भारत ने चीन सहित 4 देशों को एक साथ ऐसा झटका दिया है कि उन्हें 5 साल तक इसकी बड़ी कीमत चुकानी होगी। दरअसल भारत ने चीन, मलेशिया, सऊदी अरब और थाईलैंड से सोलर सेल बनाने में इस्तेमाल होने वाली एक खास शीट के आयात पर एंटी-डंपिंग ड्यूटी (anti-dumping duty) लगाई है। यह ड्यूटी प्रति टन 1,559 डॉलर तक लगाई गई है। इसका उद्देश्य घरेलू कंपनियों को सस्ते शिपमेंट की मार से राहत देना है। सरकार का यह फैसला 5 साल तक प्रभावी रहेगा। गौरतलब है कि चारों देशों में से चीन और सऊदी अरब को पाकिस्तान के मित्र देशों में गिना जाता है।
डिपार्टमेंट ऑफ रेवेन्यू ने जारी किया नोटिफिकेशन
डिपार्टमेंट ऑफ रेवेन्यू (Department of Revenue) ने एक नोटिफिकेशन में कहा कि कॉमर्स मिनिस्ट्री (commerce ministry) की जांच इकाई डीजीटीआर (DGTR) की सिफारिशों पर विचार के बाद इन चार देशों से ‘सोलर मॉड्यूल के लिए एथिलीन विनाइल एसिटेट शीट’ के आयात पर ड्यूटी लगाई जा रही है, जो 537 डॉलर से 1,559 डॉलर प्रति टन की रेंज में है।
चीन सहित 4 देश 5 साल तक चुकाएंगे कीमत
इसमें कहा गया, ‘एंटी-डंपिंग ड्यूटी 5 साल (या जब तक उसे खत्म नहीं किया जाता या उससे पहले संशोधन नहीं किया जाता) तक प्रभावी रहेगी।’ बीते साल अप्रैल में एक घरेलू कंपनी की शिकायत पर डायरेक्टोरेट ने इस मामले में जांच शुरू की थी। अपनी जांच में उसने पाया कि डम्पिंग के असर को कम करने के लिए ड्यूटी लगाया जाना जरूरी है। इससे चीन, मलेशिया, सऊदी अरब और थाईलैंड द्वारा की जा रही डम्पिंग का असर कम होगा।
इस तरह बढ़ता जा रहा है आयात
यह प्रोडक्ट एक पॉलीमर बेस्ड कम्पोनेंट है, जिसे सोलर पीवी (फोटो वोल्टिक) मॉड्यूल्स की मैन्युफैक्चरिंग में इस्तेमाल किया जाता है। जांच की अवधि (अक्टूबर, 2016 से सितंबर, 2017 के बीच) के दौरान इन देशों से 6,376 टन शीट का आयात किया गया। वहीं वित्त वर्ष 2016-17 में यह आंकड़ा 4,674 टन, 2015-16 में 1,025 टन और 2014-15 में 594 टन रहा था।
भारतीय बाजार में है कई देशों की दिलचस्पी
भारत में वर्ष 2010 में जवाहरलाल नेहरु नेशनल सोलर मिशन के नाम से नेशनल सोलर पॉलिसी की लॉन्चिंग के बाद से सोलर इंडस्ट्री में इस्तेमाल होने वाले कम्पोनेंट का इम्पोर्ट तेजी से बढ़ा है। इसके अंतर्गत भारत का 2022 तक 20,000 मेगावाट सोलर पावर जेनरेशन क्षमता हासिल करने का लक्ष्य है। भारत में तेजी से उभरते इस सेक्टर में सोलर इक्विपमेंट की सप्लाई करने में कई देशों की दिलचस्पी है।
No comments:
Post a Comment