आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
चुनावी दंगल में आरोप-प्रत्यारोप लगाना कोई नई बात नहीं। लेकिन उन आरोप-प्रत्यारोपों का आधार होना चाहिए। कांग्रेस समेत जितने भी मोदी विरोधी है, 2002 गुजरात दंगों के बाद से नरेन्द्र मोदी को "मौत का सौदागर", "खून का दलाल", "चाय वाला", "नीच", "चौकीदार चोर" आदि न जाने कितने उपनामों से अलंकृत करते रहे, बाबरी मस्जिद की बात कर ध्रुवीकरण करते रहे, लेकिन तत्कालीन भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने कभी चुनाव आयोग तो क्या किसी भी चुनावी रैली तक में इसका विरोध नहीं किया। परन्तु जबसे मोदी-योगी-अमित ने पार्टी की बागडोर सम्भाली है, हर आरोप का मुँह तोड़ जवाब दिया जा रहा है, जिस कारण समस्त विरोधी खेमे में कोहराम मचा हुआ है।
मोदी विरोधी राष्ट्र को बताएँ कि 2002 का दंगा कितने दिन चला और इससे पूर्व हुए दंगे कितने दिन? उनकी चर्चा क्यों नहीं करते? लेकिन 2002 दंगे के लिए मोदी को इसलिए कोसते हैं कि मोदी ने केवल दंगे के दोषियों और ट्रेन में 56 कारसेवकों को जलाकर मारने को ही पकड़ा, किसी निर्दोष को नहीं। फिर अखिलेश यादव के कार्यकाल में मुज़फ्फरनगर दंगा हुआ, इसकी चर्चा क्यों नहीं होती? क्योकि ये दंगा सरकार की छत्रसाया में हिन्दुओं के विरुद्ध था, लेकिन जब आर्मी द्वारा इनके वोट बैंक से AK-47 बरामद होने लगी, क्यों तलाशी अभियान रुकवा गया था? उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ को मुज़फ्फरनगर दंगे की फाइल को खोलकर, दोषियों को जेल भेजना चाहिए। तीसरे, स्वतन्त्र भारत का शायद सबसे भयंकर दंगा जिसमे महात्मा गाँधी की हत्या उपरान्त चितपावन ब्राह्मणों का बड़ी बेदर्दी से नरसंहार किया गया था, 1984 के दंगों की तो जाँच हो सकती है, परन्तु उस नरसंहार पर आज तक सब चुप्पी साधे हुए हैं, क्यों?
लोकसभा चुनाव 2019 के लगभग अन्तिम पड़ाव पर प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने भ्रष्टाचार में लिप्त राहुल गाँधी के पिताश्री राजीव गाँधी का बोफोर्स घोटाले में नाम लेते ही चुनाव आयोग से शिकायत करने पहुँच गए। जबकि राजीव गाँधी सरकार बोफोर्स घोटाले की भेंट चढ़ गयी थी।
पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के समय 1957 में मूंदड़ा घोटाला हो, इंदिरा गांधी के समय 1973 में मारूति घोटाला, 60,000 रूपए का नागरवाला काण्ड, या फिर राजीव गांधी के समय में बोफोर्स घोटाला हो देश में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने में कांग्रेस का हाथ रही है। डॉ मनमोहन सिंह के नाम पर पराकांतर से सरकार चलाने वाली सोनिया गांधी के समय तो बस घोटाला ही घोटाला रहा है। अगर कांग्रेस भ्रष्टाचार की जननी है तो निश्चित रूप से राजीव गांधी संस्थागत भ्रष्टाचार के पिता हैं। क्योंकि वे अकेले प्रधानमंत्री है जिन्होंने केंद्र से चले एक रुपये में 85 पैसे गायब होने की बात जानते हुए भी कुछ नहीं किया। संस्थागत भ्रष्टाचार का इसे बड़ा और सबूत क्या हो सकता है। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके पूरे जीवनकाल को भ्रष्टाचार से लिप्त बताया तो इसमें झूठ क्या है।
यदि स्वतन्त्रता प्राप्ति से लेकर पिछली यूपीए सरकार सहित, कांग्रेस कालखण्ड में हुए घोटालों में कांग्रेस ने देश के कितने धन को अपनी तिजोरी में भर लिया। कांग्रेस ने समझा था, मुग़ल आए भारत को लुटा, भारत की जनता को कोई फर्क नहीं, ब्रिटिशर्स आये लुटा फिर भी भारत वहीँ का वहीँ, तो तुम भी लूटो। कांग्रेस भूल गयी "आखिर बकरे की कब तक खैर मनाती, आ गयी छुरी के नीचे", यानि कांग्रेस की लूटमार जगजाहिर शुरू से थी, लेकिन सवाल था, "बिल्ली के गले में घंटी बांधे कौन?" परन्तु मोदी-रूपी बिल्ली ने गले में आखिरकार घण्टी बांध ही दी। परिणामस्वरूप, गाँधी परिवार जमानत पर घूम रहा है।
बोफोर्स घोटाला का दाग
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर आज भी बोफोर्स घोटाले का दाग है। यह वही घोटाला है जिसके माध्यम से राजीव गांधी ने देश में भ्रष्टाचार को संस्थागत रूप दिया था। जिस दलाली को देश में एक अनाचार के रूप में देखा जाता था उसे राजीव गांधी सरकार ने महिमामंडित कर दिया। राजीव गांधी ने घूस को डील का भाग बना दिया। तभी तो 1437 करोड़ रुपये के बोफोर्स तोप के सौदे के लिए बोफोर्स कंपनी ने भारत के नेताओं से लेकर अधिकारियों को 1.42 करोड़ डॉलर की रिश्वत दी थी। खास बात है कि कंपनी ने इस सौदे के कमीशन के रूप में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और उसके परिवार को 64 करोड़ रुपये दिए थे। इसी सौदे में इटली के करोबारी ओतावियो क्वात्रोची का नाम सामने आया था। जिसे बाद में साजिश के तहत देश से भगा दिया गया।
वैसे उस समय यह भी चर्चा थी, कि राजीव ने बोफोर्स में मिली रिश्वत का बड़ा भाग नेशनल हेराल्ड की आर्थिक स्थिति को सुधारने में लगाया था। उस समय दैनिक के कर्मचारियों को समय पर वेतन तक नहीं मिलता था। प्रिन्टिंग इतनी शोचनीय थी कि एक कॉलम की लाइन दूसरे कॉलम में दूसरे की तीसरे में आदि। कमीशन के मिले धन से खानदानी दैनिक की आर्थिक स्थिति में सुधार किया। कर्मचारियों को निश्चित समय पर वेतन मिलना शुरू हो गया। लेकिन राजीव की मृत्यु के बाद किसी ने खानदानी दैनिक की चिन्ता करने की बजाए केवल अपनी तिजोरियों को भरने में व्यस्त हो गए। परिणामस्वरूप दिल्ली से नेशनल हेराल्ड नदारत हो गया। शायद बेरोजगार हुए लगभग 400/500 कर्मचारियों की बददुआ रंग ला रही है कि कांग्रेस तभी से निरन्तर धरातल में समां रही है। ठीक यही स्थिति कम्युनिस्टों की भी है। सोवियत यूनियन के विभाजन होने पर जबसे Patriot, अंग्रेजी दैनिक बंद हुआ है, वामपंथी केवल दो/तीन राज्यों में सिमट गयी, बल्कि अब तो वहाँ से भी पार्टी का सफाया होने के कगार पर है।
भोपाल गैस कांड के आरोपी को भी देश से भगाया
ये वही पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे जिन पर भोपाल गैस कांड के मुख्य आरोपी एंडरसन को भगाया था। यह खुलासा किसी और ने नहीं बल्कि मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री तथा उनके निकट के सहयोगी रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन सिंह ने अपनी किताब में किया था। भोपाल गैंस कांड के दंश को आज भी वहां के लोगों ने भूला नहीं है।
देश में सिख दंगा के दौरान होने दिया सबसे बड़ा नरसंहार
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली सहित पूरे देश में जब आतताइयों ने सिखों को खिलाफ दंगा के नाम पर उनका नरसंहार करना शुरू किया उस समय राजीव गांधी ही देश के प्रधानमंत्री थे। लेकिन दंगा को रोकने के उपाय करने की बजाय उन्होंने आतताइयों को ही उकसाने वाला बयान दे दिया। सभी को याद है, उन्होंने कहा था कि जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती ही है। उनके इस बयान के बाद तो देश के सिखों पर खासकर दिल्ली में तो कयामत आ गई थी।
अवलोकन करें:-
राजीव गांधी पर पहली बार नहीं उठे हैं सवाल
राजीव गांधी देश के एक ऐसे इकलौता प्रधानमंत्री हुए जिन्हें राजशाही की तरह प्रधानमंत्री मां इंदिरा गांधी के निधन पर राजगद्दी के रूप में प्रधानमंत्री का पद मिल गया। उन पर तो यह भी सवाल उठता रहा है कि पायलट होने के बाद भी उन्होंने 1971 में पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध में कोई योगदान क्यों नहीं किया? आखिर क्यों नहीं राजीव गांधी ने जीते जी खुद पर उठे इन सवालों का जवाब दिया?
चुनावी दंगल में आरोप-प्रत्यारोप लगाना कोई नई बात नहीं। लेकिन उन आरोप-प्रत्यारोपों का आधार होना चाहिए। कांग्रेस समेत जितने भी मोदी विरोधी है, 2002 गुजरात दंगों के बाद से नरेन्द्र मोदी को "मौत का सौदागर", "खून का दलाल", "चाय वाला", "नीच", "चौकीदार चोर" आदि न जाने कितने उपनामों से अलंकृत करते रहे, बाबरी मस्जिद की बात कर ध्रुवीकरण करते रहे, लेकिन तत्कालीन भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने कभी चुनाव आयोग तो क्या किसी भी चुनावी रैली तक में इसका विरोध नहीं किया। परन्तु जबसे मोदी-योगी-अमित ने पार्टी की बागडोर सम्भाली है, हर आरोप का मुँह तोड़ जवाब दिया जा रहा है, जिस कारण समस्त विरोधी खेमे में कोहराम मचा हुआ है।

लोकसभा चुनाव 2019 के लगभग अन्तिम पड़ाव पर प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने भ्रष्टाचार में लिप्त राहुल गाँधी के पिताश्री राजीव गाँधी का बोफोर्स घोटाले में नाम लेते ही चुनाव आयोग से शिकायत करने पहुँच गए। जबकि राजीव गाँधी सरकार बोफोर्स घोटाले की भेंट चढ़ गयी थी।
पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के समय 1957 में मूंदड़ा घोटाला हो, इंदिरा गांधी के समय 1973 में मारूति घोटाला, 60,000 रूपए का नागरवाला काण्ड, या फिर राजीव गांधी के समय में बोफोर्स घोटाला हो देश में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने में कांग्रेस का हाथ रही है। डॉ मनमोहन सिंह के नाम पर पराकांतर से सरकार चलाने वाली सोनिया गांधी के समय तो बस घोटाला ही घोटाला रहा है। अगर कांग्रेस भ्रष्टाचार की जननी है तो निश्चित रूप से राजीव गांधी संस्थागत भ्रष्टाचार के पिता हैं। क्योंकि वे अकेले प्रधानमंत्री है जिन्होंने केंद्र से चले एक रुपये में 85 पैसे गायब होने की बात जानते हुए भी कुछ नहीं किया। संस्थागत भ्रष्टाचार का इसे बड़ा और सबूत क्या हो सकता है। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके पूरे जीवनकाल को भ्रष्टाचार से लिप्त बताया तो इसमें झूठ क्या है।
यदि स्वतन्त्रता प्राप्ति से लेकर पिछली यूपीए सरकार सहित, कांग्रेस कालखण्ड में हुए घोटालों में कांग्रेस ने देश के कितने धन को अपनी तिजोरी में भर लिया। कांग्रेस ने समझा था, मुग़ल आए भारत को लुटा, भारत की जनता को कोई फर्क नहीं, ब्रिटिशर्स आये लुटा फिर भी भारत वहीँ का वहीँ, तो तुम भी लूटो। कांग्रेस भूल गयी "आखिर बकरे की कब तक खैर मनाती, आ गयी छुरी के नीचे", यानि कांग्रेस की लूटमार जगजाहिर शुरू से थी, लेकिन सवाल था, "बिल्ली के गले में घंटी बांधे कौन?" परन्तु मोदी-रूपी बिल्ली ने गले में आखिरकार घण्टी बांध ही दी। परिणामस्वरूप, गाँधी परिवार जमानत पर घूम रहा है।
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर आज भी बोफोर्स घोटाले का दाग है। यह वही घोटाला है जिसके माध्यम से राजीव गांधी ने देश में भ्रष्टाचार को संस्थागत रूप दिया था। जिस दलाली को देश में एक अनाचार के रूप में देखा जाता था उसे राजीव गांधी सरकार ने महिमामंडित कर दिया। राजीव गांधी ने घूस को डील का भाग बना दिया। तभी तो 1437 करोड़ रुपये के बोफोर्स तोप के सौदे के लिए बोफोर्स कंपनी ने भारत के नेताओं से लेकर अधिकारियों को 1.42 करोड़ डॉलर की रिश्वत दी थी। खास बात है कि कंपनी ने इस सौदे के कमीशन के रूप में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और उसके परिवार को 64 करोड़ रुपये दिए थे। इसी सौदे में इटली के करोबारी ओतावियो क्वात्रोची का नाम सामने आया था। जिसे बाद में साजिश के तहत देश से भगा दिया गया।
वैसे उस समय यह भी चर्चा थी, कि राजीव ने बोफोर्स में मिली रिश्वत का बड़ा भाग नेशनल हेराल्ड की आर्थिक स्थिति को सुधारने में लगाया था। उस समय दैनिक के कर्मचारियों को समय पर वेतन तक नहीं मिलता था। प्रिन्टिंग इतनी शोचनीय थी कि एक कॉलम की लाइन दूसरे कॉलम में दूसरे की तीसरे में आदि। कमीशन के मिले धन से खानदानी दैनिक की आर्थिक स्थिति में सुधार किया। कर्मचारियों को निश्चित समय पर वेतन मिलना शुरू हो गया। लेकिन राजीव की मृत्यु के बाद किसी ने खानदानी दैनिक की चिन्ता करने की बजाए केवल अपनी तिजोरियों को भरने में व्यस्त हो गए। परिणामस्वरूप दिल्ली से नेशनल हेराल्ड नदारत हो गया। शायद बेरोजगार हुए लगभग 400/500 कर्मचारियों की बददुआ रंग ला रही है कि कांग्रेस तभी से निरन्तर धरातल में समां रही है। ठीक यही स्थिति कम्युनिस्टों की भी है। सोवियत यूनियन के विभाजन होने पर जबसे Patriot, अंग्रेजी दैनिक बंद हुआ है, वामपंथी केवल दो/तीन राज्यों में सिमट गयी, बल्कि अब तो वहाँ से भी पार्टी का सफाया होने के कगार पर है।
ये वही पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे जिन पर भोपाल गैस कांड के मुख्य आरोपी एंडरसन को भगाया था। यह खुलासा किसी और ने नहीं बल्कि मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री तथा उनके निकट के सहयोगी रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन सिंह ने अपनी किताब में किया था। भोपाल गैंस कांड के दंश को आज भी वहां के लोगों ने भूला नहीं है।
देश में सिख दंगा के दौरान होने दिया सबसे बड़ा नरसंहार
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली सहित पूरे देश में जब आतताइयों ने सिखों को खिलाफ दंगा के नाम पर उनका नरसंहार करना शुरू किया उस समय राजीव गांधी ही देश के प्रधानमंत्री थे। लेकिन दंगा को रोकने के उपाय करने की बजाय उन्होंने आतताइयों को ही उकसाने वाला बयान दे दिया। सभी को याद है, उन्होंने कहा था कि जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती ही है। उनके इस बयान के बाद तो देश के सिखों पर खासकर दिल्ली में तो कयामत आ गई थी।
अवलोकन करें:-
राजीव गांधी पर पहली बार नहीं उठे हैं सवाल
राजीव गांधी देश के एक ऐसे इकलौता प्रधानमंत्री हुए जिन्हें राजशाही की तरह प्रधानमंत्री मां इंदिरा गांधी के निधन पर राजगद्दी के रूप में प्रधानमंत्री का पद मिल गया। उन पर तो यह भी सवाल उठता रहा है कि पायलट होने के बाद भी उन्होंने 1971 में पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध में कोई योगदान क्यों नहीं किया? आखिर क्यों नहीं राजीव गांधी ने जीते जी खुद पर उठे इन सवालों का जवाब दिया?
No comments:
Post a Comment