आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
क्या सचमुच राहुल गांधी अमेठी से चुनाव लड़ने से डर रहे हैं? जबकि अमेठी कांग्रेस की परम्परागत सीट रही है। फिर आखिर इस डर का कारण क्या है? जो राहुल गाँधी प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी को कभी विकास, तो कभी राफेल, तो कभी आतंकवादियों पर होती कार्यवाही पर सबूत माँग आदि से जनता को भ्रमित करने से अपनी ही ज़मीन खिसकती देख केरल भाग रहे हैं, क्यों? हकीकत यह है कि परम्परागत कांग्रेस सीट होने के बावजूद अमेठी में विकास के नाम पर वहाँ की जनता को मूर्ख बनाकर वोट लेने के अलावा दूसरा कोई काम नहीं किया। मार्च 23 को केरल कांग्रेस के अध्यक्ष मुल्लापल्ली रामचंद्रन ने घोषणा की कि राहुल गाँधी केरल के वायनाड लोक सभा सीट से चुनाव लड़ने के लिए तैयार है। इसका मतलब कि राहुल गाँधी अबकी बार अमेठी के साथ साथ वायनाड से भी लोक सभा चुनाव लड़ सकते हैं। कांग्रेस सूत्रों के अनुसार, केरल ही नहीं बल्कि कयास तो ये भी लगाए जा रहे हैं कि राहुल गांधी मध्य प्रदेश, कर्नाटक या तमिलनाडु के किसी लोक सभा सीट से चुनाव लड़ सकते हैं। सीधा प्रश्न है कि आख़िर राहुल गांधी सिर्फ अमेठी से चुनाव लड़ने से क्यों डर रहे हैं? क्या राहुल गाँधी को अमेठी की जनता से विश्वास भंग हो गया है?
इस डर के कई कारण हैं
राहुल गांधी 2004 से अमेठी से लोक सभा सांसद हैं। 2004 और 2009 के चुनाव में राहुल गांधी भारी मतों से जीते थे, लेकिन 2014 का लोक सभा चुनाव राहुल गाँधी जीते जरूर लेकिन स्मृति ईरानी ने ऐसी टक्कर दी कि विजयी फासला काफी घट गया था, जबकि स्मृति ईरानी के लिए अमेठी एक नई जगह थी।फिर भी अपनी मेहनत से चुनावी माहौल को ऐसे बदला कि जीत हार का फासला महज़ एक लाख तक सिमट के रह गया।
अमेठी लोक सभा चुनाव : 2014
पार्टी उम्मीदवार वोटों की संख्या वोट %
काँग्रेस राहुल गांधी 408,651 46.72
भाजपा स्मृति ईरानी 300,748 34.38
स्मृति ईरानी चुनाव तो हार गयीं लेकिन उन्होंने अमेठी में एक तरह से अपना घर ही बसा लिया और पिछले पांच साल में शायद ही कोई महीना बिता होगा जब स्मृति ईरानी अमेठी में ना रही हों। स्मृति ईरानी स्वयं एक केंद्रीय मंत्री हैं साथ ही लखनऊ और दिल्ली दोनों में उनकी सरकार है जिससे कोई भी कार्य सम्पन्न करने में देर नहीं होती और राहुल गांधी इस वजह से अपने आपको अमेठी में असुरक्षित महसूस करने लगे हैं।
इसमें कोई संदेह नहीं कि अमेठी का गाँधी परिवार से वर्षों पुराना रिश्ता रहा है लेकिन ये भी सच है कि 1977 और 1998 में अमेठी में कांग्रेस की हार हो चुकी है। जिसे राहुल गांधी भी अच्छी तरह जानते हैं। इसका मतलब यही हुआ कि अमेठी अभेद्य नहीं है और 1977 एवं 1998 फिर से दुहराया जा सकता है।
अमेठी में सपा और बसपा कांग्रेस को समर्थन करते हुए अपने उम्मीदवार नहीं उतारने का फैसला किया है उसके बाद भी राहुल गाँधी दूसरे लोक सभा सीट से चुनाव लड़ना चाहते हैं। इसका मतलब डर नहीं तो और क्या है?
गाँधी परिवार पहले भी साउथ से चुनाव लड़ चुके हैं। 1977 में इंदिरा गाँधी राय बरेली से चुनाव हारने के बाद 1978 में चिकमंगलुरू से उप चुनाव जीतीं थीं और सोनिया गांधी ने भी 1999 के लोकसभा चुनाव में बेल्लारी सीट से चुनाव जीती थीं। दोनों स्थिति में कहीं न कहीं डर का भाव जरूर रहा होगा इस ऐतिहासिक तथ्य को नकारना असंभव है।
राहुल गांधी के लिए केरल के वायनाड को ही क्यों चुना गया है? इसके और भी कई कारण हो सकते हैं लेकिन सबसे महत्वपूर्ण कारण है इस लोक सभा क्षेत्र में मुस्लिम और क्रिश्चियन की आबादी काफी है जो परिणाम को पूरी तरह प्रभावित करेगा और इसी परिणाम को देखते हुए राहुल गांधी के लिए इस सीट को सुरक्षित समझा जा रहा है।
अमेठी जानकारों का कहना है कि इस बार अमेठी की हवा का रंग कुछ अलग ही दिखाई दे रहा है। इस रंग के बदलाव का अर्थ क्या है ये तो भविष्य के गर्भ में छिपा है जो समय आने पर ही पता चलेगा। शायद काँग्रेस और राहुल गांधी के लिए भय का एक कारण ये भी हो सकता है।
कुल मिलाकर कांग्रेस पार्टी और राहुल गाँधी के मन में कहीं न कहीं अमेठी को लेकर डर तो जरूर है कि कहीं परिणाम विपरीत न हो जाय। इसी वजह से कांग्रेस पार्टी कोई जोखिम नहीं लेना चाहती और राहुल गाँधी को दो जगह से चुनाव लड़वाना चाहती है। हालांकि कांग्रेस का कहना है कि पिछले लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी वाराणसी और वड़ोदरा से चुनाव लड़ा था तो राहुल गाँधी दो सीट से चुनाव क्यों नहीं लड़ सकते। बिलकुल लड़ सकते हैं। लेकिन दोनों में एक मूल अंतर है कि नरेंद्र मोदी पहली बार लोक सभा चुनाव लड़ रहे थे जबकि राहुल गांधी चौथी बार लोक सभा चुनाव लड़ रहे हैं। इसलिए दोनों में समानता स्थापित करना एक भारी भूल होगी। इसलिए स्वाभाविक सवाल उठता है कि राहुल गांधी अकेले अमेठी से चुनाव लड़ने से डर क्यों रहे हैं?
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