क्या है सारदा चिट फंड घोटाला? क्यों ममता बनर्जी परेशान हो रही है?

Saradha chit fund case
आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
सारदा चिट फंड घोटाला एक बार फिर सुर्खियों में है। इस घोटाले की जांच को लेकर केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और पश्चिम बंगाल की ममता सरकार आमने-सामने आ गईं। मामले की जांच करने कोलकाता पहुंचे सीबीआई के अधिकारियों को हिरासत में ले लिया गया जबकि अपने पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार के बचाव में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी धरने पर बैठ गईं। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो शीर्ष अदालत ने राजीव कुमार को जांच में सहयोग करने का आदेश दिया और पश्चिम बंगाल सरकार को नाटिस जारी किया। इस घोटाले में करीब 40 हजार करोड़ रुपये का हेर-फेर हुआ है। साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने भी सीबीआई को जांच का आदेश दिया था। साथ ही पश्चिम बंगाल, ओडिशा और असम पुलिस को आदेश दिया था कि वे सीबीआई के साथ जांच में सहयोग करें !सारदा चिट फंड घोटाले ने देश का राजनीतिक पारा बढ़ा दिया है। आइए जानते हैं इस घोटाले के बारे में-
सारदा चिटफंड आम लोगों को सब्जबाग दिखाकर बेवकूफ बनाने की ऐसी दास्तान है 2004 से शुरू होती है। इस कंपनी की स्थापना जुलाई 2008 में की गई थी। हालांकि देखते ही देखते ये कंपनी हजारों करोड़ की मालिक बन गई। आरोप लगाया जाता है कि इस कंपनी के मालिक सुदिप्तो सेन ने ‘सियासी प्रतिष्ठा और ताक़त’ हासिल करने के लिए मीडिया में खूब पैसे लगाए और हर पार्टी के नेताओं से जान पहचान बढ़ाई ! जब केन्द्र में मनमोहन सिंह सरकार थी और बंगाल में लेफ्ट की। और केन्द्र में मनमोहन सरकार लेफ्ट की बैसाखी पर ही टिकी थी। यह वही दौर था, जब बंगाल में शारदा चिटफंड कम्पनी ने अपना कारोबार का श्रीगणेश कर, बंगाल की मासूम जनता को रातों-रात अमीर बनने का सपना दिखाया जा रहा था। और इस लालच में मिडिल और गरीब लोग आ गए। लोगों ने अपनी जमा पूंजी लगानी शुरू कर दी।
जैसाकि हर जालसाज कम्पनी के साथ होता है, शुरू में शारदा चिटफंड ने अपने वायदे के मुताबिक लोगों को उनकी जमा राशि के मुताबिक के अनुसार दुगना-तिगुनी राशि दी। लालच बढ़ता देख, लोगों ने अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया। लेकिन 2013 में अचानक कंपनी कहीं गायब हो गयी।
कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार

राजीव कुमार का क्या है रोल ?

शारदा चिटफंड घोटाले में कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार सीबीआई जांच के घेरे में हैं। दरअसल राजीव कुमार ने ही चिटफंड घोटालों की जांच करनेवाली एसआईटी टीम की अगुवाई की थी। साथ ही कहा गया था कि इस जांच के दौरान घोटाला हुआ था। इस कमेटी की स्थापना साल 2013 में की गई थी। सूत्रों के अनुसार घोटाले की जांच से जुड़ी कुछ अहम फाइल और दस्तावेज गायब हैं ! वहीं सीबीआई गुम फाइलों और दस्तावेजों को लेकर पुलिस कमिश्नर से पूछताछ करना चाहती है। साथ ही सीबीआई ने पुलिस कमिश्नर को फरार बताया था!

चिंदबरम की पत्नी के खिलाफ भी आरोप पत्र

हाल ही में सीबीआई ने पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम की पत्नी नलिनी चिदंबरम के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल कर दावा किया है कि चिट फंड घोटाले में घिरे शारदा ग्रुप की कंपनियों से उन्हें 1.4करोड़ रुपये मिले !
शारदा चिटफंड का चीटिंग फार्मूला
फार्मूला नंबर एक: शारदा चिटफंड कंपनी की सबसे लोकप्रिय स्कीम थी सागौन  खेती के बांड्स की। वायदा था कि अगर कोई इसमें 1 लाख रूपए लगाए तो 25 वर्षों बाद उसे 34 लाख मिलेंगे। लाखों मिडिल क्लास के लोगों ने अपने बच्चों के सुरक्षित भविष्य की उम्मीद में एक-एक लाख वाली स्कीम में राशि निवेश कर दी। इस आशा में की 25 वर्ष उपरांत उन्हें 34 लाख मिलने पर उनका और उनके परिवार का भविष्य सुखमय हो जाएगा। लेकिन हुआ उसके विपरीत।
स्मरण हो, पूर्व में भी पेरू आदि नामों से इस तरह के बहुत घोटाले होते रहे हैं, सबके सब ठंठे बस्ते में दफ़न हो गए। शोर मचा, जनता पागल बनती गयी। किसी को आज तक कुछ नहीं मिला। कुछ कंपनियों ने बाकायदा हर वर्ष होने वाली आय के इकट्ठे चैक तक दे दिए थे।
फार्मूला नंबर दो:
कंपनी की एक स्कीम थी कि आप उनसे आलू की खेती का अनुबन्ध लें। कंपनी का कहना था कि वो आलू बोयेंगे और उसमे निवेश की गयी राशि को 15 महीने में दुगुना करके वापस कर देंगे। लेकिन किसी ने कंपनी से यह तक नहीं पूछा कि आलू बोने के लिए खेती की जमीन कहाँ है? और आलू की फसल से दुगुना रिटर्न देने का आखिर तरीका क्या है?
फार्मूला नंबर तीन:
सारदा चिटफंड सागौन की खेती के भी बांड्स बेचती थी। ऐसी ही लुभावनी स्कीमों में लगभग 10 लाख जनता फंस गयी और अपनी पूरी ज़िन्दगी की जमा पूंजी लगा दी। ढेरों लोग ऐसे भी थे, जिन्होंने अपनी रिटायरमेंट में मिली पूंजी को भी दांव पर लगा दी थी। कंपनी का मालिक सुदीप्तो सेन इस राशि पर ऐश करता था और उसने एक न्यूज़ चैनल भी खोल कर नेताओं से अपने सम्पर्क बनाता रहा।
कैसे खुली इस जालसाजी की पोल
झूठे सपने और फरेबी स्कीम बेचने का आलम यह था कि सारदा ग्रुप ने सिर्फ 5 साल में बंगाल समेत झाड़खंड, ओडिसा, और नार्थ-ईस्ट राज्यों में लगभग 300 दफ्तर खोल लिए थे। उसके हज़ारों कमीशन एजेंट थे। जो लोगों को कंपनी की स्कीमों में पैसा निवेश करने के लिए समझाते थे। लेकिन धोखे की पोल खुलते ही एजेंट दफ्तरों में ताले डाल गायब होने लगे। कहते हैं कि कुछ एजेंटों ने डर के मारे आत्महत्या भी कर चुके हैं। इतना ही नहीं लगभग 600 एजेंटों ने कम्पनी के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया। कंपनी की ढगी का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि 2013 से पहले बंगाल में दुर्गा पूजा और फुटबॉल मैचों तक में बतौर प्रायोजक पैसा निवेश कर अपना प्रचार कर रही थी।
ममता की पार्टी को चिटफंड का धन मिला
मई 2011 ममता बनर्जी बंगाल की मुख्यमंत्री बनी थी। सारदा चिटफंड बंगाल में यूँ तो पहले से ही चल रहा था, लेकिन ममता के आते ही मानो इसके पंख लग गए। इसके बाद ही कंपनी पुरे बंगाल में पैर पसारने में सफल हो गयी। माना जाता है कि विधान सभा चुनाव में ममता की तृणमूल पार्टी को सारदा चिटफण्ड ने करोडो रूपए बतौर चंदा दिया था। और इसी पैसे के दम पर ममता ने 2011 में प्रचंड बहुमत हासिल किया था। 2013 में जब इसका भांडा फूटा तो ममता ने इस पर पर्दा डालने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी थी, यहाँ तक की सरकारी खातों से कुछ छोटे निवेशकों को उनकी राशि देने का प्रयास किया गया था। लेकिन घोटाले में तृणमूल नेताओं के नाम आने से मामले ने राजनितिक रूप ले लिया। 
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कोलकाता में ममता बनर्जी के धरने में शामिल होने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू हो गई है। गृह म...

यह बात भी सामने आयी कि ममता की घटिया पेंटिंग को सारदा कंपनी ने करोड़ों में ख़रीदा था, जिस कारण ममता बनर्जी का नाम घोटाले में शामिल हो गया। जाँच के लिए ममता ने राजीव कुमार की अध्यक्षता में SIT का गठन किया। लेकिन उन्होंने जाँच की बजाए घोटाले को ठंठे बस्ते में डाल दिया। 2014 में मामला सुप्रीम कोर्ट गया और कोर्ट ने सीबीआई को जाँच के आदेश दिए।
  1. सारदा ग्रुप चिटफंड घोटाला भारत में अब तक के सबसे बड़े घोटालों में से एक है जिसमें करीब 14 लाख लोगों को ज्यादा रिर्टन का लालच देकर उनसे 1200 करोड़ रुपए का ठगी हुआ। यह समूह अपने निवेश से प्राप्त आय की जगह पुराने निवेशकों को भुगतान नए निवेशकों से प्राप्त धन से करता था। बाद में पाया गया कि कंपनी ने भारतीय दंड संहिता के विभिन्न प्रावधानों,  कंपनी एवं सेबी अधिनियम का गंभीर उल्लघंन किया है।

  2. पश्चिम बंगाल एवं पड़ोसी राज्यों में लाखों लोगों के साथ हजारों करोड़ रुपए की धोखाधड़ी का यह मामला साल 2013 में सामने आया। बाद में इस केस ने राजनीतिक मोड़ ले लिया और इसे लेकर पश्चिम बंगाल की ममता सरकार पर सवाल उठने लगे। पश्चिम बंगाल सरकार पर चिट फंड ग्रुप के चेयरमैन सुदिप्ता सेन के साथ सीधा संपर्क होने के आरोप लगे

  3. जनता के बीच अपनी छबि साफ रखने के लिए सारदा ग्रुप ने कोलकाता के फुटबाल क्लब मोहन बागान और ईस्ट बंगाल में निवेश किए। साथ ही उसने दुर्गा पूजा कार्यक्रमों को भी प्रायोजित किए।

  4. इस घोटाले से सबसे अत्यधिक जो राज्य प्रभावित हुए उनमें पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम, झारखंड और त्रिपुरा शामिल हैं।

  5. चिटफंड छोटे व्यापारियों और कारोबारियों को रोज अतिरिक्त पैसों की बचत करने में मदद करता है। ग्रामीण इलाकों में बचत का इसे बेहतर विकल्प माना जाता है। इस बचत पर सलाना ब्याज करीब 12 प्रतिशत मिलता है। सूदखोरों के ब्याज को देखते हुए इसे कम माना जाता है। जबकि फिक्स्ड डिपॉजिट पर बैंक सात से आठ प्रतिशत का ब्याज देते हैं।

  6. मिडिया रिपोर्ट के अनुसार सारदा ग्रुप जिसने सारदा घोटाले को अंजाम दिया, समझा जाता है कि अप्रैल 2013 में कानूनी गिरफ्त में आने से पहले उसने अपने चिट फंड के जरिए करीब 1200 करोड़ रुपए का हेरफेर किया।   

  7. 2013 में घोटाला सामने आने के बाद ममता बनर्जी सरकार ने योजना में पैसा लगाने वाले छोटे निवेशकों के लिए  500 करोड़ रुपए का रिलिफ फंड जारी किया।

  8. 14 मार्च 2013 को कॉरपोरेट मामलों के मंत्री सचिन पायलट ने लोकसभा में ऐसी 87 कंपनियों की सूची जारी की जो पोंजी योजनाओं में संलिप्त थीं। इनमें से 73 कंपनियां पश्चिम बंगाल से थीं।

  9. 23 अप्रैल 2013 को सारदा ग्रुप के एमडी एवं चेयरमैन सुदिप्ता सेन, देबजानी मुखर्जी और अरविंद सिंह चौहान को कश्मीर से गिरफ्तार किया गया।

  10. अप्रैल 2013 में सेबी के चेयरमैन यूके सिन्हा ने मुंबई में एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि तथाकथित इस पोंजी योजनाओं के जरिए 10,000 करोड़ रुपए से ज्यादा रकम जुटाई गई। उन्होंने कहा, 'ऐसी योजनाओं में निवेश करने वाले सामान्य लोग एवं कर्मचारी हैं।' कहा जाता है कि सेन ने अकेले निवेशकों के 4000 करोड़ रुपए की हेराफेरी की और इसे देखते हुए इन कंपनियों द्वारा जमा की गई रकम सेबी के अनुमान से ज्यादा हो सकता है।

  11. मिडिया रिपोर्ट के अनुसार सीबीआई द्वारा केस संभालने के बाद एसआईटी ने 11 लोगों को गिरफ्तार किया और 224 अचल संपत्तियों का पता लगाया। इसके अलावा एसआईटी ने 54 वाहनों को जब्त एवं करीब 300 मामलों में आरोपपत्र दाखिल किए।

  12. जांच के दौरान कई बड़े नाम उजागर हुए जिनमें तृणमूल कांग्रेस के 2 सांसद कुणाल घोस और सृंजॉय बोस, पश्चिम बंगाल के पूर्व पुलिस महानिदेशक रजत मजमूदार, पूर्व खेल एवं परिवहन मंत्री मदन मित्रा एवं पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम की पत्नी निलनी के नाम शामिल हैं।

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