दिल्ली की आबोहवा साफ रखने की दिशा में उठाया बड़ा कदम
21वीं सदी के मुहाने पर खड़ी दिल्ली की आबोहवा दमघोंटू हो चली थी। सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद दिल्ली में डीजल से चलने वाली डीटीसी बसों को सीएनजी में बदलने का फैसला लिया गया। शीला दीक्षित के मुख्यमंत्रित्व काल में 2001 में 2000 डीटीसी बसों की पहली खेप सड़कों पर आई। इसके बाद चरणबद्ध तरीके से डीटीसी के पूरे बेड़े को सीएनजी में बदल दिया गया। लो फ्लोर सीएनजी और वातानुकूलित बसों का संचालन शीला दीक्षित की देन है। प्रकृति प्रेमी दिवंगत मुख्यमंत्री दिल्ली की हरियाली बढ़ाने को लेकर भी सजग थीं।
बिजली वितरण व्यस्था का निजीकरण, 24 घंटे बिजली
शीला दीक्षित सरकार ने बिजली वितरण व्यवस्था का निजीकरण किया। इसके लिए तीन अधिकारियों की कमेटी की नियुक्ति की थी। इस पर सीधी निगरानी शीला दीक्षित की थी। निजीकरण के बाद राजधानी में बिजली की कटौती तकरीबन खत्म हो गई है। वहीं, प्रेषण व वितरण में होने वाला नुकसान भी काबू में आया।
राजनीतिक सफर
शीला दीक्षित का राजनीतिक सफर शानदार रहा और उन्होंने कांग्रेस पार्टी के अंदर बेहद अहम भूमिका निभाई। उन्होंने दिल्ली और केंद्र की सत्ता में भी योगदान दिया। राजनीतिक जीवन के अलावा शीला दीक्षित अपने निजी जीवन को लेकर भी तब सुर्खियों में आई थीं जब उन्होंने अपनी किताब 'सिटीजन दिल्ली: माय टाइम्स, माय लाइफ' में निजी जिंदगी के किस्सों का जिक्र किया था।
उन्होंने किताब अपने जीवन के बारे में खुलकर लिखा था। किताब में उन्होंने बताया था कि उनके पति विनोद दीक्षित ने उन्हें एक बस में शादी के लिए प्रपोज किया था और दोनों को एक दूसरे का जीवनसाथी बनने के लिए 2 साल का इंतजार भी करना पड़ा था। जिस समय विनोद दीक्षित से उनकी मुलाकात हुई तब शीला प्राचीन भारतीय इतिहास का अध्ययन कर रही थीं।
शीला अपनी किताब में लिखती हैं कि विनोद काफी अलग से थे और उनकी धारणा भी विनोद को लेकर अलग थी। शीला दीक्षित के अनुसार विनोद एक अच्छे क्रिकेटर थे। जब दोनों के दोस्तों के बीच प्रेम को लेकर विवाद हुआ था तो शीला और विनोद ने उसे सुलझाने में मदद की थी और इसी बहाने दोनों एक दूसरे के करीब आ गए थे।
100 रुपए वेतन में शीला दीक्षित ने की नौकरी
जब विनोद ने शीला को शादी के लिए प्रपोज किया था तो दोनों के माता पिता इस बात को लेकर आशंकित थे कि उनका गुजारा कैसे होगा। शीला ने मोतीबाग में एक दोस्त की मां के नर्सरी स्कूल में 100 रुपए के वेतन पर नौकरी की थी और इस दौरान पति विनोद आईएएस की तैयारी में लगे रहे थे। साल 1959 में विनोद का चयन भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में हो गया था। उन्होंने यूपी कैडर को चुना था।
इंदिरा लहर में जीता चुनाव
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की मौत के बाद पूरे देश में कांग्रेस की लहर चल रही थी। इस दौरान कांग्रेस ने शीला दीक्षित को उत्तर प्रदेश के कन्नौज सीट से लोकसभा का टिकट दिया। शीला चुनाव यहां से जीतकर पहली लोकसभा की सांसद चुनी गई थी। इसी दौरान उन्होने महिलाओं की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र आयोग में प्रतिनिधित्व किया था।
इंदिरा गांधी के देहांत के बाद राजीव गांधी जब देश के प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने शीला दीक्षित को पहले संसदीय कार्य राज्यमंत्री और फिर पीएमओ का मंत्री बनाया था। साल 1998 में शीला दीक्षित को बीजेपी के लालबिहारी तिवारी ने लोकसाभा चुनाव हरा दिया। लेकिन इसके बाद सोनिया गांघी के हाथ पर पार्टी की कमान आई तो उन्होंने शीला दीक्षित को दिल्ली का सीएम उम्मीदवार घोषित किया।
पहली महिला मुख्यमंत्री
शीला दीक्षित 1998 से 2013 तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रही थी। वह ऐसी पहली महिला थी जो लगातार 15 वर्ष तक किसी राज्य
की मुख्यमंत्री रही थी। शीला दीक्षित के समय में राजधानी में मेट्रो, बीआरटी कॉरिडोर बनाया था। इसके साथ ही शीला दीक्षित ने दिल्ली को ग्रीन कैपिटल भी बनाया था।
मृद भाषी
कांग्रेस की वरिष्ठ नेता शीला दीक्षित उन नेताओं की सूची में शामिल थी जो अपने बयानों को लेकर काम बल्कि अपने कामों की वजह से ज्यादा जानी जाती थी। उनके आम तौर पर सभी दल के नेताओं के साथ मधुर संबंध थे। वह बहुत मृद भाषी थी। शीला दीक्षित का जनता के साथ सीधा जुड़ाव था। आज भी जनता शीला दीक्षित के राजधानी दिल्ली में किए गए कामों को याद करती है।
गांधी परिवार की करीबी
शीला दीक्षित गांधी परिवार की काफी खास थी। इंदिरा गांधी के देहांत के बाद जब उनका पार्थिव शव लेकर राजीव गांधी हवाई जहाज से कोलकाता से दिल्ली आ रहे थे, तो उस वक्त भी शीला उसी प्लेन में मौजूद थी। शीला दीक्षित का राजीव गांधी, सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी सभी के साथ हमेशा करीबी संबंध था।
उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री चेहरा थी शीला दीक्षित
हालांकि 2013 में दिल्ली की सत्ता से हाथ धोने के बाद भी शीला दीक्षित का राजनीतिक कद कम नहीं हुआ। उनके राजनीतिक रसूक का अंदाजा इसी बात से लागाया जा सकता है कि पार्टी ने उन्हें केरल का राज्यपाल बनाकर भेज दिया। इसके बाद जब 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव होने थे तो पार्टी ने सीएम चेहरा भी घोषित किया, हालांकि उन्होंने सपा- कांग्रेस का गठबंधन होने के बाद बीच चुनाव में ही अपना नाम वापस ले लिया था।
राज्य कांग्रेस की चीफ थी शीला दीक्षित
कांग्रेस को जब भी शीला दीक्षित की जरूरत पड़ी वह हमेशा पार्टी के लिए तैयार रही। चाहे वह 1998 में दिल्ली में कांग्रेस को सत्ता दिलाने की रही हो या फिर 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान दिल्ली प्रदेश कांग्रेस की कमान। शीला ने हमेशा पार्टी के लिए बढ़- चढ़कर काम किया। कांग्रेस ने दिल्ली में आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए शीला दीक्षित को 10 जनवरी 2019 को प्रदेश अध्यक्ष बनाया था।
शीला दीक्षित पहली बार दिल्ली विधानसभा के लिए 1998 में गोल मार्केट निर्वाचन क्षेत्र से चुनी गई थी। वह यहां से 10 साल विधायक रही। इसके बाद वह 2008 में नई दिल्ली विधानसभा सीट से चुनाव जीतकर विधायक बनी। इस दौरान शीला दीक्षित को उनके कामों के लिए कई संस्थानों ने सम्मानित भी किया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी शीला दीक्षित के निधन पर गहरा दुख जताते हुए उनके साथ अपनी एक पुरानी तस्वीर को ट्वीट करते हुए लिखा, 'शीला दीक्षित जी के निधन से गहरा दुख हुआ हैष मिलनसार व्यक्तित्व के साथ उन्होंने दिल्ली के विकास में उनका उल्लेखनीय योगदान हमेशा याद रहेगा। उनके समर्थकों और परिवजनों के प्रति मेरी संवेदनाएं।'
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी दिल्ली शीला दीक्षित के निधन पर दुख जताते हुए ट्वीट कर कहा, 'अभी अभी श्रीमती शीला दीक्षित जी के निधन की बेहद दुखद खबर के बारे में पता चला है। यह दिल्ली के लिए बहुत बड़ी क्षति है और उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा। उनके परिवार के सदस्यों के प्रति मेरी हार्दिक संवेदना। उनकी आत्मा को शांति मिले।
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