। उन्होंने कहा, 'इस मसले पर हमें आपसी सहमति बनानी चाहिए थी। भक्तों से विचार-विमर्श किया जाना चाहिए था।'
सबरीमाला
सबरीमाला का निर्णय देखिए, क्या हुआ, बात करनी थी मन बनाना था. भावनाएं नहीं देखी गईं, पंथ समुदाय अपना-अपना होता है अमुख बात धर्म के लिए है कि नहीं, समझना चाहिए था. ये परंपराएं हैं भइय्या, कुछ कारण होते हैं. वहां तो आंदोलन खड़ा हो गया, वहां तो असंतोष पैदा हो गया. प्रबोधन करना पड़ेगा, मन परिवर्तन करना पड़ेगा. हम समानता लाना चाहते हैं, लेकिन समाज में अस्थिरता पैदा हो जाती है. इसके साथ ही कहा कि राम मंदिर पर जल्‍द निर्णय आना चाहिए. राम मंदिर पर सरकार कानून बनाए.

उन्होंने कहा, 'शबरीमल्ला देवस्थान के सम्बंध में सैकड़ों वर्षों की परम्परा, जिसकी समाज में स्वीकार्यता है, उसके स्वरूप व कारणों के मूल का विचार नहीं किया गया। धार्मिक परम्पराओं के प्रमुखों का पक्ष, करोड़ों भक्तों की श्रद्धा, महिलाओं का बड़ा वर्ग इन नियमों को मानता है, उनकी बात नहीं सुनी गई।' 
संघ प्रमुख ने कहा, 'यह वर्ष श्रीगुरु नानक देव जी के प्रकाश का 550वां वर्ष है। उन्होंने अपने जीवन की ज्योति जलाकर समाज को अध्यात्म के युगानुकूल आचरण से आत्मोद्धार का नया मार्ग दिखाया, समाज को एकात्मता व नवचैतन्य का संजीवन दिया।' 
अयोध्या में राम मंदिर निर्माण पर भागवत ने कहा,  'श्रीराम मंदिर का बनना स्वगौरव की दृष्टि से आवश्यक है। मंदिर बनने से देश में सद्भावना व एकात्मता का वातावरण बनेगा। राष्ट्र के ‘स्व’ के गौरव के संदर्भ में अपने करोड़ों देशवासियों के साथ श्रीराम जन्मभूमि पर राष्ट्र के प्राणस्वरूप धर्ममर्यादा के विग्रहरूप श्रीरामचन्द्र का भव्य राममंदिर बनाने के प्रयास में संघ सहयोगी है।
शहरी नक्‍सल
शहरी नक्‍सलवाद पर टिप्‍पणी करते हुए कहा कि नक्‍सलवाद हमेशा शहरी ही रहा है. इसका कंटेंट पाक, अमेरिका और क्या इटली से आता है? अर्बन नक्सल की कार्यपद्धित है, अर्बन नक्सल हमेशा अर्बन ही रहा है. छात्रावासों में जाओ, असत्य प्रचार करके भड़काओ, छोटे-छोटे आंदोलन करो. नेतृत्‍व को पहचान कर श्रंखला चलाओ. प्रचलित नेतृत्‍व को ढहा दो. मालिकों के बंदों को स्थापित करो. सभी जगह का इतिहास हमारे सामने है. बंदूक की नली से सत्ता तो आ गई, अर्बन माओवादी बड़े-बड़े शहरों में बुद्धिजीवी बन कर बैठे रहते हैं, ऐसे हजारों विद्वान खड़े हैं. द्वेष पैदा करना ही उनका उद्देश्‍य है, जहां जाएंगे भारत की निंदा करेंगे. आपस में सांठगांठ करके युद्ध चलाया जा रहा है, हम सभी के बीच, मानवशास्त्रीय युद्ध है.
इसके साथ ही उन्‍होंने कहा कि ऐसी घटनाएं ही ना घट पाएं ऐसी चौकसी समाज को भी रखनी पड़ेगी, शासन प्रशासन के साथ इन कारणों को मिटाने का तरीका यही है कि जनहित की योजनाएं अंत तक जाएं. फूट को स्थान नहीं मिलना चाहिए. अभी तक ब्रिटिशों का राज था, लेकिन हमें लोकतंत्र का पालन करना पड़ेगा. हमारा व्यवहार ही हमें बचाएगा, नियम कानून नहीं.
मोहन भागवत ने कहा कि उकसाने वाली शक्तियों से भी बचना होगा. संस्कार लाना चाहिए.  परिवार में संस्कार बनना चाहिए. क्या ये भारत वर्ष है, कड़ा कानून चाहिए बात ठीक है.... सरकार धीरे-धीरे चलती है. प्रशासन आराम से चलता है. जैसे लेट गाड़ी होती है ना, फिर करते-करते दो घंटे लेट हो जाती है. साढ़े 4 साल तो हो गए. घर को पक्का करना पड़ेगा, संस्कार लाना पड़ेगा.
इंटरनेट से तो सब आता है, लेकिन लेने वाले की मानसिकता क्या है इसकी तो कोई व्यवस्था ही नहीं है. जो आता है, खोलता है, मिल जाता है, कानून बनेगा, उसमें देर लगेगी, हम ऐसा वातावरण बनाएं कि देखने की इच्छा ही ना हो. क्या हमें घर की चिंता भी सरकार पर डाल देना चाहिए? उपाय, सद्भावना औऱ प्रेम के सिवाय कुछ भी नहीं है.
एकमात्र भारतीय सभ्यता ही विदेशी आक्रमणकारियों के हमलों के बावजूद अभी तक बची हुई है और वह हिन्दू बहुलता वाला एकमात्र देश है. काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक पंडित मदन मोहन मालवीय के जीवन पर आधारित एक पुस्तक के विमोचन कार्यक्रम के दौरान भागवत ने उक्त बात कही.
सनातन धर्म शाश्वत है और कुछ अगर शाश्वत है तो वह हिन्दुत्व है. मालवीय जैसे व्यक्तित्वों की वजह से ही वह विदेशी आक्रमणकारियों के हमलों के बावजूद बची रही है.
भारत एकमात्र ऐसी सभ्यता है जो विदेशी आक्रमणकारियों के हमलों के बावजूद बचा रहा है जबकि अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया में सब कुछ नष्ट हो गया. देश अभी भी हिन्दू बहुल है. उन्होंने इस पर जोर दिया कि मालवीय ने हमेशा आरएसएस के साथ संबंध बनाए रखे और वह उनके सिद्धांतों के विरूद्ध नहीं थे. उन्होंने कहा कि देश को अब भी मालवीय जैसे व्यक्तित्व की जरूरत है.
इससे पहले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि विपक्षी पार्टियां भी अयोध्या में राम मंदिर का खुलकर विरोध नहीं कर सकती क्योंकि वह देश की बहुसंख्यक जनसंख्या के इष्टदेव हैं. भागवत ने हरिद्वार में पतंजलि योगपीठ में संघ के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राममंदिर निर्माण के प्रति संघ और भाजपा की प्रतिबद्धता जाहिर की थी. साथ ही यह भी कहा कि कुछ कार्यों को करने में समय लगता है .
उन्होंने कहा, ' कुछ कार्य करने में देरी हो जाती है और कुछ कार्य तेजी से होते हैं वहीं कुछ कार्य हो ही नहीं पाते क्योंकि सरकार में अनुशासन में ही रहकर कार्य करना पडता है . सरकार की अपनी सीमायें होती हैं .' संघ प्रमुख ने कहा कि साधु और संत ऐसी सीमाओं से परे हैं और उन्हें धर्म, देश और समाज के उत्थान के लिये कार्य करना चाहिए .
पाकिस्‍तान
परोक्ष रूप से पाकिस्‍तान के संदर्भ में मोहन भागवत ने कहा कि सुरक्षा को लेकर हम सजग हैं. सरकार किसी की भी हो हम किसी से भी शत्रुता नहीं करते. लेकिन बचने के लिए उपाय तो करना पड़ेगा. वहां परिवर्तन के बाद भी कुछ बदलता नजर नहीं आ रहा है. अपनी सेना को संपन्न बनाना होगा ताकि हमारी सेना का मनोबल कम न हो, संतुलन को रखकर काम करना होगा. इसी कारण संपूर्ण विश्व में हाल में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ी है. लेकिन हम विश्वास पैदा करने के लिए हम गोली का जवाब गोली से देने की हिम्मत रखते हैं.
इसके साथ ही कहा कि सीमा पर सुरक्षा कर रहे परिवारों की रक्षा का दायित्व हमारा है, उनकी चिंता कौन करेगा, शासन ने कदम तो बढ़ाए लेकिन गति बढ़ाने की जरूरत है. ये विश्‍वास पैदा होना चाहिए जवानों में कि हम यहां रक्षा कर रहे हैं लेकिन हमारे परिवार की रक्षा शासन कर लेगा.
मोहन भागवत ने कहा कि शासन के साथ समाज का भी कुछ दायित्व है. हमें सोचना होगा कि क्‍या हमने अपना देश सरकार को सौंप दिया है? ऐसा इसलिए क्‍योंकि पहला दायित्व तो हमारा है, सरकार को तो हम ही चुन कर भेजते हैं. सीमा केवल भू-सीमा नहीं होती, सागरी सीमा भी है, आजकल अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर इसका महत्व भी बढ़ गया है. सभी छोटे-छोटे द्वीपों की रक्षा होनी चाहिए क्‍योंकि भारत के सामर्थ्य को कम करने के लिए लोगों ने गले के चारों ओर फांस बनाने की कोशिश तो कर ही ली है.
कैलाश सत्यार्थी मुख्य अतिथि
नोबेल पुरस्कार से सम्मानित और सामाजिक कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के वार्षिक ‘‘विजयादशमी’’ समारोह में अतिथि हैं. कार्यक्रम का आयोजन नागपुर के रेशमीबाग मैदान में आयोजित किया जा रहा है. उल्‍लेखनीय है कि मोहन भागवत ने पिछले वर्ष रोहिंग्या संकट, गोरक्षा, जम्मू-कश्मीर और सर्जिकल स्ट्राइक जैसे मुद्दों पर अपने विचार व्यक्त किए थे.

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