अयोध्या में राम मन्दिर के लिए मोदी सरकार का साहसिक कदम

अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के मसले पर मोदी सरकार ने बड़ा कदम उठाया है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में रिट पिटीशन दायर की है। राम मंदिर निर्माण के मुद्दे पर प्रस्ताव को लेकर केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची है। लगभग 0.3 एकड़ भूमि जो कि विवादित है उसे छोड़कर शेष 70 एकड़ भूमि जो अधिग्रहित की गई थी, उसे मालिकों को वापस किया जा सकता है और यह 70 एकड़ भूमि है जिसे मोदी सरकार ने याचिका के माध्यम से अधिग्रहित करने की परमिशन मांगी है।
केंद्र सरकार ने 70 एकड़ जमीन अधिकृत की है। बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि पर यथास्थिति के आदेश वापस लेने की अर्जी है। अर्जी में कहा गया है कि 2.77 एकड़ जमीन पर निर्माण का अधिकार मिले। सरकार ने हिन्दू पक्षकारों को दी जमीन रामजन्म भूमि न्यास को देने की अपील की है।

अयोध्या की कौन सी जमीन लौटाना चाहती है मोदी सरकार?

अयोध्या में राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद मामले में मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से गैर- विवादित जमीन 67 एकड़ जमीन को उसके मालिकों को लौटाने की इजाजत मांगी है. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि यथास्थिति को हटाते हुए 67 एकड़ गैर विवादित जमीन को उसके मालिकों को वापस करने की अनुमति दी जाए. 1993 में अयोध्या में विवादित स्थल सहित आसपास की करीब 70 एकड़ जमीन का केंद्र सरकार ने अधिग्रहण किया था.
हालांकि, केंद्र सरकार ने अपनी याचिका में कहा है कि अयोध्या मामले में महज 0.313 एकड़ जमीन पर ही विवाद है और बाकी जमीन पर यथास्थिति रखने की जरूरत नहीं है. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा है कि अयोध्या में विवादित स्थल के आस-पास की हिंदू पक्षकारों की जो जमीन अधिग्रहित की गई थी, उसे रामजन्मभूमि न्यास को सौंप दिया जाए.
नरसिम्हा राव सरकार ने किया था अधिग्रहण
बता दें कि 6 दिसंबर, 1992 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार ने 1993 में अध्यादेश लाकर विवादित स्थल और आस-पास की जमीन का अधिग्रहण किया था. इसमें 40 एकड़ जमीन रामजन्मभूमि न्यास की है. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की याचिका में कहा कि हम चाहते हैं कि इसे उन्हें वापस कर दी जाए ताकि विवादित भूमि तक पहुंचने का रास्ता वगैरह बनाया जा सके.
सही मालिक को जमीन लौटाएगी सरकार
हालांकि, इस्माइल फारुकी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ही कहा है कि जो जमीन बचेगी उसे उसके सही मालिक को वापस करने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार पर है. उस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस्माइल फारुखी जजमेंट में 1994 में तमाम दावेदारी वाले अर्जी को बहाल कर दिया था. कोर्ट ने जमीन को सरकार के पास ही रखने को कहा था और आदेश दिया था कि जिसके पक्ष में फैसला आएगा उसके बाद सरकार जिनकी जमीनें हैं, उन्हें सौंप दे.
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पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर जी ने अयोध्या के रामजन्मूभि पर राम मंदिर बनाने का निर्णय ले लिया था। राजीव गांधी को ....

2.77 एकड़ विवादित जमीन की क्या है स्थिति?

गौरतलब है कि अयोध्या विवाद मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने 30 सितंबर, 2010 को फैसला दिया था. अयोध्या में 2.77 एकड़ की विवादित जमीन को 3 हिस्सों में बांट दिया था, जिसमें रामलला विराजमान वाला हिस्सा हिंदू महासभा को दिया गया. दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़े को और तीसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया गया है. हाई कोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, जिसके बाद 9 मई, 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति बरकरार रखने का आदेश दिया था. इस मामले में अब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है.

1 comment:

AyodhyaPrasad Tripathi said...

मंदिर, शरिया और संविधान
भासं का अनुच्छेद २९(१) मुसलमानों को अपनी संस्कृति को बनाए रखने का मौलिक अधिकार देता है और मौलिक अधिकार में सर्वोच्च न्यायालय को हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है. यह केशवानंद भारती मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने स्वयं स्वीकार भी किया है. अनुच्छेद २९(१) तथाकथित अल्पसंख्यक मुसलमानों को अपने मंदिर तोड़ने की संस्कृति को बनाए रखने का मौलिक अधिकार देता है. अतः इस्लाम और शरिया है तो मंदिर रह ही नहीं सकता.
निर्णय केवल यह कीजिए कि मंदिर रहेगा या इस्लाम.