आर.बी.एल.निगम
राजनीति अनिश्ताओं का खेल है। ममता ने जिन लोगों के विरुद्ध चुनाव लड़ बंगाल की सत्ता संभाली थी, आज उन्ही पार्टियों से साथ समझौते को लेकर बेचैन हैं। हालाँकि इनकी नीतियों का विरोध करते वहां की जनता ने इनको अपना समर्थन दिया था। लेकिन ममता ने उन्ही नीतियों को अपना रखा है, जो लोकसभा चुनाव में उनके लिए घातक सिद्ध हुआ।
ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में लेफ्ट और कांग्रेस को अपने साथ मिलकर चुनाव लड़ने का न्योता दिया है। ममता ने कहा है कि भाजपा को हराने के लिए यह जरूरी है। ममता बनर्जी ने हमेशा ही प्रधानमंत्री मोदी का विरोध किया है और वह आज भी जारी है। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव 2021 में होने हैं, लेकिन उसके लिए तैयारियां अभी से ही शुरू हो गई हैं।
लोकसभा में ममता की 22 सीटों पर भाजपा की 18 सीटें भारी
अभी हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनावों के नतीजे पश्चिम बंगाल समेत देश भर में विपक्ष के लिए काफी निराशाजनक रहे हैं। पश्चिम बंगाल में भाजपा पिछले चुनाव में मिली दो सीटों के मुकाबले 18 सीटों पर जीत दर्ज करने में कामयाब रही। वहीं, ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी को 22 सीटों पर जीत मिली है, लेकिन ममता बनर्जी अपनी पार्टी के इस प्रदर्शन से बहुत खुश नहीं हैं। ममता की 22 सीटों पर भाजपा की 18 सीटें ही भारी पड़ रही हैं।
अभी और टीएमसी विधायक थाम सकते हैं भाजपा का दामन
राज्य में भारतीय जनता पार्टी जिस तरह से उनकी पार्टी में सेंध लगाती जा रही है। इस बात से ममता और ही ज्यादा डर गई हैं। ममता बनर्जी के कई विधायक और 50 से अधिक पार्षद उनका साथ छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए हैं। भाजपा का दावा है कि हम चरणबद्ध तरीके से काम कर रहे हैं। टीएमसी के अभी और विधायक हमारे संपर्क में हैं और जल्द ही भाजपा में शामिल होंगे।
फिलहाल ममता सरकार पर कोई खतरा नहीं
फिलहाल की जो संख्या है, उससे ममता बनर्जी की सरकार कोई खतरा नजर नहीं आता है, लेकिन आने वाले समय में जब अगला विधानसभा चुनाव होगा, तो ममता बनर्जी के लिए भारतीय जनता पार्टी की तरफ से कड़ी टक्कर मिलने की उम्मीद तो बनती ही जा रही है। जानकारों का मानना है कि ममता बनर्जी की राजनीतिक जमीन खिसकती जा रही है। यह उनके हठ वाले रवैये की वजह से हो रहा है।
हिंसा में जा चुकी है कई कार्यकर्ताओं की जान
पश्चिम बंगाल में आए दिन हिंसा की खबरें आ रही हैं। चुनाव नतीजों के बाद से पश्चिम बंगाल में कई कई कार्यकर्ताओं की जान जा चुकी है। ममता का आरोप है कि यह हिंसा भाजपा के कार्यकर्ता कर रहे हैं। ताकि हमारी सरकार बदनाम हो।
ममता के लिए चुनौती बनकर उभरी है भाजपा
ममता बनर्जी अपने वोट को बचाने के लिए कई तरह के हथकंडे अपना रही हैं, लेकिन किसी में भी कामयाब होती नहीं दिख रही हैं। भारतीय जनता पार्टी हर रोज नए तरीके से उनके शासन को चुनौती पेश कर रही है। भाजपा बिल्कुल योजनाबद्ध तरीके से ममता को मात देने के लिए तैयारी में जुटी है। पहले तो पश्चिम बंगाल में भाजपा की उपस्थिति बिल्कुन न के बराबर थी, लेकिन जिस तरह से टीएमसी के नेता ममता का साथ छोड़कर भाजपा में शामिल होते जा रहे हैं, उससे भाजपा की ताकत बढ़ती जा रही है। जो ममता के लिए चिंता का विषय है।
अंकगणित पर आधारित गठबंधन को केमिस्ट्री दे रही है मात
अब ममता का यह आह्वान कि कांग्रेस और लेफ्ट एक साथ आकर चुनाव लड़ें, तो बात बन सकती है। लेकिन आज के दौर में अंकगणित पर आधारित फॉर्मूले फेल होते जा रहे हैं। राजनीतिक केमिस्ट्री अंकगणित पर भारी पड़ रही है। अगर व्यापाक तौर पर देखा जाए तो लगभग सभी राज्यों में अंकगणित पर केमिस्ट्री भारी पड़ी है। लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा का गठजोड़ जो कि अंकगणित के आधार पर बना था, वह पूरी तरह से फ्लॉप हो गया। ऐसे गठबंधन जो स्वार्थ पर आधारित होते हैं, उनकी उम्र भी ज्यादा नहीं होती है। अगर स्वार्थों की पूर्ति होती नहीं दिखती है, तो ये जल्द ही टूट भी जाते हैं। गठबंधन के लिए एक स्वभाव और एक विचारधारा का होना जरूरी है, ताकि वह लंबे समय तक चल सके।
टीएमसी और लेफ्ट के एक साथ आने पर मतभेद बने रहने का डर
इसके साथ ममता बनर्जी जिस लेफ्ट के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की बात कर रही हैं, उसी लेफ्ट के 35 साल के शासन को समाप्त करके 2011 में वो सत्ता में आई थीं। अब लेफ्ट अगर उनके साथ मिलकर चुनाव लड़ती भी है, तो दोनों ही दलों में मतभेद हमेशा ही बने रहेंगे।
राजनीति अनिश्ताओं का खेल है। ममता ने जिन लोगों के विरुद्ध चुनाव लड़ बंगाल की सत्ता संभाली थी, आज उन्ही पार्टियों से साथ समझौते को लेकर बेचैन हैं। हालाँकि इनकी नीतियों का विरोध करते वहां की जनता ने इनको अपना समर्थन दिया था। लेकिन ममता ने उन्ही नीतियों को अपना रखा है, जो लोकसभा चुनाव में उनके लिए घातक सिद्ध हुआ।
ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में लेफ्ट और कांग्रेस को अपने साथ मिलकर चुनाव लड़ने का न्योता दिया है। ममता ने कहा है कि भाजपा को हराने के लिए यह जरूरी है। ममता बनर्जी ने हमेशा ही प्रधानमंत्री मोदी का विरोध किया है और वह आज भी जारी है। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव 2021 में होने हैं, लेकिन उसके लिए तैयारियां अभी से ही शुरू हो गई हैं।
लोकसभा में ममता की 22 सीटों पर भाजपा की 18 सीटें भारी
अभी हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनावों के नतीजे पश्चिम बंगाल समेत देश भर में विपक्ष के लिए काफी निराशाजनक रहे हैं। पश्चिम बंगाल में भाजपा पिछले चुनाव में मिली दो सीटों के मुकाबले 18 सीटों पर जीत दर्ज करने में कामयाब रही। वहीं, ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी को 22 सीटों पर जीत मिली है, लेकिन ममता बनर्जी अपनी पार्टी के इस प्रदर्शन से बहुत खुश नहीं हैं। ममता की 22 सीटों पर भाजपा की 18 सीटें ही भारी पड़ रही हैं।
अभी और टीएमसी विधायक थाम सकते हैं भाजपा का दामन
राज्य में भारतीय जनता पार्टी जिस तरह से उनकी पार्टी में सेंध लगाती जा रही है। इस बात से ममता और ही ज्यादा डर गई हैं। ममता बनर्जी के कई विधायक और 50 से अधिक पार्षद उनका साथ छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए हैं। भाजपा का दावा है कि हम चरणबद्ध तरीके से काम कर रहे हैं। टीएमसी के अभी और विधायक हमारे संपर्क में हैं और जल्द ही भाजपा में शामिल होंगे।
फिलहाल ममता सरकार पर कोई खतरा नहीं
फिलहाल की जो संख्या है, उससे ममता बनर्जी की सरकार कोई खतरा नजर नहीं आता है, लेकिन आने वाले समय में जब अगला विधानसभा चुनाव होगा, तो ममता बनर्जी के लिए भारतीय जनता पार्टी की तरफ से कड़ी टक्कर मिलने की उम्मीद तो बनती ही जा रही है। जानकारों का मानना है कि ममता बनर्जी की राजनीतिक जमीन खिसकती जा रही है। यह उनके हठ वाले रवैये की वजह से हो रहा है।
हिंसा में जा चुकी है कई कार्यकर्ताओं की जान
पश्चिम बंगाल में आए दिन हिंसा की खबरें आ रही हैं। चुनाव नतीजों के बाद से पश्चिम बंगाल में कई कई कार्यकर्ताओं की जान जा चुकी है। ममता का आरोप है कि यह हिंसा भाजपा के कार्यकर्ता कर रहे हैं। ताकि हमारी सरकार बदनाम हो।
ममता के लिए चुनौती बनकर उभरी है भाजपा
ममता बनर्जी अपने वोट को बचाने के लिए कई तरह के हथकंडे अपना रही हैं, लेकिन किसी में भी कामयाब होती नहीं दिख रही हैं। भारतीय जनता पार्टी हर रोज नए तरीके से उनके शासन को चुनौती पेश कर रही है। भाजपा बिल्कुल योजनाबद्ध तरीके से ममता को मात देने के लिए तैयारी में जुटी है। पहले तो पश्चिम बंगाल में भाजपा की उपस्थिति बिल्कुन न के बराबर थी, लेकिन जिस तरह से टीएमसी के नेता ममता का साथ छोड़कर भाजपा में शामिल होते जा रहे हैं, उससे भाजपा की ताकत बढ़ती जा रही है। जो ममता के लिए चिंता का विषय है।
अंकगणित पर आधारित गठबंधन को केमिस्ट्री दे रही है मात
अब ममता का यह आह्वान कि कांग्रेस और लेफ्ट एक साथ आकर चुनाव लड़ें, तो बात बन सकती है। लेकिन आज के दौर में अंकगणित पर आधारित फॉर्मूले फेल होते जा रहे हैं। राजनीतिक केमिस्ट्री अंकगणित पर भारी पड़ रही है। अगर व्यापाक तौर पर देखा जाए तो लगभग सभी राज्यों में अंकगणित पर केमिस्ट्री भारी पड़ी है। लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा का गठजोड़ जो कि अंकगणित के आधार पर बना था, वह पूरी तरह से फ्लॉप हो गया। ऐसे गठबंधन जो स्वार्थ पर आधारित होते हैं, उनकी उम्र भी ज्यादा नहीं होती है। अगर स्वार्थों की पूर्ति होती नहीं दिखती है, तो ये जल्द ही टूट भी जाते हैं। गठबंधन के लिए एक स्वभाव और एक विचारधारा का होना जरूरी है, ताकि वह लंबे समय तक चल सके।
टीएमसी और लेफ्ट के एक साथ आने पर मतभेद बने रहने का डर
इसके साथ ममता बनर्जी जिस लेफ्ट के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की बात कर रही हैं, उसी लेफ्ट के 35 साल के शासन को समाप्त करके 2011 में वो सत्ता में आई थीं। अब लेफ्ट अगर उनके साथ मिलकर चुनाव लड़ती भी है, तो दोनों ही दलों में मतभेद हमेशा ही बने रहेंगे।
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