मुस्लिम समाज को हथियार ट्रेनिंग का मामला : क्यों बयान से पलटे शिया धर्मगुरु कल्बे जवाद

maulana kalbe jawwadमुसलमानों के लिए कैंप और एससी, एसटी समाज के लोगों के लिए हथियारों के मुद्दे पर दिए गए बयान से शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे जवाद पलट गए हैं। उन्होंने कहा कि वो वकील महमूद प्राचा से कह चुके हैं कि इन समाज से जुड़े लोगों के लिए जिस कार्यक्रम की बात वो कर रहे थे उसे टाल दें। सवाल ये है कि जब भारत में इस तरह की वारदातों को रोकने के लिए आईपीसी में तमाम धाराएं हैं तो क्या ये सिर्फ बीजेपी सरकार को घेरे में करने के लिए किया जा रहा है? 
वकील महमूद प्राचा ने कहा था कि वो ऐसे कार्यक्रम की शुरुआत करने जा रहे हैं जिसमें दलित, मुस्लिम और समाज के दूसरे पीड़ित वर्गों के लिए हथियार मुहैया कराने के लिए अभियान चलाएंगे। इस संबंध में कल्बे जवाद ने कहा कि इस समाज से जुड़े लोगों को यह जानकारी नहीं है कि हथियार की खरीद के लिए किस तरह से फॉर्म भरे जाते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के वकील महमूद प्रचा को इस बात का शायद ज्ञान नहीं कि हथियार रखने वाला फॉर्म की परवाह नहीं करता। क्या भारत को प्रचा कश्मीर बनाना चाहते हैं? 
कल्बे जवाद ने कहा कि मीडिया ने उन्हें गलत तरह से पेश किया है। यह कहा गया था कि कैंपों में हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी जाएगी। यह पूरी तरह से गलत है। जबकि टीवी चैनल उन्हें ऐसी बात कहने का वीडियो दिखा रहे हैं, फिर भी यह कहना कि "मैंने ऐसा नहीं कहा", उनकी विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगाता है। शायद किसी कानूनी शिकंजे से बचने के लिए शिया धर्मगुरु अपने बयान से पलटी मार रहे हैं। अब जब सरकार उनकी गतिविधियों पर नज़र रखे, तब कोई यह न कहे कि मुसलमानों को शक की निगाह से देखा जा रहा है। क्योकि ऐसे ही लोगों की गलत बयानबाज़ी के कारण बेगुनाह भी शक के दायरे में आ जाते हैं। अब मुस्लिम समाज को ही ऐसे लोगों के विरुद्ध बुलंद करनी चाहिए।   
कल्बे ने आगे कहा कि हमने इस संबंध कार्यक्रम स्थगित करने के लिए कहा है। हमें यह देखना होगा कि मॉब लिंचिंग के संदर्भ में सरकार कोई फैसला लेगी या नहीं लेगी। हम लोग सभी नेताओं से मॉब लिंचिंग के संबंध में कानून बनाने के लिए मिलेंगे।
जुलाई 20 को प्राचा ने कहा था कि उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में 26 जुलाई को मुस्लिम, एससी, एसटी समाज को हथियार मुहैया कराने के लिए कैंप लगाएंगे। उन्होंने इसके लिए मॉब लिंचिंग और सोनभद्र की घटना का हवाला दिया था। कैंप में लोगों को यह बताना था कि लाइसेंसी हथियारों को हासिल करने के लिए किस तरह से फॉर्म भरना है। किसी को हथियारों की ट्रेनिंग देने की बात नहीं थी। ये बात अलग है कि सरकार को मॉब लिंचिंग के संबंध में कानून लेकर आना चाहिए।
कल्बे जवाद ने कहा कि अगर मॉब लिंचिंग के संदर्भ में सरकार कड़े कानून के साथ आती है तो इससे बेहतर विकल्प और क्या हो सकता है। सरकार को इस संबंध कार्रवाई करने के लिए मौका देना चाहिए। बता दें कि 19 जुलाई को बिहार के छपरा में तीन लोगों की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी। दरअसल लोगों को यह संदेह था कि आरोपी पशु तस्करी में शामिल हैं। इससे पहले 2 जुलाई को बिहार के वैशाली में एक अज्ञात शख्स को इसी तरह मार दिया गया था। 18 जून को झारखंड के खरसावां जिले में तबरेज अंसारी को चोरी के शक में भीड़ ने पीट पीटकर मारा डाला था।
प्रचा और मुस्लिम धर्मगुरुओं बताएं क्या समाजवादी पार्टी के विधायक का कैराना के मुसलमानों से हिन्दुओं की दुकान से कोई सामान न खरीदने देने का बयान साम्प्रदायिकता से प्रेरित नहीं? और जब हिन्दुओं की प्रतिक्रिया होगी, उस स्थिति में मुसलमानों की क्या स्थिति होगी, सोंचा? यानि पहले तो आग लगा दो, फिर कहो कि मुसलमानों के साथ भेदभाव हो रहा है, यह कौन-सी दोगली नीति खेली जा रही है?
देखिए वीडियो :-
सवाल ये है कि महमूद प्राचा और मुस्लिम धर्मगुरुओं का इस तरह के बयान के पीछे का मकसद क्या है। जानकार कहते हैं दरअसल हाल के दिनों में जिस तरह से मॉब लिंचिंग की घटनाएं सामने आई हैं उसके बाद उन्हें लगता है कि बीजेपी शासित सरकारों में मुस्लिम तबका सुरक्षित नहीं हैं। लेकिन वो लोग भूल जाते हैं कि इस तरह की घटनाएं सिर्फ बीजेपी शासित राज्यों में नहीं हो रही है। कांग्रेस शासित राज्यों खासतौर से मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी इस तरह की वारदातें हुई हैं। ऐसे में सिर्फ बीजेपी को घेरने की वजह से ये संदेश जाता कि मुस्लिम समाज से जुड़े हुए कुछ लोग राजनीतिक ए़जेंडे के तहत बयान दे रहे हैं।
केन्द्र और उत्तर प्रदेश सरकारों को इन दोनों बातों का संज्ञान लेकर किसी अनहोनी को रोकने के लिए सख्त कदम उठाने होंगे, अन्यथा फिर #moblynching, #intolerance, #awardvapsi और #not in my name आदि गैंग सक्रिय होकर सौहार्द बिगाड़ने में लामबंद हो जाएंगे।   

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