आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
चुनावों की तारीख का ऐलान हो चुका है। 7 चरणों में होने वाले चुनावों के नतीजे 23 मई को सामने आएंगे। लेकिन उससे पहले प्री पोल सर्वे में दावा किया गया है कि बीजेपी नीत एनडीए बहुमत के आंकड़े से थोड़ा पीछे रह सकता है। यूपीए तमाम कोशिशों के बाद भी 141 तक ही पहुंच पाएगा. सी-वोटर-आईएएनएस के मत सर्वेक्षण में एनडीए को 264 सीटें मिलने की संभावना जताई गई है, जो सरकार बनाने के लिए आवश्यक 272 सीटों के आंकड़े से आठ कम है।
लोकसभा चुनाव में मुख्य मुकाबला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले राजग और राहुल गांधी के नेतृत्व वाले संप्रग के बीच बना हुआ है, लेकिन अगली सरकार के गठन में गैर भाजपा और गैर कांग्रेस क्षेत्रीय दलों का गठबंधन महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। एनडीए में जनता दल युनाइटेड और लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) बिहार में 20 सीटें जीत सकते हैं, जबकि 14 सीटों के साथ शिवसेना एक दूसरा मजबूत साझेदार बनकर उभर सकती है। मोदी सरकार की एक सर्वाधिक मुखर आलोचक शिवसेना चार सीटें गंवा सकती है।
सरकारी कर्मचारियों की पेंशन
अटल बिहारी वाजपेयी कारगिल युद्ध जीतने के बाद भी सत्तामुक्त हो गए थे, उसका कारण था, सरकारी कर्मचारियों की पेंशन का बंद होना, जिस कारण सरकारी कर्मचारियों में वाजपेयी सरकार के प्रति काफी रोष था। लेकिन आज वही रोष पुनः सरकारी कर्मचारियों में घर कर रहा है। उनका कहना है कि जब हम इतने वर्ष नौकरी करने उपरान्त भी पेंशन के अधिकारी नहीं, फिर निगम पार्षद से लेकर सांसद तक को किस आधार पर पेंशन दी जाती है। इन्दिरा गाँधी ने प्रिवी पर्स समाप्त किया था, लेकिन ये आज के आधुनिक राजा बने हुए हैं। आज मोबाइल कम्पनियां इतनी सुविधाएँ दे रही है, उसके बावजूद इनको हज़ारों में टेलीफोन फ्री है, बिजली, पानी फ्री आदि आदि। परन्तु सरकारी कर्मचारियों को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि यदि वाजपेयी सरकार ने उनकी पेंशन बंद की थी, तो उसे अटल बिहारी के बाद रही किसी सरकार ने नहीं दी। जो स्पष्ट करता है, कि सरकारी बाबू तो क्या किसी की किसी सरकार अथवा नेता को चिन्ता नहीं।
भाजपा के विरुद्ध हो सकता है प्रचार
जनता लोकसभा चुनावों में भाजपा को सफाई अभियान, अयोध्या में राममन्दिर, कश्मीरी पंडितों का मसला, कश्मीर में अनुच्छेद 370 और 35A के विषय में घेर सकती है। सफाई अभियान से भाजपा विरोधी तो क्या भाजपा के ही अधिकतर कार्यकर्ता/नेता खुश नहीं थे। अपने घरों में जो एक ग्लास पानी भी नौकर अथवा अपनी पत्नी से माँगकर पीते हैं, उन्हें सड़क पर झाड़ू लगानी पड़ी; हालाँकि जिस क्षेत्र में सफाई होती थी, वहाँ जनता के उठने से पूर्व ही नगर निगम के सफाई कर्मचारी झाड़ू लगा चूकते थे, अन्यथा अगली बार उनके फ़रिश्ते भी इस अभियान में भाग नहीं लेते। प्रमाण के लिए कभी भी उन क्षेत्रों में कूड़े के ढेर देखे जा सकते हैं।
अयोध्या मुद्दा
जहाँ तक अयोध्या में राममन्दिर की बात है, अन्य सरकारों की भाँति पूर्ण बहुमत वाली भाजपा सरकार भी लॉलीपॉप देकर मुर्ख बनाती रही। जो 5 सालों में अयोध्या, काशी और मथुरा लम्बित समस्याओं को नहीं सुलझा सकी, उस सरकार से हिन्दू क्या अपेक्षा कर सकता है? विपक्ष चुनावों तक इन समस्याओं को लटकाने में सफल रहा और बहुमत वाली सरकार असफल।
कश्मीर समस्या
कश्मीर समस्या भी लगभग ज्यूँ की त्यूं बनी हुई है। न वहाँ से धारा 370 और धारा 35A समाप्त हुई और न ही घाटी से निकाले गए कश्मीरी पंडितों को पुर्नवास करवाया जा सका। हुर्रियत नेताओं पर भी कार्यवाही अपने शासन के अन्तिम पड़ाव पर की, यदि यही कदम, एक वर्ष पूर्व उठाया गया होता, कश्मीर के हालात कुछ सुधर गए होते, जिसका अब चुनावों में भाजपा को लाभ भी मिलता।
एनडीए को दक्षिण में खोजने होंगे साझेदार
एनडीए को अगले चुनावों में 300 के पार जाने के लिए दक्षिण के राज्यों में नए साझीदार बनाने होंगे।अनुमान जाहिर किया गया है कि आंध्र में जगन रेड्डी की वाईएसआरसीपी, केसीआर की टीआरएस और ओडिशा में बीजेडी 36 सीटें जीत सकती हैं। इसमें वाईएसआरसीपी को आंध्र प्रदेश में 11 सीटें मिल सकती हैं, बीजद को ओडिशा में नौ और टीआरएस तेलंगाना में 17 में से 16 सीटें जीत सकती है। इन तीनों पार्टियों के समर्थन से राजग न केवल बहुमत पा सकता है, बल्कि लोकसभा में 300 का आंकड़ा पार कर सकता है।
चुनाव बाद गठबंधन से भी संप्रग के पास पर्याप्त सीटें नहीं
चुनाव पूर्व सर्वेक्षण में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से पिछड़ने के बाद कांग्रेस नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) की नजर उत्तर प्रदेश में महागठबंधन पर और पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस पर टिकी है, जिससे वह अपने खाते में कुछ सीटें जोड़ सके। सी-वोटर-आईएएनएस सर्वेक्षण में अनुमान लगाया गया है कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के महागठबंधन को 47 सीटें मिल सकती हैं। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस 34 सीटों पर जीत बरकरार रख सकती है। संप्रग को 141 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया है, जिसमें कांग्रेस की 86 और सहयोगी दलों की 55 सीटें शामिल हैं।
अवलोकन करें:-
चुनाव बाद गठबंधन से भी संप्रग के पास पर्याप्त सीटें नहीं
चुनाव पूर्व सर्वेक्षण में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से पिछड़ने के बाद कांग्रेस नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) की नजर उत्तर प्रदेश में महागठबंधन पर और पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस पर टिकी है, जिससे वह अपने खाते में कुछ सीटें जोड़ सके। सी-वोटर-आईएएनएस सर्वेक्षण में अनुमान लगाया गया है कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के महागठबंधन को 47 सीटें मिल सकती हैं। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस 34 सीटों पर जीत बरकरार रख सकती है। संप्रग को 141 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया है, जिसमें कांग्रेस की 86 और सहयोगी दलों की 55 सीटें शामिल हैं।
बस, जनता के सम्मुख नरेन्द्र मोदी के समक्ष कोई कद्दावर नेता न होने के कोई अन्य विकल्प नहीं। केन्द्र और राजधानी दिल्ली में सत्ता परिवर्तन होने पर जनता को भ्रष्टाचार से मुक्ति मिलने की पूरी उम्मीद थी, जिस पर दोनों पार्टियों-भाजपा और आप- ने पूर्णरूप से निराश किया। दिल्ली नगर निगम हो, बिजली विभाग हो(जब दिल्ली में बिजली विभाग का निजीकरण हुआ है, बिजली चोरी और भ्रष्टाचार बड़ा है, कम नहीं हुआ। उपभोक्ता को नाम बदलवाने में कितनी परेशानी होती है, अधिकारीयों को कोई मतलब नहीं, नया मीटर मिल जायेगा, लेकिन नाम बदलने में परेशानी। बहुत है समस्याएँ, जिनके बारे में बाद में।), या कोई अन्य सार्वजनिक उपक्रम भ्रष्टाचारी बिना रिश्वत लिए काम करने को तैयार नहीं। जहाँ तक अदालतों की बात है वहाँ तो एक कहावत तब से मशहूर है, --जब भारत ब्रिटिश सरकार के अधीन था, हाई कोर्ट लाहौर में होती थी और दिल्ली में कश्मीरी गेट स्थित रिट्ज सिनेमा के निकट कोर्ट होती थी, जहाँ मात्र 4 अथवा 5 जज होते थे, तब से-- "कोर्ट में केवल वही खड़ा हो सकता है, जिसके पैरों में लोहे का जूता हो और सोने(स्वर्ण) के हाथ", अन्यथा मुवक्किल जीता हुआ मुकदमा भी हार जाएगा। आज तक कोई भी सरकार झूठा केस दर्ज़ करने वालों के विरुद्ध कोई सख्त कानून नहीं बना सकी, यदि ऐसा कोई कानून है, तो उस पर अमल नहीं होता, और वह क्यों नहीं होता, पाठक मुझसे अधिक समझदार हैं।
चुनावों की तारीख का ऐलान हो चुका है। 7 चरणों में होने वाले चुनावों के नतीजे 23 मई को सामने आएंगे। लेकिन उससे पहले प्री पोल सर्वे में दावा किया गया है कि बीजेपी नीत एनडीए बहुमत के आंकड़े से थोड़ा पीछे रह सकता है। यूपीए तमाम कोशिशों के बाद भी 141 तक ही पहुंच पाएगा. सी-वोटर-आईएएनएस के मत सर्वेक्षण में एनडीए को 264 सीटें मिलने की संभावना जताई गई है, जो सरकार बनाने के लिए आवश्यक 272 सीटों के आंकड़े से आठ कम है।
लोकसभा चुनाव में मुख्य मुकाबला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले राजग और राहुल गांधी के नेतृत्व वाले संप्रग के बीच बना हुआ है, लेकिन अगली सरकार के गठन में गैर भाजपा और गैर कांग्रेस क्षेत्रीय दलों का गठबंधन महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। एनडीए में जनता दल युनाइटेड और लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) बिहार में 20 सीटें जीत सकते हैं, जबकि 14 सीटों के साथ शिवसेना एक दूसरा मजबूत साझेदार बनकर उभर सकती है। मोदी सरकार की एक सर्वाधिक मुखर आलोचक शिवसेना चार सीटें गंवा सकती है।
सरकारी कर्मचारियों की पेंशन
अटल बिहारी वाजपेयी कारगिल युद्ध जीतने के बाद भी सत्तामुक्त हो गए थे, उसका कारण था, सरकारी कर्मचारियों की पेंशन का बंद होना, जिस कारण सरकारी कर्मचारियों में वाजपेयी सरकार के प्रति काफी रोष था। लेकिन आज वही रोष पुनः सरकारी कर्मचारियों में घर कर रहा है। उनका कहना है कि जब हम इतने वर्ष नौकरी करने उपरान्त भी पेंशन के अधिकारी नहीं, फिर निगम पार्षद से लेकर सांसद तक को किस आधार पर पेंशन दी जाती है। इन्दिरा गाँधी ने प्रिवी पर्स समाप्त किया था, लेकिन ये आज के आधुनिक राजा बने हुए हैं। आज मोबाइल कम्पनियां इतनी सुविधाएँ दे रही है, उसके बावजूद इनको हज़ारों में टेलीफोन फ्री है, बिजली, पानी फ्री आदि आदि। परन्तु सरकारी कर्मचारियों को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि यदि वाजपेयी सरकार ने उनकी पेंशन बंद की थी, तो उसे अटल बिहारी के बाद रही किसी सरकार ने नहीं दी। जो स्पष्ट करता है, कि सरकारी बाबू तो क्या किसी की किसी सरकार अथवा नेता को चिन्ता नहीं।
भाजपा के विरुद्ध हो सकता है प्रचार
जनता लोकसभा चुनावों में भाजपा को सफाई अभियान, अयोध्या में राममन्दिर, कश्मीरी पंडितों का मसला, कश्मीर में अनुच्छेद 370 और 35A के विषय में घेर सकती है। सफाई अभियान से भाजपा विरोधी तो क्या भाजपा के ही अधिकतर कार्यकर्ता/नेता खुश नहीं थे। अपने घरों में जो एक ग्लास पानी भी नौकर अथवा अपनी पत्नी से माँगकर पीते हैं, उन्हें सड़क पर झाड़ू लगानी पड़ी; हालाँकि जिस क्षेत्र में सफाई होती थी, वहाँ जनता के उठने से पूर्व ही नगर निगम के सफाई कर्मचारी झाड़ू लगा चूकते थे, अन्यथा अगली बार उनके फ़रिश्ते भी इस अभियान में भाग नहीं लेते। प्रमाण के लिए कभी भी उन क्षेत्रों में कूड़े के ढेर देखे जा सकते हैं।
अयोध्या मुद्दा
जहाँ तक अयोध्या में राममन्दिर की बात है, अन्य सरकारों की भाँति पूर्ण बहुमत वाली भाजपा सरकार भी लॉलीपॉप देकर मुर्ख बनाती रही। जो 5 सालों में अयोध्या, काशी और मथुरा लम्बित समस्याओं को नहीं सुलझा सकी, उस सरकार से हिन्दू क्या अपेक्षा कर सकता है? विपक्ष चुनावों तक इन समस्याओं को लटकाने में सफल रहा और बहुमत वाली सरकार असफल।
कश्मीर समस्या
कश्मीर समस्या भी लगभग ज्यूँ की त्यूं बनी हुई है। न वहाँ से धारा 370 और धारा 35A समाप्त हुई और न ही घाटी से निकाले गए कश्मीरी पंडितों को पुर्नवास करवाया जा सका। हुर्रियत नेताओं पर भी कार्यवाही अपने शासन के अन्तिम पड़ाव पर की, यदि यही कदम, एक वर्ष पूर्व उठाया गया होता, कश्मीर के हालात कुछ सुधर गए होते, जिसका अब चुनावों में भाजपा को लाभ भी मिलता।
एनडीए को दक्षिण में खोजने होंगे साझेदार
एनडीए को अगले चुनावों में 300 के पार जाने के लिए दक्षिण के राज्यों में नए साझीदार बनाने होंगे।अनुमान जाहिर किया गया है कि आंध्र में जगन रेड्डी की वाईएसआरसीपी, केसीआर की टीआरएस और ओडिशा में बीजेडी 36 सीटें जीत सकती हैं। इसमें वाईएसआरसीपी को आंध्र प्रदेश में 11 सीटें मिल सकती हैं, बीजद को ओडिशा में नौ और टीआरएस तेलंगाना में 17 में से 16 सीटें जीत सकती है। इन तीनों पार्टियों के समर्थन से राजग न केवल बहुमत पा सकता है, बल्कि लोकसभा में 300 का आंकड़ा पार कर सकता है।
चुनाव बाद गठबंधन से भी संप्रग के पास पर्याप्त सीटें नहीं
चुनाव पूर्व सर्वेक्षण में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से पिछड़ने के बाद कांग्रेस नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) की नजर उत्तर प्रदेश में महागठबंधन पर और पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस पर टिकी है, जिससे वह अपने खाते में कुछ सीटें जोड़ सके। सी-वोटर-आईएएनएस सर्वेक्षण में अनुमान लगाया गया है कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के महागठबंधन को 47 सीटें मिल सकती हैं। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस 34 सीटों पर जीत बरकरार रख सकती है। संप्रग को 141 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया है, जिसमें कांग्रेस की 86 और सहयोगी दलों की 55 सीटें शामिल हैं।
अवलोकन करें:-
चुनाव पूर्व सर्वेक्षण में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से पिछड़ने के बाद कांग्रेस नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) की नजर उत्तर प्रदेश में महागठबंधन पर और पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस पर टिकी है, जिससे वह अपने खाते में कुछ सीटें जोड़ सके। सी-वोटर-आईएएनएस सर्वेक्षण में अनुमान लगाया गया है कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के महागठबंधन को 47 सीटें मिल सकती हैं। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस 34 सीटों पर जीत बरकरार रख सकती है। संप्रग को 141 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया है, जिसमें कांग्रेस की 86 और सहयोगी दलों की 55 सीटें शामिल हैं।
बस, जनता के सम्मुख नरेन्द्र मोदी के समक्ष कोई कद्दावर नेता न होने के कोई अन्य विकल्प नहीं। केन्द्र और राजधानी दिल्ली में सत्ता परिवर्तन होने पर जनता को भ्रष्टाचार से मुक्ति मिलने की पूरी उम्मीद थी, जिस पर दोनों पार्टियों-भाजपा और आप- ने पूर्णरूप से निराश किया। दिल्ली नगर निगम हो, बिजली विभाग हो(जब दिल्ली में बिजली विभाग का निजीकरण हुआ है, बिजली चोरी और भ्रष्टाचार बड़ा है, कम नहीं हुआ। उपभोक्ता को नाम बदलवाने में कितनी परेशानी होती है, अधिकारीयों को कोई मतलब नहीं, नया मीटर मिल जायेगा, लेकिन नाम बदलने में परेशानी। बहुत है समस्याएँ, जिनके बारे में बाद में।), या कोई अन्य सार्वजनिक उपक्रम भ्रष्टाचारी बिना रिश्वत लिए काम करने को तैयार नहीं। जहाँ तक अदालतों की बात है वहाँ तो एक कहावत तब से मशहूर है, --जब भारत ब्रिटिश सरकार के अधीन था, हाई कोर्ट लाहौर में होती थी और दिल्ली में कश्मीरी गेट स्थित रिट्ज सिनेमा के निकट कोर्ट होती थी, जहाँ मात्र 4 अथवा 5 जज होते थे, तब से-- "कोर्ट में केवल वही खड़ा हो सकता है, जिसके पैरों में लोहे का जूता हो और सोने(स्वर्ण) के हाथ", अन्यथा मुवक्किल जीता हुआ मुकदमा भी हार जाएगा। आज तक कोई भी सरकार झूठा केस दर्ज़ करने वालों के विरुद्ध कोई सख्त कानून नहीं बना सकी, यदि ऐसा कोई कानून है, तो उस पर अमल नहीं होता, और वह क्यों नहीं होता, पाठक मुझसे अधिक समझदार हैं।
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